ऐसे कौन से विशेष कारण हैं कि समय से पहले मानव डायनासोर की तरह विलुप्त हो सकता है
ऐसे कौन से विशेष कारण हैं कि समय से पहले मानव डायनासोर की तरह विलुप्त हो सकता है?
विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला यह कृषि प्रधान देश संभवता कबिलईयो का सरदार मनुवादियों के द्वारा गुलामी की जंजीरो में जकड़ा हुआ है | जिन यूरेशिया से आए मनुवादीयों से इस कृषि प्रधान देश को जबतक अजादी नही मिल जाती तबतक पुरी दुनियाँ के मानवता और पर्यावरण में वैसा ही खतरा मंडराता रहेगा जैसे कि तमाम कृषि सभ्यता संस्कृति में सैकड़ो हजारो साल पहले मंडराया था | जो प्राचिन विकसित सभ्यतायें अब विदेशी कबिलई द्वारा विनाश करके खंडहरो में तब्दील हो चुके हैं | साथ साथ वर्तमान में भी पुरी दुनियाँ का नेतृत्व कबिलई द्वारा किये जाने से मानवता और पर्यावरण में विनाश का खतरा मंडरा रहा है | जिस सत्य ज्ञान को झुठ तभी साबित किया जा सकता है जब इस कृषि प्रधान देश अथवा विश्वगुरु को पुर्ण अजादी मिलेगी और उसके बाद भी पुरी दुनियाँ में वर्तमान की तरह ही मानवता और पर्यावरण में खतरा मंडराना नही रुकेगा | और चँकि कबिलई ने हजारो सालो का नेतृत्व करके मानवता और पर्यावरण में जो खतरा उत्पन्न किया है , उसमे भारी सुधार करने के लिए कम से कम सौ साल का तो समय लगेगा ही लगेगा , इसलिए मनुवादी सत्ता समाप्त होने के बाद कृषि सभ्यता संस्कृति का नेतृत्व वापस कायम होने के बाद कम से कम सौ सालो का तो समय जरुर लगेगा पुरे विश्व की इंसानियत और पर्यावरण को संतुलित होने में | कबलई तो हजारो सालो तो क्या लाखो सालो में भी वर्तमान के बुरे हालात को नही सुधार सकते जबतक कि वे खुदको कबिलई सोच से बाहर नही निकाल लेते | जिससे वे हजारो सालो बाद भी अबतक नही निकले तो और कितना मौका चाहिए कबिलई सोच को पुरे देश दुनियाँ का नेतृत्व करने की | क्योंकि अब तो प्राकृति भी बार बार इस ओर इसारा कर रही है कि कबिलई के नेतृत्व में पुरा पृथ्वी ही खतरे में है | जिसे सिर्फ कृषि सोच ही बचा सकता है | जिसे यदि जल्द फिर से पुरे विश्व का नेतृत्व नही मिला तो निश्चित तौर पर जिस तरह की कबिलई नेतृत्व पुरे विश्व को विनाश की ओर ले जा रहा है , उससे तो यही लगता है कि कबिलई खुद तो डुबेगा ही , पर अपने साथ कृषि सभ्यता संस्कृति को भी ले डुबेगा | क्योंकि विकाश यात्रा जिस नाव में सवार होकर इंसान कर रहा है , उसका स्टेरिंग कबिलई के पास है | जिसके डुबने के बाद जिसदिन भी इस पृथ्वी का इंसानी अबादी समय से पहले डायनासोर की तरह लुप्त होगा उसदिन पुरे विश्व के शहर ग्राम खंडहरो में तब्दील हो जायेगी | जिसकी खुदाई सायद एलियन करेंगे जब वे पृथ्वी में वाकई में आऐंगे | जो भी सायद पता नही कर पायेंगे कि आखिर इन सभ्यताओं का विनाश होने के साथ साथ पर्यावरण का विनाश होकर इंसान डायनासोर की तरह लुप्त आखिर कैसे हुआ ? काश की कम से कम मैं उन एलियनो को भी यह ज्ञान पृथ्वी से इंसानो का विनाश होने से पहले ही पहुँचा पाता | जिसके बाद सायद वे मेरी इन सत्य बातो को गंभिरता से लेकर कबिलई के हाथो से विकाश का स्टेरिंग कृषि सोच के हाथो में वापस आ जाय इसके लिए वे खास सहयोग करते खासकर यदि वे कबिलई की तरह घुम घुमकर विनाशकारी न होते | क्योंकि पृथ्वी में मौजुद कबिलई लुटेरो का विनाशकारी इतिहास भरे पड़े हैं जिसे पलटकर पता किया जा सकता है कि ये मनुवादी और गोरे जैसे कबिलई ने इंसानियत का विनाश किस तरह से गुलाम और दास बनाकर किया है | जिन अल्पसंख्यक कबिलई ने धर्म की आड़ में पुरी दुनियाँ के बहुसंख्यक अबादी को जिस तरह से कबिलई संक्रमण देकर जकड़ लिया है , उससे तो अब इंसान का डायनासोर की तरह लुप्त होना तय है | खासकर यदि इन कबिलई का धर्म जाति गोरा काला के नाम से भी भेदभाव जंगल राज समाप्त नही हुआ | वैसे भी इनके नेतृत्व में एक तरफ तो मुठीभर अबादी अमिरी जिवन जिते हुए भोग विलाश करने में व्यस्त है , और दुसरी तरफ दुनियाँ की बहुसंख्यक अबादी भारी भेदभाव का शिकार होकर गरिबी भुखमरी बेघर बेरोजगारी से मर रहा है | जबकि कम से कम अमिरी गरिबी में संतुलन तो कायम करनी चाहिए थी | जिसकी चिंता इन्हे यदि रहती तो पुरी दुनियाँ में धर्म के नाम से इकठा किये गए धन का भंडार से लाखो भव्य मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा बनाने में ज्यादे ध्यान देने के बजाय गरिबी भुखमरी और बेघर समस्या से मर रहे लाखो करोड़ो लोगो की जान बचाकर इंसानियत कायम की जाती | और साथ साथ पर्यावरण में भी संतुलन कायम करने में ज्यादे ध्यान दी जाती | पर इन्हे हरियाली और इंसानो की खुशियाली की नही बल्कि उच्ची उच्ची भव्य कई मंजिला इमारतो और मुठीभर अबादी की भोग विलाशो की ज्यादे चिंता है | जैसे की गुलाम और दास दासी बनाने वालो को अपने उन बड़े बड़े महलो की चिंता सबसे अधिक होती है , जिनका निर्माण गुलामो से कराकर महलो के अंदर भोग विलाशी जिवन जिते हैं | जिसके भितर दास दासीयों द्वारा अपनी सेवा तबतक लेते रहते हैं , जबतक की गुलामो द्वारा अजादी संघर्ष करके अजादी नही मिल जाती | जिस तरह की महंगी महंगी भोग विलाशी सेवा इस देश में भी बहुसंख्यक अबादी को गरिबी भुखमरी देकर मुठीभर अबादी द्वारा लंबे समय से ली जा रही है | जिसकी सुरुवात विदेशी मुल के कबिलई द्वारा जंगल राज कायम करके हुआ है | जो कबिलई इस कृषि प्रधान देश में कृषि सत्ता छिनने के बाद इस देश के मुलनिवासियों का निर्माण कला हुनरो और इस देश के प्राकृति धन संपदा का भरपुर उपयोग करके अपनी झुठी शान में डुबे हुए हैं | क्योंकि विदेशी मुल के कबिलई को इस देश के मुलनिवासियों के हक अधिकारो को लुटने में ही अपना सबसे अधिक लाभ होता रहा है , चाहे धर्म के नाम से देश लुटने में हो या फिर विकाश के नाम से सत्ता और प्राकृति धन संपदा लुटने में | जिनके द्वारा नेतृत्व होने से पुरी दुनियाँ विनाश की ओर बड़ रहा है | जिसका ही परिणाम है कि पुरे विश्व की पर्यावरण और इंसानियत खतरे में है | क्योंकि इन कबिलई को न तो कृषि पर्यावरण से कोई खास मतलब रहता है और न ही इनको इंसानियत से ज्यादे मतलब रहता है | इनको तो बस अपनी झुठी शान से ज्यादे मतलब रहता है | जैसे की इस कृषि प्रधान देश में यूरेशिया से आए कबिलई मनुवादी सिर्फ अपनी झुठी शान को बरकरार रखने के लिए ही तो लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भेदभाव बहाली करके अपनी दबदबा कायम किये हुए हैं | जिनके नेतृत्व से यह देश जिस बुरे दौर से गुजर रहा है उसे जानकर क्या लगता है मनुवादी अपनी दबदबा उच्च हुनर से कायम किये हुए हैं ? उच्च हुनर से कायम किये होते तो देश और प्रजा का हाल इतना बुरा नही होता | इतना बुरा हाल है कि अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद भी गुलामी का यहसाश इस देश के मुलनिवासियों को अबतक होता रहता है | जो गुलामी का यहसाश ये मनुवादी करवा रहे हैं | जिनकी दबदबा समाप्त होते ही इस देश के मुलनिवासियों को पुर्ण अजादी का यहसाश कायम होगा | जिसके बाद पुरे विश्व में भी इंसानियत और पर्यावरण में जो खतरा मंडरा रहा है उसमे भी तेजी से सुधार होगा | जो सुधार न होने की स्थिति में एकदिन कबिलई दबदबा की वजह से ही इस देश ही नही पृथ्वी का विनाश होगा | और पृथ्वी का विनाश का मतलब साफ है इंसान का भी विनाश डायनासोर की तरह हो जायेगा |
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