भगवान का महल चाहिए की बेघरो को घर चाहिए


 लाखों भव्य मंदिर मस्जिद चर्च और करोड़ो बेघर लोग


भूखे गरीबों को भोजन की आवश्यकता होती है,या भगवान को घी मक्खन दूध दही की आवश्यकता होती है? 
Lakhs grand temple mosque church and millions of homeless people,बेघर,गरिब,भुखा,poor,


(Lakhs grand temple mosque church and millions of homeless people
The hungry poor need food or does God require tons of ghee butter milk curd? Do people sleeping on the sidewalk need houses or does God want millions of homes?)
bhookhe gareebon ko bhojan kee aavashyakata hotee hai ya bhagavaan ko ghee makkhan doodh dahee kee aavashyakata hotee hai? kya phutapaath par so rahe logon ko gharon kee zaroorat hai ya bhagavaan ko laakhon ghar chaahie?


इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले जो प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण हुआ था , वहाँ पर कोई भी मंदिर मस्जिद चर्च मौजुद नही थी | हलांकि उस समय दुनियाँ के बाकि भी हिस्सो में कोई हिन्दू मुस्लिम ईसाई वगैरा धर्म के मंदिर मस्जिद चर्च मौजुद नही थी | क्योंकि तब न तो मुस्लिम धर्म का जन्म हुआ था , न ईसाई धर्म का जन्म हुआ था और न ही मंदिरो में देवता पुजा होता था | क्योंकि तब दुनियाँ के जो भी क्षेत्र कृषि अधारित सभ्यता संस्कृति का विकाश कर रहे थे , वहाँ ज्यादेतर या फिर सभी लोग प्रकृति पुजक थे | जैसा कि इस कृषि प्रधान देश में भी हजारो सालो से प्रकृति की पुजा भगवान के रुप में होती आ रही है | जिस प्रकृति से जुड़ी हुई पर्व त्योहार हिन्दू कलैंडर अनुसार आज भी बारह माह मनाई जाती है | जिस प्रकृति पुजा और प्रकृति पर्व त्योहार से न तो कोई दंगा फसाद होता है , और न ही प्राकृति पुजा के लिए कोई ऐसा मंदिर मस्जिद चर्च की आवश्यकता होती है , जहाँ पर कोई खास धर्म के लोग ही पुजा करने प्रवेश करते हैं | क्योंकि प्राकृति सभी धर्मो के लोगो के लिए बराबर है | जैसे की प्राकृति में मौजुद बिजली हवा पानी सबके लिए बराबर है , न कि बिजली किसी को झटका देते समय यह देखती है कि कोई यहूदि ईसाई है कि मुस्लिम ? रही बात फिर प्रकृति की पुजा करने वाला हिंदू मंदिरो में मुस्लिम यहूदि ईसाई वगैरा को प्रवेश मना क्यों है ? तो जिस तरह प्रकृति हवा पानी लेना और सुर्य की रौशनी लेना किसी भी धर्म के लोगो को मना नही है , उसी तरह जिसे भी यह लगता है कि ये हवा पानी और सुर्य की प्रकाश वगैरा प्रकृति की कृपा के द्वारा ही इंसानो की जिवन ही नही बल्कि सृष्टी में मौजुद जिव निर्जिव सबकी जिवन चक्र जुड़ा हुआ है , वह प्राकृति की पुजा अपनी आस्था और विश्वाश से कर सकता है | जो प्रकृति चारो और साक्षात मौजुद है , जिसकी पुजा करने के लिए कोई मंदिर मस्जिद चर्च जाने की भी जरुरत नही है | क्योंकि जैसा कि बतलाया कि इस कृषि प्रधान देश में प्रकृति भगवान की पुजा करने के लिए पहले कोई हिंदू मंदिर मौजुद नही थे | हिंदू मंदिरो का निर्माण तो दरसल मनुवादियों द्वारा बनवाना तब सुरु किया गया , जब उन्होने हिन्दू वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके , अपने पुर्वज देवो को भगवान घोषित करके देवो की मूर्ति पुजा करना सुरु किया है , इसलिए उन्होने उस प्रकृति पुजा स्थलो में देवता मंदिरो का निर्माण सुरु किया , जहाँ पर इस देश के मुलनिवासियों ने किसी प्रकृति का प्रतिक जैसे की पत्थर पेड़ पौधा वगैरा का पुजा करके प्रकृति पर्व त्योहार खुले में मनाया जाता है , न कि कमरो के अंदर मंदिरो में मनाया जाता है |  लेकिन चूँकि मनुवादियों ने हिन्दू वेद पुराणो की हिन्दू मान्यताओं और हिन्दू सभ्यता संस्कृति को समाप्त करने की मकसद से भी प्राकृति पुजा स्थलो  पर अपने पुर्वज देवता मंदिर का निर्माण करके ढोंग पाखंड का व्यापार सुरु किया | हलांकि उन बहुत से देवता मंदिरो में भी प्रकृति पुजक हिन्दूओं को आज भी प्रवेश मना है | मनुस्मृति पुरी तरह से लागू के समय तो वेद सुनना वेद का उच्चारण करना भी इस देश के मुलनिवासियों के लिए मना किया गया था , तो बाकि धर्म के लोग तो वैसे भी न तो देव मंदिरो में प्रवेश कर सकते थे , और न ही वेद सुन सकते थे | आज के समय में भी तो मनुवादी शासन में सरकार द्वारा अन्न जल में ध्यान न देकर ज्यादेतर मंदिर मस्जिद चर्च बनाने में ध्यान दिया जा रहा है | जिसके चलते लाखो मंदिर मस्जिद चर्च बनाने की विकाश इतनी तेजी से हो रही है कि आज चाहे शहर हो या ग्राम सभी जगह चाहे स्कूल अस्पताल बल्कि रहने के लिए करोड़ो लोगो के पास क्यों न अपना छोटा सा घर भी न हो , और वे खुले में सोकर मच्छरो और गाड़ियो का शिकार हो रहे हो , और ठंड और बारिस से भी बच्चे बुढ़े और महिलायें मर रहे हो , पर मंदिर मस्जिद और चर्च बनाने का विकाश आज भी तेजी से चल रहा है | जिन मंदिर मस्जिद और चर्चो में इतने भव्य मंदिरें भी है , जिसे बनाने वाले खर्च से हजारो लाखो बेघर लोगो की घर बनाई जा सकती थी | रही बात भगवान का घर का तो भगवान के लिए तो मानो पुरी सृष्टी ही घर है | जिसके लिए अनेको मंदिर मस्जिद और चर्च बनाकर भगवान हम तुम्हारे लिए अलग अलग से लाखो घर इस पृथ्वी में बना रहे हैं , जिसमे तुम रहना यह कहकर लाखो मंदिर मस्जिद चर्च बनाकर आपस में मंदिर मस्जिद चर्च के नाम से लड़कर अपनी प्राण गवाना मुझे तो बचपन में बच्चो के द्वारा मिट्टी या बालु का घरौंदा बनाकर घर घर खेलते समय आपस में लड़ाई लड़ने जैसे हालात से भी ज्यादे बचपना लगता है | जिस तरह की लड़ाई और मंदिर मस्जिद चर्च की बड़ौतरी और विकाश से गरिबी भुखमरी दुर नही हो सकती , और न ही बेरोजगारी दुर होगी | दुर होती तो पुरी दुनियाँ में एक आंकड़े के अनुसार जो हर रोज 25000 लोग गरिबी भुखमरी से मर जाते हैं , उनकी मौत को ये मंदिर मस्जिद और चर्च जरुर रोक सकती थी | क्योंकि मुझे पुरा यकिन है इन मंदिर मस्जिद और चर्चो में सबसे अधिक गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी जिवन जी रहे लोग ही अपनी बुरे हालात में चमत्कारी सुधार हो इसकी उम्मीद करके भगवान से आशीर्वाद लेने जाते हैं | लेकिन अफसोस इन्ही लोगो की असमय मौत पुरी दुनियाँ में हर रोज सबसे अधिक हो रही है | हाँ यदि इन मंदिर मस्जिद और चर्च के नाम से जो धन संपदा जमा होता जा रहा है , उसे यदि गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी को दुर करने के लिए प्रजा का धन संपदा प्रजा के ही बुरे दिनो की सुधार के लिए खर्च कर दिया जाता तो निश्चित तौर पर न हर रोज पुरे विश्व में पचीस हजार लोग गरिबी भुखमरी से मरते , और न ही इतनी बेरोजगारी रहती | मसलन इस देश के हिन्दू मंदिरो के बारे में कहीं पर जानकारी ले रहा था कि एक एक मंदिरो में इतना सारा सोना मौजुद है कि उसे यदि राष्ट्रीय संपत्ती घोषित कर दिया जाय तो एक झटके में एक डॉलर एक रुपये के बराबर हो जायेगी | बल्कि रुपया डॉलर को भी पार कर जायेगी | वैसे तो मैं डॉलर और रुपये की प्रतियोगिता को विकाश का सही पैमाना नही मानता हूँ , क्योंकि यदि ये पैमाना सही होता तो देश जब गोरो से गुलाम था उस समय एक डॉलर और एक रुपया बराबर था | फिर तो गोरो के शासन में यह देश ज्यादे विकसित था | क्योंकि गुलामी से अजादी मिलने के बाद आज एक रुपये और एक डॉलर की दौड़ में औसतन उम्र 70 से भी अधिक मुल्य रुपये की तुलना में डॉलर पार कर गया है | क्योंकि एक डॉलर के लिए इस देश को अब 71₹ देना पड़ रहा है | यानि यदि यह देश या इस देश के लोगो द्वारा अजादी से पहले विदेशीयो से कर्ज लिया होगा तो अब वह कर्ज देने वाला विदेशी को कर्ज के बदले सुध अथवा ब्याज से ज्यादा मुल धन का 71 गुणा वसुली डॉलर का मुल्य बड़ने से कर रहा होगा | क्योंकि यदि कोई एक रुपया कर्ज लिया होगा और उसका ब्याज माफ हो जायेगा तो भी उसे बिना सुध अथवा ब्याज दिये भी 1₹ के बदले 71₹ वापस करना पड़ेगा | यानी आज यदि कोई भारतीय कोई विदेशी सामान खरिदने का मन बनाता है तो सरकार उस सामान को 71गुणा ज्यादे मुल्य चुकाकर विदेशो से आयात करती है | जो आयात करने के लिए सालोभर विदेशी दौरा में ज्यादा ध्यान देने के बजाय यह सरकार यदि जमिन से जुड़ी हुई कार्यो में ज्यादे ध्यान देती तो आज इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश में हर रोज हजारो लोगो की मौत गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी जैसे मुल समस्याओ से नही होती | ऐसे बुरे दिनो में सरकार द्वारा अपने किये गए गरिबी हटाओ और हर साल दो करोड़ को रोजगार देने जैसे वचनो को निभाने में यदि अपनी प्राण भी नौछावर कर देती तो भी इतिहास में कम से कम इसके लिये जरुर याद की जाती की प्राण जाय पर वचन न जाय विचारो को जो सरकार फोलो करने की बाते करती थी वह सचमुच में प्राण जाय पर वचन न जाय वाली सरकार सिद्ध हुई , भले लाखो करोड़ो प्रजा का प्राण भी नही बचा पाई गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी जैसे मुल समस्याओ से बाहर न निकाल पाने की वजह से | पर ऐसे खास वचनो को भी न निभाने और इन सरकारो के वचन फर्जी अथवा झुठे साबित  होने की वजह से चारो ओर गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी जैसी मुल समस्याओ से हर रोज हजारो लोगो की प्राण जाना निश्चित है | क्योंकि ये सरकार प्राण जाय पर वचन न जाय नही बल्कि हर रोज हजारो की प्राण जाय पर सरकार न जाय इसके लिए ये सरकार चुनाव भी फर्जी तरिके से करा रही है यह आरोप खुद वर्तमान की सरकार में मौजुद प्रधान सेवक ने खुद कहा था कि  "भाईयो बहनो ये दुनियाँ के पढ़े लिखे देश में भी जब चुनाव होता है न तो बैलेट पेप्पर पर नाम पढ़करके ठपा मारते हैं आज भी "

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