In 1947, when the Manuvadis gained independence, the indigenous people again returned to Manuwadi slavery

 

1947 में, जब मनुवादियों ने स्वतंत्रता प्राप्त की, स्वदेशी लोग फिर से मनुवादी गुलामी में लौट आए।

In 1947, when the Manuvadis gained independence, the indigenous people again returned to Manuwadi slavery,अजादी संघर्ष,शोषण,अत्याचार,गुलामी,वीर,शहिद,क्रांतीकारी,विद्रोह,आंदोलन


1947 mein, jab manuvaadiyon ne svatantrata praapt kee, svadeshee log phir se manuvaadee gulaamee mein laut aae.


सोने की चिड़िया कहलाने वाला इस कृषि प्रधान भारत देश को कई बार गुलाम किया गया है | जिसे गुलाम करने वाले कबिलई लुटेरे हमेशा पश्चिम से ही आते रहे हैं | जिन पश्चिम से आए विदेशियों से इस कृषि प्रधान देश भारत को अबतक भी पुरी तरह से अजादी नही मिली है  | कहने को तो हमे 1947 ई० में ही अजादी मिल गई है , पर सच्चाई तो यह है कि इस कृषि प्रधान देश और इस देश के मुलनिवासियो को अबतक पुर्ण अजादी नही मिली है पश्चिम से आए उन कबिलई लुटेरो से | जिनमे सबसे पहले यूरेशिया से मनुवादी आए थे , उसके बाद कबिला में कबिला पश्चिम से प्रवेश करना सुरु हो गये | क्योंकि इस देश में इतनी प्रकृति खनिज संपदा है कि सैकड़ो हजारो सालो तक इस देश को न जाने कितने कबिलई लुटेरो ने लुटा है , पर अबतक भी वे इस देश की धन संपदा को इतना लुट नही सके कि यह देश अब प्रकृति खनिज संपदा से गरिब कहलाये | बल्कि आज भी इस देश में सरकारी आंकड़ो अनुसार ही इतनी प्रकृति धन संपदा है कि उसे यदि सभी नागरिक को बांटा जाय तो सभी करोड़पति हैं | यू ही आज भी इस देश में इतनी जनसंख्या के साथ साथ कई देशो की हजारो विदेशी कंपनीयाँ नही पल रहे हैं | हजारो विदेशी कंपनियों को फलने फुलने के लिए लाभ हो रहा है तभी तो वे यहाँ डेरा डाले हुए हैं | बल्कि कई और विदेशी कंपनियाँ तो कतार में लगकर समझौते का इंतजार कर रहे हैं | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में सुरु से ही व्यापार को फलने फुलने का अनुकुल वातावरण मौजुद है | जिसके चलते सैकड़ो हजारो सालो से कई देशो से अनगिनत व्यापारियों का आना जाना लगा रहा है | हलांकि अब बार बार ध्यान भटकाने वाली ये खबरे चलाई जाती रहती है कि देश की आर्थिक हालत खराब होने की वजह से कई देशो की विदेशी कंपनियाँ अब यह देश छोड़कर भाग रही है | जबकि सच्चाई तो यह है कि देश की आर्थिक हालत कभी खराब ही नही हुआ है | और न कभी होगा , जबतक की इस प्रकृति की पुजा करने वाले देश को प्रकृति की कृपा मौजुद बनी रहेगी | बल्कि आर्थिक हालत इस देश के मुलनिवासियों की हो गई है | वह भी इस देश को और इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को लुटने वाले विदेशी कबिलई की वजह से | जिनमे से एक खास विदेशी कबिला तो अब भी मानो इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को लुटने के लिए अपनी खास मकसद से ही मौजुद है | जो कि यूरेशिया से संभवता सबसे पहले इस देश में आया है | और सैकड़ो हजारो सालो से इस देश का अन्न जल खा पीकर थाली में मानो लंबे समय तक अनेको छेद करता आ रहा है | जो इस देश के ही मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर इस देश का शासक बनकर गरिबी भुखमरी को जान बुझकर बरकरार रखे हुए है | धिरे धिरे मानो अनगिनत मुलनिवासियों की जानबुझकर हत्या किया जा रहा है | नही तो जैसा कि मैने बतलाया कि इस देश की आर्थिक हालत खराब नही हुआ है | और न ही पहले कभी खराब था , बल्कि इस देश के मुलनिवासियों को गरिब बनाया गया है , उनके हक अधिकारो को लुटकर | जिसे सारांश में समझा जाय तो अपना पेट पालने के लिए लंगटा लुचा जिवन जिने वाले विदेशी कबिलई लुटेरे इस देश में आकर इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को लुटकर लंगटा लुचा से सबसे उच्चा खुदको बनाकर आज दुनियाँ के सबसे अमिरो में गिनती आने लगे हैं | और इस देश के असली मालिक जो कि इस देश के मुलनिवासि हैं , जो कभी दुनियाँ के सबसे अमिरो में गिने जाते थे , उनमे से आज करोड़ो मुलनिवासी दुनियाँ के सबसे अधिक गरिब लोगो की लिस्ट में आते हैं | जिनका यह कृषि प्रधान देश सोने की चिड़ियाँ कहलाता था | जो कि अब भी है , पर उस देश के मुल मालिको का हक अधिकारो को पश्चिम से आए लंगटा लुचा कबिलई द्वारा लुटकर उच्चा बनने के बाद अब इस देश के करोड़ो मुलनिवासी सबसे अमिरो में नही बल्कि दुनियाँ के सबसे गरिबो के लिस्ट अथवा BPL लिस्ट में आते हैं | जिन्हे गरिबी रेखा से भी निचे का जिवन में जानबुझकर मरने के लिए पिड़ी दर पिड़ी छोड़कर धिरे धिरे हर रोज सैकड़ो हजारो मुलनिवासियों की हत्या किया जाना जारी रहा है | जिनकी रोजमरा जिवन में गरिबी की वजह से जिन्दा रहने के लिए विभिन्न जरुरत की चिजे कमी होने की वजह से अपनी जान गवानी पड़ रही है | क्योंकि उनके पास मुलभुत जरुरत की चीजे जैसे पानी और दवा की भी व्यवस्था मनुवादी सरकार जानबुझकर नही कर रही है | जैसे की कभी गोरे नही कर रहे थे | कहने को तो पुरी दुनियाँ में यह कहकर डंका बार बार बजाया जाता है कि यह सरकार गरिबो की है , पर गोरो के जाने के बाद जो सरकार बार बार लगातार बनते आ रही है उनमे गरिबी हटाओ कहकर कांग्रेस ने साठ साल लगातार शासन करने के बाद भी देश में गरिब बीपीएल की अबादी अब भी इतनी मौजुद है , जितना की लगभग गोरो से अजादी मिलते समय पुरे देश की अबादी यानी लगभग चालीस करोड़ थी | जितनी अभी बीपीएल अथवा गरिबी रेखा से भी निचे का जिवन जिने वाले लोगो की अबादी है | जो कि मानो मौत के ऐसी लाईन में कई पिड़ी से लगे हुए हैं , जो कि नोटबंदी कतार से भी खतरनाक है | नोटबंदी कतार में तो सिर्फ सैकड़ो में मौते हुई थी पर गरिब बीपीएल कतार में गोरो से मिली अजादी से लेकर अबतक लाखो बल्कि किसी किसी जानकारो के आंकड़ो को यदि यकिन किया जाय तो करोड़ो मौते गरिबी भुखमरी और अभावग्रस्त से हो चुकि है | जिस मौत की लाइन को गोरो से अजादी मिलने और संविधान लागु होकर सबको जिने का अधिकार मिलने के बावजुद भी अबतक बरकरार रखा गया है | जिसे बरकरार रखकर कोरोना बिमारी से भी अधिक मौते हर दिन देनेवाली सरकार दरसल चूँकि मनुवादी सरकार है , इसलिए गरिबी भुखमरी का इस तरह से बरकरार रखा जाना अबतक जारी है | गरिबी भुखमरी देकर ही तो मनुवादी इतनी अमिरी इस देश और इस देश के मुलनिवासियों से लिए हैं | या कहुँ मच्छड़ खटमल और जू की तरह दुसरो की अमिरी को चूसकर सबसे अधिक अमिर बने हुए हैं | जिसके चलते उनका नाम आज के समय में दुनियाँ के सबसे अमिरो की गिनती में टॉप पर रहता है | जबकि इस देश के करोड़ो मुलनिवासी जैसा की बतलाया दुनियाँ के सबसे अधिक गरिब लोगो की लिस्ट में गिने जाते हैं | जाहिर है यह देश गरिब नही हुआ है , बल्कि इस देश के मुलनिवासी गरिब हुए हैं | जिनके हक अधिकार को लुटकर गरिब किया गया है | साथ साथ उनके सत्ता में भी छल कपट और घर के भेदियों की सहायता से कब्जा किया गया है | जो कब्जा जिसदिन हटेगी अथवा मनुवादी से अजादी जिसदिन भी मिलेगी उसदिन से गरिबी रेखा से निचे की जिवन जिने वाले सारे बीपीएल नागरिक तरकी करके गरिबी रेखा से उपर की गरिबी ही नही बल्कि सभी मुलनिवासियों की गरिबी ही हट जायेगी | क्योंकि मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिलने के बाद इस देश के मुलनिवासियों के मुल हक अधिकार वापस आ जायेंगे | जिसके बाद वे फिर से इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश की सुख शांती और समृद्धी को अपडेट करेंगे | पर उससे पहले उन्हे खुदको अपडेट करना होगा मनुवादी से पुर्ण अजादी पाकर | जो अजादी इस देश के मुलनिवासी चाहे तो एक झटके में पा सकते हैं | जिसके लिए मनुवादी पार्टी जो की एक दुसरे को प्रमुख विरोधी बताकर केन्द्र में अबतक अदला बदली करके बारी बारी से लंबे समय तक शासन करते आ रहे हैं , जो चाहे वोट से चुनाव जितते आ रहे हो या फिर चुनाव घोटाला करके नोट से जितते आ रहे हो , पर उस पार्टी से कोई भी मुलनिवासी चुनाव न लड़े | और न ही उस पार्टी को कोई मुलनिवासि वोट दें | जो कदम उठाते ही यदि चुनाव घोटाला करके भी जितते आ रहे हैं तो भी वे दुबारा चुनाव घोटाला करके भारी बहुमत से चुनाव कभी नही जित पायेंगे | और उन्हे इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासी जो कि चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , जिन सभी का एक ही डीएनए है , जो न अरब यूरोप व यूरेशिया के हैं , वे सभी मिलकर एक झटके में भारी बहुमत से हरा देंगे | और फिर भारी बहुत से हराने के बाद शासक बनकर अपने छिने हुए हक अधिकारो को वापस लेना सुरु कर देंगे | जिन्हे मनुवादीयों से अजादी संघर्ष को और अधिक लंबे समय तक लड़ने की भी जरुरत नही पड़ेगी , और मनुवादीयों की दबदबा जो की लोकतंत्र के चारो स्तंभो में बरकरार है , वह बरकरारी सिधे आसमान से गिरकर जमिन में नाक के बल गिरेगी | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासी सोने की चिड़ियाँ के साथ वापस समृद्धी उड़ान उड़ते हुए उस उचाई को छु लेंगे जिसे देख सुन और पढ़कर ही तो सैकड़ो हजारो सालो से इस देश में अनगिनत विदेशी कबिलई लुटेरे और अनगिनत विदेशी व्यापारी भी आते रहे हैं | जिसके बारे में पुरा इतिहास भरा पड़ा है | इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश में सैकड़ो हजारो सालो से मानो पुरी दुनियाँ के अमिरी रस चुसने वाले मधुमख्कीयों के साथ साथ हक अधिकार खुन चुसने वाले मच्छड़ खटमल और जू भी आते रहे हैं | जिनमे से थोड़ी बहुत अमिरी चुसने वाले मधुमख्कीयाँ तो इस देश को हानि नही की है , बल्कि उनसे कुछ फायदा ही हुआ है , जैसे की मधुमख्कीयों से फुल के पौधो और फल फुल वाले पेड़ो को भी लाभ होता है | पर जो हक अधिकार खुन चुसने वाले मच्छड़ खटमल और जू द्वारा इस देश और इस देश के मुलनिशासियों को चुसा जाता रहा है , उससे इस देश और इस देश के मुलनिवासियों को हानि ही हानि हुआ है | ऐसी हानि जिससे की मानवता और पर्यावरण दोनो को ही बहुत ज्यादे नुकसान हुआ है | जो नुकसान अब भी हो रहा है | क्योंकि हक अधिकार खुन चुसने वाले अब भी इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में चिपककर ऐसी दबदबा बनाये हुए हैं , जैसे की वे मंदिरो में भी पुजारी बनने का दबदबा बनाये हुए हैं | जिस दबदबा का भरपुर लाभ ले रहे हैं | खासकर उच्च पदो के पावर का इस्तेमाल करके | जिसके जरिये इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को अब भी चुसा जाना जारी हैं | जिन हक अधिकार चुसने वालो से पुर्ण अजादी मिले बगैर इस देश के मुलनिवासी कभी भी इस देश को सुख शांती और समृद्धी अपडेट नही कर पायेंगे | क्योंकि इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले कृषि प्रधान देश को सिर्फ वही अपडेट कर सकते हैं | मनुवादी तो इस देश और इस देश के मुलनिवासियों को गुलामी अपडेट करके अब भी छुवाछुत शोषण अत्याचार से लेकर हक अधिकार चुसने वाले वैसे शासक हैं , जिनके पूर्वजो को इस देश में प्रवेश करने से पहले तक न तो शासन करने आता था , और न ही खेती करना आता था | बल्कि वे तो आज भी न तो ठीक से शासन करने जानते हैं , और न ही खेती करने जानते हैं | जिसका नतिजा प्रयोगिक रुप में पुरी दुनियाँ के सामने है कि इस देश में उनकी अबादी बहुसंख्यक मुलनिवासियों के अपेक्षा अल्पसंख्यक होने के बावजुद भी उनके द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में बहुसंख्यक मौजुदगी होकर और लंबे समय से शासन करके भी प्राकृति समृद्ध इतना अमिर देश का नेतृत्व ऐसे कर रहे हैं , जैसे की सायद उनके पुर्वज लुटपाट करते समय अपनी कबिलई झुंड बनाकर करते होंगे | जिसमे दुसरो की सेवा भावना नही बल्कि दुसरो को गुलाम बनाकर उनसे अपनी सेवा कराने की भावना रहती है | बल्कि इतिहास साक्षी है कि मनुवादी तो गुलाम प्रजा से अपनी पुजा तक कराते आ रहे हैं | जाहिर है मनुवादी शासन से पुर्ण अजादी मिले बगैर मैं तो कहूँगा अवसर पाकर गिने चुने मुलनिवासि चाहे जितना अमिर बन जाय , या फिर जितने उच्च पदो पर बैठ जाय , जबतक मनुवादी शासन से पुर्ण अजादी नही मिल जाती तबतक वह भितर से हमेशा खुदको अधुरा महशुस ही करेगा यदि उसे मनुवादी गुलामी का यहशास जरा सा भी है | जो यहशास उसे अपनी बड़ी कामयाबी के बावजुद भी हमेशा उसे बहुत बड़ा कमी महसुश कराता रहेगा | जैसे की बाबा अंबेडकर द्वारा देश विदेश में चौंतीस से अधिक उच्च डिग्री लेने से लेकर अजाद भारत का संविधान लिखने तक की भी उच्च कामयाबी लंबे संघर्षो के बाद पाने के बावजुद भी वे अपने अंतिम क्षणो में इतने ज्यादे दुःखी थे खास कमी को लेकर की उन्होने अपना धर्म ही बदल लिया | सायद ये सोचकर की उस कमी को मनुवादी शासन जबतक कायम रहेगी तबतक जिते जी पुरा करना तो अब मुमकिन नही है , पर अब मनुवादीयों की ढोंग पाखंड गुलामी से खुदको अजाद करके कम से कम अपने अंतिम क्षणो में हिन्दु धर्म परिवर्तन करके शांती मिले यह तो अब भी बिल्कुल मुमकिन है | लेकिन चूँकि मनुवादी मुल हिन्दु नही हैं , जो कि यहूदि डीएनए के यूरेशियन लोग हैं , जिनके रगो में इस कृषि प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली होली दीवाली और मकर सक्रांती जैसे प्रकृति पर्व त्योहारो के प्रति मुल भावना मौजुद ही नही है , जिसके चलते वे अबतक छुवाछुत भेदभाव करते आ रहे हैं , जो की हिन्दु धर्म और हिन्दु पर्व त्योहार कभी नही सिखलाता है , इसलिए इन आपस में मिल जुलकर भिड़ भड़ाका मेला लगाने वाले प्रकृति पर्व त्योहारो में वे मुलता मुल भावना से बड़ चड़कर कभी भाग ही नही लेते रहे हैं | बल्कि जो मनुवादी अबतक भी छुवाछुत को अपने पुर्वजो की सबसे किमती खजाना मानकर पिड़ी दर पिड़ी बरकरार रखे हुए हैं , वे तो संसद के बाहर भी छुवाछुत का बोर्ड लगाने का सपना दिन रात देखते रहते होंगे | जिस सोच वाले लोग इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियों से होली दीवाली मनाने के बारे में कैसे सोच सकते हैं ? और न ही वे इस देश के मुलनिवासियों का कभी बेहत्तर सेवा कर सकते हैं | और वैसे भी पुरी दुनियाँ जानती है कि ये हिन्दु पर्व त्योहार न तो यूरेशिया के हैं ,और न ही ये यहूदियों के हैं | जो जानकारी बाबा अंबेडकर को भी मौजुद थी | लेकिन भी वे हिन्दु धर्म मनुवादीयों का खास धर्म है , और इस देश के मुलनिवासि हिन्दु नही हैं , यह बात क्यों और कैसे कहे ये तो वही बेहत्तर बतला पाते यदि उनसे कोई कभी यह पुछा रहता कि जिनके रगो में यूरेशियन और यहूदि डीएनए दौड़ रहा है ,वह मुल हिन्दु कैसे और कब हुआ है ? जैसे कि गोरे पश्चिम देशो के होकर मुल इंडियन कैसे हो सकते थे ? शासक तो वे भी इस देश के कई पिड़ी तक रहे हैं , पर वे इस देश के मुल इंडियन हैं ये तो खुद गोरे भी कभी नही कहते थे | जैसे की कई मनुवादी भी खुदको विदेशी स्वीकार किये हैं | जो कि वे हैं भी , जो बात DNA रिपोर्ट से साबित भी हो चुका है | और इस कृषि प्रधान देश में मनाई जानेवाली होली दीवाली मकर सक्रांती जैसे कई प्रकृति पर्व त्योहार विदेशी नही है | जो बात पुरी दुनियाँ जानती है | जो की बारह माह कोई न कोई खास प्रकृति पर्व त्योहार के रुप में इस कृषि प्रधान देश में प्रकृति पर अधारित कलैंडर के अनुसार तब से मनाया जाता आ रहा है जब इस देश में मनुवादी आये भी नही थे | जो सभी पर्व त्योहार विदेशी लोगो के द्वारा इस कृषि प्रधान देश में लाया गया है इस बात पर विश्वास करना वैसा ही है जैसे कि इस देश में मौजुद अनगिनत भाषा बोली विदेशियों द्वारा लाया गया है | जानकारी के लिए तो यह भी इतिहास दर्ज है कि इंडिया और हिन्दु शब्द विदेशियो के द्वारा  लाया शब्द है | जो कि सिन्धु शब्द के बदले अपनी विदेशी भाषा बोली के अनुसार विदेशियों ने इंडिया और हिन्दु शब्द कहे हैं | रोम यूनान वगैरा के लोग अपनी भाषा बोली के अनुसार सिन्धु को इंडस कहे जिससे इस देश का नाम विदेशी भाषा में इंडिया तो वहीं अरब फारस के लोगो ने भी अपनी भाषा बोली के अनुसार सिन्धु को हिन्दु कहे हैं | तो क्या इसका मतलब हम सब यह मान लें की सिन्धु नदी और सिन्धु नदी के किनारे विकसित किया हुआ सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति विदेशियों के द्वारा लाया गया है ? जाहिर है इस कृषि प्रधान देश में खास मनाई जानेवाली होली दीवाली और मकर सक्रांती जैसे प्रकृति पर्व त्योहारो को न तो मनुवादी यूरेशिया से अपने साथ लाये हैं , और न ही यूरेशिया के लोग मुल हिन्दु हैं | रही बात  बाबा अंबेडकर के द्वारा अपना हिन्दु धर्म को बदलकर यह बात कैसे कह दिया गया है कि हिन्दु धर्म मनुवादीयों का मुल धर्म है , और मुल हिन्दु मनुवादी हैं , यह तो वही बेहत्तर बता सकते थे | हलांकि वे चाहे जितना बेहत्तर बताते सत्य तो यही है कि न तो मनुवादीयों ने इस कृषि प्रधान देश में मौजुद होली दीवाली और मकर संक्रांती जैसे प्रकृति पर्व त्योहारो को अपने साथ यूरेशिया से लाये हैं , और न ही यूरेशिया से आए मनुवादी मुल हिन्दु हैं | बल्कि कभी मुस्लिम शासक तो सभी मनुवादीयों से जजिया कर भी नही लेते थे उन्हे हिन्दु न मानकर ! क्या तब सभी मनुवादी इतने गरिब बीपीएल थे कि उनसे जजिया कर नही लिया जाता था ? यह सवाल इसलिए है क्योंकि कई मनुवादी यह तर्क देते हैं कि चूँकि जजिया कर गरिबो से नही लिया जाता था , इसलिए कथित उच्च जाति के हिन्दु से भी जजिया कर नही लिया जाता था | क्योंकि वे घंटा बजाकर अपना पेट पालते थे |

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