प्रचार

मंगलवार, 31 मार्च 2020

The corona virus is removed from sexual intercourse by a devil rider



 The corona virus is removed from sexual intercourse by a devil rider
khoj123

शैतान सवार इंसान द्वारा संभोग से कोरोना वायरस निकाला जाता है
(shaitaan savaar insaan dvaara sambhog se korona vaayaras nikaala jaata hai)

शैतान सवार इंसान को किसी निर्दोश की हत्या जैसे अपराध करने या कराने में किसी ड्रक्स करने या फिर सेक्स करने जैसा आनंद आता होगा | वह भी वैसा सेक्स के पुजारी जिन्हे सेक्स की पूर्ति करने के लिए किसी का बलात्कार करनी भी पड़े तो ऐसे मौत के पुजारियो के लिए आम बात है | जिसके चलते मानो वे जबतक जिवीत रहेंगे तबतक निर्दोश लोगो को मौत का घाट उतारकर जबरजस्ती भी दिनभर सेक्स या ड्रक्स करते हुए मौत का हवशी जिवन जीना चाहते हैं | वह भी वैसा सेक्स जिससे की शैतान कोरोना वायरस निकालकर अपनी हवश मिटाता है | शैतान सवार इंसान सेक्स करके कोरोना वायरस निकालकर अपनी हवश शांत करते रहते हैं | मैने तो आजतक किसी से सेक्स नही किया है , बल्कि किशोर अवस्था तक तो मैं यह समझता रहा कि बच्चा का जन्म पिच्छे से होता है | वह भी इसलिए समझता रहा , क्योंकि बचपन में किसी पालतु जानवर के पिच्छे से बच्चा होते हुए देखकर खुशी से उछल कुद करते हुए मन में यही बात किशोर अवस्था तक बिठाता गया कि इंसान का भी जन्म इसी तरह होता होगा | वैसे क्या पता कोरोना वायरस निकालने वाले का जन्म पिच्छे से ही हुआ हो ! जिसकी वजह से ही सायद उसका दिमाक इतना गंदा है | क्योंकि वह पिच्छे से गंदा निकलने वाले जगह से पैदा हुआ है | और उसके द्वारा मैथुन करते समय कोरोना वायरस निकलता है | खैर वह जहाँ से भी पैदा हुआ है , उसके पैदा होने से बहुत से निर्दोश लोगो की मौत हो रही है | क्योंकि उसके भितर मौत का हवश है | जिससे निकले कोरोना से बचने के लिए मैं यही सलाह दुँगा की शराब शबाब और कबाब से दुर रहना चाहिए  | जिसके लिए बहुत युद्ध और हत्याये हुई है | क्योंकि जिससे कोरोना निकलता है वह मौत देने के लिए शराब शबाब कबाब को ही सबसे खास माध्यम बनाता है | और वैसे भी मेरी न मानकर वैज्ञानिक डॉक्टर और अन्य जानकारो की भी माने तो कोरोना वायरस शराब शबाब और कबाब में कबाब अथवा मांस अथवा मांसाहारी जिवन से फैली है | बल्कि कोरोना वायरस के बारे में चीन से नफरत या जलन करने वालो के द्वारा वायरल किया गया खबर पढ़ देख रहा था कि चीन में कुत्ते बिल्ली बंदर वगैरा के मांस को भी खाने की जिस तरह की मांसाहारी जिवन जी जाती है , उससे ही कोरोना वायरस फैली है | जिस तरह की नफरत या जलन चीन से करने वालो को तो छुवाछुत गोरा काला भेदभाव वायरस जिन गुलाम दास दासी बनाने वालो से फैला है , उनके जिवन इतिहास के बारे में भी मंथन करना चाहिए कि ऐसी मांसिकता वाले लोग ऐसी वायरस कहाँ से निकालकर सैकड़ो हजारो सालो से फैलाये हैं ? जो वायरस चीन की जिवनशैली में मौजुद नही है | और न ही इस कृषि प्रधान देश भारत के जिवन शैली में मौजुद है | क्योंकि ये दोनो देश लंबे समय से गुलाम करने वालो के वायरस को झेले हैं | जो आज कोरोना वायरस को भी झेल रहे हैं | वैसे तो पुरी दुनियाँ के बहुत से देश गुलाम करने और छुवाछुत करने वालो के वायरस को भी झेले हैं | और आज कोरोना वायरस को भी झेल रहे हैं |

I believe that coronavirus has been spread to suppress the voice of freedom from discrimination exploitation atrocities



I believe that coronavirus has been spread to suppress the voice of freedom from discrimination exploitation atrocities
khoj123


मेरा तो यही मानना ​​है कि भेदभाव शोषण अत्याचार से आजादी की आवाज को दबाने के लिए कोरोनावायरस फैलाया गया है

(mera to yahee maanana ​​hai ki bhedabhaav shoshan atyaachaar se aajaadee kee aavaaj ko dabaane ke lie koronaavaayaras phailaaya gaya hai)

भेदभाव शोषण अत्याचार और भष्टाचार करने वालो के खिलाफ आंदोलन करके पुर्ण आजादी के लिए आवाज उठाया जा रहा है | जिस आवाज को दबाने के लिए कोरोना वायरस फैलाया जा रहा है | हिन्दी फिल्म कयामत में मौजुद बिलेनो के द्वारा किसी प्रयोगशाला में पैदा करके मौत देने की तरह ही किसी शैतान सवार इंसानो की सक्रिय गैंग जान बुझकर खास मकसद से कोरोना वायरस पैदा किया गया है |  जिसे भविष्य की नई पिड़ी पुर्ण अजाद भारत में पर्दाफाश जरुर करेगी | और शैतान बिलेनो की मौत भी भष्मासुर की तरह होगी | और नही होगी तो प्राकृति तो उन्हे बुढ़ा कर करके मौत का घाट उतारेगी ही उतारेगी | जिस बुढ़ापा से कोई नही बचा है | क्योंकि हमेशा जवान दिखने के लिए हजारो लाखो रुपये का मेकप करने वाले भी बुढ़ापा को नही रोक पाते हैं और वे भी समय आने पर बुढ़े होकर झुरियों से लदकर बुढ़ापा में लड़खड़ाते हुए जिवन जिते हुए अपनी जवानी को आईने में देखते हैं तो ये शैतान लोग तो वैसे भी दिमाकी रुप से लड़खड़ाये हुए रहते हैं | जिसके चलते ऐसे दिमाकी रुप से लड़खड़ाये हुए लोग बड़े बड़े उच्च डिग्री लेकर भी ज्ञान वरदान का गलत उपयोग करके किसी भष्मासुर की तरह ज्ञान वरदान का गलत उपयोग करके कोरोना वायरस जैसे मौत का वायरस को किसी प्रयोगशाला में पैदा किया जाता है | वह भी लुटपाट भ्रष्टाचार से जमा किया कालाधन से पैदा करवाया जाता है | जैसा कि कोरोना वायरस पैदा करवाया गया है | कोरोना वायरस को पैदा करने या करवाने वाले का जन्म उसके पिता के द्वारा निकले कोरोना वायरस से ही हुआ होगा | जिसके चलते वह भी अपने बाप पर जाकर  मैथुन करके कोरोना वायरस निकालकर फैला रहा है | जिसकी नशबंदी करने में फिलहाल तो दुनियाँ के कोई भी देश  सक्षम नही हो पा रहे हैं | क्योंकि किसी के पास इतनी विकसित यंत्र नही है कि उस कोरोना वायरस निकालने वाले शैतान का पता करके उसकी नशबंदी कर सके | हलांकि हत्या की हवश शांत करने के लिए उसके द्वारा निकाले गए कोरोना वायरस से जितने लोग नही मरे हैं , उससे कई गुणा लोग सरकार द्वारा नोटबंदी की तरह लोकडाउन करने से मर चुके होंगे , और हर रोज मर रहे होंगे | क्योंकि इस बहुत बुरे दिनो के दौर का भारत में हर साल लगभग डेड़ लाख लोग आत्महत्या करते हैं | जिसमे दस बारह हजार से अधिक तो सिर्फ छात्र आत्महत्या करते हैं | जिन आंकड़ो के अनुसार 21 दिनो की लोकडाउन में लगभग आठ नौ हजार लोग आत्महत्या कर चुके होंगे | जिनमे छः सात सौ तो सिर्फ छात्र आत्महत्या कर चुके होंगे | जिनकी भी मौत का लाईव आँकड़ा यदि दिखाया जाय तो गुगल सर्च,टी०वी० और अखबारो में भी बुरे दिनो की खबरो की महामारी फैल जायेगी | लेकिन फिलहाल तो कोरोना मौतो की आँकड़ा को एक साथ गिन गिनकर कितनी मौते अबतक हुई पल पल लाईव दिखाया जा रहा है | बाकि बिमारी या गरिबी भुखमरी , सड़क दुर्घटना मोटापा की वजह से होनेवाली मौते , बदहाली से हुई मौते , भ्रुण हत्या वगैरा की सैकड़ो हजारो की संख्या में हर रोज होने वाली मौत आँकड़ा की खबरे सालाना मौत की रिपोर्ट में एक साथ दर्ज होती है | जिससे पहले वही मौत की खबरे वायरल होती है जो वर्तमान की बुरे दिनो का नेतृत्व करने वाली सरकार के लिए ज्यादे जरुरी होती है | जिसके लिए ज्यादे जरुरी खबर यह है कि पुरी दुनियाँ और भारत में कितने लोग कोरोना से मरे और मर रहे हैं | पर सरकार की फेलियर की वजह से कितने लोग हर पल मर रहे हैं यह खबर ज्यादे जरुरी नही है | क्योंकि ऐसी फेलियर को रोकने के लिए सरकार कौन सा लोकडाउन करेगी और थाली ताली बजाकर कौन सा महान कार्य करेगी जिससे कि सरकार की फेलियर की वजह से उन मौतो को रोक पायेगी उसे वायरल लाईव खबर बनाना जरुरी नही है | ये तो सिर्फ झांकी है ऐतिहासिक अच्छे दिनो की नही बल्कि ऐतिहासिक बहुत ज्यादे बुरे दिनो की दर्ज हो रही है | जिसे आने वाली पिड़ी पढ़कर ये जानेगी कि वर्तमान के बुरे शासको के समय प्रजा कितनी तनाव और दुःख पीड़ा से होकर जिवन जी रही थी और असमय गुजर भी रही थी |  कोरोना वायरस और लोकडाउन भी उन्ही बुरे दिनो में बुरे दिन लेकर आया है न कि अच्छे दिन लेकर आया है |

सोमवार, 30 मार्च 2020

Corona virus has been spread to suppress the voices raised against discrimination exploitation atrocities



Corona virus has been spread to suppress the voices raised against discrimination exploitation atrocities

भेदभाव शोषण अत्याचार के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए कोरोना वायरस फैलाया गया है


(bhedabhaav shoshan atyaachaar ke khilaaph uthane vaalee aavaajon ko dabaane ke lie korona vaayaras phailaaya gaya hai)


मुमकिन है गुलाम दास दासी बनाने वालो की अपडेट पिड़ियों के भेदभाव शोषण अत्याचार के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने के लिए कोरोना वायरस फैलाया गया है | ताकि ध्यान भटकाकर आवाज को दबाया जा सके , या फिर कोरोना वायरस या लोकडाउन के जरिये शोषित पिड़ितो को कुचला जा सके | क्योंकि लोकडाउन से हजारो लाखो शोषित पिड़ित शहर से गांव की ओर इसलिए पलायन कर रहे हैं , क्योंकि वे इस सोने की चिड़ियाँ का मालिक होते हुए भी विदेशी लोगो के द्वारा उनके हक अधिकारो को लुटकर इतना गरिबी भुखमरी जिवन में आज भी ढकेला जा रहा है कि एक शोषित पिड़ित का भुखे पेट रहकर उसका बयान सुन रहा था कि लोकडाउन में बिना काम धँधा और बिना भोजन के शहर में रहा तो करोना वायरस से तो वह नही मरेगा पर भुखा पेट रहकर जरुर मर जायेगा | जिसकी बात में वह दम है जो लोकडाउन करने वाले और थाली ताली बजाने वालो की बातो में दम नही है | क्योंकि पुरी दुनियाँ में हर रोज गरिबी भुखमरी से 24 हजार लोग मरते हैं | जिसे रोकने के लिए भ्रष्टाचारियो चोर लुटेरो का विदेश भागने में लोकडाउन नही होता है | यानी साल में पोने एक करोड़ लोग गरिबी भुखमरी से मरते हैं | जिन लोगो में एक तिहाई अबादी इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश का है | जहाँ पर आज भी इतना अन्नाज पैदा होता है कि आधा बर्बाद कर दिया जाता है | इस सोने की चिड़ियाँ को गुलाम बनाकर आज जो ब्रिटेन देश अमिर देश कहलाता है , उस अमिर देश में जितना सालभर खाया जाता है , उतना आज के समय में इस गरिब देश कहलाने वाले भारत में साल में बर्बाद कर दिया जाता है | क्योंकि विडंबना यह है कि इस देश में करोड़ो लोगो को भुखे पेट सोते हुए जानकर और देखकर भी करोड़ो लोग अति खा खाकर अति मोटे होकर मोटापे से हुई बिमारी की वजह से भी इस देश में हर साल 52 लाख लोगों की मौत असमय होती है | और चूँकि चीन के बाद भारत में सबसे अधिक अबादी मौजुद है , तो चीन के बाद सबसे अधिक अति खा खाकर मोटे  होने वाले लोगो की भी अबादी हो गई है | यानी गरिबी भुखमरी जिवन जिने वाले लोग भुख से मर रहे हैं और अमिर लोग अति  खा खा खाकर मर रहे हैं | आधा अमिर को एक साल के लिए गरिब के घर भेज दो और आधा गरिब को अमिर के घर भेज दो दोनो तरफ होने वाली मौत सायद रुक जायेगी |

गुरुवार, 26 मार्च 2020

Divide rule virus policy is more dangerous than corona virus



Divide rule virus policy is more dangerous than corona virus
khoj123,poor,गरिबी भूखमरी,गुलाम,दास दासी,भेदभाव,छुवाछूत

फूट डालो राज करो वायरस नीति कोरोना वायरस से भी अधिक खतरनाक है


लंबे समय तक गुलाम दास दासी बनाकर लुटपाट करनेवाला विदेशी कबीला की फूट डालो और राज करो वायरस नीति कोरोना वायरस से भी अधिक खतरनाक है | इस देश की राजधानी दिल्ली में जो धर्म के नाम से खुन खराबा हुआ , और कई निर्दोश लोगो का खुन बहा है , उसके पिच्छे भी वही फूट डालो राज करो कबिलई वायरस हावी  था , जो धर्म के नाम से लड़ाई कराता है | जो कबिलई वायरस कोरोना वायरस से भी ज्यादे खतरनाक रुप धारन करता है | क्योंकि कोरोना का इलाज करने के लिए दवा और डॉक्टर अस्पताल में उपलब्ध हैं , पर कबिलई वायरस द्वारा फैला धर्म के नाम से दंगा फसाद का इलाज अबतक धार्मिक ग्रंथो में भी नही खोजा जा सका है | वैसे कोरोना का इलाज भी धार्मिक ग्रंथो में मौजुद नही है | बल्कि हो सकता है ये कबिलई वायरस अपना बेहरुबिया रुप बदलकर अब कोरोना वायरस के जरिये भी आतंक फैला रहा है | क्योंकि पुरी दुनियाँ की सबसे अधिक अबादी चीन में रहता है यह सबकुछ जानकर भी चीन आत्महत्या क्यों करेगा | चीन में भी लंबे समय से कबिलई लुटपाट गुलामी की वजह से गरिबी भुखमरी भारी तादार में अब भी कायम है | जबकि उसने दुनियाँ का सबसे समृद्ध देशो में एक अमेरिका को भी इतना कर्ज दे रखा है जितना कि दुनियाँ का सबसे अधिक अबादी वाला देश में दुसरा स्थान रखनेवाला देश इस भारत का भी कर्ज नही है | और जैसा की सबको पता है कि जहाँ पर सबसे अधिक अबादी है वहाँ पर बिमारी सबसे जल्दी फैलता है और सबसे अधिक मौते होती है |जिसे जानकर चीन खुद ही कोरोना वायरस पैदा करके आत्महत्या कभी नही कर सकता | बल्कि  अपनी बुद्धी बल का गलत इस्तेमाल करके इतिहास में कबिलई सम्राज्य आत्महत्या जरुर करते आ रहे हैं | जैसे कि कबिलई रोम यूनान का विनाश अपनी बुद्धी बल का गलत इस्तेमाल करके कई देशो में लुटपाट शोषण अत्याचार करने की वजह से हुआ था | इस बार भी यदि कोई कबिलई लुटपाट करने के लिए अपनी बुद्धी बल का गलत इस्तेमाल गुप्त तरिके से कर रहा है तो निश्चित तौर पर फिर से वह अपनी विनाश की ओर बड़ रहा है | क्योंकि उसे पता होना चाहिए कि इस समय भले गरिबी भुखमरी सभी ऐसे देशो में मौजुद है , जहाँ पर कबिलईयो ने सैकड़ो हजारो सालो से गुलामी और लुटपाट द्वारा मौत का आतंक फैलाया है , पर इसके बावजुद भी उन आतंक फैलाने वालो का अब भी प्राचिन रोम यूनान की तरह विनाश हो सकता हैं | क्योंकि लंबे समय तक कबिलई गुलामी झेलने वाले देशो में भले मेरे जैसे बहुत से लोग हथियारो की होड़ को इंसानो द्वारा आत्महत्या की ओर बड़ने जैसा मानते हो पर वर्तमान में तो कबिलई का गुलामी झेलने वाले लगभग सभी देशो में हथियारो की होड़ हिंसक कबिलई वायरस से भिड़ने के लिए इतनी ज्यादे तादार में हुआ है कि इस दौर में तो जो भी कबिला कोरोना वायरस या फिर कोई और मौत का आतंक भारी तादार में फैलाते हुए प्रमाणित पकड़ा जायेगा सभी उसपर टुट पड़ेंगे ऐसा मुझे लगता है | और यदि ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर उस कबिलई का तो प्राचिन रोम यूनान की तरह विनाश हो जायेगा पर साथ साथ या तो बदले की कारवाई द्वारा लाया गया भारी तबाही के बाद इंसानियत और पर्यावरण का भी विनाश हो जायेगा या फिर इंसानियत का विनाश अबतक सबसे अधिक करने वाले उस कबिलई का ही विनाश पुरी तरह से हो जायेगा जिसने सैकड़ो हजारो सालो से बहुत सारे कृषि सभ्यता संस्कृति का विनाश करके मानवता और पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है | जिसकी वजह से उन विनाश हुए प्राचिन सभ्यता संस्कृति वाले देशो को कबिलईयो ने बार बार जख्म देकर इतना कठोर भी बना दिया है कि अब वे भी हथियारो की होड़ में शामिल हो गए हैं भले उनके यहाँ गरिबी भुखमरी चारो तरफ मौजुद हो | जाहिर है अगर प्राचिन समय में कबिलई खुद अपना विनाश  करते आ रहे हैं तो मुमकिन है अब भी ये कबिलई ही अपने बुद्धी बल का गलत उपयोग करके अपना खुदका विनाश की ओर बड़ रहे हैं | जिसके लिए उन्होने अपडेट के तौर पर कोरोना वायरस के जरिये भारी नुकसान पहुँचाने का रणनिति बनाकर यह सोचकर आतंक फैला रहे हैं कि अपने जख्मो को भर रहे कृषि सभ्यता संस्कृति के पुराने जख्मो में फिर से नया आतंक देकर उसी तरह का नुकसान पहुँचाया जा सके जैसा कि अमेरिका के माया सभ्यता संस्कृति में कबिलई लुटेरो द्वारा अपने साथ वायरस प्रवेश कराकर वहाँ के रेड इंडियन को भारी नुकसान पहुँचाया गया था | जिसके कारन भी माया सभ्यता संस्कृति का विनाश हुआ था | जो बात बहुत से इतिहासकारो का मानना है | जिस तरह का विनाश के मकसद से ये कबिलई वायरस हो सकता है अब पुरी दुनियाँ के उन तमाम कृषि सभ्यता संस्कृति को निशाने पर रखकर कोरोना वायरस पैदा करके पुरी दुनियाँ में फैला रहे हैं जहाँ पर आंदोलन संघर्ष के रुप में उनकी भ्रष्ट लुटपाट को खतरा मंडरा रहा है | जिस खतरा को टालने के लिए कबिलई वायरस के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रहे लोगो में मौत के आतंक फैलाकर आंदोलन संघर्ष में कमी लाकर अपनी कबिलई दबदबा कायम रखने की कोशिष की जा रही है | या फिर आंदोलन संघर्ष कर रहे लोगो का मुल लक्ष से ध्यान भटकाया जा रहा है | क्योंकि प्राचिन काल में ये अपनी लुटपाट गुलाम का आतंक फैलाकर ही तो कृषि सभ्यता संस्कृति को वह जख्म दिये हैं जिससे की अभी तक यह कृषि प्रधान देश ही नही बल्कि पुरी दुनियाँ के प्राकृति समृद्ध ज्यादेतर क्षेत्र उभर नही सके हैं | जहाँ पर ये कबिलई वायरस समय समय पर गुलाम और लुटपाट करके गरिबी भुखमरी दिए हैं | जिस गरिबी भुखमरी से हर रोज आज भी हजारो लोग पुरी दुनियाँ में मारे जा रहे हैं | जिसमे अब ये कोरोना वायरस भी अब गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो को ही सबसे अधिक मौत दे रहा है | क्योंकि जिसके पास धन दौलत और खासकर उच्च पदो की सुरक्षा है , उनके लिए तो ये वायरस खतरा भी यदि पैदा करेगा तो उनका जल्दी इलाज संभव है | पर गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो की जिवन में तो वैसे भी छोटी मोटी बिमारी का इलाज के लिए भी न तो आसानी से सरकारी इंतजाम ठीक से रहता है , और न ही पोषण खरिदने के वास्ते उनके पास धन रहता है | क्योंकि ये कबिलई वायरस सैकड़ो हजारो सालो से अपनी लुटपाट के जरिये दुनियाँ की आधी से भी अधिक अबादी को लंबे समय तक गरिबी भुखमरी में एक तो धकेल दिये हैं , और उपर से गरिबी भुखमरी से संघर्ष कर रहे लोगो के बिच कोरोना वायरस का आतंक फैलने से गरिबी भुखमरी जिवन से संघर्ष कर रहे लोगो की रोज कमाओ रोज खाओ रोजमरा जिवन में सबसे अधिक प्रभाव डाल रहा है | क्योंकि जिनके पास अन्न धन का भंडार मौजुद है वे तो कर्फ्यू में भी अपनी समान्य दिनो की तरह भरपेट खा पीकर कोरोना वायरस पर लाईव बहस करते रहेंगे , पर जिनके जिवन में रोज कमाओ रोज खाओ हालात है वे कर्फ्यू जैसे बुरे हालात में क्या कमायेंगे और क्या खायेंगे ? एक तो वैसे भी उनकी जिवन खासकर इस कृषि प्रधान देश में कबिलई मनुवादी शासन के नेतृत्व में फर्जी और असंतुलित आधुनिक भारत , गरिबी हटाओ , शाईनिंग इंडिया , डीजिटल इंडिया की वजह से करोड़ो लोगो की जिवन गुलामी जैसे हालात में आधा पेट खाकर या फिर भुखा पेट सोकर कट रही है , उपर से जख्मो में नमक छिड़कने का कार्य यह कोरोना कर्फ्यू कर रही है | हलांकि कोरोना वायरस वाले यदि गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो की जिवन को छिनने के लिए ये सब पाप कर रहे हैं तो उनको ये बात पता रहना चाहिए कि भगवान सबकी जिवन छिनता है | जो बात कोरोना वायरस फैलाने वाले को अपने दिमाक में हर रोज तब अपडेट करते रहना चाहिए जब वे कोरोना से कितनी मौत का लाभ हुआ कैलकुलेटर पकड़कर हिसाब किताब करते हैं | क्योंकि एकदिन मरना तो उसे भी है | कोरोना गैंग चलाने वाले बुढ़ा होंगे तो जल्दी मरेंगे और जवान होंगे तो थोड़ा ज्यादे समय तक तकलीफ देकर मरेंगे | मरेंगे तो वे और उनके सारे समर्थक व सहयोगी भी | बल्कि वर्तमान में मौजुद दुनियाँ की पुरी अबादी सौ दो सौ सालो में समाप्त हो जायेगी | क्योंकि इंसान का उम्र फिलहाल तो इससे ज्यादा नही है | जाहिर है सौ दो सौ साल बाद आनेवाली नई पिड़ी भी यदि अपना उम्र बड़ाने का कोई उपाय नही कर पाया तो उसकी भी मौत इसी तरह सौ दो सौ साल जिवन जिने के बाद होती रहेगी | जिस समय वर्तमान के लोग या तो कब्र के जरिये मिट्टी जल में मिले रहेंगे या फिर शमशान में जलकर मिट्टी जल में मिलेंगे | न कि सारे लोग मरने के बाद इस दुनियाँ से ही गायब हो जायेंगे | गायब तो धर्म मान्यता अनुसार यह भ्रम है कि शरिर मरता है आत्मा अमर है | वह तो मैं भी कह सकता हूँ कि आत्मा मरता है शरिर अमर है ! जो बात यदि गलत है तो किसी के शरिर को इस सृष्टी से हमेशा के लिए गायब करके दिखाओ | और जैसा कि हमे पता है कि इस सृष्टी में मौजुद है चाहे वह चाँद तारे ही क्यों न हो , उनका भी जन्म और मरन होता है | जो भी इंसानो की तरह सिर्फ रंग रुप बदल बदलकर इसी सृष्टी में मानो अमर हैं | क्योंकि इंसान का शरिर यदि कभी भी समाप्त नही होता है तो निश्चित तौर पर वह भी तो सिर्फ रुप रंग बदलकर फिर से नया जन्म लेता रहता है | क्योंकि यदि किसी के भितर आत्मा मात्र जिवित रहता तो फिर शरिर मरने के बाद उसके द्वारा भुत चुड़ैल बनकर अपने करिबियों के पास अफवा या अँधविश्वास द्वारा आने की चर्चा होने के बजाय सिधे सचमुच में मरने के बाद भी किसी काल्पनिक फिल्मो में मौजुद भुत चुड़ैल से बातचीत रिस्ता जुड़ने की तरह क्यों नही किसी के मरने के बाद भी उसकी आत्मा जिवन गुजारते हुए मरे हुए लोगो की भुत चुड़ैल जिवन चलती रहती है | जैसे कि अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और शाहरुख खान ने जो एक फिल्म चमत्कार में मिलकर अभिनय किया है | उसमे जो भूत का अभिनय नसीरुद्दीन ने किया है , उसी तरह सभी इंसान मरने के बाद भी जिवन जीते भले उसका अपना शरीर नही होता | और फिल्म में भूत को जो अपना बदला लेते हुए दिखलाया गया है , उसी तरह सभी शोषित पिड़ित और निर्दोश लोग भी मरने के बाद भूत बनकर पीड़ा देने या बिना कसूर के हत्या करने वाले से अपने मन मुताबिक बदला लेते | बजाय क्यों लोग मरने के बाद रोजमरा जिवन से हमेशा के लिए अपने करिबियो से बिछड़कर चुप हो जाते हैं ? क्योंकि आत्मा यदि शरिर के भितर रहता है तो वही असल में मरता है | और शरिर अपना रंग रुप बदलकर वापस फिर से जन्म लेता है | जिस शरिर को मरने के बाद भी इसी दुनियाँ में साक्षात मौजुद किसी दुसरे रंग रुप में देखा जा सकता है | पर आत्मा जिते जी भी साक्षात नही दिखता है तो मरने के बाद तो निश्चित तौर पर यदि वह सचमुच में होता होगा तो हमेशा के लिए समाप्त हो जाता होगा | सिर्फ शरिर रहता होगा | वैसे इंसान द्वारा बनाया गया मशीन में कौन सा आत्मा रहता है जो उससे काम करवाता रहता है | हो सकता है भविष्य में इंसान का शरिर में मौजुद सारे अंगो को किसी मशीन का पार्ट की तरह आसानी से बदला जा सके और इंसान के दिमाक में मौजुद यादाश्त को भी ट्रांसफर किया जा सके | जिसके बाद इंसान तबतक जिवित रह सके जबतक की उसकी यादाश्त समाप्त न हो जाय | जो कभी समाप्त नही हो सकता यदि उसकी कॉपी और स्टोर किया जा सके | खैर इनमे से जो भी खोज भविष्य में हो पर फिलहाल तो यही पुर्ण सत्य है कि इंसान मरने के बाद अपनी रोजमरा जिवन अपने उसी रंग रुप में फिर से कभी नही जी पाता है | जैसे कि अबतक जितने भी चर्चित किसान , मजदुर , शिक्षक , सैनिक , खिलाड़ी , नेता , अभिनेता , धन्ना , वैज्ञानिक , डॉक्टर ,इंजिनियर , या फिर किसी भी अन्य क्षेत्र के लोग  मरे हैं , वे दुबारा अपने उसी रुप में वापस जिवन जीने नही लौटे हैं | यकिन न आए तो इन तमाम क्षेत्रो में मौजुद कोई भी पसंदीता इंसान जो मरा है , उसके बारे में किसी से पुछना या फिर गुगल सर्च करना कि अब वे कहाँ पर रहते हैं ? जवाब मिलेगा वह मर चुके हैं | और मरने का मतलब अब वे उसी रुप में कभी नही मिलने वाले हैं , चाहे क्यों न अवतार या भगवान माने जाने वाले वे लोग भी हो जो की इंसान के रुप में ही कभी जन्म लिये और मर चुके हैं | यही सत्य है ! जो भी दुसरे मरे हुए इंसानो की तरह फिर से वापस उसी रुप में नही आने वाले हैं | सिर्फ उनकी मूर्ति या खिची गई तस्वीर विडियो ही उनकी रोजमरा जिवन की जगह लेगी | जैसे की अभी जो राम मंदिर निर्माण किया जायेगा उसमे राम की निर्जिव मूर्ति या तस्वीर रहेगा न कि जिवित राम द्वारा अपने भक्तो से मिलकर वर्तमान के मनुवादी राज में हाल चाल पुच्छा जायेगा | बल्कि अब भी तो कितने सारे राम मंदिर या और अन्य ऐसे मंदिर हैं , जिसमे लिंग योनी लेकर इंसान के रुप में ही जन्म लेने वालो का मूर्ति बिठाकर भगवान कहकर पुजा किया जाता है | मैं तो अपना भगवान उस प्राकृति को मानता हूँ जो साक्षात मौजुद है | और साक्षात सबको जिवन दे भी रहा है और ले भी रहा है | जो न हो तो ये दुनियाँ ही मौजुद न हो | जिससे दुवा करता रहता हूँ कि भगवान सभी शोषित पिड़ित जो चाहे जिस धर्म देश या दुसरे ग्रह में मौजुद हो , उन सबको शोषण अत्याचार करने वालो से सुरक्षा प्रदान करके उनकी जिवन में सुख शांती समृद्धी जल्दी वापस लाये , और साथ साथ उन शोषण अत्याचार करने वालो को सत्यबुद्धी भी दे जो अपनी भ्रष्टबुद्धी को श्रेष्ट समझकर कुकर्म में कुकर्म किये जा रहे हैं | जिन्हे जिसदिन सत्यबुद्धी मिल जायेगी उसदिन शोषण अत्याचार वैसे भी अपनेआप समाप्त हो जायेगी और चारो ओर सुख शांती समृद्धी वापस लौट आयेगी | पर फिलहाल तो चारो ओर गरिबी भुखमरी और दुःख अशांती मौजुद है | जिसे महसुश करनी हो तो कभी हर साल पुरी दुनियाँ में गरिबी भुखमरी से मरने वालो की आंकड़ो के बारे में पता कर लेना | और साथ साथ ये भी पता कर लेना कि हर साल लाखो लोगो को मरते हुए देख सुन पढ़कर जानकर भी दौलत का अंबार लगाकर मुठीभर लोगो की झुठी शान बनी रहे इसके लिए मानवता और पर्यावरण को कितना नुकसान हर रोज हो रहा है ? क्या लगता है गरिब मेहनत नही करता है इसलिए भुखमरी से मर रहा है ? बल्कि इसलिए मर रहा है क्योंकि सबसे अधिक पसिना बहाने के बाद भी उसके हिस्से की हक अधिकारो को उन लोगो के द्वारा लुटा और चोरी किया जा रहा है जो भी धन दौलत को किसी बच्चे की तरह न तो पैदा किये हैं , और न ही वे मरने के बाद यह सब मेरा है कहकर एक चिलर अथवा एक पैसे को भी अपने साथ ले जानेवाले हैं | 

मंगलवार, 24 मार्च 2020

Before entering this agrarian country, the clan of Manuvadis did not know the family, society and republic


Before entering this agrarian country, the clan of Manuvadis did not know the family, society and republic.


इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले, मनुवादियों के कबीले परिवार, समाज और गणराज्य को नहीं जानते थे।

(is krshi pradhaan desh mein pravesh karane se pahale, manuvaadiyon ke kabeele parivaar, samaaj aur ganaraajy ko nahin jaanate the.)

बिल्कुल मुमकिन है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद ही मनुवादीयों ने पहली बार परिवार समाज और गणतंत्र के बारे में जाना समझा होगा | अथवा इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले मनुवादी के पास अपना कोई ऐसा परिवार समाज और गणतंत्र ही मौजुद न हो जिसके पास वे वापस लौट सके | जैसा कि शैतान सिकंदर और गोरे लौटे थे | क्योंकि शैतान सिकंदर और गोरो के पास वापस लौटने के लिए तब अपना परिवार समाज और शासन के बारे में अपने परिवार समाज का इतिहास मौजुद था | क्योंकि इतिहास गवाह है कि इस कृषि प्रधान देश में बाहर से तो कबिलई गोरे भी लुटपाट गुलाम करने आए थे और वे भी अपने साथ अपने परिवार को नही लाए थे , पर बाद में वे वापस उन परिवारो के पास ही लौट गए जहाँ पर उनके अपने खुदके परिवार समाज मौजुद है | पर मनुवादी तो कभी वापस ही नही लौटे हैं | क्योंकि हो सकता है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले मनुवादीयों के पास अपना कोई परिवार समाज ही मौजुद न हो जिसके पास वह लौट सके | क्योंकि मनुवादी जिस कबिलई क्षेत्र से आए हैं , वहाँ पर मनुवादी द्वारा घुमकड़ जिवन जिते समय परिवार समाज के बारे में यदि ज्ञान मौजुद होता तो मनुवादी के पुर्वज इस कृषि प्रधान देश से गोरो की तरह अपने परिवारो के पास भले वापस नही लौटते पर जो मनुवादी कबिलई पुरुष झुंड इस कृषि प्रधान देश में घुसकर बस गया था , उनमे से एक भी पुरुष क्या ऐसा मौजुद नही था जो कि वापस अपने परिवार समाज के बारे में इतिहास बतलाते हुए उस जानकारी को इस देश के लोगो से बांटते कि उनके परिवार समाज कहाँ पर मौजुद है जहाँ से वे आए हैं | क्योंकि मनुवादी बाहर से आकर उन्होने इस देश के परिवार में मौजुद महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ा करके खुदको हिन्दू बनाकर इसी देश में बस तो गया है पर उसे अपने उस परिवार समाज का इतिहास मालुम नही है जिससे वह पैदा होकर कबिलई झुंड बनाकर इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश किया है | क्योंकि यदि मनुवादी को अपने परिवार समाज के बारे में इतिहास मालुम होता तो फिर मनुस्मृति में यह जानकारी जरुर दर्ज होती की मनुवादीयों द्वारा इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले उनके परिवार समाज के बारे में इतिहास कैसा था ? और मनुवादी के कबिलई पुर्वज इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले कैसा शासन करते थे | क्योंकि कबिलई मनुवादी का इतिहास इस देश के मुलनिवासियों के इतिहास और इस देश के गणतंत्र शासन व्यवस्था का इतिहास के बारे में जानकारी इकठा करने पर भले मिलता है , जैसे कि गोरो और अन्य कबिलई का भी मिलता है , पर कबिलई मनुवादी द्वारा इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले का इतिहास नही मिलता है | हाँ मनुवादियों का डीएनए से यहूदियों का डीएनए जरुर मिलता है | @यानि इस देश में प्रवेश करने से पहले मनुवादीयों का कोई ऐसा इतिहास ही मौजुद नही है जिससे की यह जाना जा सके कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले मनुवादीयों का अपना परिवार समाज और गणतंत्र शासन व्यवस्था का इतिहास मौजुद था | क्योंकि मुमकिन है कि इस कृषि प्रधान देश में आने से पहले मनुवादी कोई परिवार समाज में ही नही रहता था | सिर्फ कबिलई पुरुष झुंड बनाकर घुमकड़ जिवन जिता होगा | जिसके चलते अपने पिछले इतिहास की जानकारी मनुवादी को इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले नही है | बल्कि वह तो माता पिता और प्रजा सेवा करने वाला शासक क्या होता है , इसके बारे में भी ज्ञान इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद ही सिखा होगा | जिससे पहले वह जंगली शिकारी परजिवी जानवरपन जिवन जी रहा होगा जिसमे जानवर को पता ही नही रहता है कि जंगलराज में उसके कौन कौन से औलाद घुम रहे हैं | जो जानवरपन इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके परिवार बसाने के बाद आज मनुवादी के अंदर भले न हो पर शोषण अत्याचार सोच का जानवरपन पुरी तरह से समाप्त नही हुआ है | जिसके चलते वह इतना बड़ा देश का शासक बनने के बाद भी इस देश के मुलनिवासियों की सेवा करने के बजाय ज्यादेतर तो अबतक भी भारी भेदभाव शोषण अत्याचार करके आज भी मारते पिटते हुए जानवरो जैसा व्यवहार करता रहता है | जिस तरह का व्यवहार उसने इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को दास दासी बनाकर सबसे पहले अपनी छुवाछुत की सुरुवात किया है | वह भी इस कृषि प्रधान देश में पहले से मौजुद गणतंत्र शासन व्यवस्था में कब्जा करके प्रजा सेवक बनकर | जिस शासन में कब्जा करने के लिये जब इस देश के मुलनिवासियों से युद्ध हुआ होगा तो निश्चित तौर पर मनुवादीयों के पास किसी शासक की तरह लड़ने की हुनर मौजुद नही होगी , बल्कि किसी शिकारी की तरह शिकार करने की हुनर मौजुद होगी | जिसके चलते मनुवादी युद्ध भी जिता होगा तो किसी शासक की तरह नही बल्कि किसी कबिलई लुटेरो की तरह छल कपट और घर का भेदियों को चारा बनाकर भरपुर इस्तेमाल करके जीता होगा | जो कबिलई लुटेरो की तरह शिकारी सोच से युद्ध जीतने के बाद इस देश की धन संपदा के साथ साथ इस देश की नारी को भी शिकार या लुटा गया धन की तरह आपस में बांटकर उसकी भी दुसरे कबिलई से लेन देन सुरु किया होगा | जैसे कि जितने भी कबिलई लुटेरो ने इस कृषि प्रधान देश में लुटपाट की मकसद से प्रवेश किया है उन सबने इस देश की धन संपदा और नारीयों की इज्जत को भी लुटा है | क्योंकि कबिलई लुटेरे अपने साथ एक तो परिवार भी नही लाते हैं , जिसके चलते अपनी हवश शांत करने के लिए उनकी नजर दुसरो की बहु बेटियों पर रहती है | जैसा की कबिलई शैतान सिकंदर और गोरो की भी इस देश की महिलाओं पर गंदी नजर थी | जिस तरह के कबिलई लुटेरो का इतिहास भरे पड़े हैं | जिन कबिलई लुटपाट इतिहास में मनुवादीयों का भी नाम दर्ज है | क्योंकि गंदी नजर दौड़ाकर कबिलई मनुवादीयों ने भी इस देश की महिलाओं को अपनी देव दासी बनाकर देव मंदिरो में अपना हवश शांत करने और अपनी सेवा कराने के लिए रखते थे | जिसके बारे में जानकारी वेद पुराण और इतिहास में भी भरे पड़े हैं | जिन देव मंदिरो में निश्चित तौर पर दासी बनाकर जबरजस्ती बलात्कार की जाती होगी | तभी तो देवदासियाँ बिना विवाह की माँ बनती थी | जिनके गर्भ से जन्मे बच्चो को देव मंदिरो के पुजारी अपना औलाद नही बल्कि उन निर्जिव मुर्तियों का औलाद कहते थे जो मंदिरो में स्थापित की जाती है | अथवा देव मंदिरो के पुजारी इस देश की महिलाओं को देव दासी बनाकर उनके साथ बारी बारी से बोटी नोचकर अपने डीएनए के ऐसे नाजायज औलादो को देव दासियों की कोख से जन्म दिलवाते थे , जिन्हे बाप होते हुए भी लावारिस जिवन जीना पड़ता था | बल्कि ऐसे लावारिस आज भी बहुत सारे मौजुद होंगे जिनका डीएनए की जाँच किया जाय तो वे देव दासी बनाने वाले ढोंगी पाखंडी मनुवादीयों के ही डीएनए का औलाद निकलेंगे | क्योंकि आज भी अपना हवश मिटाने के लिए कहीं कहीं देव दासी बनाकर यौन शोषण अत्याचार प्रक्रिया जारी है | जाहिर है मनुवादीयों द्वारा मनुस्मृति लागु करके इस देश में दास दासी प्रथा का संक्रमण देने के बाद सुरुवात में इस देश की नारीयों को देव दासी बनाकर विवाह नही की जाती होगी , बल्कि सिर्फ अपना हवश शांत करने के लिये भोग विलाश करने वाली वस्तुओं की तरह इस्तेमाल की जाती होगी | जिस तरह का शोषण उत्पीड़न वैश्यालयो , देवालयो और बड़े बड़े होटलो में होने की जानकारी आज भी मिलती रहती है | जहाँ पर शोषित पिड़ित मासुमो को देव दासी बनाकर या फिर लालच देकर मानव तस्करी करवाकर या बहला फुसलाकर या फिर जोर जबरजस्ती भी चोरी छिपे हरन करके लाकर डरा धमकाकर बंद कमरो में उनके साथ यौन उत्पीड़न होता है | जिस तरह की उत्पीड़न घटनायें मनुवादी शासन में हजारो की तादार में आज भी हो रही है | जैसे की वेद पुराण काल में भी होता था जब किशोरीयों को भी किसी वस्तु कि तरह उन बुढ़े ढोंगी पाखंडियों को दान कर दिया जाता था जो जंगलो में घुसपैठी कैंप लगाकर वहाँ पर लुटपाट हिंसा का ट्रेनिंग दिया  करते थे | जिन घुसपैठी कैंप में कई कई मासुम किशोरियो के साथ यौन उत्पीड़न करके उन मासुमो को घने जंगलो में माँ बनाया जाता था | जिन्हे माँ बनाने वाले यह ढोंगी पाखंडी यह झुठे प्रचार प्रसार किया करते थे कि उनकी इस तरह की कन्या दान यज्ञ से प्रजा का कल्याण हो रहा है | जिन यज्ञो में किसानो की खेती में मदत करने वाले पशुओं भी दान की जाती थी और उसकी बलि देकर आपस में बांटकर बोटी नोचा जाता था | जैसे की बुढ़े मनुवादीयों को किशोरी कन्या दान करके भी एक एक बुढ़ा मनुवादी कई कई कन्याओं को अपनी दासी बनाकर रखता था | जिस तरह की जानकारी भी वेद पुराणो में उपलब्ध है | जिस तरह का कन्या दान यज्ञ करने वाले भले आज ऐसा कन्या दान यज्ञ नही करते हैं पर आज भी देव दासी प्रथा कहीं कहीं जारी है | पर कन्या दान यज्ञ करके यज्ञ करने वालो को कन्या दान करने की प्रथा समाप्त इसलिए हो गया है , क्योंकि यज्ञ करने वाले यदि  आज भी कई कई किशोरियों को दान में मांगकर उसके साथ यौन उत्पीड़न करने लगे तो निश्चित तौर पर ऐसे यज्ञो में पुरी दुनियाँ की मीडिया इकठा होकर प्रेस वर्ता करके यह चर्चा करने लगेगी की दान में मिली किशोरी कन्याओं के परिवार जोर जबरजस्ती द्वारा अपनी मासुम बेटियों को दान कर रहे हैं कि हसी खुशी अपनी मासुम बेटियों को दान कर रहे हैं ? बल्कि निश्चित तौर पर अब अगर ऐसा हुआ तो किशोरियों को दान करने वाले परिवार भी जेल जा सकते हैं | और किशोरियों को दान में लेने वाले भी जेल जा सकते हैं | जैसे कि ब्रह्मचर्य और शुद्ध शाकाहारी की आड़ में यौन उत्पीड़न करने और पशु बलि देकर छुपकर बोटी नोचने वाले बहुत से ढोंगी बाबायें जेलो में डाले जाते हैं जब मासुमो के साथ यौन उत्पीड़न करते हुए पकड़े जाते हैं | जिस तरह का ब्रह्मचर्य और शुद्ध शाकाहारी का ढोंग करके कई कई किशोरियों के साथ यौन उत्पीड़न और किसानो की खेती में मदत करने वाले पशुओं की हत्या करके समाज कल्याण का ढोंग करने वाले बाबाओ के बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी भरे पड़े हैं | जो ढोंगी पाखंडी लोग पानी पिने में तो छुवाछुत करते थे पर हवश मिटाने में छुवाछुत पहले और आज भी नही करते हैं | जिनके लिए उच्च निच छुवाछुत करके एक घड़ा एक कुँवा से पानी पीना मना रहता है , पर सेक्स करते समय छुवाछुत नही होता है | और न ही शुद्र अच्छुत योनी से पैदा होने में छुवाछुत होता है | जिसे यदि ढोंगी पाखंडी बाद में अपने तन का शुद्धीकरण भी करते होंगे तो क्या उस शुक्राणु अँडाणु से जन्मे बच्चे का खुन का भी शुद्धीकरण होता होगा जिसके शरिर में नर और नारी दोनो का अंश नश नश में दौड़ रहा होता है ? जिस खुन को बदलना या अलग करना भी मुमकिन है क्या शुद्धीकरण से ? हलांकि जैसे जैसे मनुवादीयों को धिरे धिरे परिवार समाज के बारे में ज्ञान हासिल होने के बाद यह यहसाश होना सुरु हुआ होगा की इस देश की महिलाओ के साथ अपना हवश मिटाकर उसके पेट से अपने ही डीएनए का वंशवृक्ष को लावारिस पैदा करके छोड़ देना ठीक नही है | बल्कि इंसानियत कायम करके परिवार समाज बसाकर इंसानी दुनियाँ बसाना सही है | वैसे वैसे मनुवादीयों को यह समझ में आना सुरु हो गया होगा कि वंशवृक्ष देव दासी बनाकर यौन उत्पीड़न करके नही बल्कि विवाह करके वंश बड़ाना सही रहेगा | जिस तरह की समझ इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद ही मनुवादीयों के दिमाक में विकसित होकर पहली बार उस परिवार समाज को महत्व देने लगा हो जहाँ पर अपना वंशवृक्ष नारी को दासी बनाकर जबरजस्ती पैदा नही किया जाता है , बल्कि उससे विवाह करके या फिर प्रेम करके अपने डीएनए का बच्चा पैदा किया जाता है  | जिस तरह की समझ को फोलो करने के बाद ही मनुवादी ने अपने देव दासी के साथ बलात्कारी रिस्ता जोड़ने के बजाय उसके साथ वैवाहिक रिस्ता जोड़कर अपना वंशवृक्ष बड़ा करने की परंपरा की सुरुवात किया होगा | जिससे पहले मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओं के साथ शोषण अत्याचार करने के लिए ही देव दासी बनाकर रखते होंगे | क्योंकि जो लोग किसी के घर को लुटते हैं उसे बराती कहकर कोई हसी खुशी परिवारिक रिस्ता नही जोड़ता है | और न ही कोई अपनी कन्या हसी खुशी से उन लुटेरो को दान करता है जिन्होने उसके साथ लुटपाट करके दास दासी बनाकर शोषण अत्याचार किया हो | बल्कि लुटेरे जबरजस्ती बलात्कारी रिस्ता जोड़ते हैं उन लोगो के साथ जिसे वे दास दासी बनाकर शोषण अत्याचार करते हैं | जैसे की सुरुवात में मनुवादी भी इस देश में प्रवेश करने के बाद सत्ता पर कब्जा करके सत्ता कुर्सी और इस देश की नारी को भी अपनी दासी बनाकर अपनी सेवा में जबरजस्ती रख लिया होगा | क्योंकि इतिहास साक्षी है कि जितने भी कबिलई लुटेरे इस कृषि प्रधान देश में आए सभी ने सिर्फ जोर जबरजस्ती से धन संपदा और खेती में मदत करने वाले पशुओं की लुटपाट नही किया , बल्कि मान सम्मान की भी लुटपाट किया है | क्योंकि लुटेरो की बारात प्रेम से नही जबरजस्ती इज्जत लुटने के लिए बदनाम है | जैसा की मनुवादीयों ने दासी बनाकर जबरजस्ती मान सम्मान लुटकर सुरु में अपने डीएनए का लावारिस बच्चा पैदा करवाना सुरु किया होगा , उसके बाद धिरे धिरे परिवार समाज के बारे में जानकारी हासिल करके उच्च निच छुवा छुत करते हुए भी इस देश के मुलनिवासी परिवार में मौजुद नारियों के साथ वैवाहिक रिस्ता जोड़ना सुरु किया होगा | हलांकि  इस देश की नारी से वैवाहिक रिस्ता जोड़ते समय भी निच अच्छुत शुद्र से रिस्ता जोड़ा जा रहा है इसका ख्याल जरुर उस मन में आया होगा जो की इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित किये हुए हैं | हलांकि उसी निच को देव दासी बनाकर अपना हवश मिटाते समय यह ख्याल नही आया होगा कि पिड़ित के साथ सेक्स करते समय जो वीर्य से मनुवादी डीएनए का बच्चा पैदा होगा वह निच होगा कि उच्च होगा ? क्योंकि सच्चाई तो यही है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश की महिलाओं के गर्भ से जन्म लेनेवाला मनुवादी भी तो उसी माँ की पेट से पैदा होता आ रहा है , जिसे वह शुद्र घोषित करके उसके साथ छुवाछुत करता आ रहा है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि भले बलात्कार करते समय बलात्कारी को यह ख्याल नही आता है कि जिसका वह बलात्कार करके अपनी हवश मिटाने जा रहा है वह निच शुद्र अच्छुत है , पर यदि उसके साथ वैवाहिक रिस्ता जोड़कर उसके गर्भ से बच्चा जब जन्म लेता है तो झुठी शान को बरकरार रखने के लिए उसके मन में जरुर यह ख्याल आता है कि निच के पेट से जन्मा उसके डीएनए का बच्चा उसके जैसा भले उच्च है , पर उसकी माँ उच्च नही है | जो ख्याल देव दासी बनाकर यौन उत्पीड़न करते समय यह ख्याल नही आता है कि जो दासी है वह अच्छुत है , जिसे छुना तक मना है तो सेक्स करना तो सिधे शरिर से लिपटना है | पर चूँकि हवश शांत करने के लिए हवशी लोगो को योनी निच है कि उच है यह ख्याल नही आता है , इसलिए भले ढोंगी पाखंडी छुवाछुत को कड़ाई से मानकर मंदिरो में भी प्रवेश रोकते हैं , पर अपना हवश शांत करने के लिए अपने उच्च जाति के लिंग को निच जाती के योनी में प्रवेश करने से नही रोकते हैं | बल्कि आजकल तो आयेदिन कई बार यह भी जानकारी मिलती है कि बलात्कारी अपना हवश शांत करने के लिए कई बार तो जानवर के साथ भी बलात्कार कर डालता है | यानी यदि अप्राकृति रुप से इंसान के वीर्य अंडाणु से यदि जानवरो से भी बच्चा पैदा होता तो आज इंसानी अबादी के बिच ऐसा बहुत सी अबादी भी रहती जो किसी इंसान के द्वारा जानवरो के साथ संभोग करके या कराके जन्मी होती | वैसे इंसान चूँकि जानवर से भी प्रेम करता है , इसलिए मुमकिन है इंसान जानवरो से भी परिवार बसाकर जानवर से ही अपना वंश बड़ा रहे होते | यकिन न आए तो कोई घर बैठे भी इंटरनेट के जरिये गुगल सर्च मारकर पता कर सकता है कि इंसान किसी जानवर से कभी रेप करता है कि नही करता है ? या फिर इंसान जानवर से सेक्स करता या करवाता है कि नही करवाता है ? यकिन मानो गुगल सर्च में निश्चित तौर पर बहुत सारी ऐसी खबरे मिल जायेगी जिसमे बतलाया गया है कि किसी इंसान ने जानवर से रेप किया या फिर प्रेम करके उससे विवाह किया | जाहिर है जिसने जिस जानवर से सेक्स किया वह जावर यदि इंसान से सेक्स करके माता या पिता बनने में सक्षम होता या होती तो आज बहुत सी अबादी इंसान और जानवर के संभोग से जन्मे कुछ अलग प्रकार की इंसानी अबादी होती | वैसे मनुवादी भी यदि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम दास दासी बनाकर शुद्र घोषित करके जानवर समझकर जानवरो की तरह व्यवहार करते हैं तो उनको यह बात जानना बहुत जरुरी है कि उनके परिवार में मौजुद नारी के भितर उन्ही जानवरो का M DNA मौजुद है | अथवा इस देश में प्रवेश करने के बाद जितने भी मनुवादी इस देश की नारी से पैदा हुए हैं वे सभी उसी माँ के औलाद हैं , जिनको उन्होने शुद्र अच्छुत निच घोषित करके ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहते हुए जानवरो जैसा व्यवहार करना अबतक भी नही छोड़ा है | हलांकि यदि ऐसा है भी तो भी चूँकि मनुवादी हजारो साल पहले ही इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद इस देश की सत्ता को हासिल करके हजारो साल पहले ही गणतंत्र और इंसानियत कायम परिवार समाज के बारे में ज्ञान हासिल करना सुरु कर लिया था , इसलिए हजारो साल बाद उसके भितर अबतक इतनी इंसानियत तो कम से कम आ जानी चाहिए थी की वह जिस परिवार समाज से पारिवारिक रिस्ता जोड़कर हजारो सालो से अपना वंशवृक्ष बड़ा कर रहा है , उस परिवार समाज  का शोषण अत्याचार करना छोड़ दे , अथवा शोषण अत्याचार का संस्कार देनेवाली मनुस्मृति सोच से बाहर निकल आए | ताकि इस देश के मुलनिवासियों के साथ भेदभाव शोषण अत्याचार करके जानवरो जैसा व्यवहार फिर से कभी न कर सके | पर चूँकि हजारो साल तक इस कृषि प्रधान देश में रहने के बाद इस देश की शोषित नारी के पेट से पैदा होने के बावजुद भी कबिलई मनुवादी अबतक भी छुवाछुत करना नही छोड़ा है , इसलिए कहा जा सकता है कि मनुवादी का जानवर सोच से बाहर निकलने की प्रक्रिया अब भी जारी है | जबकि गोरे इस कृषि प्रधान देश में सिर्फ दो सौ सालो तक ही रहकर भेदभाव करने की सोच से बाहर निकलकर जानवरपन करना छोड़ दिये थे | हलांकि गोरो द्वारा इस देश में प्रवेश करने से पहले ही उन्हे परिवार समाज का ज्ञान हासिल था , इसलिए सायद उन्होने जानवरपन से खुदको जल्दी बाहर निकाला | हलांकि अजादी उनसे छिनकर लिया गया था | जैसे की मनुवादीयों से भी अजादी छिनकर ली जायेगी यदि इसी तरह मनुवादी अपना भेदभाव शोषण अत्याचार जारी रखा | क्योंकि अब सबको यकिन होता जा रहा है कि मनुवादी भी खुद ही न तो भेदभाव शोषण अत्याचार करना पुरी तरह से कभी छोड़ने वाले हैं , और न ही अपनी मनुवादी शासन में पुरी तरह से इमानदारी से चुनावा कराकर सत्ता को छोड़ने वाले हैं | क्योंकि गोरो की तरह मनुवादीयों को भी उस झुठी शान ने जकड़कर रखा हुआ है जो उनसे जानवरपन करा रहा है | जो झुठी शान मनुवादी को मनुस्मृति रचना करते समय भी जकड़कर उच्च निच छुवाछुत नियम कानून रचवाया है | जिसे वह आजतक भी अपनी भ्रष्ट बुद्धी से नही मिटा पा रहा है | जिसके चलते जिस माँ के पेट से वह जन्म लिया है अथवा इस कृषि प्रधान देश में जिस समाज परिवार की नारी से मनुवादीयों का वंशवृक्ष बड़ा हुआ है , उसी परिवार समाज में मौजुद लोगो के साथ भारी भेदभाव शोषण अत्याचार हजारो सालो से करता आ रहा है | मानो वह जबरजस्ती अपने ससुराल को ही गुलाम बनाकर ससुराल में ही घर जमाई बनकर यहीं पर बस गया है | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले उसके पास अपना ऐसा कोई भी परिवार समाज मौजुद नही था कि उनके पास वापस लौट सके | इसलिए मनुवादी अब चाहकर भी यदि इस देश से वापस बाहर जायेगा तो वह किसी भी देश का मुलनिवासी नही कहलायेगा जबतक की वह इस सवाल का जवाब पुरी तरह से पता नही कर लेता कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले उनके पुर्वज किस देश में अपने किस परिवार समाज के साथ रह रहे थे ? और यदि यूरेशियन डीएनए से चूँकि मनुवादीयों का डीएनए मिलता है इसलिए मनुवादीयों के पुर्वज यदि यूरेशियन महिलाओं के साथ परिवार बसाकर रह रहे थे तो उस परिवार की खोज खबर इतिहास मनुवादीयों के पास मौजुद क्यों नही है ?और अगर चूँकि मनुवादी भी गोरो और शैतान सिकंदर की तरह लुटपाट करने आए थे इसलिए अपने साथ परिवार को नही लाए थे तो भी अपनी लुटपाट भरपुर होने के बाद मनुवादीयों द्वारा इस देश में बसने के बाद अपने परिवार को अपने पास क्यों नही बुलाया ? जिन सवालो के बारे में पता करने के बाद ही मनुवादी को अपने पुर्वजो की उन माँ के बारे में भी पता चल जायेगा जिसका एम डीएनए इस देश की नारी में मौजुद एम डीएनए से नही मिलता है | जो नारी मनुवादीयों के उन पुर्वजो की माँ है जिनको छोड़कर मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद अपनी मातृभूमि में वापस कभी लौटे ही नही | और यहीं पर यहीं की नारी से परिवार बसाकर उससे अपना वंश वृक्ष बड़ा करके बस गये | जिसके बाद यहाँ पर जन्मी नई पिड़ी अपनी मातृ भूमि इसी देश को कहते हुए इस इंडिया को ही अपना मदर इंडिया कहकर गर्व करना सुरु किया जो कि स्वभाविक था | क्योंकि यहाँ के मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद नारी से ही वह नारी भी जन्म ली है , जिसके साथ मनुवादी अपना परिवार बसाकर अपना वंश वृक्ष बड़ा करना अब भी जारी रखे हुए है | साथ साथ उन्होने उसी नारी का एम डीएनए जिस नारी से मिलता है उसके परिवार के सदस्यो को शुद्र घोषित करके आजतक भी छुवाछुत करना भी नही छोड़ा है | अथवा मनुवादी ने चूँकि अपने ससुराल के लोगो को शुद्र घोषित किया हुआ है , इसलिए उन्होने अपने परिवार की महिलाओं को भी शुद्र घोषित किया हुआ है | जो जानकारी वेद पुराणो में भी दर्ज है | जिस वेद पुराण में बाहर से आए मनुवादीयों को देव और इस देश के मुलनिवासियों को राक्षस दानव असुर कहा गया है | अथवा इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों को दास दासी बनाकर इस देश की गणतंत्र व्यवस्था में मनुवादियों ने खुदको शासक बनाकर उच्च निच छुवाछुत व्यवस्था स्थापित किया है | ऐसा उसने खुदको हमेशा के लिए शासक बनाये रखने के लिए ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य जाति घोषित किया हुआ है | और इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र जाति घोषित किया हुआ है | इतिहास गवाह है कि मनुवादी जब इस देश में प्रवेश किया था , उस समय भक्षक बनकर प्रवेश किया था रक्षक बनकर नही | उसी तरह गुलाम करके मनुस्मृति रचना करके शोषण अत्याचार करनेवाला भ्रष्ट बुद्धी लेकर प्रवेश किया था न की अजाद भारत का संविधान रचना करने वाला बुद्धी लेकर | जाहिर है मनुवादीयो ने अपनी झुठी शान और सत्ता बरकरार रखने के लिए खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है | जिसका मतलब यह नही मान लिया जाय कि वह सचमुच में तब जन्म से विद्वान पंडित होता था इसलिए खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है | खासकर मनुस्मृति रचना करते समय तो मनुवादी खुदको जन्म से विद्वान पंडित कैसे साबित कर सकता था जब उससे भी ज्यादे विकसित बुद्धी बल वाला इंसान पहले से मजुद थे | मसलन इस देश के मुलनिवासियों ने इस देश में मनुवादियों द्वारा प्रवेश करने से पहले उस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति और गणतंत्र का निर्माण किया था जो उनके कबिलई झुंड से कहीं अधिक विकसित बुद्धी बल प्रमाणित करता है | जबकि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले कबिलई मनुवादीयों को न तो कृषि कार्य आता था और न ही संयुक्त परिवार समाज गणतंत्र वगैरा के बारे में कुछ आता था | रही बात जन्म से क्या वह धन्ना है तो जो मनुवादी हजारो सालो से दुसरो के देश में पल रहा है वह जन्म से धन्ना तो क्या यदि वह इस देश के मुलनिवासियों के जो हक अधिकार को हजारो सालो से लुटा है , उसे वापस कर दे तो नंगा आया था नंगा वापस जायेगा ये कहावत मनुवादी में फिट बैठ जायेगी | क्योंकि गोरो के पास तो इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश में प्रवेश करके लुट इंडिया कंपनी बिठाकर अपना पेट पालने से पहले भी अपने देश में कंपनी मौजुद थी पर मनुवादियों के पास इस देश में प्रवेश करने से पहले कौन सी कंपनी और कौन सी सत्ता और समाज परिवार बल्कि खेती बारी मौजुद थी इसकी जानकारी आज भी डायनासोर की इतिहास की तरह खोजा जा रहा है | क्योंकि डीएनए प्रमाण से ये बात तो साबित हुआ है कि कबिलई मनुवादि यूरेशिया से आया है , पर यह बात अबतक साबित नही हो पाया है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले मनुवादीयों के पास इस देश की सभ्यता संस्कृति और परिवार समाज गणतंत्र मौजुद थी | वेद पुराण में तो मनुवादियों के पुर्वज देवो के बारे में बतलाया गया है कि देव उपर स्वर्ग वासी जिवन जिते हैं | जहाँ से ही वे इस धरती में किसी एलियन की तरह उतर थे | जैसे की देवो का राजा इंद्रदेव के बारे में यह बतलाया जाता है कि इंद्रदेव को इस धरती की विवाहित महिला अहिल्या के प्रति इतना हवश भर आया कि वह स्वर्ग की अप्सराओ को भी छोड़ छाड़कर अपनी हवश पुरा करने के लिए अहिल्या के साथ छल कपट करके धोखे से बलात्कार किया था | जिसकी पोल खुलने के बाद अहिल्या के पति गौतम मुनी ने बलात्कारी हवशी इंद्रदेव को हजार योनी किसी घुंघरु की तरह अपने उपर टांगकर जिवन बसर करने का श्राप दिया था | हलांकि इंद्रदेव को वेद पुराण में इस कृषि प्रधान देश की खेती में मदत करने वाला पशु चोर भी बतलाया गया है | बतलाया गया है कि इंद्रदेव ने असुरो की धरती में प्रवेश करके पशु चोरी और लुटपाट किया और असुरो का सौ पुर अथवा सौ शहरो को भी ध्वस्त किया | जिसने उस बाँध को भी तोड़ा जिससे की कृषि हरियाली और सुख शांती समृद्धी खुशियाली मौजुद थी असुरो के सम्राज्य में | जिन असुरो के परिवार में मौजुद महिलाओं के साथ परिवार भी बसाया और उससे ही अपना वंश वृक्ष भी बड़ा किया है | जैसे की इंद्रदेव की पत्नी उस असुर की बेटी थी जिसकी हत्या देवासुर संग्राम में करके इंद्रदेव ने असुरो की सत्ता में कब्जा जमाया था | यानी स्वर्ग में रहने वाली महिला भी वही पिड़ित महिलायें हैं | जिनका मदर डीएनए और शुद्र अच्छुत निच असुर दानव राक्षस घोषित किये हुए मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओं का एम डीएनए एक है | जिससे  भी यह प्रमाणित होता है कि मनुवादीयों के द्वारा इंद्रदेव का स्वर्ग वाली बात भी इसी पृथ्वी बल्कि इस कृषि प्रधान देश से जुड़ा हुआ है | न कि वाकई में इंद्रदेव एलियन की तरह उपर से इस धरती में उतरकर इस धरती को कब्जा करने के लिए असुरो से देवाअसुर संग्राम करके उन असुरो के परिवार में मौजुद महिलाओं को देव दासी बनाकर उनसे अपना वंश वृक्ष बड़ाया जो असुर दानव राक्षस भी स्वर्ग में बिना ऑक्सीजन के आना जाना करते हैं | जिसके चलते स्वर्ग का इंद्र सिंघासन बार बार डोलता रहता था और कथित जिस स्वर्ग में सबसे सुखमई जिवन बतलाया जाता है वहाँ पर देवो समेत उनका राजा इंद्रदेव को भयभीत होकर सिंघासन के लिए मार काट करते हुए बतलाया जाता है  | जिस कथित सबसे अधिक सुखी जिवन वाले स्वर्ग का वासी इस धरती का वासी इंसान को भी मरने के बाद यदि नागरिकता मिलती है तो फिर जिते जी असुर दानव राक्षस उस स्वर्ग में कैसे प्रवेश करते हुए वेद पुराणो में बतलाया जाता है ? दरसल इस कृषि प्रधान देश में कबिलई देवो ने प्रवेश करके कृषि में मदत करने वाला पशु की चोरी और लुट करके कृषि को भारी नुकसान पहुँचाया और बाँध को भी तोड़कर कृषि को भारी नुकसान पहुँचाया पर उन्होने खेत को कब्जा करके उसमे खेती कभी नही किया | बल्कि खेती में मदत करने वाला पशुओ की चोरी जरुर किया ऐसी जानकारी जो वेद पुराणो में मौजुद है , उससे यह जानकारी भी मिलती है कि देवो को कृषि कार्य नही आती थी | और न ही बाकि भी वह हजारो हुनर आती थी जिसे कि आज हजारो निच जाति के नाम से जाना जाता है | जिन हजारो हुनरो में से सायद ही चंद हुनरो को मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले जानता होगा | जो सारे हुनर जिसे अभी जन्म से वर्ण व्यवस्था और हजारो जाति व्यवस्था के रुप में जाना जाता है , उन विकसित हुनरो को मनुवादियो ने पैदा किया है यह कहना वैसा ही है जैसे कि इस कृषि प्रधान देश में मनुवादियों के प्रवेश करने से पहले शिक्षा क्षेत्र , रक्षा क्षेत्र वित्त क्षेत्र समेत धोबी बढ़ई वगैरा तमाम विकसित हुनर मौजुद ही नही था | जो सब मनुवादियों ने बाद में इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को सिखलाया है | जो हास्यस्पद और मुर्खता होगी कि कबिलई मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इन विकसित क्षेत्रो की जानकारी को वर्ण और जाति व्यवस्था के रुप में स्थापित करके इस देश के मुलनिवियों को दिया है | जबकि सच्चाई यह है कि मनुवादि जब इस देश में प्रवेश भी नही किया था उस समय इस देश में कृषि और धोबी बढ़ई जैसे हजारो हुनर की खोज कबका हो चुका था | जैसे कि कबिलई गोरो द्वारा इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से हजारो साल पहले भी सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृति गणतंत्र व्यवस्था और नालंदा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय मौजुद था | जाहिर है वर्ण और जाति व्यवस्था को मनुवादियों ने नही बनाया है | बल्कि इस देश के मुलनिवासियों ने जिन हुनरो के जरिये विकसित व्यवस्था को संचालन हजारो सालो से किया है उसे मनुवादीयों ने जन्म से उच निच जाति घोषित कर दिया है | जैसे कि वर्तमान के भी मोबाईल टावर और केबल ओपरेटर सहित डॉक्टर , इंजिनियर , वकिल वगैरा बहुत से विकसित हुनर और उपाधि को अगर जन्म से जाति घोषित कर दिया जाय तो वह हुनर और उपाधि जाति घोषित करने वालो द्वारा बनाया गया नही कहलायेगा | क्योंकि ये सब कार्य मनुवादीयों के द्वारा बनाया व्यवस्था नही है , बल्कि उस कार्य को जन्म से जाति बनाया गया मनुवादीयों द्वारा कहलाता यदि उसे जाति घोषित किया जाता | क्योंकि मोबाईल ऑपरेटर केबल ऑपरेटर डॉक्टर इंजिनियर वकिल वगैरा कार्य व्यवस्था मनुवादीयों ने नही बनाया है | जिसे यदि जन्म से जाति बनाया जाय तो मोबाईल ऑपरेटर केबल ऑपरेटर इंजिनियर डॉक्टर वकिल वगैरा जितने भी कार्य है , वह सभी जन्म से जाति मानी जाती तो क्या ये सभी कार्यो को करने वाले लोग निच हो जाते | जैसे कि कपड़ा धोने फर्नीचर बनाने और फसल उगाने वगैरा कार्य करने वाले निच हो जायेंगे अपने कार्यो से ? नही होंगे पर उन्हे निच घोषित किया गया है मनुस्मृति लागू करके | जो सारे कार्य दरसल कृषि सभ्यता संस्कृति में विकसित किया हुआ वह हुनर है जिससे की इंसानी सभ्यता संस्कृति का विकाश हो रहा है | जिसे मनुवादीयों ने जन्म से जाति घोषित किया है | अथवा इस देश में जो हजारो निच जाति घोषित किये गए हैं वह सब कोई न कोई विकसित हुनर है , जिसे इंसानो ने अपनी जरुरत पुरी करने के लिए समय समय पर खोज किया है | जिन हुनरो की तरह ज्ञान बांटने वाला शिक्षक रक्षा करने वाला सैनिक और धन रखने वाला वित्त मंत्री या अधिकारी भी हुनर है , जिसे गणतंत्र की खास जिम्मेवारी दिया जाता है | जैसे की वर्तमान में लोकतंत्र का चार प्रमुख स्तंभो को खास जिम्मेवारी दिया गया है | उसी तरह वेद पुराण काल में वेद का ज्ञानी , रक्षक और धन संचय करने वालो को खास जिम्मेवारी दिया जाता था | जिसे वर्तमान के शासक में कहा जा सकता है , शिक्षा मंत्री , रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री | जो तीनो क्षेत्र वेद पुराण काल में खास प्रमुख क्षेत्र थे , जिसपर मनुवादीयों द्वारा जब इस देश की सत्ता हथियाने के बाद कब्जा हुआ तो मनुवादीयों ने इन तीनो क्षेत्रो में खुदको स्थापित करके इस देश के शासक बनते ही खुदको जन्म से  ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य घोषित करके भेदभाव करना सुरु कर दिया ताकि इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से लेकर मरन तक हिन भावना से इतना ग्रसित कर दिया जाय की कोई भी मुलनिवासी फिर से कभी भी शासक बनने के बारे में सोच ही न सके | जिससे कि इस देश के मुलनिवासी अब न तो शासक बन सके और न ही शासक बनकर इन खास क्षेत्रो का प्रमुख बन सके | पर चूँकि गोरो के जाने के बाद अब अजाद भारत का संविधान लागू होकर इस देश के मुलनिवासियों ने खुदको ज्ञान क्षेत्र रक्षा क्षेत्र और वित्त क्षेत्रो में भी खुदको वापस स्थापित करना सुरु कर दिया है , इसलिए मनुवादि अब वैसे भी जन्म से उच्च कहना तो दूर इस जन्म के बाद भी सिर्फ खुदको उच्च नही कह सकता  प्रयोगिक तौर पर | क्योंकि शिक्षक रक्षक और धन्ना इस देश के मुलनिवासी भी हैं | पर चूँकि मनुवादी सत्ता अब भी कायम है इसलिए मनुवादी अब भी उच्च निच जाति को मानता है | और अब भी सत्ता में लगातार कायम रहने की वजह से खुदको उच्च महसुश करता है | जैसे कि जबतक गोरे इस देश की सत्ता में मौजुद थे तबतक इस देश के नागरिको को गुलाम बनाकर खुदको उच्च ताकतवर और अपने गुलामो को कमजोर समझकर शोषण अत्याचार करते रहते थे | लेकिन अजादी मिलते ही वे अब जज बनकर शोषण अत्याचार नही कर सकते | जबकि गुलाम बनाकर वे न्यायालय का जज बनकर भी शोषण अत्याचार न्याय समझकर कर सकते थे | और शोषण अत्याचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे क्रांतीकारी वीरो को न्याय फैशले में सजा भी दे सकते थे | जो कि अनगिनत क्रांतिकारियो के खिलाफ न्याय सुनाते समय सजा दिये भी | जिन वीरो को अजादी के लिए संघर्ष करने वाले वीर क्रांतीकारी के रुप में इतिहास दर्ज किया गया है | जिसे गोरे अपने लुटमार गुलाम करने वाला इतिहास में अपराधी और खुदको गुलाम करनेवाला उच्च विकसित बुद्धी बल वाला इंसान घोषित करते थे | जो भ्रष्ट इतिहास तबतक दर्ज होता चला गया जबतक कि उन्हे यह बुद्धी नही आई कि गुलाम करना और जज बनकर गुलामी के खिलाफ संघर्ष करने वालो को अपराधी घोषित करके उन्हे सजा देना उच्च विकसित बुद्धी बल नही है | बल्कि उच्च बुद्धी बल का विकास इंसानियत का वह विकास है , जिसमे इंसान के भितर से परजिवी जनवरपन समाप्त होकर तेज गति से इंसानियत का विकाश होता चला जाता है | जिसके चलते इंसान के भितर किसी को दुःख तकलीफ देने के बजाय उसकी भलाई करने की भावना का विकाश तेजी से होता है | जैसे कि गोरो में हुआ और उनकी नई पिड़ी अपने गुलाम करने वाले पुरानी पिड़ी के उन कुकर्मो के लिए माफी मांगकर न सिर्फ विकसित मांसिकता को दर्शाते हैं , बल्कि अपने पुरानी पिड़ी के द्वारा किये गए कुकर्मो को कभी भी वापस न दोहराने की ज्ञान उन लोगो को भी बांटते रहते हैं जिनको अब भी लगता है कि किसी का शोषण अत्याचार करना बुद्धी बल का उच्च विकाश है | जिस तरह का विकाश की बहुत जरुरत है मनुवादीयों को जिनको अब भी लगता है कि अपने भ्रष्ट बुद्धी में गंदगी का अंबार लगाकर इस देश के मुलनिवासियों के साथ  भेदभाव शोषण अत्याचार करके मनुवादी शासन में सिर्फ सफाई अभियान चलाकर देश में साफ सुथरा आधुनिक शाईनिंग डीजिटल विकाश हो जायेगा | जबकि असली साफ सुथरा विकाश तब अपडेट होने लगेगा जब मनुवादीयों की भ्रष्ट मांसिकता की भेदभाव सत्ता इस देश से चली जायेगी | जिसके बाद छुवा छुत शोषण अत्याचार से इस देश के मुलनिवासियों को छुटकारा मिलकर पुरी अजादी मिल जायेगी | और यदि नही भी मिलेगी कुछ शोषित पिड़ितो को तो जो लोग तब भी छुवाछुत करेंगे वे लोग जेल में डाल दिये जायेंगे मांसिक सुधार के लिए | अथवा मनुवादी शासन में जो मनुवादी बाहर रहकर खुलेआम छुवा छुत का बोर्ड लगाकर भी कर रहे हैं वे सभी सुधार घर अथवा जेल में सजा काटेंगे | जो तबतक सजा काटेंगे जबतक की उनकी भ्रष्ट बुद्धी में मौजुद छुवाछुत गंदगी की सफाई होकर वे छुवाछुत करना न भुल जायेंगे | जैसे कि यदि गोरो से अजादी मिलने के बाद यदि कुछ गोरे तुम गुलाम इसी के काबिल हो कहकर इस देश के नागरिको को आज भी यदि डंडे बरसाते कोड़े बरसाते तो वे अभी या तो जेल में सजा काट रहे होते या फिर उनपर शोषण अत्याचार करने मारने पिटने का केश चल रहा होता | पर जबतक इस देश में गोरो का शासन मौजुद था तबतक गोरे यह सब कुकर्म जज बनकर न्याय घोषित करके गुलामी के खिलाफ अवाज उठाने वालो पर डंडे और कोड़े बरसाकर किया जाता था | जिन्हे लगता था कि अजादी के लिए गुलामी के खिलाफ आंदोलन करने वाला नागरिक अपराधी है | और उनपर कोड़े और डंडे बल्कि कई बार तो गोली बरसवाने और बरसानेवाला गोरे वाकई में कई देशो को गुलाम करके लुटपाट शोषण अत्याचार करते हुए गुलाम देश में न्यायालय बनाकर उसमे सत्य न्याय करनेवाला जज बना हुआ था | जैसे की अभी छुवाछुत भेदभाव करते समय डंडा बरसाने वाले मनुवादी जेलो में मौजुद नही हैं | जो जेल में डाले जायेंगे जब मनुवादी सत्ता समाप्त होकर मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिल जायेगी | जो जबतक नही मिलेगी तबतक मनुवादी शासन में वह भ्रष्ट शोषन चलती रहेगी जिसमे विकाश उल्टी गंगा बहाकर किया जाता है | जिस उल्टी विकाश में प्रजा को सेवक और शासक को सेवा कराने वाला बुरे हालात पैदा करके प्रजा की सेवा करने का शासन नही बल्कि शोषण करने का विकाश होता है | जिस तरह का भ्रष्ट विकाश हमेशा के लिए कायम बना रहे इसके लिए ही तो मनुवादीयों ने हजारो साल पहले जन्म से खुदको ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य घोषित किया हुआ है | इसका मतलब ये नही कि मनुवादीयों ने ही विद्वान रक्षक और धन्ना किसे कहा जाता है इसका ज्ञान बांटा है | बल्कि मनुवादीयों ने इस कृषि प्रधान देश की गणतंत्र व्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रो में हजारो साल पहले कब्जा करके उच्च क्षेत्रो में हमेशा के लिए बने रहने के लिए खुदको जन्म से विद्वान पंडित वीर रक्षक और धन्ना घोषित किया हुआ है | ताकि इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से निच घोषित करके बचपन से ही ये हिन भावना उत्पन्न कर सके कि इस देश के मुलनिवासी शिक्षक रक्षक और धन्ना कभी नही बन सकता | और जिसके पास बुद्धी बल और धन बल नही वह शासक कैसे बन सकता है इस तरह की हिन भावना बचपन से बिठाकर मनुवादी इस देश का शासन को आरक्षित करके रखने की मकसद से जन्म से उच्च निच घोषित किया गया है |

Discriminatory thinking arising from the mind, excreta from the body is more harmful than urine.



Discriminatory thinking arising from the mind, excreta from the body is more harmful than urine.
khoj123,



मन से उत्पन्न होने वाली भेदभावपूर्ण सोच, शरीर से निकलने वाला मल मूत्र से अधिक हानिकारक होता है।


(man se utpann hone vaalee bhedabhaavapoorn soch, shareer se nikalane vaala mal mootr se adhik haanikaarak hota hai

हजारो सालो बाद भी अबतक नही सुधरने वाले जो भी मनुवादी इतने लंबे समय के बाद भी अबतक अपनी भ्रष्ट मांसिकता को नही त्याग सके हैं , वे निश्चित तौर पर छटे हुए वैसे खोटे सिक्के हैं , जिनके द्वारा अब सुधरने की उम्मीद न के बराबर है | और चूँकि तन के द्वारा त्यागा गया मल मूत्र गंदगी से भी ज्यादे हानिकारक गंदगी मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी होती है , जिससे कि दुसरो को गुलाम दास दासी बनाने की भ्रष्ट गंदी मांसिकता पनपती है , इसलिए इस कृषि प्रधान देश में छुवाछुत मनुवादी सत्ता जबतक कायम रहेगी तबतक चाहे जितनी सफाई अभियान चलाया जाय और जितनी भेदभाव शोषण अत्याचार मुक्त नियम कानून बनाया जाय , जबतक मनुवादीयों के मन में छुवाछुत गंदगी मौजुद है वे अजाद भारत का संविधान लागू होने के बावजुद भी पुरी दुनियाँ का मल मुत्र से भी ज्यादे हानिकारक गंदगी अपनी भ्रष्ट गंदी मांसिकता से फैलाते रहेंगे | क्योंकि मनुवादी खुदको जबतक मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी से पुरी तरह से बाहर नही निकाल लेता तबतक वह छुवाछुत करना कभी नही छोड़ेगा | जिस गंदगी को अपने सर में ढोकर किसी किमती खजाने की तरह रखकर भले क्यों न वह इस देश से बाहर विदेशो में भी रहने लगे और धन्ना बनकर सुटबुट पहनकर गोरो के साथ झुठी शान की विकसित डीजिटल जिवन जिने लगे , वह अपने सर में मौजुद अथवा मन की गंदगी से मल मूत्र गंदगी से भी ज्यादे नुकसान करता रहेगा  | क्योंकि भ्रष्ट गंदी मांसिकता को विकसित रुप श्रृंगार करके कपड़ो या किमती जेवरो से कभी नही ढका जा सकता | जैसे की मल मूत्र को सोने चाँदी के बरतनो से ढककर उसकी गंदगी को पुरी तरह से नही छिपाया जा सकता | छुवाछुत करने वाला इंसान चाहे दुनियाँ की सबसे किमती महलो में क्यों न रहे या फिर सोने की बरतनो में खाना खाये और सोने से जड़ा सबसे किमती शौचालय का निर्माण कराये , लेकिन भी वह अपने मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी से मल मूत्र गंदगी फैलाने वाले लोगो से भी कई गुणा हानि देश और प्रजा को नुकसान पहुचाने वाला गंदी सोच वाला इंसान साबित होता रहेगा | क्योंकि भेदभाव और दास दासी गुलाम करने वाले लोग शारिरिक और मांसिक दोनो प्रकार से इतने ज्यादे नुकसान पहुँचाते हैं की वह नुकसान आनेवाली पिड़ी दर पिड़ी भारी नुकसान करता चला जाता है | जिसकी वजह से मनुवादी छुवाछुत कचड़ा परमाणु कचड़ा से भी ज्यादे समय तक नुकसान करता आ रहा है और आगे भी करता रहेगा यदि मनुवादी मन में मौजुद छुवाछूत कचड़ा मौजुद रहा | जिस कचड़ा कि वजह से मनुवादी आज भी हजारो सालो से इस देश के मुलनिवासियों को शारिरिक और मांसिक दोनो तरह से  पिड़ी दर पिड़ी भारी नुकसान पहुँचाते आ रहा हैं | क्योंकि वैज्ञानिको के पास परमाणु कचड़ा को भी किसी खास तरिके से ढककर उससे फैलने वाली नुकसान को रोकने का इंतजाम है , पर मनुवादी कचड़ा से फैलने वाली नुकसान को ढकने या रोकने का इंतजाम दुनियाँ के किसी भी वैज्ञानिक के पास मौजुद नही है | क्योंकि वैज्ञानिक द्वारा परमाणु कचड़ा से निपटने के लिए चाहे अपनी बुद्धी का इस्तेमाल करके परमाणु कचड़ा से होने वाली भारी नुकसान से बचाने में खास योगदान हो या फिर अपने सर का इस्तेमाल करके सर में मल मुत्र ढोने वाला शोषित पिड़ित द्वारा मल मूत्र की सफाई करके गंदगी से होनेवाली तन की बिमारी को रोकने के लिए खास योगदान हो , इससे तो बहुत से नुकसान से बचाव हो रहा है , भले मैला ढोने वाला खतरनाक कार्य शोषित पिड़ित अपनी जिवन को खतरे में डालकर मजबूरी में अपने और अपने परिवार का पेट पालने के वास्ते कर रहा है | पर मनुवादी अपने सर के अंदर छुवाछुत की गंदी मांसिकता को ढोकर कौन सा पेट पालने का भलाई का कार्य कर रहा है ? बल्कि अपने सर में छुवाछूत की मांसिक गंदगी लिये तन की बिमारी से भी खतरनाक बिमारी के जरिये किसी के जिवन और मान सम्मान को इतना अधिक नुकसान पहुँचा रहा है कि उससे बचने के लिए देश दुनियाँ में करोड़ो शोषित पिड़ित हर रोज किसी न किसी माध्यम से मनुवादीयों के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रहे हैं | क्योंकि जब किसी के पास शौचालय भी नही होता था उस समय भी जितना नुकसान खुले में की जा रही मल मुत्र गंदगी से भी किसी को नुकसान नही होता था उससे भी कहीं ज्यादे नुकसान शोषित पिड़ितो को मनुवादीयों के मन में मौजुद छुवाछूत गंदगी बंद कमरे में फैलाने से भी हो रहा है | क्योंकि आज भी जहाँ पर शौचालय नही है वहाँ पर खुले में मल मुत्र करने से उतना नुकसान नही हो रहा है जितना की खुले और बंद कमरे में भी अपने सर में छुवाछूत गंदगी को लिये शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादीयों से नुकसान पहुँच रहा है |  जिस नुकसान को अनदेखा करके मनुवादी शासन के बारे में जिन मुलनिवासियों के मन में अब भी यह भ्रम मौजुद है कि मनुवादी शासन से इस कृषि प्रधान देश और यहाँ की प्रजा का सबसे बेहत्तर विकाश हो रहा है , उनको यह बात हमेशा याद रखना चाहिए कि मनुवादी शासन में इस देश के मुलनिवासियों की मौत जिस तादार में हो रहा है , उस तादार में यदि मनुवादीयों की मौत होती तो अबतक अल्पसंख्यक मनुवादी डायनासोर की तरह कबका लुप्त हो गया होता | जो लुप्त नही बल्कि बहुसंख्यक मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनके हक अधिकारो को भी खा खाकर अपनी जिवन को सबसे अधिक सुरक्षित करके छुवाछुत शासन कर रहा है | जो आज भी इस देश के मुलनिवासियों के साथ जानवरो जैसा व्यवहार करता है | जिसके कारन इस देश के मुलनिवासी कबिलई मनुवादीयों द्वारा भारी शोषण अत्याचार का शिकार होकर हर साल भारी तादार में मारे जा रहे हैं | चाहे अपने हक अधिकारो को मनुवादीयों के द्वारा छिने जाने से इस देश के मुलनिवासी गरिबी भुखमरी से मर रहे हो या फिर मनुवादी शासन में उनके साथ भारी भेदभाव द्वारा उनके पास मुलभुत जरुरी चीजो के अभाव की वजह से मर रहे हो , सबसे अधिक मौते तो मुलनिवासियों की ही हो रही है | जिन मौतो से मनुवादीयों को कोई खास लेना देना नही है | बल्कि इस देश के मुलनिवासियों की मौत जितनी अधिक होती रहेगी मनुवादी उतनी अधिक भोग विलाश और झुठी शान में डुबता चला जायेगा यह कहते हुए कि उनके नेतृत्व में आधुनिक शाईनिंग और डीजिटल विकाश तेजी से हो रहा है | जबकि सच्चाई यह है कि जो मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले संभवता कपड़ा पहनना भी नही जानता होगा वह क्या उस इंसानियत और पर्यावरण संतुलित कृषि विकाश के बारे में समझ बुझ पायेगा जिसे इस देश के मुलनिवासी हजारो साल पहले ही कृषि करना सिखकर सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करके कृषि प्रधान कहलाने का गौरव हासिल किया है | जिसे अबतक मनुवादी इसलिए ठीक से नही समझ सका है क्योंकि कबिलई मनुवादी आजतक भी अपनी उस परजिवी मांसिकता से बाहर नही निकल सका है जो परजिवी मांसिकता इंसान को गुलाम दास दासी बनाकर अपने गुलामो को चुसकर परजिवी जिवन जिने की कला अथवा दुसरे की हक अधिकारो को चुसने की हुनर सिखलाता है | जिस कला अथवा हुनर में मनुवादी को हजारो सालो का खास अनुभव है | जिस तरह का अनुभव और हुनर इस देश के मुलनिवासियों के पास इतिहास में कभी नही दिखता है | क्योंकि मनुवादी जब संभवता कपड़ा पहनना भी नही जानता होगा उस समय ही इस देश में उस विकसित कृषि सभ्यता संस्कृति का का निर्माण हो चुका था , जिस कृषि सभ्यता संस्कृति में भेदभाव करना और गुलाम दास दासी बनाना विकसित मांसिकता नही बल्कि विनाश मांसिकता माना जाता है | जिस विनाश मांसिकता की वजह से ही तो मनुवादी जब इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश की विकसित गणतंत्र व्यवस्था और हजारो विकसित हुनर व्यवस्था के बारे में जाना होगा तो उसे सिखने के बजाय उसे जन्म से ही उच निच जाति व्यवस्था घोषित करके विनाशकारी  छुवाछूत शोषण अत्याचार को विकसित करना सुरु किया है | जिसके लिए मनुवादीयों ने सबसे पहले घर के भेदियो की मदत से इस कृषि प्रधान देश में गोरो की तरह गुलाम सत्ता स्थापित किया , उसके बाद मनुस्मृति लागू करके वर्ण व्यवस्था और हजारो हुनरो को जन्म के आधार पर जाति घोषित करने में सक्षम हुआ है | जो स्वभाविक है , क्योंकि मनुवादी जिस तरह की कबिलई घुमकड़ जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश किया था , उसके बारे में जानकर यही लगता है कि मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले गणतंत्र व्यवस्था और हजारो हुनर व्यवस्था के बारे में जानना तो दुर परिवार समाज के बारे में भी नही जानता होगा | जिसके बारे में ज्ञान उसे इस कृषि प्रधान देश में आकर मिला और पहली बार उसने इस देश के लोगो से पारिवारिक रिस्ता जोड़कर अपना खुदका परिवार भी स्थापित किया है | भले उसने सुरुवात में इस देश की महिलाओं को देव दासी बनाकर ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहते हुए अपना वंश वृक्ष बड़ा किया है | क्योंकि यह जानकारी डीएनए प्रमाण से भी आज उपलब्ध है कि मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिला मनुवादी की तरह यूरेशिया से नही आयी है | बल्कि मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिलाओं का एम डीएनए चूँकि इस देश की महिलाओं की एम डीएनए से ही मिलता है , इसलिए मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिला भी इसी देश का मुलनिवासि है , न कि वह यूरेशिया से आई है | 

The day the Manuvadis stop calling themselves Hindus, their rule will end in this country.


The day the Manuvadis stop calling themselves Hindus, their rule will end in this country.
khoj123,india


जिस दिन मनुवादी खुद को हिंदू कहना बंद कर देंगे, उनका शासन इस देश में खत्म हो जाएगा।



अजाद भारत का संविधान में यदि सिर्फ एक वाक्य लिखा रहता कि " विदेशी मुल के लोग नागरिकता तो ले सकते हैं , पर शासक नही बन सकते हैं " तो भी हजारो सालो की मनुवादी सत्ता आगे शोषित पिड़ितो द्वारा बिना संघर्ष जारी रखे समाप्त हो जाती | हलांकि यह वाक्य भले संविधान में नही लिखा गया है , पर धर्म आज इस भावना को मजबुत जरुर करता है कि किसे देश का शासक बनना चाहिए और किसे नही बनना चाहिए | अथवा जिस देश में जो धर्म हावी रहता है , उसी धर्म के लोगो का सत्ता कायम होता है | और धर्म में जिन लोगो का दबदबा कायम रहता है उन्ही लोगो को शासक बनाया जाता है | जैसे कि इस देश में हिन्दू धर्म हावी है इसलिए हिन्दू सत्ता कायम है | जैसे कि अरब में मुस्लिमो की सत्ता कायम है | और चूँकि हिन्दू धर्म में मनुवादी का दबदबा कायम है , इसलिए मनुवादी को बार बार शासक बनाया जा रहा है | धर्मनिरपेक्ष तो सिर्फ सुनने में अच्छा लगता है , क्योंकि हकिकत में यह देश हो या फिर कोई और देश जहाँ पर भी जो धर्म हावी रहता है , उसी धर्म की सत्ता कायम रहता है | इसलिए भी धर्म को ज्यादे महत्व दिया जाता है वोट करते और वोट लेते समय भी | जो बात मनुवादी ही नही किसी भी वैसे व्यक्ती को अच्छी तरह से पता है , जिसे लगता है कि वह जिस धर्म को मानता है उस धर्म का शासक बनना चाहिए | जैसे कि इस देश के बहुसंख्यक हिन्दूओं को वोट करते समय और वोट का परिणाम निकलने के बाद भी यही लगता है कि इस देश का शासक हिन्दूओं को बनना चाहिए | जिसकी गहरी जानकारी के चलते ही तो यहूदि डीएनए का मनुवादी खुदको हिन्दू कहने में गर्व करता है | क्योंकि मनुवादी जिसदिन खुदको हिन्दू कहना छोड़ देगा उसकी सत्ता इस देश में अपनेआप समाप्त हो जायेगी | क्योंकि कबिलई लुटपाट के दौर में इस कृषि प्रधान देश में भले बाहर से आए कबिलई मनुवादी हजारो सालो तक जोर जबरजस्ती इस देश के मुल हिन्दूओं को दास दासी बनाकर हिन्दू वेद पुराणो की ज्ञान पर रोक लगाकर छुवाछुत करने के बाद हिन भावना पैदा करके खुले आम हिन्दुस्तान का शासक बना रहा है , पर अब के दौर में वह हिन्दू कहना छोड़ते ही इस देश की सत्ता से बेदखल हो जायेगा | क्योंकि अबतक वह उस हिन्दू धर्म की ठिकेदारी कर रहा है जो इस देश का खास मुल धर्म माना जाता है | जैसे की अरब का खास धर्म मुस्लिम धर्म माना जाता है | जिस अरब में मुस्लिम धर्म का शासक बनने से कोई दुसरा धर्म नही रोक सकता उन लोगो को जो मुस्लिम धर्म का नेतृत्व करते हैं | जिस तरह का नेतृत्व मनुवादी ने हिन्दू धर्म का करना तब से ही जारी रखे हुए है , जबसे उन्होने वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे मिलावट और छेड़छाड़ करके इस देश में अपनी धार्मिक सत्ता हमेशा के लिए कायम रखने के लिए जन्म से खुदको हिन्दू धर्म का पुजारी आरक्षित किए हुए है | बल्कि आज भी मुल हिन्दूओं के साथ छुवाछुत हिन भावना उत्पन्न करके सोची समझी राजनीति के तहत ही तो खुदको हिन्दू कहकर उन हिन्दूओं को दुसरे धर्मो की ओर धकेल रहा है , जिनके पुर्वजो ने वेद पुराणो की रचना किया है | और साथ ही बारह माह मनाई जानेवाली होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे हिन्दू पर्व त्योहारो की भी रचना किया है |  न कि मनुवादी ने हिन्दू वेद पुराणो कि रचना किया है | और न ही हिन्दू धर्म में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो की रचना मनुवादी ने किया है | क्योंकि वेद पुराण और होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनुवादीयों ने यूरेशिया से अपने साथ इस कृषि प्रधान देश में नही लाया है | जिन वेद पुराणो और पर्व त्योहारो से वंचित करने के लिए भी मनुवादी वेद पुराणो के साथ साथ प्राकृति पर्व त्योहारो में भी अपनी ढोंग पाखंड की मिलावट कर रहा है | जैसे कि उन्होने हजारो सालो से वेद पुराणो में भी अप्राकृति मिलावट करना तब सुरु किया जब वेद ज्ञान लेने पर रोक लगाना सुरु दिया था उन मुलनिवासियों को ही जिन्होने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया किया है | न कि यूरेशिया से आए यहूदि डीएनए का मनुवादियों ने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया है | पर हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण यूरेशिया से आए यहूदि डीएनए के मनुवादीयों की देन है ऐसी गलतफेमी की वजह से बहुत से हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं | जो कि मनुवादीयों की सोची समझी राजनिती भी है | क्योंकि उसे पता है कि मुल हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके हिन्दुस्तान का शासक बनने का उम्मीद वैसे ही खो देगा जैसे की पाकिस्तान और श्रीलंका की मांग करने वाले लोग खोये थे | क्योंकि यह कृषि प्रधान देश पुरी दुनियाँ में हिन्दू धर्म की पहचान से सबसे अधिक पहचाना जाता है | जैसे की अरब मुस्लिम धर्म के लिए पहचाना जाता है | जहाँ पर कोई हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बनकर भले शासक बन सकता है , पर कभी भी हिन्दू रहते वहाँ का शासक नही बन सकता | अजाद हिन्दुस्तान में भी मुस्लिम शासक नही बन सकता यह यहसाश होने के कारन ही तो हिन्दुस्तान से अलग देश पाकिस्तान की मांग सुरु हुआ था | जो स्वभाविक है , क्योंकि मुस्लिम धर्म को मानने वाले चूँकि अरब को अपना आदर्श मानते हैं , इसलिए अरब को ही ज्यादे फोलो करेंगे जैसे कि पाकिस्तान समेत जितने भी मुस्लिम देश बने या बनते जा रहे हैं वे सभी अरब को फोलो करते हैं | और साथ ही मुस्लिम धर्म को मानने के बाद उनको अरब की धरती ही सबसे पवित्र धरती लगती है | चाहे जितना वे खुदको धर्मनिरपेक्ष कह ले | जैसे की खुदको जन्म से हिन्दू धर्म का धर्म पंडित आरक्षित करके छुवाछुत करने वाला मनुवादी हो या फिर जन्म से निच घोषित करके छुवाछुत का शिकार होनेवाला मुल हिन्दू हो वह भले खुदको धर्मनिरपेक्ष बतलाता है , पर वह उस हिन्दुस्तान को ही हिन्दूओं की पवित्र धरती मानता है , जहाँ पर होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार  बारह माह मनाया जाता है |

What are the similarities between Indus, Hindi, Sindh Ocean, Indus River, Hindu and Hindustan?



What are the similarities between Indus, Hindi, Sindh Ocean, Indus River, Hindu and Hindustan?
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सिंधु, हिंदी, सिंध महासागर, सिंधु नदी, हिंदू और हिंदुस्तान के बीच समानताएं क्या हैं?



(sindhu, hindee, sindh mahaasaagar, sindhu nadee, hindoo aur hindustaan ke beech samaanataen kya hain?)


इस कृषि प्रधान देश में कबिलई मनुवादीयों के आने से पहले ही इस देश के मुलनिवासी प्राकृति की पुजा भगवान के रुप में करते आ रहे हैं | इसलिए वामन मेश्राम द्वारा यह जानकारी बांटना समय की बर्बादी है कि होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के मुलनिवासी हिन्दू नही बल्कि यहूदि डीएनए का मनुवादी मुल हिन्दू है | हलांकि यहूदि डीएनए के मनुवादीयों के खिलाफ परिवर्तन यात्रा करने वाले वामन मेश्राम द्वारा इस देश के मुलनिवासियों को बहुत सारी ऐसी ऐसी खास जानकारी भी निश्चित तौर पर जरुर बांटी जा रही है , जिसे की उन तमाम शोषित पिड़ित हिन्दूओं को जरुर जानना चाहिए जो की खुद भी मनुवादियों के खिलाफ बहुत सारी जानकारी इकठा करते रहते हैं , और बांटते रहते हैं | क्योंकि शोषित पिड़ितो के द्वारा ही तो समय समय पर मनुवादियों के द्वारा किये गए शोषण अत्याचार के बारे में मंथन करके मनुवादियों के खिलाफ लंबे समय से संघर्ष चल रहा है | जिन संघर्षो में उन तमाम शोषित पिड़ितो का खास ऐतिहासिक योगदान है , जिन्होने मनुवादियों के खिलाफ कड़ा संघर्ष करते हुए अपना किमती समय शोषित पिड़ितो के लिए न्योछावर कर दिया है | जिनके मेहनत और तप का फल उन सभी शोषित पिड़ितो को भविष्य में जरुर मिलेगा जिनको उन मनुवादीयों की शोषण अत्याचार से अजादी चाहिए , जिन्होने इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से शुद्र घोषित किया हुआ है | जो मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करके यदि उच्च बन जाता है यह सोचकर यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है तो फिर मनुवादियों के खिलाफ चल रही अभियान में वह कभी भी अपने आप को शोषित पिड़ित कहकर मनुवादीयों के खिलाफ चल रहे संघर्ष आंदोलन में साथ कभी नही देता यह सोचकर कि वह तो पुरी तरह से अजाद है | पर चूँकि वह साथ इसलिए दे रहा है क्योंकि धर्म परिवर्तन करने से न तो उसे गोरो से अजादी मिली थी , और न ही धर्म परिवर्तन करने से मनुवादीयों से अजादी मिल जाती है | अजादी सत्ता परिवर्तन से मिलती है , जिसमे अभी मनुवादीयों का कब्जा है | हलांकि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी शोषित पिड़ितो को वामन मेश्राम द्वारा यह जानकारी भी लगातार दिया जा रहा है कि ब्रह्मण कभी भी खुदको हिंदु नही कहता है | बल्कि अब तो डीएनए प्रमाण से प्रमाणित भी हो चुका है कि मनुवादी दरसल यहूदि डीएनए का यूरेशियन है | जिस जानकारी को डीएनए प्रमाणित जानकारी बतलाकर इतिहास को फिर से अपडेट करने की बाते वामन मेश्राम करता रहता है | जो की सही भी है कि हिन्दू वेद पुराणो में जो मिलावट और छेड़छाड़ मनुवादीयों द्वारा किया गया है , उसे सही करना जरुरी है | क्योंकि जब लिखाई पढ़ाई की खोज ही नही हुआ था , उस समय सिर्फ वेद पुराण के जरिये ही तो वेद अथवा मुँह की निकली आवाज ध्वनि द्वारा बोलकर ज्ञान बांटी जाती थी | और उस इतिहास को पिड़ी दर पिड़ी मन मंदिर में दर्ज किया जाता था | जिसे बाद में जब लिखाई पढ़ाई की सुरुवात हुई तो वेद पुराणो को पुस्तको के रुप में दर्ज किया गया | क्योंकि वेद ज्ञान जो की मुँह से निकली आवाज भाषा बोली द्वारा दिया गया ज्ञान है , जो कि बाकि भी कई धर्मो के धर्म पुस्तको की रचना वेद अथवा आवाज सुनकर ही लिखा गया है , इसलिए जाहिर है वेद पुराण में भी इतिहास दर्ज है | जैसे की हिन्दू वेद पुराण में इस देश और इस देश के मुलनिवासियों का इतिहास मौजुद है | क्योंकि जिस समय कोई लिखाई पढ़ाई मौजुद नही था उस समय इतिहास को वेदो के जरिये ही तो पिड़ी दर पिड़ी ज्ञान बांटकर मन में दर्ज किया जाता था | जैसे की आज भी इंसानो के मन में बल्कि जानवरो के भी मन में पुराना इतिहास दर्ज होता रहता है | जिसके चलते पुरानी घटी घटनाओं को याद करके इंसान और जानवर भी अपने करिबी रिस्तेदार या फिर अपने दुश्मन को भी जिवनभर नही भुलाते हैं | क्योंकि उनके मन में बिना लिखित ऐसा इतिहास दर्ज होता रहता है जिसके लिए किसी लिखाई पढ़ाई कि जरुरत नही होती है | जिसे अनपढ़ भी अपने मन में दर्ज करके जिवनभर अपनी भाषा बोली अथवा मुँह से निकली आवाज अथवा वेद के जरिये दुसरो को भी बांट सकता है | जो जरुरत पड़ने पर बांटता भी है | जैसे कि जब किसी से जरुरी पुछताछ होती है तो पुछताछ करने वाला व्यक्ती ये नही सोचता है कि जिससे वह पुछताछ कर रहा है वह अनपढ़ है कि पढ़ा लिखा है | जाहिर है जब पढ़ाई लिखाई की सुरुवात नही हुई थी उस समय सभी इंसान अनपढ़ ही तो थे | क्योंकि उस समय उसे कुछ लिखने पढ़ने का ज्ञान मौजुद नही था | इसका मतलब ये नही कि वह गुँगा भी था अथवा अपने मुँह से भी वेद ज्ञान अथवा भाषा बोली से ज्ञान नही बांटता था | जैसे की जानवर और पशु पक्षी भी अपनी आवाज से एक दुसरे को ज्ञान बांटते हैं , और बातचीत करते हैं | जो भी यदि लिखाई पढ़ाई की सुरुवात इंसानो की तरह कभी कर लेंगे तो क्या वे अपना पुराना विकाश या विनाश इतिहास लिख नही पायेंगे ? बिल्कुल लिखेंगे जैसा कि इंसानो ने भी लिखा है जब उन्होने लिखाई पढ़ाई की खोज की | जिसके बाद ही तो वेद पुराणो को लिखित रुप से दर्ज करके उसे धर्म पुस्तक के रुप में रचा गया है | जिन धर्म पुस्तको में भी विकाश या विनाश इतिहास दर्ज है | जैसे कि लिखित मौजुद हिन्दू वेद पुराणो में इतिहास दर्ज है | जिसके साथ मिलावट और छेड़छाड़ बाहर से आए मनुवादीयों ने किया है | पर चूँकि इतिहास वह सच्चाई है जिसमे मिलावट किया गया झुठ को घटनाक्रम और प्राकृति विज्ञान प्रमाण के आधार पर वापस सुधार या सही किया जा सकता है , इसलिए आज भी बहुत से इतिहास में सुधार करने की प्रक्रिया पुरी दुनियाँ में जारी है | जैसे की डायनासोर का इतिहास के बारे में भी जानने और सुधार करने की प्रक्रिया प्राकृति विज्ञान द्वारा प्रमाण के अनुसार जारी है | जाहिर है जब करोड़ो साल पहले लुप्त हुए डायनासोर का इतिहास मौजुद है तो हजारो लाखो साल पहले लुप्त हुए कथित उड़ने और गायब होने वाले देव दानवो का इतिहास के बारे में भी सही जानकारी इकठा करने की प्रक्रिया जारी है | बल्कि यदि देव के वंशज मनुवादी और दानवो के वंसज इस देश के मुलनिवासी हैं तो निश्चित तौर पर देव दानव लुप्त नही हुए हैं , बल्कि देव दानवो का इतिहास में गायब होने और उड़ने जैसे अनेको ढोंग पाखंड और झुठ का मिलावट किया गया है | जिसे प्राकृति विज्ञान प्रमाण अधारित घटनाक्रम के अनुसार सुधार करने पर दुध का दुध और पानी का पानी जरुर होगा जब मिलावट और गलती पकड़कर वेद पुराणो में की गई मिलावट में सुधार किया जायेगा | जैसे की वामन  मेश्राम ने भी वेद पुराण में की गई मिलावट और गलती को पकड़ने की कोशिष करते हुए अपने प्राकृति विज्ञान प्रमाणित तर्क में सवाल किया है कि राम और हनुमान जब एक ही समय में पैदा हुए थे तो हनुमान की तरह राम का भी पुंछ क्यों नही था ? हनुमान को जानवर और पशु की तरह पुंछ क्यों लगाया गया है यह इतिहास समझने की जरुरत है | क्योंकि हमारे लोगो को यह जानकारी नही है कि पुँछवाला हनुमान और बिना पुँछवाला राम में क्या खास अंतर है | जैसे की मेरे विचार से यह समझने की भी जरुरत है की दानव मतलब दान करने वाला , राक्षस मतलब रक्षा करने वाला , असुर मतलब सुरा (मदिरा) नही पिने वाला होता है | जिन असुर दानव राक्षसो को मनुवादीयों ने वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके मानव भक्षण करने वाला खलनायक और खुदको दानव असुर राक्षसो से सुरक्षा प्रदान करने वाला नायक प्रमाणित करने की कोशिष किया है | लेकिन चूँकि सत्य को लंबे समय तक छिपाया तो जा सकता है , पर हमेशा के लिए यह सत्य मिटाया नही जा सकता है कि वेद पुराण में मौजुद देव और देव को अपना पुर्वज बतलाने वाला मनुवादी ही इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके लुटपाट और कब्जा करने वाले मुल खलनायक है | जो न तो मुल हिन्दू है , और न ही जन्म से ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य है | हलांकि वामन मेश्राम परिवर्तन यात्रा में यह भी जानकारी घुम घुमकर दे रहा है कि इस देश का दलित आदिवासी पिछड़ी और धर्म परिवर्तन करने वाले अल्पसंख्यक लोगो के पुर्वज कभी हिन्दू ही नही थे | जबकि वामन मेश्राम के द्वारा ही यह बतलाया जाता है कि जो देव और मनुवादी खुदको ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य कहता है वह यहूदि डीएनए का है | जो मनुवादी खुदको हिंदू कभी नही कहता है | फिर सवाल उठता है जब यहूदि डीएनए का मनुवादी हिन्दू नही है , और वामन मेश्राम के जानकारी अनुसार इस देश के मुलनिवासी भी हिन्दू नही है , फिर अंबेडकर द्वारा रचा गया हिन्दू कोड बिल किसके लिये बनाया गया है ? हिन्दू धर्म को लेकर या तो वामन मेश्राम को गलत जानकारी है या फिर तब हिन्दू धर्म को लेकर अंबेडकर को गलतफेमी मौजुद थी | जिसके कारन उन्होने हिन्दू कोड बिल की रचना हिन्दू धर्म के लोगो के लिए किया , और साथ ही गलतफेमी की वजह से बौद्ध धर्म अपनाने से पहले यह भी कहा कि उनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ है | मेरे विचार से वामन मेश्राम और अंबेडकर दोनो अपनी अपनी जानकारी अनुसार सही है | जैसे कि अंबेडकर अपनी जानकारी अनुसार इंडिया भारत को बतलाया है | क्योंकि इंडिया शब्द विदेशी गोरो ने सिंधु नदी को इंडस नदी कहकर इंडस नदी के नाम से भारत को ही इंडिया कहा है | जिसके बारे में इंडिया शब्द विदेशी है यह जानकारी होते हुए भी वामन मेश्राम अपनी जानकारी अनुसार विदेशी शब्द इंडिया को इसी देश का नाम है यह स्वीकार तो किया , पर उसी इंडस नदी को दुसरे विदेशियों ने जब सिंधु नदी कहकर उसके नाम से इस देश का नाम विदेशी भाषा बोली अनुसार ही हिन्दू या हिन्दुस्तान कहा गया तो वामन मेश्राम ने हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द अरब और फारस के लोगो द्वारा दिया गया विदेशी शब्द है कहकर हिन्दू धर्म को इस देश के लोगो का धर्म मानने से इंकार किया | दरसल वामन मेश्राम जैसे बहुत से मुलनिवासी हिन्दू धर्म और इंडस व सिंधु को लोकर अबतक इसलिए भ्रमित हैं क्योंकि उन्होने इस जानकारी को अबतक स्वीकारा नही किया गया है कि असल में मनुवादी वह हिन्दू नही है जिनके पुर्वजो ने हिन्दू वेद पुराण और होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो की रचना किया है | जिस जानकारी के बारे में इतिहास में जिसदिन प्राकृति विज्ञान प्रमाणित घटनाक्रम अनुसार सुधार होकर स्वीकार कर लिया जायेगा उसदिन इस तरह का भ्रम फिर से पैदा नही होगा कि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण व हिन्दू पर्व त्योहार आखिर मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाया गया है कि इस देश के मुलनिवासियों के द्वारा ही रचा गया है ? जो जानकारी तो मुझे वेद पुराणो और इतिहासो में मनुवादीयों के बारे में जो कुछ मौजुद है उसके बारे में प्राकृति विज्ञान प्रमाण अधारित खोज मंथन करके बहुत पहले ही पता चल चुका है कि मनुवादी हिन्दू नही है भले बाद में उन्होने खुदको हिन्दू बना लिया है | पर चूँकि मैं इस जानकारी को पुरी तरह से सत्य घोषित करने वाला कौन होता हूँ , इसलिए मेरी बातो को वैसा ही महत्व नही दिया जायेगा जैसे कि बहुत से लोगो के इस बात को महत्व नही दिया जाता है कि किसी भी धर्म पुस्तक में लिखी ऐसी जानकारी मौजुद नही है , जिसमे की प्राकृति विज्ञान अनुसार कोई गलती मौजुद ही न हो | क्योंकि सभी इंसान अपनी अपनी जानकारी को तबतक सही समझता रहता है , जबतक की वह इस सवाल के जवाब के बारे में पुरी तरह से निश्चित नही हो जाता कि उसके पास जो जानकारी मौजुद है उसमे सुधार होकर उससे भी सही जानकारी दिया जा रहा है ? जैसे की जब डीएनए की खोज हुआ और मनुवादीयों का डीएनए यूरेशिया के लोगो का डीएनए से मिला तो मनुवादीयों के बारे में जो प्राकृति विज्ञान प्रमाण जानकारी उपलब्ध कराई गई थी उसमे मौजुद जानकारी से निश्चित होकर और अधिक सही प्रमाणित जानकारी उपलब्ध हुआ | क्योंकि प्राकृति विज्ञान प्रमाणित है कि डीएनए हस्तांतरित बिना बदलाव के होता रहता है , इसलिए मनुवादी का डीएनए मनुवादी का इतिहास को और अधिक प्रमाणित करता है | जिस तरह का प्रमाणित जानकारी किसी देश की सभ्यता संस्कृती और पर्व त्योहार का इतिहास हस्तांतरित भी यदि डीएनए की तरह बिना बदलाव के प्राकृति विज्ञान प्रमाणित  होता रहता है तो निश्चित तौर पर हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण व पर्व त्योहार कबिलई मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाए गए हैं कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों के द्वारा विकसित और रचना किए गए हैं इसकी प्राकृति विज्ञान प्रमाणित जानकारी मैने जो जानकारी दिया है कि यूरेशिया से आया कबिलई मनुवादी मुल हिन्दू नही है यही सत्य है | क्योंकि हिन्दू जिवनशैली है इस तरह का तीसरा तर्क जो अक्सर दीया जाता है उसके आधार पर भी यदि मान लिया जाय कि हिन्दू कोई धर्म नही बल्कि जिवनशैसी है , जिसमे कि एक से अधिक विवाह करने का रिवाज नही है , जिसे जानते हुए अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल बनाया था , जिसका विरोध सुरु में मनुवादीयों ने यह कहते हुए किया था कि इस तरह का बिल सिर्फ हिन्दूओं के लिए क्यों मुस्लिमो के लिए क्यों नही ? तो निश्चित तौर पर हिन्दू विवाह परंपरा अनुसार भी मनुवादी मुल हिन्दू प्रमाणित नही हो पायेगा | क्योंकि मनुवादी के परिवार में मौजुद महिलाओं का एम डीएनए और इस देश मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओं के एम डीएनए चूँकि एक है इसलिए यह प्रमाणित हो जाता है कि मनुवादी हिन्दू विवाह परंपरा क्या होता है इसके बारे में जानकारी बाद में लिया होगा जब उन्होने कबिलई जिवन जिते हुए बिना परिवार के इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश की महिलाओं से विवाह करके इस देश में मौजुद हिन्दू सभ्यता संस्कृति और हिन्दू विवाह परंपरा के बारे में जाना समझा होगा | जाहिर है अंबेडकर ने भी किसी धर्म में कितने विवाह करने के लिए बतलाया गया है इसके बारे में सोच समझकर धर्म के आधार पर हिन्दू कोड बिल बनाया गया है | और साथ ही इस कृषि प्रधान देश में विवाह परंपरा के अलावे भी जो होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे अनगिनत प्राकृति पर्व त्योहार बारह माह भगवान पुजा और प्राकृति पुजा के रुप में मनाई जाती है वह पुजा भी हिन्दू धर्म में मनाई जाती है | अथवा इस कृषि प्रधान देश में मौजुद भगवान पुजा और प्राकृति पुजा हिन्दू धर्म की पुजा है | क्योंकि धर्म का मतलब यदि धारन करना होता है तो हिन्दू कोई धर्म नही है यह तर्क देने वालो को इस सवाल का जवाब पहले देना होगा कि प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वालो और होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाते हुए प्राकृति पुजा करने वालो ने किस धर्म को धारन किया हुआ है ? और अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल किस धर्म के लोगो लिए बनाया है ? और अंबेडकर बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले किस धर्म के थे ? हलांकि पुरी दुनियाँ में फिलहाल तो यही मान्यता मौजुद है कि विश्व के सबसे बड़े चार धर्मो में जो हिन्दू धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म के रुप में जाना जाता है , उस धर्म के लोग ही होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाते हैं और प्राकृति भगवान पुजा करते हैं | और अंबेडकर भी देश विदेश में तीस से अधिक उच्च डिग्री और अजाद भारत का संविधान व हिन्दू कोड बिल रचना हिन्दू परिवार में ही जन्म लेकर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल किया है | जिसे वामन मेश्राम फिलहाल झुठ साबित नही कर सकता | और न ही यह साबित कर सकता कि होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वाले लोग हिन्दू नही हैं | बल्कि वामन मेश्राम डीएनए प्रमाण की जानकारी को परिवर्तन यात्रा के माध्यम से मुलनिवासियों को बांट बांटकर यह प्रमाणित जरुर कर सकता है कि यहूदि डीएनए का मनुवादी हिन्दू नही बल्कि यहूदि है | जो घुम घुमकर प्रमाणित भी कर रहा है भले वामन मेश्राम को हिन्दू धर्म को लेकर भ्रम की वजह से यह मालुम न हो कि उसके मुँह से बांटा गया जानकारी में मनुवादी हिन्दू नही है यह जानकारी ही बार बार प्राकृति विज्ञान प्रमाण द्वारा दोहराया जा रहा है | और साथ साथ यह जानकारी भी बांटा जा रहा है कि इस देश के मुलनिवासी ही साक्षात प्राकृति पुजा करने वाला मुल हिन्दू है | जिन हिन्दूओं ने ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण किया है | जहाँ पर बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार और प्राकृति पुजा की जाती है | जिस प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाने वालो को ही बाहर से आने वाले विदेशियों ने हिन्दू और इंडियन कहा है | जो हिन्दू और इंडियन शब्द भले विदेशी है पर उसका उच्चारण इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति धरती और इस धरती में रहने वाले मुलनिवासियों की पहचान के लिए ही हिन्दुस्तान हिन्दू और इंडियन शब्द का उच्चारण किया गया है | जैसे कि अजाद भारत का संविधान में जो विदेशी शब्द इंडिया है वह इसी देश के लिये लिखा गया है | न कि इंडिया शब्द विदेशियो के द्वारा दिया गया विदेशी शब्द है इसलिए इंडिया का मतलब इस देश से नही है यह बतलाया जाय घुम घुमकर | जैसे की घुम घुमकर यह बतलाया जा रहा है कि हिन्दू शब्द विदेशी है इसलिए विदेशी मनुवादी मुल हिन्दू है | जो तर्क वैसा ही है जैसा कि इंडिया शब्द विदेशी है इसलिए विदेशी गोरे मुल इंडियन थे | जिस तरह की तर्क को दोहराते रहना समय की बर्बादी है | वह भी यह जानते हुए कि डीएनए प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादीयों का डीएनए और यहूदि का डीएनए एक है | हलांकि कबिलई यहूदि डीएनए का कबिलई मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद खुदको हिन्दू जरुर कहता है | जिसके चलते अंबेडकर द्वारा बनाया गया हिन्दू कोड बिल का भले उसने विरोध किया था पर हिन्दू धर्म अनुसार ही विवाह करके हिन्दू कोड बिल का पालन करता है | साथ साथ इस कृषि प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को भी मनाता है | जिन पर्व त्योहारो के बारे में जैसे जैसे समझने और मनाने लगा है , वैसे वैसे इस कृषि प्रधान देश के मुल हिन्दूओं द्वारा स्थापित बिना भेदभाव जिवन जीने की कला को भी सिखता चला जा रहा है | जिसके चलते मनुवादीयों के परिवार में मौजुद बहुत से लोगो को अब मिल जुलकर होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो में शामिल होकर उसे अब छुवाछुत शोषण अत्यचार झमेला अविकसित मांसिकता नजर आने लगा है | जाहिर है मनुवादी छुवाछुत मांसिकता को धिरे धिरे किसी मल मूत्र की तरह त्यागते चला जा रहा है | अथवा हजारो सालो से इस कृषि प्रधान देश में रहते रहते बहुत हद तक मनुवादीयों में बदलाव नजर निश्चित तौर पर जरुर आया है | हलांकि थोड़ी बहुत बदलाव जिन मनुवादियों में आया है , या आ रहा है उनकी दबदबा मनुवादी सत्ता में मौजुद नही है इसलिए गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में छुवाछुत भेदभाव करने वाले मनुवादीयों की ही दबदबा कायम रहने की वजह से आजतक भी छुवाछुत भेदभाव शोषण अत्याचार कायम है | 

Manuvaadis have not made the varna and caste system


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Manuvaadis have not made the varna and caste system

मनुवादियों ने वर्ण और जाति व्यवस्था नहीं बनाई है


(manuvaadiyon ne varn aur jaati vyavastha nahin banaee hai)

इस कृषि प्रधान देश में ज्ञान रक्षा और वित्त प्रणाली मनुवादीयों के प्रवेश से पहले से ही मौजुद रहा है | न कि मनुवादियों द्वारा ज्ञान रक्षा और वित्त क्षेत्र के रुप में ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य वर्ण व्यवस्था बनाकर विकसित किया गया है | उसी तरह मनुवादीयों द्वारा जिसे हजारो निच जाति घोषित किया गया है , वह भी दरसल हजारो सालो से विकसित किया हुआ हजारो हुनर है , जिसे भी इस देश के मुलनिवासियों ने विकसित किया है | जो कि मनुवादियों के आने से पहले ही विकसित की गई वह हजारो हुनर है , जिसके जरिये इस कृषि प्रधान देश की विकाश में खास योगदान रहा है | न की मनुवादियो ने खेती करने , शिक्षक बनने , रक्षक बनने , अमिर बनने , और धोबी बनने , बढ़ई बनने ,  नाई बनने जैसे हजारो हुनर को इस देश में आकर सिखलाया है | क्योंकि इस देश के मुलनिवासी द्वारा विकसित किये गए वर्ण व्यवस्था  में ब्रह्मण , क्षत्रिय वैश्य और हजारो हुनर क्षेत्र दरसल वह विकसित किया गया हुनर और पद उपाधि व्यवस्था है , जिसके आधार पर हजारो साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण किया गया है | जिस विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण मनुवादीयों के प्रवेश करने से पहले ही किया गया है | जिसमे मौजुद गुण हुनर पद उपाधि को मनुवादियों ने मनुस्मृति लागू करके जन्म से उच्च निच जाति व्यवस्था घोषित किया है | मानो मनुवादीयों ने फर्जी सार्टिपिकेट बनाकर खुदको पहले तो जन्म से विद्वान , रक्षक और धन्ना घोषित किया , उसके बाद इतना बड़ा देश और इतनी विकसित सिंधु घाटी कृषि सभ्यता का निर्माण करने और हजारो हुनरो को जानने वाले इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित किया | जिसके बाद  बढ़ई ,धोबी ,नाई ,चमार जैसे हजारो हुनर व्यवस्था को जन्म से निच जाति घोषित कर दिया गया है | क्योंकि इन हुनरो को मनुवादी नही जानते थे | जिन हजारो हुनर को जानने वाले चाहे जिस देश या जिस धर्म में मौजुद हो वे निच काम नही करते हैं कि उन्हे निच काम करने वाले निच लोग कहा जाय | क्योंकि उन्ही कामो के आधार पर बनाई गई इस कृषि प्रधान देश का समाज परिवार और गणतंत्र शासन व्यवस्था का विकाश हुआ है , जो मनुवादीयों की देन नही है | क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि ब्रह्मण पंडित विद्वान को कहा जाता है , क्षत्रिय वीर रक्षक को कहा जाता है , और वैश्य धन्ना अमिर को कहा जाता है | इसलिए मनुवादि खुद ही खुदको जन्म से पंडित घोषित करके यह प्रमाणित नही कर सकता कि वही मात्र विद्वान है , और बाकि सब अशिक्षित है | और न ही वह यह साबित कर सकता कि वही मात्र वीर रक्षक है , वही मात्र धन्ना अमिर है , और बाकि सब गरिब कमजोर है | वह भी मनुस्मृति रचना करके भारी भेदभाव करते हुए एकलव्य का अँगुठा काटकर शोषण अत्याचार करके वीर रक्षक और दुसरो के धन संपदा को लुटकर खुदको जन्म से धन्ना घोषित करना दरसल फर्जी सार्टिपिकेट बनाकर झुठ को जोर जबरजस्ती सत्य कहलवाना है | जैसे की सरकार और सरकारी नौकरी में भी बहुत से लोग आज मनुवादी शासन में फर्जी सार्टिपिकेट बनाकर झुठ को सत्य बताते रहते हैं कि उनके पास फलाना उच्च डिग्री है | मनुवादी के पास भी जन्म से उच्च विद्वान पंडित , वीर रक्षक और धन्ना कहलाने का फर्जी डिग्री है | जिस तरह का फर्जी डिग्री उसने इस देश के मुलनिवासियों को भी दे रखा है कि तुमलोग निच शुद्र हो | जिसे सत्य फिलहाल तो आगे भी तबतक कहा भी जायेगा जबतक की झुठ को जबरजस्ती सत्य कहलवाने वालो की सत्ता कायम रहेगी | जिसके बाद कोई भी मुलनिवासी इस बात पर विश्वास नही करेगा की मनुस्मृति लागु करके शोषण अत्याचार करने वाला मनुवादी जन्म से विद्वान पंडित , वीर रक्षक , और धन्ना है | बल्कि सच्चाई तो यह है कि मनुवादि जिस समय इस देश में प्रवेश किया होगा उस समय उसे संभवता कपड़ा पहनना और कपड़ा धोना भी नही आता होगा तो क्या वह जन्म से विद्वान पंडित वीर रक्षक और धन्ना के रुप में इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके हजारो हुनर व्यवस्था को जन्म दे पाता जिसके पास इस देश में प्रवेश से पहले न तो खेती की हुनर मौजुद थी , और न ही उनकी घुमकड़ कबिलई जिवन में बिना भेदभाव के आपस में मिल जुलकर खुशियों का मेला लगाने वाली बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार परंपरा रही होगी | जबकि हजारो साल पहले भी इस कृषि प्रधान देश में विकसित गणतंत्र व्यवस्था और हजारो हुनर व्यवस्था मौजुद थी | जो जानकारी सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से भी पुरी दुनियाँ को पता चल चुका है | जिस गणतंत्र व्यवस्था में शिक्षा , रक्षा और वित्त क्षेत्र के साथ साथ हजारो सालो से मौजुद हजारो हुनर खास माने जाते हैं | जिस गणतंत्र व्यवस्था के बारे में तब जानने की काबिल ही नही होगा मनुवादी | जिसके चलते उन्होने हजारो विकसित हुनरो को हजारो निच जाति घोषित करके यह साबित करने की कोशिष किया कि उत्तम कृषि समेत ये सारे हजारो हुनर को जानने वाले लोग निच कार्य करते हैं | जैसे की मानो पुरी दुनियाँ में मौजुद जितने भी लोग खेती बारी , धोबी बढ़ई नाई वगैरा ऐसे ही हजारो हुनर कार्य करते हैं , वे सब निच कार्य है , और उस कार्य को करने वाले जन्म से निच लोग हैं | और गुलाम दास दासी बनाने बल्कि जन्म से उच्च निच घोषित करने के लिए मनुस्मृति रचना करने वाला कबिलई मनुवादी उच्च विद्वान पंडित वीर रक्षक और धन्ना है | क्योंकि उसने छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करने वाला मनुस्मृति की रचना किया है | और अजाद भारत का संविधान रचना करने वाला अंबेडकर , और अपना अँगुठा काटकर दान करने वाला एकलव्य , बल्कि अपनी राज पाट को भी दान देने के बाद दान लेने वालो के हाथो कैद होने वाला इस देश का मुलनिवासी बलि सम्राट निच है | जिन्हे निच और दानव असुर राक्षस घोषित करने वाली भ्रष्ट मांसिकता के चलते ही तो आज भी इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला प्राकृति धन संपदा से समृद्ध देश में गणतंत्र के चार प्रमुख स्तंभो की विकसित व्यवस्था को कैसे ठीक से चलाया जा सके इसकी हुनर अभी भी मनुवादी के पास विकसित नही हो सका है | जिसके चलते इस कृषी प्रधान देश की गणतंत्र व्यवस्था मनुवादी शासन में किस तरह से संचालित हो रही है , इसके बारे में आज उदाहरन के तौर पर भी अनगिनत प्रमाण मौजुद है कि मनुवादी गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भेदभाव करके अपनी मनुवादी हुनर से अल्पसंख्यक होते हुए भी बहुसंख्यक दबदबा तो उच्च पदो में बना तो लिया है , पर उसके द्वारा उच्च पदो में उच्च दबदबा कायम करने के बावजुद भी इस देश का विकसित गणतंत्र व्यवस्था और देश का क्या बुरा हाल है , यह पुरी दुनियाँ देख रही है | सोने की चिड़ियाँ को गरिब बीपीएल भारत इन बाहर से आए कबिलई ने किया है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि इस कृषि प्रधान देश की विकसित समृद्ध व्यवस्था मनुवादियो के द्वारा स्थापित व्यवस्था नही है कि उसे मनुवादी बेहत्तर तरिके से चला सके | क्योंकि जो व्यवस्था मनुवादीयों के द्वारा बनाया ही नही गया है , उसे ठीक से चलाना मनुवादीयों के वश में कैसे बेहत्तर साबित हो सकता है | सिवाय इसके कि जिसने इस गणतंत्र व्यवस्था को बनाया है , उसे वही सबसे बेहत्तर तरिके से चला सकता है | जो तभी होगा जब इस कृषि प्रधान देश को मनुवादी से अजादी मिलकर फिर से इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों की दबदबा गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम होकर मुलनिवासी सत्ता स्थापित हो जायेगी | क्योंकि मुलनिवासियों के हाथो से सत्ता छिनकर इस देश की शासन व्यवस्था में अपनी दबदबा कायम करके मनुवादी आज भी शासन कर रहा है | जिसके चलते मनुवादी उच निच भेदभाव छुवा छुत दास दासी गुलाम शोषण अत्याचार व्यवस्था को आजतक भी कायम रखते हुए हजारो सालो से अबतक भी छुवाछुत राज चलाते जरुर आ रहा है | क्योंकि उसके पास  हजारो सालो का अनुभव द्वारा हासिल किया गया भेदभाव शोषण अत्याचार की उच्च हुनर जरुर मौजुद है | क्योंकि छुवाछूत भेदभाव को कबिलई मनुवादियों ने ही तो हजारो साल पहले इस कृषि प्रधान देश में संक्रमित किया है | कबिलई मनुवादीयों ने ही इस कृषि प्रधान देश के हजारो हुनरो समेत गणतंत्र के खास गुण उपाधि अथवा पदो को जन्म से उच्च निच जाति घोषित किया है | जिससे पहले इस कृषि प्रधान देश में ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य और धोबी बढ़ई नाई चमार वगैरा हजारो हुनर कहलाती थी | जिस हुनर में जो काबिल अथवा लायक होता था वह उस हुनर में काबिल कहलाता था | जैसे की जिसे चमड़ा का काम करना आता है वही चमार कहलाता था , और जिसे फर्नीचर बनाने का काम आता है वही बढ़ई कहलाता है , और जिसे खेती करना आता है वही किसान कहलाता था | जिसका पालन आज भी पुरी दुनियाँ में होता है | पर पुरी दुनियाँ में यही एक मात्र देश है जहाँ पर इन हुनरो को जन्म से जाति के नाम से जाना जाता है | क्योंकि हजारो साल पहले मनुवादीयों ने इन हजारो हुनरो को जन्म से जाति घोषित किया है | जिससे पहले पुरी दुनियाँ की तरह इस देश में भी धोबी चमार नाई बढई वगैरा हुनर कहलाती थी | जो की आज भी हजारो जाति नही बल्कि हजारो हुनर है | क्योंकि जैसा की हमे पता है कि इस कृषि प्रधान देश में कबिलई गोरो के आने से पहले इस देश के मुलनिवासी गोरो के गुलाम नही कहलाते थे , उसी तरह इस देश में कबिलई मनुवादीयों के आने से पहले भी इस देश के कोई भी मुलनिवासि शुद्र नही कहलाते थे | बल्कि इस देश के मुलनिवासी बाहरी लुटेरो के आने से पहले बिना भेदभाव के सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे | जिस सुख शांती समृद्धी के बारे में ही तो जानकर विदेशो से कबिलई लुटेरो की झुंड इस कृषि प्रधान देश में आना सुरु किया , ताकि इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला समृद्ध देश के समृद्ध मुलनिवासियों की धन संपदा को लुटकर खुल जा शिमशिम कहकर अपनी काली गुफा को लुट की अमिरी से भरकर झुठी शान की वह विकसित जिवन जी सके , जिसमे वह खुल जा शिमशिम कहकर अपनी झुठी अमिरी को दिखाकर यह कह सके कि देखो हमने कितना विकाश किया है | सबसे पहले कबिलई मनुवादियों ने बाहर से आकर इस देश के मुलनिवासियों को दास दासी बनाकर शोषण अत्याचार करना सुरु किया , उसके बाद कबिलई गोरो ने बाहर से आकर गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करना सुरु किया | जिन बाहर से आए कबिलई लुटेरो के बुद्धी बल के बारे में यह बिल्कुल भी नही समझना चाहिए कि ये गुलाम और दास दासी बनाने वाले कबिलई बहुत बलशाली और विद्वान थे इसलिए इतने बड़े समृद्धशाली देश और इतनी बड़ी अबादी को दास दासी और गुलाम बनाये | क्योंकि जितने भी कबिलई लुटेरो ने इस देश और इस देश के मुलनिवासियों को लुटा और गुलाम दास दासी बनाया है , वे सभी या तो किसी घर के भेदियों की सहायता से अपने कुकर्मो को अंजाम दिया है , या फिर मानो हाथ में कटोरा लिए सुरु में पेट पालने के नाम से भिख मांगकर प्रवेश किये उसके बाद मौका मिलते ही फुट डालो और राज करो की नीति से लुटपाट सुरु किया है | जिसके बाद लुटेरो ने भिख देने वाले इस देश के मुलनिवासियों को भिखारी बनकर भी लुटकर गरिब बीपीएल बनाया है | गोरे भी तो सुरु में इस्ट इंडिया कंपनी खोलने के लिए पहले तो हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाये उसके बाद जब उन्हे व्यापार करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी बिठाने की जगह दिया गया तो छल कपट का सहारा लेकर आपस में फुट डालकर घर के भेदियों की सहायता से ईस्ट इंडिया कंपनी को लुट इंडिया कंपनी में तब्दील करके देश को गुलाम करके खुल जा शिमशिम कहकर भर भरकर इस देश की खनिज धन संपदा से अपनी काली गुफा को भरना सुरु किया | हलांकि सभी कबिलई अपना लुटेरी गैंग बनाकर इस कृषि प्रधान देश में नही आये हैं , बल्कि जो कबिलई लुटपाट करने नही आते थे वे विश्वगुरु कहलाने वाला इस देश से ज्ञान बटोरने और सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला इस देश से सचमुच में साफ सुथरा व्यापार करने के लिए आते रहे हैं | पर मनुवादी कबीला भेदभाव मुक्त ज्ञान बटोरने और साफ सुथरा व्यापार करने नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियों को दास दासी बनाकर छुवाछूत करके दुसरो के हक अधिकारो को बटोरने और गंदी मांसिकता से मनुवादी शासन करने आये हैं | ऐसा शासन जिसमे प्रजा की सेवा उसे शुद्र और खुदको उच्च घोषित करके शोषण अत्याचार किया जाता है | जिस तरह की उच्च निच भेदभाव मांसिकता को मनुवादी हजारो सालो से अपने पुर्वजो की खास किमती हुनर के तौर पर भी किमती विरासत और किमती वसियत के रुप में पिड़ी दर पिड़ी हजारो सालो से अपनी नई पिड़ी में हस्तांतरित करते आ रहा है | जो यदि स्तांतरित नही करता तो कबका छुवाछुत समाप्त हो चुका रहता | जो छुवाछुत आज भी कायम इसलिए है , क्योंकि मनुवादी आज भी छुवाछुत करने की हुनर को अपने पुर्वजो की खास किमती हुनर समझकर उसे खुल जा शिमशिम कहकर अपने बच्चो के दिमाक में घुसाकर छुवाछुत हुनर को पिड़ि दर पिड़ी  हस्तांतरित करता चला आ रहा है | जो छुवाछुत मांसिकता इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासीयों की देन नही है | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि आपस में मिल जुलकर हजारो सालो से बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार मनाते हुए मिल जुलकर खुशियों का मेला लगाते आ रहे हैं | जिस खुशियों का मेला में मनुवादियों का छुवाछुत मांसिक विकृत झमेला बाहर से प्रवेश किया है | दरसल इस कृषि प्रधान देश में बाहर से आए कबिलई मनुवादी द्वारा मनुस्मृति लागु करके वर्ण व्यवस्था में मौजुद हुनर या उपाधि को जन्म से जाति घोषित इसलिए किया है , ताकि इस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला देश की उच्च पदो को मनुवादी मानो अपने लिए जन्म से आरक्षित कर सके | जिसके लिए उन्होने इस कृषि प्रधान देश की सत्ता को छल कपट और घर के भेदियो की सहयता से हासिल करने के बाद मनुस्मृति लागू करके खुदको जन्म से विद्वान वीर और धन्ना घोषित किया हुआ है | और इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र घोषित किया हुआ है , ताकि इस देश के मुलनिवासियों के मन में हिन भावना उत्पन्न करके खुद झुठी शान में डुबकर कि वही विद्वान पंडित धन्ना और वीर है , इस देश में लंबे समय तक शासन कर सके | अथवा शुद्रो का प्रवेश मना है लिखकर इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से शुद्र प्रजा और खुदको जन्म से उच्च राजा घोषित करके इस कृषि प्रधान देश की सत्ता में हमेशा के लिए शासक बना रह सके | पर चूँकि जिस तरह रात के बाद सुबह जरुर होता है , उसी तरह प्रत्येक गुलामी के बाद भी अजादी जरुर मिलती है | जैसे कि गेट में कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है लिखकर मन में हिन भावना उत्पन्न करने वाले गोरो से अजादी मिली | जिन गोरो के द्वारा दो सौ से भी अधिक सालो की गुलामी के बाद इस देश को अजादी मिली | मनुवादीयों की भी हजारो सालो की गुलामी से अजादी जरुर मिलेगी | पर चूँकि मनुवादीयों द्वारा जन्म से उच निच भेदभाव की गुलामी देकर इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र घोषित किया गया है , जिसके चलते आज भी मनुवादीयों द्वारा छुवाछुत करते हुए कहीं कहीं पुजा स्थलो के बाहर यह लिखा मिल जाता है कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है | हलांकि जैसा की सबको पता है कि मनुवादीयों ने इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से ही शुद्र अच्छुत  घोषित किया हुआ है | इसलिए तो अजादी में देरी हो रही है | क्योंकि गोरे जन्म से गुलाम घोषित नही किये थे इसलिए गोरो से अजादी जल्दी मिली | पर मनुवादी चूँकि जन्म से शुद्र घोषित किया हुआ है , इसलिए मनुवादीयों की गुलामी से अजादी मिलने में ज्यादे समय लग रहा है | चूँकि जन्म से उच्च निच हिन भावना उत्पन्न करके मनुवादी आज भी इस देश के मुलनिवासियों पर राज इसलिए कर रहा हैं , क्योंकि जन्म से उच्च निच जाति हिन भावना की वजह से इस देश के बहुत से मुलनिवासियों को यह बात सत्य आज भले नही लगता है कि जन्म से उच्च निच भगवान का देन नही है , पर फिर भी उन्हे यह लगता है कि मनुवादी ही वेद पुराण समेत वर्ण व्यवस्था और हजारो जाति व्यवस्था में मौजुद ज्ञान रक्षा वित्त क्षेत्र और नाई बढ़ई चमार धोबी वगैरा हजारो हुनर क्षेत्र की जानकारी इस देश के मुलनिवासियों को यूरेशिया से लाकर दिया है | जिसके चलते मुलनिवासियों के अंदर यह भ्रम बैठ गया है कि मनुवादि इतना सबकुछ जानता है , जिसने इन सबकी रचना किया है तो निश्चित तौर पर उसके पास उच्च बुद्धी बल मौजुद है | जिसके चलते इस देश का शासक बने रहने और हिन्दू धर्म का ठिकेदार बने रहने के लिए भी मनुवादीयों के लिए भ्रम का वातावरण पैदा होना अबतक जारी है | जिस भ्रम की वजह से उनको लगता है मानो इस देश के मुलनिवासियों को मनुवादीयों के आने से पहले वेद पुराण रचने और शासन करने जैसी कोई जानकारी ही मौजुद नही थी | जिस तरह की भ्रम से अबतक बाहर नही निकल पाने की वजह से मन में हिन भावना बने रहने की वजह से ही कबिलई मनुवादी जो संभवता इस कृषि प्रधान देश में आने से पहले कपड़ा पहनना और खेती करना क्या होता है यह भी नही जानता होगा वह इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले से ही मौजुद हजारो हुनर जिसे की उसने हजारो निच जाति घोषित  किया हुआ है , उसके बारे में जानकारी इस देश के मुलनिवासियों को दिया है , इस तरह का विश्वास बहुत से मुलनिवासियों के भितर रच बस गया है | जबकि असल में इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले मनुवादी हजारो हुनर के बारे में जानना तो दुर उसे तो परिवार समाज क्या होता है यह भी जानकारी इस देश में प्रवेश करने से पहले मौजुद नही होगा | जिसे आज हिन भावना कि वजह से इस देश के बहुत से मुलनिवासी यह उच्च ज्ञान की उपाधि देते रहते हैं कि मनुवादी ही वेद पुराण और हजारो हुनर की रचना जाति के रुप में किया है | और मनुवादी ही असल हिन्दू है , बाकि तो सब मनुवादी के कहने पर होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे हिन्दू पर्व त्योंहार मनाते हैं | जो सारे पर्व त्योहार और हिन्दू धर्म , हिन्दू वेद पुराण , हिन्दू कलेंडर और सायद हिन्दू कोड बिल भी कबिलई मनुवादियों के द्वारा यूरेशिया से लाये गए हैं  | जबकि असल में मनुवादि ने इस कृषि प्रधान देश में पहले से मौजुद हजारो हुनर और तब के गणतंत्र शासन व्यवस्था के प्रमुख स्तंभ ज्ञान रक्षा और वित्त क्षेत्र के उच्च पदो में कब्जा करके हमेशा के लिए उन उच्च पदो में जमे रहने के लिए जन्म से उच्च निच घोषित किया है | जिससे पहले कोई भी जन्म से उच्च निच नही था | वह भी घोषित नही कर पाता यदि उसे घर के भेदियो की सहायता और छल कपट की वजह से इस देश की शासन व्यवस्था को अपने कब्जे में लेने का अवसर न मिलता | बल्कि आज का भी गणतंत्र के चार प्रमुख स्तंभो में जन्म से कोई उच्च पदो में नही बैठ सकता था , पर घर के भेदियो की सहायता और छल कपट की वजह से आज भी गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियों का दबदबा कायम है | जो दबदबा बिना घर के भेदियों की सहायता से गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम होना तो दुर सारी जिवन बिताकर भी मनुवादी बिना घर के भेदियों की सहायता लिए बगैर एक भी स्तंभ में अपनी दबदबा बरकरार नही रख सकता | क्योंकि कोई भी जन्म से हुनर लेकर पैदा नही होता है बल्कि बाद में वह सिखता है | और कबिलई मनुवादी के पास गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो को बेहत्तर चला सके ऐसा हुनर चूँकि भेदभाव करते हुए वैसे भी नही हो सकता है कि वह ईमानदारी से बहाली होने पर बहाल हो रहा है यह विश्वास किया जा सके | हाँ यह जरुर हो सकता है कि जन्म से अपने माता पिता अथवा पुर्वज का हुनर के आधार पर मनुवादी को जन्म से उसे अनुवांसिक या फिर विरासत के तौर पर कोई खास पहचान जरुर मिल सकता है | जैसे कि कोई नेता का बच्चा नेता , डॉक्टर का बच्चा डॉक्टर , अभिनेता का बच्चा अभिनेता वगैरा जरुर हो सकता है | वह भी बनने के बाद खरा उतरने वाला न कि भ्रष्ट नेता का बच्चा भ्रष्ट नेता , किडनी चोर डॉक्टर का बच्चा किडनी चोर डॉक्टर बने और उसे कह दे कि उसके खुन में वाकई में नेता डॉक्टर शिक्षक बनने का हुनर है | हलांकि वाकई में किडनी चोर डॉक्टर और भ्रष्ट नेता भ्रष्ट उद्योगपति वगैरा किसी के माता पिता बनने का भी खास लाभ अपने पुर्वज के आनुवांसिक या फिर विरासत के तौर पर उनके बच्चो को विशेष अवसर मिलता है | क्योंकि बचपन से उसे स्वभाविक तौर पर उस कार्य क्षेत्र या हुनर के बारे में जानने समझने की विशेष लाभ जरुर मिलता है जिसे की उसके पुरानी पिड़ी खास तौर पर कर रहे होते हैं | जैसे की मनुवादीयों को भेदभाव शोषण अत्याचार करने का हुनर का विशेष लाभ मिल रहा है | क्योंकि विरासत में उन्हे अपने पुर्वजो के पास मौजुद हजारो सालो का भेदभाव शोषण अत्याचार करने का अनुभव पिड़ि दर पिड़ी विशेष लाभ के तौर पर मिल रहा है | रही बात मनुवादी द्वारा फिर कैसे गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अपनी दबदबा कायम रखे हुए है ? तो इसका बेहत्तर जवाब मिल गया है कि मनुवादी जिस तरह घर के भेदियो की सहायता और छल कपट से इस देश का शासक बनकर अपनी मनुस्मृति सोच से सत्ता पावर का गलत उपयोग करके खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया लेकिन उसे वह प्रयोगिक तौर पर साबित नही कर सका है , उसी तरह वह आज भी घर के भेदियो की सहायता और छल कपट से सत्ता पावर का गलत उपयोग करके वगणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भी अपनी दबदबा कायम तो रखे हुए है , पर उसे वह प्रयोगिक तौर पर साबित नही कर पा रहा है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि जैसा की बतलाया कि किसी को भी अपने माता पिता का हुनर को सिखने जानने का लाभ चूँकि बचपन से जरुर मिलता है , इसलिए वह अपने माता पिता के ही हुनर को आगे ले जाएगा इसकी संभावना ज्यादे जरुर रहता है | पर वह अपने माता पिता के भ्रष्ट नेता या किडनी चोर डॉक्टर का हुनर को आगे ले जाएगा कि सचमुच का नेता और डॉक्टर बनेगा यह तो उसके द्वारा प्रयोगिक जिवन में साबित होता रहता है | और जैसा कि हमे पता है कि जन्म से कोई हुनर को लेकर पैदा लेता है यह घोषित मनुवादियों ने इस देश में हमेशा के लिए शासक बने रहने के लिए किया है | और जब वह यह घोषित कर रहा था उस समय वह भ्रष्ट नेता और किडनी चोर डॉक्टर था कि सचमुच का नेता और डॉक्टर ये तो उसके प्रयोगिक जिवन के बारे में जानकर पता चलता है | और प्रयोगिक तौर पर मनुवादी जन्म से तो क्या पुरी जिवन सेवक नही बल्कि खुदको जन्म से विद्वान रक्षक और धन्ना घोषित करके शोषण अत्याचार करते हुए खुद ही खुदको भ्रष्टाचारी और अत्याचारी साबित किए हुए है  | क्योंकि कोई जन्म से विद्वान रक्षक और धन्ना नही होता है यह पुरी दुनियाँ जानती है | जो यदि जन्म से होता तो फिर इस देश के मुलनिवासी जो कि वर्ण में शुद्र और जाति में हजारो जातियों में बंटा हुआ है , उसी तरह पुरी दुनियाँ के लोग जन्म से उच्च निच कहलाकर क्यों नही बंटे हुए हैं | क्योंकि वे भी तो अपने अपने हुनर के अनुसार विद्वान रक्षक धन्ना और धोबी नाई चमार बढ़ई वगैरा अनेको कार्य क्षेत्रो में बंटे हुए हैं | पर वे जन्म से उच्च निच नही कहलाते हैं , क्योंकि बाकि देशो में मनुवादी उन हुनरो को उच्च निच घोषित नही किए हैं | और यदि मनुवादी द्वारा ही वर्ण व्यवस्था में पुरी दुनियाँ के इंसानो के लिए ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य बनाया गया है तो फिर मनुवादी पुरी दुनियाँ की जाति व्यवस्था में सिर्फ तीन जाति का क्यों खुदको घोषित किया है ? वह भी सिर्फ या तो एक उच्च जाति खुदको घोषित करता या फिर हजारो निच जाति की तरह हजारो न सही सैकड़ो उच्च जाति घोषित करता | पर नही किया क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में न तो वर्ण व्यवस्था मनुवादीयों की देन है और न ही जाति व्यवस्था मनुवादीयों की देन है | बल्कि मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद जब इस देश की गणतंत्र व्यवस्था में कब्जा किया तो खास क्षेत्र शिक्षा रक्षा और वित्त क्षेत्र में खुदको स्थापित करके खुदको जन्म से ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य अथवा विद्वान वीर अमिर घोषित किया | जैसे की गोरो ने भी जब इस देश को गुलाम बनाया तो इस देश की शासन व्यवस्था के मजबुत क्षेत्र में खुदको स्थापित करके बाकि सबको गुलाम घोषित किया था | न कि वे इस देश को गुलाम बनाकर किसान , धोबी बढ़ई और चमार नाई वगैरा जो हजारो हुनर मौजुद है उन हुनर क्षत्रो में कब्जा करके बाल दाड़ी बनाते , कपड़ा धोते जुता सिते और फर्नीचर बनाते हुए अपने गुलामो पर राज कर रहे थे | मनुवादी भी जब इस देश की शासन व्यवस्था में कब्जा जमाया तो उन्होने उस समय गणतंत्र के प्रमुख शिक्षा रक्षा और वित्त क्षेत्र में खुदको स्थापित करके खुदको जन्म से ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य घोषित किया | जिन क्षेत्रो में कब्जा करके हमेशा के लिए जमे रहने के लिए मनुवादीयों ने खुदको जन्म से ही ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य घोषित किया है | और इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से शुद्र घोषित किया हुआ है | जैसे कि गोरो ने गुलाम घोषित किया था | हाँ गोरो ने जन्म से किसी को गुलाम घोषित नही किया था | और न ही गोरो ने इस देश के गणतंत्र व्यवस्था में मौजुद शिक्षा क्षेत्र , रक्षा क्षेत्र , और वित्त क्षेत्र को जन्म से खुदको ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य घोषित करके उन क्षेत्रो में बाकियों के लिए रोक लगाया था | जिसके चलते ही तो गोरो के शासन में अंबेडकर ने तीस से अधिक उच्च ज्ञान डिग्री देश विदेश में लिया | बल्कि गोरो की सिपाही बहाली में भी इस देश के गुलाम भाग लेकर गोरो से तनख्वा पाते थे | और साथ साथ गुलाम भी अमिर बल्कि राजा हुआ करते थे | और मुलनिवासियों के पास मौजुद जो हजारो हुनर मौजुद थी उसे भी गोरो ने निच जाति घोषित करने के बजाय जरुरत पड़ने पर उन हुनरो को जानने वालो से हुनर के आधार पर उनसे काम भी करवाते थे | भले गोरे उन हजारो हुनरो द्वारा किये गए कामो को इस देश में नही करते होंगे | क्योंकि उन्होने देश गुलाम करके खुदको इस देश के उच्च पदो में बैठा रखा था | जिसके चलते धोबी चमार नाई बढ़ई जैसे हजारो हुनरो में यदि वे कुछ हुनरो को जानते भी होंगे तो भी वे उसे अपने देश में भले खुद करते थे पर इस देश में नही करते थे | क्योंकि इस देश को गुलाम करने के बाद तो उन्हे अपने गुलामो से ही इन हुनरो के जरिये किया गया काम को करवाने की सुविधा उपलब्ध थी | जिसके चलते निश्चित तौर पर गोरे कपड़ा नही धोते होंगे बाल नही काटते होंगे और जुता नही सिते होंगे भले वे अपने देश में धोबी नाई और चमार वगैरा का काम करते होंगे | जैसे कि मुमकिन है मनुवादी भी आज हजारो हुनर जिसे की मनुवादीयो ने निच जाती घोषित किया हुआ है , उनमे से बहुत से हुनरो को सिखने के बाद आज के समय में भले इस देश में आत्मनिर्भर अथवा पेट पालने  के लिए इस्तेमाल नही करते होंगे पर विदेश जाने के बाद जरुर करते होंगे | जो स्वभाविक है क्योंकि जब भी कोई कबिलई लुटेरा किसी देश को गुलाम करता है तो वह निश्चित तौर पर देश का शासक बनकर उच्च पदो में बैठना पसंद करेगा जैसा कि मनुवादी भी जब इस देश में प्रवेश करके इस देश में कब्जा किया होगा तो इस देश का शासक बनकर खुदको उच्च पदो में बिठाकर ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य और यहाँ के मुलनिवासियों को शुद्र घोषित किया होगा | भले क्यों न तब वह ज्ञानी रक्षक और धन्ना न हो | जो कि वह था भी नही , क्योंकि मनुस्मृति रचना करने वाला खुदको जन्म से ज्ञानी बताकर यदि आज किसी विद्यालय में छात्रो को कान में गर्म पिघला लोहा डालने , जीभ काटने , अँगुठा काटने का ज्ञान देने लगे तो उसे ज्ञान डिग्री नही बल्कि सायद थर्ड डिग्री देने की मांग उठने लगेगी | उसी तरह छुवाछूत भेदभाव करके जानवरो की तरह पिटाई करके शोषण अत्याचार करने वालो को रक्षक तो क्या कोई चौकीदार भी स्वीकार नही करेगा | रहा मनुवादी द्वारा जन्म से धन्ना बनने कि काबिल होना तो दुसरो की हक अधिकारो को लुटकर सोने की चिड़ियाँ के मुलनिवासियों को गरिब बीपीएल बनाकर खुदको जन्म से धन्ना तो क्या हजारो साल पहले का इनका इतिहास पता किया जाय तो निश्चित तौर पर ये जानकारी जरुर सामने आयेगी कि बिना हक अधिकारो को लुटे ऐसे लोगो को सायद हजारो साल पहले इस देश में आने से पहले पेट भी पालने में भारी संघर्ष करना पड़ता होगा | जिसके चलते ही तो वे इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश में इस देश और इस देश के मुलनिवासियों की समृद्धी के बारे में सुनकर या फिर अमिरी को सुँघते हुए यहाँ पर आए और इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को लुटकर गरिब बीपीएल बनाकर खुदको जन्म से धन्ना घोषित किये | पर उनके द्वारा इस देश में प्रवेश करने से पहले इस देश के मुलनिवासियों की समृद्धी की तुलना में उनकी समृद्धी कितनी थी इसकी सच्चाई इतिहास खोलने पर पता चलता है | जैसे कि इस देश में गोरो के आने से पहले गोरो का देश ज्यादे समृद्ध कहलाता था कि यह देश इसकी सच्चाई इतिहास पलटने पर पता चल जाता है | क्योंकि इतिहास गवाह है कि यह सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला कृषि प्रधान देश गरिब देश नही बल्कि इतना समृद्ध देश रहा है कि इस देश की समृद्धी से आर्कषित होकर न जाने कितने कबिलई लुटेरे सैकड़ो हजारो सालो से इस देश में प्रवेश करके इसे लुट लुटकर खुल जा शिमशिम कहकर अपनी काली गुफा को सैकड़ो हजारो से भरते आ रहे हैं | लेकिन भी आजतक वे इस देश की अमिरी को इतना खत्म नही कर पाये हैं कि पुरी दुनियाँ अब यह कह दे की इस देश में अब धन संपदा नही मौजुद है | बल्कि जिस प्रकार स्थिर विशाल सागर में मौजुद पानी का अंबार है उसी तरह इस स्थिर कृषि प्रधान देश में भी इतना प्राकृति धन संपदा अब भी मौजुद है कि जिसदिन भी मनुवादी सत्ता का अंत होगा उसदिन के बाद इस देश की धन संपदा से इस देश के वे मुलनिवासी जिनके हक अधिकारो को लुटकर उन्हे गरिब बीपीएल व मुल जरुरतो से भी अभाव ग्रस्त बनाया गया है , वह सब दुर होगा और इस देश के सभी मुलनिवासी गरिबी भुखमरी और अभावग्रस्त मुक्त होकर फिर से यह देश गरिब नही बल्कि समृद्धशाली कहलायेगा | जो फिलहाल तो मनुवादी शासन में करोड़ो गरिब बीपीएल लिस्ट के जरिये पुरी दुनियाँ को बतला रहा है कि इस देश में गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अपनी दबदबा कायम करके मनुवादी क्या गुल खिला रहे हैं ? जो स्वभाविक भी है , क्योंकि यूरेशिया से आया कबिलई मनुवादी चूँकि इस कृषि प्रधान देश का मुलनिवासी नही है , इसलिए इस देश और इस देश के मुलनिवासियों की बेहत्तर सेवा कभी कर ही नही सकता ! और न ही मनुवादी को बेहत्तर शासक समझकर जो मुलनिवासी मनुवादीयों का साथ दे रहे हैं , वे भी कभी बेहत्तर शासक बन सकते हैं | क्योंकि घर का भेदि भी खोटे शिक्के ही साबित होंगे | इसलिए वैसे मुलनिवासी ही भविष्य में इस देश को मनुवादीयों के शोषण अत्याचार से मुक्त करेंगे जिनको मनुवादी कभी भी घर का भेदि बना नही पायेंगे | क्योंकि वे ऐसे खोटे सिक्के नही हैं कि मनुवादी उन्हे तुम भी खोटे हम भी खोटे दोनो मिलकर चलो खोटे शासन करें कहकर अपने साथ मिलाकर मानो मनुवादी खुद मदाड़ी बनकर उसे अपनी मनुवादी शासन कायम रखने के लिए नचवा सके | 

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...