Discriminatory thinking arising from the mind, excreta from the body is more harmful than urine.



Discriminatory thinking arising from the mind, excreta from the body is more harmful than urine.
khoj123,



मन से उत्पन्न होने वाली भेदभावपूर्ण सोच, शरीर से निकलने वाला मल मूत्र से अधिक हानिकारक होता है।


(man se utpann hone vaalee bhedabhaavapoorn soch, shareer se nikalane vaala mal mootr se adhik haanikaarak hota hai

हजारो सालो बाद भी अबतक नही सुधरने वाले जो भी मनुवादी इतने लंबे समय के बाद भी अबतक अपनी भ्रष्ट मांसिकता को नही त्याग सके हैं , वे निश्चित तौर पर छटे हुए वैसे खोटे सिक्के हैं , जिनके द्वारा अब सुधरने की उम्मीद न के बराबर है | और चूँकि तन के द्वारा त्यागा गया मल मूत्र गंदगी से भी ज्यादे हानिकारक गंदगी मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी होती है , जिससे कि दुसरो को गुलाम दास दासी बनाने की भ्रष्ट गंदी मांसिकता पनपती है , इसलिए इस कृषि प्रधान देश में छुवाछुत मनुवादी सत्ता जबतक कायम रहेगी तबतक चाहे जितनी सफाई अभियान चलाया जाय और जितनी भेदभाव शोषण अत्याचार मुक्त नियम कानून बनाया जाय , जबतक मनुवादीयों के मन में छुवाछुत गंदगी मौजुद है वे अजाद भारत का संविधान लागू होने के बावजुद भी पुरी दुनियाँ का मल मुत्र से भी ज्यादे हानिकारक गंदगी अपनी भ्रष्ट गंदी मांसिकता से फैलाते रहेंगे | क्योंकि मनुवादी खुदको जबतक मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी से पुरी तरह से बाहर नही निकाल लेता तबतक वह छुवाछुत करना कभी नही छोड़ेगा | जिस गंदगी को अपने सर में ढोकर किसी किमती खजाने की तरह रखकर भले क्यों न वह इस देश से बाहर विदेशो में भी रहने लगे और धन्ना बनकर सुटबुट पहनकर गोरो के साथ झुठी शान की विकसित डीजिटल जिवन जिने लगे , वह अपने सर में मौजुद अथवा मन की गंदगी से मल मूत्र गंदगी से भी ज्यादे नुकसान करता रहेगा  | क्योंकि भ्रष्ट गंदी मांसिकता को विकसित रुप श्रृंगार करके कपड़ो या किमती जेवरो से कभी नही ढका जा सकता | जैसे की मल मूत्र को सोने चाँदी के बरतनो से ढककर उसकी गंदगी को पुरी तरह से नही छिपाया जा सकता | छुवाछुत करने वाला इंसान चाहे दुनियाँ की सबसे किमती महलो में क्यों न रहे या फिर सोने की बरतनो में खाना खाये और सोने से जड़ा सबसे किमती शौचालय का निर्माण कराये , लेकिन भी वह अपने मन में मौजुद छुवाछुत गंदगी से मल मूत्र गंदगी फैलाने वाले लोगो से भी कई गुणा हानि देश और प्रजा को नुकसान पहुचाने वाला गंदी सोच वाला इंसान साबित होता रहेगा | क्योंकि भेदभाव और दास दासी गुलाम करने वाले लोग शारिरिक और मांसिक दोनो प्रकार से इतने ज्यादे नुकसान पहुँचाते हैं की वह नुकसान आनेवाली पिड़ी दर पिड़ी भारी नुकसान करता चला जाता है | जिसकी वजह से मनुवादी छुवाछुत कचड़ा परमाणु कचड़ा से भी ज्यादे समय तक नुकसान करता आ रहा है और आगे भी करता रहेगा यदि मनुवादी मन में मौजुद छुवाछूत कचड़ा मौजुद रहा | जिस कचड़ा कि वजह से मनुवादी आज भी हजारो सालो से इस देश के मुलनिवासियों को शारिरिक और मांसिक दोनो तरह से  पिड़ी दर पिड़ी भारी नुकसान पहुँचाते आ रहा हैं | क्योंकि वैज्ञानिको के पास परमाणु कचड़ा को भी किसी खास तरिके से ढककर उससे फैलने वाली नुकसान को रोकने का इंतजाम है , पर मनुवादी कचड़ा से फैलने वाली नुकसान को ढकने या रोकने का इंतजाम दुनियाँ के किसी भी वैज्ञानिक के पास मौजुद नही है | क्योंकि वैज्ञानिक द्वारा परमाणु कचड़ा से निपटने के लिए चाहे अपनी बुद्धी का इस्तेमाल करके परमाणु कचड़ा से होने वाली भारी नुकसान से बचाने में खास योगदान हो या फिर अपने सर का इस्तेमाल करके सर में मल मुत्र ढोने वाला शोषित पिड़ित द्वारा मल मूत्र की सफाई करके गंदगी से होनेवाली तन की बिमारी को रोकने के लिए खास योगदान हो , इससे तो बहुत से नुकसान से बचाव हो रहा है , भले मैला ढोने वाला खतरनाक कार्य शोषित पिड़ित अपनी जिवन को खतरे में डालकर मजबूरी में अपने और अपने परिवार का पेट पालने के वास्ते कर रहा है | पर मनुवादी अपने सर के अंदर छुवाछुत की गंदी मांसिकता को ढोकर कौन सा पेट पालने का भलाई का कार्य कर रहा है ? बल्कि अपने सर में छुवाछूत की मांसिक गंदगी लिये तन की बिमारी से भी खतरनाक बिमारी के जरिये किसी के जिवन और मान सम्मान को इतना अधिक नुकसान पहुँचा रहा है कि उससे बचने के लिए देश दुनियाँ में करोड़ो शोषित पिड़ित हर रोज किसी न किसी माध्यम से मनुवादीयों के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रहे हैं | क्योंकि जब किसी के पास शौचालय भी नही होता था उस समय भी जितना नुकसान खुले में की जा रही मल मुत्र गंदगी से भी किसी को नुकसान नही होता था उससे भी कहीं ज्यादे नुकसान शोषित पिड़ितो को मनुवादीयों के मन में मौजुद छुवाछूत गंदगी बंद कमरे में फैलाने से भी हो रहा है | क्योंकि आज भी जहाँ पर शौचालय नही है वहाँ पर खुले में मल मुत्र करने से उतना नुकसान नही हो रहा है जितना की खुले और बंद कमरे में भी अपने सर में छुवाछूत गंदगी को लिये शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादीयों से नुकसान पहुँच रहा है |  जिस नुकसान को अनदेखा करके मनुवादी शासन के बारे में जिन मुलनिवासियों के मन में अब भी यह भ्रम मौजुद है कि मनुवादी शासन से इस कृषि प्रधान देश और यहाँ की प्रजा का सबसे बेहत्तर विकाश हो रहा है , उनको यह बात हमेशा याद रखना चाहिए कि मनुवादी शासन में इस देश के मुलनिवासियों की मौत जिस तादार में हो रहा है , उस तादार में यदि मनुवादीयों की मौत होती तो अबतक अल्पसंख्यक मनुवादी डायनासोर की तरह कबका लुप्त हो गया होता | जो लुप्त नही बल्कि बहुसंख्यक मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनके हक अधिकारो को भी खा खाकर अपनी जिवन को सबसे अधिक सुरक्षित करके छुवाछुत शासन कर रहा है | जो आज भी इस देश के मुलनिवासियों के साथ जानवरो जैसा व्यवहार करता है | जिसके कारन इस देश के मुलनिवासी कबिलई मनुवादीयों द्वारा भारी शोषण अत्याचार का शिकार होकर हर साल भारी तादार में मारे जा रहे हैं | चाहे अपने हक अधिकारो को मनुवादीयों के द्वारा छिने जाने से इस देश के मुलनिवासी गरिबी भुखमरी से मर रहे हो या फिर मनुवादी शासन में उनके साथ भारी भेदभाव द्वारा उनके पास मुलभुत जरुरी चीजो के अभाव की वजह से मर रहे हो , सबसे अधिक मौते तो मुलनिवासियों की ही हो रही है | जिन मौतो से मनुवादीयों को कोई खास लेना देना नही है | बल्कि इस देश के मुलनिवासियों की मौत जितनी अधिक होती रहेगी मनुवादी उतनी अधिक भोग विलाश और झुठी शान में डुबता चला जायेगा यह कहते हुए कि उनके नेतृत्व में आधुनिक शाईनिंग और डीजिटल विकाश तेजी से हो रहा है | जबकि सच्चाई यह है कि जो मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले संभवता कपड़ा पहनना भी नही जानता होगा वह क्या उस इंसानियत और पर्यावरण संतुलित कृषि विकाश के बारे में समझ बुझ पायेगा जिसे इस देश के मुलनिवासी हजारो साल पहले ही कृषि करना सिखकर सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करके कृषि प्रधान कहलाने का गौरव हासिल किया है | जिसे अबतक मनुवादी इसलिए ठीक से नही समझ सका है क्योंकि कबिलई मनुवादी आजतक भी अपनी उस परजिवी मांसिकता से बाहर नही निकल सका है जो परजिवी मांसिकता इंसान को गुलाम दास दासी बनाकर अपने गुलामो को चुसकर परजिवी जिवन जिने की कला अथवा दुसरे की हक अधिकारो को चुसने की हुनर सिखलाता है | जिस कला अथवा हुनर में मनुवादी को हजारो सालो का खास अनुभव है | जिस तरह का अनुभव और हुनर इस देश के मुलनिवासियों के पास इतिहास में कभी नही दिखता है | क्योंकि मनुवादी जब संभवता कपड़ा पहनना भी नही जानता होगा उस समय ही इस देश में उस विकसित कृषि सभ्यता संस्कृति का का निर्माण हो चुका था , जिस कृषि सभ्यता संस्कृति में भेदभाव करना और गुलाम दास दासी बनाना विकसित मांसिकता नही बल्कि विनाश मांसिकता माना जाता है | जिस विनाश मांसिकता की वजह से ही तो मनुवादी जब इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश की विकसित गणतंत्र व्यवस्था और हजारो विकसित हुनर व्यवस्था के बारे में जाना होगा तो उसे सिखने के बजाय उसे जन्म से ही उच निच जाति व्यवस्था घोषित करके विनाशकारी  छुवाछूत शोषण अत्याचार को विकसित करना सुरु किया है | जिसके लिए मनुवादीयों ने सबसे पहले घर के भेदियो की मदत से इस कृषि प्रधान देश में गोरो की तरह गुलाम सत्ता स्थापित किया , उसके बाद मनुस्मृति लागू करके वर्ण व्यवस्था और हजारो हुनरो को जन्म के आधार पर जाति घोषित करने में सक्षम हुआ है | जो स्वभाविक है , क्योंकि मनुवादी जिस तरह की कबिलई घुमकड़ जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश किया था , उसके बारे में जानकर यही लगता है कि मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले गणतंत्र व्यवस्था और हजारो हुनर व्यवस्था के बारे में जानना तो दुर परिवार समाज के बारे में भी नही जानता होगा | जिसके बारे में ज्ञान उसे इस कृषि प्रधान देश में आकर मिला और पहली बार उसने इस देश के लोगो से पारिवारिक रिस्ता जोड़कर अपना खुदका परिवार भी स्थापित किया है | भले उसने सुरुवात में इस देश की महिलाओं को देव दासी बनाकर ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहते हुए अपना वंश वृक्ष बड़ा किया है | क्योंकि यह जानकारी डीएनए प्रमाण से भी आज उपलब्ध है कि मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिला मनुवादी की तरह यूरेशिया से नही आयी है | बल्कि मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिलाओं का एम डीएनए चूँकि इस देश की महिलाओं की एम डीएनए से ही मिलता है , इसलिए मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिला भी इसी देश का मुलनिवासि है , न कि वह यूरेशिया से आई है | 

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