प्रचार

मंगलवार, 24 मार्च 2020

What are the similarities between Indus, Hindi, Sindh Ocean, Indus River, Hindu and Hindustan?



What are the similarities between Indus, Hindi, Sindh Ocean, Indus River, Hindu and Hindustan?
khoj123,hindu,india,bharat,hindustan


सिंधु, हिंदी, सिंध महासागर, सिंधु नदी, हिंदू और हिंदुस्तान के बीच समानताएं क्या हैं?



(sindhu, hindee, sindh mahaasaagar, sindhu nadee, hindoo aur hindustaan ke beech samaanataen kya hain?)


इस कृषि प्रधान देश में कबिलई मनुवादीयों के आने से पहले ही इस देश के मुलनिवासी प्राकृति की पुजा भगवान के रुप में करते आ रहे हैं | इसलिए वामन मेश्राम द्वारा यह जानकारी बांटना समय की बर्बादी है कि होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के मुलनिवासी हिन्दू नही बल्कि यहूदि डीएनए का मनुवादी मुल हिन्दू है | हलांकि यहूदि डीएनए के मनुवादीयों के खिलाफ परिवर्तन यात्रा करने वाले वामन मेश्राम द्वारा इस देश के मुलनिवासियों को बहुत सारी ऐसी ऐसी खास जानकारी भी निश्चित तौर पर जरुर बांटी जा रही है , जिसे की उन तमाम शोषित पिड़ित हिन्दूओं को जरुर जानना चाहिए जो की खुद भी मनुवादियों के खिलाफ बहुत सारी जानकारी इकठा करते रहते हैं , और बांटते रहते हैं | क्योंकि शोषित पिड़ितो के द्वारा ही तो समय समय पर मनुवादियों के द्वारा किये गए शोषण अत्याचार के बारे में मंथन करके मनुवादियों के खिलाफ लंबे समय से संघर्ष चल रहा है | जिन संघर्षो में उन तमाम शोषित पिड़ितो का खास ऐतिहासिक योगदान है , जिन्होने मनुवादियों के खिलाफ कड़ा संघर्ष करते हुए अपना किमती समय शोषित पिड़ितो के लिए न्योछावर कर दिया है | जिनके मेहनत और तप का फल उन सभी शोषित पिड़ितो को भविष्य में जरुर मिलेगा जिनको उन मनुवादीयों की शोषण अत्याचार से अजादी चाहिए , जिन्होने इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से शुद्र घोषित किया हुआ है | जो मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करके यदि उच्च बन जाता है यह सोचकर यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है तो फिर मनुवादियों के खिलाफ चल रही अभियान में वह कभी भी अपने आप को शोषित पिड़ित कहकर मनुवादीयों के खिलाफ चल रहे संघर्ष आंदोलन में साथ कभी नही देता यह सोचकर कि वह तो पुरी तरह से अजाद है | पर चूँकि वह साथ इसलिए दे रहा है क्योंकि धर्म परिवर्तन करने से न तो उसे गोरो से अजादी मिली थी , और न ही धर्म परिवर्तन करने से मनुवादीयों से अजादी मिल जाती है | अजादी सत्ता परिवर्तन से मिलती है , जिसमे अभी मनुवादीयों का कब्जा है | हलांकि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी शोषित पिड़ितो को वामन मेश्राम द्वारा यह जानकारी भी लगातार दिया जा रहा है कि ब्रह्मण कभी भी खुदको हिंदु नही कहता है | बल्कि अब तो डीएनए प्रमाण से प्रमाणित भी हो चुका है कि मनुवादी दरसल यहूदि डीएनए का यूरेशियन है | जिस जानकारी को डीएनए प्रमाणित जानकारी बतलाकर इतिहास को फिर से अपडेट करने की बाते वामन मेश्राम करता रहता है | जो की सही भी है कि हिन्दू वेद पुराणो में जो मिलावट और छेड़छाड़ मनुवादीयों द्वारा किया गया है , उसे सही करना जरुरी है | क्योंकि जब लिखाई पढ़ाई की खोज ही नही हुआ था , उस समय सिर्फ वेद पुराण के जरिये ही तो वेद अथवा मुँह की निकली आवाज ध्वनि द्वारा बोलकर ज्ञान बांटी जाती थी | और उस इतिहास को पिड़ी दर पिड़ी मन मंदिर में दर्ज किया जाता था | जिसे बाद में जब लिखाई पढ़ाई की सुरुवात हुई तो वेद पुराणो को पुस्तको के रुप में दर्ज किया गया | क्योंकि वेद ज्ञान जो की मुँह से निकली आवाज भाषा बोली द्वारा दिया गया ज्ञान है , जो कि बाकि भी कई धर्मो के धर्म पुस्तको की रचना वेद अथवा आवाज सुनकर ही लिखा गया है , इसलिए जाहिर है वेद पुराण में भी इतिहास दर्ज है | जैसे की हिन्दू वेद पुराण में इस देश और इस देश के मुलनिवासियों का इतिहास मौजुद है | क्योंकि जिस समय कोई लिखाई पढ़ाई मौजुद नही था उस समय इतिहास को वेदो के जरिये ही तो पिड़ी दर पिड़ी ज्ञान बांटकर मन में दर्ज किया जाता था | जैसे की आज भी इंसानो के मन में बल्कि जानवरो के भी मन में पुराना इतिहास दर्ज होता रहता है | जिसके चलते पुरानी घटी घटनाओं को याद करके इंसान और जानवर भी अपने करिबी रिस्तेदार या फिर अपने दुश्मन को भी जिवनभर नही भुलाते हैं | क्योंकि उनके मन में बिना लिखित ऐसा इतिहास दर्ज होता रहता है जिसके लिए किसी लिखाई पढ़ाई कि जरुरत नही होती है | जिसे अनपढ़ भी अपने मन में दर्ज करके जिवनभर अपनी भाषा बोली अथवा मुँह से निकली आवाज अथवा वेद के जरिये दुसरो को भी बांट सकता है | जो जरुरत पड़ने पर बांटता भी है | जैसे कि जब किसी से जरुरी पुछताछ होती है तो पुछताछ करने वाला व्यक्ती ये नही सोचता है कि जिससे वह पुछताछ कर रहा है वह अनपढ़ है कि पढ़ा लिखा है | जाहिर है जब पढ़ाई लिखाई की सुरुवात नही हुई थी उस समय सभी इंसान अनपढ़ ही तो थे | क्योंकि उस समय उसे कुछ लिखने पढ़ने का ज्ञान मौजुद नही था | इसका मतलब ये नही कि वह गुँगा भी था अथवा अपने मुँह से भी वेद ज्ञान अथवा भाषा बोली से ज्ञान नही बांटता था | जैसे की जानवर और पशु पक्षी भी अपनी आवाज से एक दुसरे को ज्ञान बांटते हैं , और बातचीत करते हैं | जो भी यदि लिखाई पढ़ाई की सुरुवात इंसानो की तरह कभी कर लेंगे तो क्या वे अपना पुराना विकाश या विनाश इतिहास लिख नही पायेंगे ? बिल्कुल लिखेंगे जैसा कि इंसानो ने भी लिखा है जब उन्होने लिखाई पढ़ाई की खोज की | जिसके बाद ही तो वेद पुराणो को लिखित रुप से दर्ज करके उसे धर्म पुस्तक के रुप में रचा गया है | जिन धर्म पुस्तको में भी विकाश या विनाश इतिहास दर्ज है | जैसे कि लिखित मौजुद हिन्दू वेद पुराणो में इतिहास दर्ज है | जिसके साथ मिलावट और छेड़छाड़ बाहर से आए मनुवादीयों ने किया है | पर चूँकि इतिहास वह सच्चाई है जिसमे मिलावट किया गया झुठ को घटनाक्रम और प्राकृति विज्ञान प्रमाण के आधार पर वापस सुधार या सही किया जा सकता है , इसलिए आज भी बहुत से इतिहास में सुधार करने की प्रक्रिया पुरी दुनियाँ में जारी है | जैसे की डायनासोर का इतिहास के बारे में भी जानने और सुधार करने की प्रक्रिया प्राकृति विज्ञान द्वारा प्रमाण के अनुसार जारी है | जाहिर है जब करोड़ो साल पहले लुप्त हुए डायनासोर का इतिहास मौजुद है तो हजारो लाखो साल पहले लुप्त हुए कथित उड़ने और गायब होने वाले देव दानवो का इतिहास के बारे में भी सही जानकारी इकठा करने की प्रक्रिया जारी है | बल्कि यदि देव के वंशज मनुवादी और दानवो के वंसज इस देश के मुलनिवासी हैं तो निश्चित तौर पर देव दानव लुप्त नही हुए हैं , बल्कि देव दानवो का इतिहास में गायब होने और उड़ने जैसे अनेको ढोंग पाखंड और झुठ का मिलावट किया गया है | जिसे प्राकृति विज्ञान प्रमाण अधारित घटनाक्रम के अनुसार सुधार करने पर दुध का दुध और पानी का पानी जरुर होगा जब मिलावट और गलती पकड़कर वेद पुराणो में की गई मिलावट में सुधार किया जायेगा | जैसे की वामन  मेश्राम ने भी वेद पुराण में की गई मिलावट और गलती को पकड़ने की कोशिष करते हुए अपने प्राकृति विज्ञान प्रमाणित तर्क में सवाल किया है कि राम और हनुमान जब एक ही समय में पैदा हुए थे तो हनुमान की तरह राम का भी पुंछ क्यों नही था ? हनुमान को जानवर और पशु की तरह पुंछ क्यों लगाया गया है यह इतिहास समझने की जरुरत है | क्योंकि हमारे लोगो को यह जानकारी नही है कि पुँछवाला हनुमान और बिना पुँछवाला राम में क्या खास अंतर है | जैसे की मेरे विचार से यह समझने की भी जरुरत है की दानव मतलब दान करने वाला , राक्षस मतलब रक्षा करने वाला , असुर मतलब सुरा (मदिरा) नही पिने वाला होता है | जिन असुर दानव राक्षसो को मनुवादीयों ने वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके मानव भक्षण करने वाला खलनायक और खुदको दानव असुर राक्षसो से सुरक्षा प्रदान करने वाला नायक प्रमाणित करने की कोशिष किया है | लेकिन चूँकि सत्य को लंबे समय तक छिपाया तो जा सकता है , पर हमेशा के लिए यह सत्य मिटाया नही जा सकता है कि वेद पुराण में मौजुद देव और देव को अपना पुर्वज बतलाने वाला मनुवादी ही इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके लुटपाट और कब्जा करने वाले मुल खलनायक है | जो न तो मुल हिन्दू है , और न ही जन्म से ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य है | हलांकि वामन मेश्राम परिवर्तन यात्रा में यह भी जानकारी घुम घुमकर दे रहा है कि इस देश का दलित आदिवासी पिछड़ी और धर्म परिवर्तन करने वाले अल्पसंख्यक लोगो के पुर्वज कभी हिन्दू ही नही थे | जबकि वामन मेश्राम के द्वारा ही यह बतलाया जाता है कि जो देव और मनुवादी खुदको ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य कहता है वह यहूदि डीएनए का है | जो मनुवादी खुदको हिंदू कभी नही कहता है | फिर सवाल उठता है जब यहूदि डीएनए का मनुवादी हिन्दू नही है , और वामन मेश्राम के जानकारी अनुसार इस देश के मुलनिवासी भी हिन्दू नही है , फिर अंबेडकर द्वारा रचा गया हिन्दू कोड बिल किसके लिये बनाया गया है ? हिन्दू धर्म को लेकर या तो वामन मेश्राम को गलत जानकारी है या फिर तब हिन्दू धर्म को लेकर अंबेडकर को गलतफेमी मौजुद थी | जिसके कारन उन्होने हिन्दू कोड बिल की रचना हिन्दू धर्म के लोगो के लिए किया , और साथ ही गलतफेमी की वजह से बौद्ध धर्म अपनाने से पहले यह भी कहा कि उनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ है | मेरे विचार से वामन मेश्राम और अंबेडकर दोनो अपनी अपनी जानकारी अनुसार सही है | जैसे कि अंबेडकर अपनी जानकारी अनुसार इंडिया भारत को बतलाया है | क्योंकि इंडिया शब्द विदेशी गोरो ने सिंधु नदी को इंडस नदी कहकर इंडस नदी के नाम से भारत को ही इंडिया कहा है | जिसके बारे में इंडिया शब्द विदेशी है यह जानकारी होते हुए भी वामन मेश्राम अपनी जानकारी अनुसार विदेशी शब्द इंडिया को इसी देश का नाम है यह स्वीकार तो किया , पर उसी इंडस नदी को दुसरे विदेशियों ने जब सिंधु नदी कहकर उसके नाम से इस देश का नाम विदेशी भाषा बोली अनुसार ही हिन्दू या हिन्दुस्तान कहा गया तो वामन मेश्राम ने हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द अरब और फारस के लोगो द्वारा दिया गया विदेशी शब्द है कहकर हिन्दू धर्म को इस देश के लोगो का धर्म मानने से इंकार किया | दरसल वामन मेश्राम जैसे बहुत से मुलनिवासी हिन्दू धर्म और इंडस व सिंधु को लोकर अबतक इसलिए भ्रमित हैं क्योंकि उन्होने इस जानकारी को अबतक स्वीकारा नही किया गया है कि असल में मनुवादी वह हिन्दू नही है जिनके पुर्वजो ने हिन्दू वेद पुराण और होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो की रचना किया है | जिस जानकारी के बारे में इतिहास में जिसदिन प्राकृति विज्ञान प्रमाणित घटनाक्रम अनुसार सुधार होकर स्वीकार कर लिया जायेगा उसदिन इस तरह का भ्रम फिर से पैदा नही होगा कि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण व हिन्दू पर्व त्योहार आखिर मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाया गया है कि इस देश के मुलनिवासियों के द्वारा ही रचा गया है ? जो जानकारी तो मुझे वेद पुराणो और इतिहासो में मनुवादीयों के बारे में जो कुछ मौजुद है उसके बारे में प्राकृति विज्ञान प्रमाण अधारित खोज मंथन करके बहुत पहले ही पता चल चुका है कि मनुवादी हिन्दू नही है भले बाद में उन्होने खुदको हिन्दू बना लिया है | पर चूँकि मैं इस जानकारी को पुरी तरह से सत्य घोषित करने वाला कौन होता हूँ , इसलिए मेरी बातो को वैसा ही महत्व नही दिया जायेगा जैसे कि बहुत से लोगो के इस बात को महत्व नही दिया जाता है कि किसी भी धर्म पुस्तक में लिखी ऐसी जानकारी मौजुद नही है , जिसमे की प्राकृति विज्ञान अनुसार कोई गलती मौजुद ही न हो | क्योंकि सभी इंसान अपनी अपनी जानकारी को तबतक सही समझता रहता है , जबतक की वह इस सवाल के जवाब के बारे में पुरी तरह से निश्चित नही हो जाता कि उसके पास जो जानकारी मौजुद है उसमे सुधार होकर उससे भी सही जानकारी दिया जा रहा है ? जैसे की जब डीएनए की खोज हुआ और मनुवादीयों का डीएनए यूरेशिया के लोगो का डीएनए से मिला तो मनुवादीयों के बारे में जो प्राकृति विज्ञान प्रमाण जानकारी उपलब्ध कराई गई थी उसमे मौजुद जानकारी से निश्चित होकर और अधिक सही प्रमाणित जानकारी उपलब्ध हुआ | क्योंकि प्राकृति विज्ञान प्रमाणित है कि डीएनए हस्तांतरित बिना बदलाव के होता रहता है , इसलिए मनुवादी का डीएनए मनुवादी का इतिहास को और अधिक प्रमाणित करता है | जिस तरह का प्रमाणित जानकारी किसी देश की सभ्यता संस्कृती और पर्व त्योहार का इतिहास हस्तांतरित भी यदि डीएनए की तरह बिना बदलाव के प्राकृति विज्ञान प्रमाणित  होता रहता है तो निश्चित तौर पर हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण व पर्व त्योहार कबिलई मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाए गए हैं कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों के द्वारा विकसित और रचना किए गए हैं इसकी प्राकृति विज्ञान प्रमाणित जानकारी मैने जो जानकारी दिया है कि यूरेशिया से आया कबिलई मनुवादी मुल हिन्दू नही है यही सत्य है | क्योंकि हिन्दू जिवनशैली है इस तरह का तीसरा तर्क जो अक्सर दीया जाता है उसके आधार पर भी यदि मान लिया जाय कि हिन्दू कोई धर्म नही बल्कि जिवनशैसी है , जिसमे कि एक से अधिक विवाह करने का रिवाज नही है , जिसे जानते हुए अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल बनाया था , जिसका विरोध सुरु में मनुवादीयों ने यह कहते हुए किया था कि इस तरह का बिल सिर्फ हिन्दूओं के लिए क्यों मुस्लिमो के लिए क्यों नही ? तो निश्चित तौर पर हिन्दू विवाह परंपरा अनुसार भी मनुवादी मुल हिन्दू प्रमाणित नही हो पायेगा | क्योंकि मनुवादी के परिवार में मौजुद महिलाओं का एम डीएनए और इस देश मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओं के एम डीएनए चूँकि एक है इसलिए यह प्रमाणित हो जाता है कि मनुवादी हिन्दू विवाह परंपरा क्या होता है इसके बारे में जानकारी बाद में लिया होगा जब उन्होने कबिलई जिवन जिते हुए बिना परिवार के इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश की महिलाओं से विवाह करके इस देश में मौजुद हिन्दू सभ्यता संस्कृति और हिन्दू विवाह परंपरा के बारे में जाना समझा होगा | जाहिर है अंबेडकर ने भी किसी धर्म में कितने विवाह करने के लिए बतलाया गया है इसके बारे में सोच समझकर धर्म के आधार पर हिन्दू कोड बिल बनाया गया है | और साथ ही इस कृषि प्रधान देश में विवाह परंपरा के अलावे भी जो होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे अनगिनत प्राकृति पर्व त्योहार बारह माह भगवान पुजा और प्राकृति पुजा के रुप में मनाई जाती है वह पुजा भी हिन्दू धर्म में मनाई जाती है | अथवा इस कृषि प्रधान देश में मौजुद भगवान पुजा और प्राकृति पुजा हिन्दू धर्म की पुजा है | क्योंकि धर्म का मतलब यदि धारन करना होता है तो हिन्दू कोई धर्म नही है यह तर्क देने वालो को इस सवाल का जवाब पहले देना होगा कि प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वालो और होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाते हुए प्राकृति पुजा करने वालो ने किस धर्म को धारन किया हुआ है ? और अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल किस धर्म के लोगो लिए बनाया है ? और अंबेडकर बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले किस धर्म के थे ? हलांकि पुरी दुनियाँ में फिलहाल तो यही मान्यता मौजुद है कि विश्व के सबसे बड़े चार धर्मो में जो हिन्दू धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म के रुप में जाना जाता है , उस धर्म के लोग ही होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाते हैं और प्राकृति भगवान पुजा करते हैं | और अंबेडकर भी देश विदेश में तीस से अधिक उच्च डिग्री और अजाद भारत का संविधान व हिन्दू कोड बिल रचना हिन्दू परिवार में ही जन्म लेकर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल किया है | जिसे वामन मेश्राम फिलहाल झुठ साबित नही कर सकता | और न ही यह साबित कर सकता कि होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वाले लोग हिन्दू नही हैं | बल्कि वामन मेश्राम डीएनए प्रमाण की जानकारी को परिवर्तन यात्रा के माध्यम से मुलनिवासियों को बांट बांटकर यह प्रमाणित जरुर कर सकता है कि यहूदि डीएनए का मनुवादी हिन्दू नही बल्कि यहूदि है | जो घुम घुमकर प्रमाणित भी कर रहा है भले वामन मेश्राम को हिन्दू धर्म को लेकर भ्रम की वजह से यह मालुम न हो कि उसके मुँह से बांटा गया जानकारी में मनुवादी हिन्दू नही है यह जानकारी ही बार बार प्राकृति विज्ञान प्रमाण द्वारा दोहराया जा रहा है | और साथ साथ यह जानकारी भी बांटा जा रहा है कि इस देश के मुलनिवासी ही साक्षात प्राकृति पुजा करने वाला मुल हिन्दू है | जिन हिन्दूओं ने ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण किया है | जहाँ पर बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार और प्राकृति पुजा की जाती है | जिस प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाने वालो को ही बाहर से आने वाले विदेशियों ने हिन्दू और इंडियन कहा है | जो हिन्दू और इंडियन शब्द भले विदेशी है पर उसका उच्चारण इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति धरती और इस धरती में रहने वाले मुलनिवासियों की पहचान के लिए ही हिन्दुस्तान हिन्दू और इंडियन शब्द का उच्चारण किया गया है | जैसे कि अजाद भारत का संविधान में जो विदेशी शब्द इंडिया है वह इसी देश के लिये लिखा गया है | न कि इंडिया शब्द विदेशियो के द्वारा दिया गया विदेशी शब्द है इसलिए इंडिया का मतलब इस देश से नही है यह बतलाया जाय घुम घुमकर | जैसे की घुम घुमकर यह बतलाया जा रहा है कि हिन्दू शब्द विदेशी है इसलिए विदेशी मनुवादी मुल हिन्दू है | जो तर्क वैसा ही है जैसा कि इंडिया शब्द विदेशी है इसलिए विदेशी गोरे मुल इंडियन थे | जिस तरह की तर्क को दोहराते रहना समय की बर्बादी है | वह भी यह जानते हुए कि डीएनए प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादीयों का डीएनए और यहूदि का डीएनए एक है | हलांकि कबिलई यहूदि डीएनए का कबिलई मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद खुदको हिन्दू जरुर कहता है | जिसके चलते अंबेडकर द्वारा बनाया गया हिन्दू कोड बिल का भले उसने विरोध किया था पर हिन्दू धर्म अनुसार ही विवाह करके हिन्दू कोड बिल का पालन करता है | साथ साथ इस कृषि प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को भी मनाता है | जिन पर्व त्योहारो के बारे में जैसे जैसे समझने और मनाने लगा है , वैसे वैसे इस कृषि प्रधान देश के मुल हिन्दूओं द्वारा स्थापित बिना भेदभाव जिवन जीने की कला को भी सिखता चला जा रहा है | जिसके चलते मनुवादीयों के परिवार में मौजुद बहुत से लोगो को अब मिल जुलकर होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहारो में शामिल होकर उसे अब छुवाछुत शोषण अत्यचार झमेला अविकसित मांसिकता नजर आने लगा है | जाहिर है मनुवादी छुवाछुत मांसिकता को धिरे धिरे किसी मल मूत्र की तरह त्यागते चला जा रहा है | अथवा हजारो सालो से इस कृषि प्रधान देश में रहते रहते बहुत हद तक मनुवादीयों में बदलाव नजर निश्चित तौर पर जरुर आया है | हलांकि थोड़ी बहुत बदलाव जिन मनुवादियों में आया है , या आ रहा है उनकी दबदबा मनुवादी सत्ता में मौजुद नही है इसलिए गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में छुवाछुत भेदभाव करने वाले मनुवादीयों की ही दबदबा कायम रहने की वजह से आजतक भी छुवाछुत भेदभाव शोषण अत्याचार कायम है | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...