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सोमवार, 2 मार्च 2020

मनुवादी शासन के अंत और उत्पीड़ितों के शासन की शुरुआत के बाद,क्या मनुवादी को भी नग्न करके पीटा जाएगा


मनुवादी शासन के अंत और उत्पीड़ितों के शासन की शुरुआत के बाद,क्या मनुवादी को भी नग्न करके पीटा जाएगा ?
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क्या पता वाकई में सौ साल बाद मनुवादी सत्ता जाते ही सचमुच में मनुवादियों की नई पिड़ि को सिर में मैला ढुलवाया जाय और नंगा करके पिछवाड़े में लात मारकर जैसी करनी वैसी भरनी गाना गा गाकर मनुवादीयों के पाप कुकर्म को याद दिलवाया जाय ! खासकर यदि मनुवादी तब भी अपनी झुठी शान को बरकरार रखने की मकसद से छुवा छुत को जारी रखेंगे जब इस देश में शोषित पिड़ितो की सत्ता कायम हो जाएगी | क्योंकि हम क्यों जाय सुप्रीम कोर्ट के पास , हम क्यों जाय चुनाव आयोग के पास ? यह सवाल करके आक्रोशित शोषित पिड़ित संविधान को खारिज नही बल्कि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मौजुद मनुवादी सत्ता को खारिज कर रहे हैं  | जिन आक्रोशित शोषित पिड़ित जो आज भारी तादार में हासिये में है , वही तो एकदिन मनुवादी की सत्ता को उखाड़ फैकेगी | और जिसदिन भी मनुवादी सत्ता उखड़ेगी उसदिन लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में निश्चित तौर पर चूँकि मनुवादी सोच की सत्ता से ज्यादे विकसित सोच की सत्ता इस देश के मुलनिवासियों की है , जो कि मनुस्मृति और अजाद भारत का संविधान रचना के बिच का अंतर में भी साफ नजर आता है , इसलिए यह बात सौ प्रतिशत सत्य है कि इस देश के मुलनिवासियों द्वारा अपनी सत्ता में वापस आते ही निश्चित तौर पर विश्वास कायम होकर आक्रोश और गुस्सा थमकर सुख शांती समृद्धी कायम होगी | जिससे पहले तो लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में सिर्फ भेदभाव कायम होकर अँधेरा ही अँधेरा कायम नजर आता है | जहाँ से शोषित पिड़ितो की चीखें हर रोज सुनाई देती रहती है |  जिसे सुनकर शोषित पिड़ितो के भितर गुस्सा और आक्रोश बड़ता जा रहा है | जबकि दुसरी तरफ मनुवादियों के द्वारा बड़े बड़े देश विदेश के होटलो में भी छप्पन भोग सम्हारोह और पार्टियों की चकचौंध सोरगुल बड़ते जा रही है | जिनके घरो में कितनी महिलाओ की चीखें हर रोज निकल रही है , और कितने पुरुषो की मौत शोषण अत्याचार या हत्या हो रहा है , इसकी चर्चा यदि की जाय तो साफ पता चल जाता है कि मनुवादी लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अपनी दबदबा कायम करके दरसल प्रजा और देश सेवा शासन नही बल्कि भेदभाव शोषन अत्याचार चला रहे हैं | साफ बात मनुवादी अब सत्ता सौंपकर गोरो की तरह स्वीकार कर लें कि उन्होने सत्ता पावर का गलत इस्तेमाल करके इस देश को और इस देश के मुलनिवासियों की हक अधिकारो को लुटा है | बल्कि गोरो से भी ज्यादे समय तक इस देश के मुलनिवासियों के साथ भारी भेदभाव शोषण अत्याचार किया है | जिन मनुवादीयों की पाप और कुकर्म इतिहास गोरो की गुलामी से भी ज्यादे शर्मनाक दर्ज होता जा रहा है | वर्तमान की मनुवादी पिड़ी तो सौ साल होते होते समाप्त हो जायेगी पर उनकी नई पिड़ी उस दुनियाँ को अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए कुकर्मो के बारे में क्या बताकर यह साबित कर पायेगी की उनके पुर्वजो का शासन जब इस कृषि प्रधान में चलता था तो लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भरपुर विकाश हो रहा था और देश में चारो तरफ सुख शांती समृद्धी कायम थी | क्योंकि तब मनुवादी सत्ता का खात्मा हो चुका होगा यह तय है | जैसे की गोरो की भी सत्ता एकदिन समाप्त हुई थी | और मनुवादी सत्ता खत्म होने के बाद मनुवादीयों के द्वारा किये गए पाप कुकर्मो की तो जनगणा जरुर होगी | और पाप कुकर्म जनगणा होगी तो निश्चित तौर पर मनुवादीयों की नई पिड़ी को शर्म से जुलूभर पानी में डुब मरने का मन करेगा | खासकर यह सोचकर कि आखिर क्या कमी इस देश और इस देश के मुलनिवासियों ने मनुवादीयों के लिए छोड़ा था जिसे पुरा करने के लिए मनुवादीयों ने इतने पाप कुकर्म किये की इतिहास में हमेशा के लिए सबसे बड़ा दाग लगा दिए | जो दाग जबतक दुनियाँ कायम रहेगी तबतक जिस तरह गोरो ने कई देशो को गुलाम बनाकर कितने सारे पाप कुकर्म किये थे यह इतिहास हमेशा के लिए दर्ज हो गया है , उसी तरह मनुवादीयों का भी पाप कुकर्म इतिहास दर्ज पहले भी मनुस्मृति रचना के रुप में भी हो चुका है , और अब भी बहुत सारे पाप कुकर्म करके दर्ज हो रहा है | बल्कि मैं तो कहूँगा इस देश को गुलाम बनाने वाले गोरे तो दो सौ सालो में ही अपने पाप कुकर्म की प्राश्चित करने की कोशिष करना सुरु करके मनुवादीयों से कहीं ज्यादे समझदार खुदको इतिहास में दर्ज करते जा रहे हैं | वहीं मनुवादी अपने पाप कुकर्म को सिर्फ ज्यादेतर तो मानो ढकने और छिपाने में लगे हुए हैं | जिनको तो अपने मल मुत्र को भी पेट में ही छिपाकर रखना चाहिए था यदि उन्हे गंदगी त्यागने में इतना डर या शर्म लगता है | क्या जरुरत थी शौचालय जाकर अपने मल मुत्र को त्यागने की ? और वैसे भी मनुवादी शरिर से निकले मल मुत्र की सफाई  से बहुत बड़ी बड़ी बिमारी पैदा होती है कहकर अपने मन में मौजुद मनुवादी गंदगी को सफाई योजना चलाकर कभी नही छिपा सकते | जो गंदगी मल मुत्र से भी ज्यादे गंदा होता है जिसे सर में मैला की तरह उठाकर फैंक नही रहा है | बल्कि सर के भितर बिठाकर मनुवादी हजारो सालो से सोना नहाना बल्कि पुरी जिवन गुजार रहा है | जो मनुवादी अपने सर के भितर मनुवादी सोच को कायम रखकर अपने भितर मौजुद इंसानियत की सफाई आखिर क्यों करता आ रहा है ? बल्कि जितनी जल्दी हो सके मनुवादी अपनी गंदी सोच को मल मुत्र गंदगी की तरह शौचालय न सही पर सोते समय त्यागकर सुबह से नई जिवन की सुरुवात करे , जिससे सायद उनके पाप कुकर्म इतिहास इतनी शर्मनाक दर्ज न हो जिससे की उनकी नई पिड़ि को सौ साल बाद शर्म से चुलूभर पानी में डुबने का मन कभी न करे | क्योंकि तब क्या पता वर्तमान की शोषित पिड़ी के नये वंसज अपने पुर्वजो के साथ हुए भेदभाव शोषण अत्याचार का बदला जैसा को तैसा जवाब देने की राह में चले और अपनी शासन कायम होते ही मनुवादियों की नई पिड़ि को सचमुच में सर में मैला ढुलवाये और नंगा करके पिछवाड़े में कोड़े बरसाये ! जिसे जैसी करनी वैसी भरनी गाना गा गाकर मनुवादीयों के पाप कुकर्म को याद दिलवाये | मैं तो सिर्फ मनुवादी नेतृत्व में मौजुद बुरे हालात को देख सुन और पढ़कर संभावना व्यक्त कर रहा हूँ | जो मुमकिन भी हो सकता है | क्योंकि जिस इंसान का जितना शोषण अत्याचार किया जाता है , उसके भितर उतना ही गुस्से की ज्वालामुखी पनपते जाती है | जिस गुस्से की ज्वालामुखी को वे लोग दबा नही पाते हैं जिनको लगता हा कि अपमान का बदला अपमान से और हत्या का बदला हत्या से सबसे सही मार्ग लगने लगता है | जिस तरह के लोगो की संख्या काफी तादार में इस देश ही नही पुरी दुनियाँ में मौजुद है | और फिल्मे भी ज्यादेतर मार धाड़ वाली उसी गुस्से की वजह से ही तो बहुत ज्यादे बनते और हिट होती रहती है | हलांकि फिल्मो की मार धाड़ मनोरंजन के लिए तो अच्छी लगती है , पर रियल अथवा असल जिवन में मार धाड़ अच्छी नही लगती है | क्योंकि असल जिवन में ज्यादेतर तो मार धाड़ करने वाले लोग भी अमन शांती से रहना चाहते हैं | भले वे फिल्मे ज्यादेतर मार धाड़ का देखते हैं | क्योंकि सायद उससे उनके भितर मौजुद गुस्से की ज्वालामुखी कल्पनाओं में बाहर निकलकर सायद गुस्सा शांत हो जाती है ! क्या पता ये मार धाड़ की फिल्मे यदि बनना बंद हो जाय तो अपने भितर दबाये गुस्से की ज्वालामुखी वाले शोषित पिड़ित फिल्मो में मार धाड़ करने वाले काल्पनिक हिरो की तरह असल जिवन में शोषण अत्याचार करने वालो के साथ मार धाड़ करने लगे और जिधर देखो मार धाड़ खुन खराबा सिर्फ शोषण अत्याचार करने की नही बल्की शोषण अत्याचार करने वालो की भी पिटाई होने की नजारा आम हो जायेगी | और शोषित पिड़ितो का जो भिड़तंत्र शोषण अत्याचार के खिलाफ आक्रोशित और गुस्से में होकर सड़को में उतरती है वह शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादीयों की पिटाई कुटाई करने लगे | जो बिल्कुल मुमकिन है ! क्योंकि शोषण अत्याचार करने वाले लोगो की तादार कम है लेकिन भी बहुसंख्यक शोषित पिड़ित अपने भितर गुस्से की ज्वालामुखी को सिर्फ विरोध प्रदर्शन करके दबाता आ रहा है इसका मतलब ये नही कि वह कमजोर और मंदबुद्धी है | और न ही शोषित पिड़ित मनुवादीयों के बिना जिवन नही जी सकते हैं | बल्कि ज्यादेतर तो मनुवादी ही अपनी रोजमरा जिवन शोषण अत्याचार जिसके साथ करते हैं उन्ही से मदत लेकर जी रहे हैं | जो मदत भी यदि मनुवादी को मिलना बंद हो जाय चाहे राजनीति में हो या फिर मेहनत मजदुरी और नौकर बनकर सेवा करने में हो तो निश्चित रुप से मनुवादी जीते जी वैसे भी तिल तिल करके मरने लगेंगे | जो अभी शोषण अत्याचार करके इस देश के मुलनिवासियों को कमजोर गरिब भुखे लोग समझकर झुठी शान में डुबे रहते हैं | जिस झुठी शान की वजह से मनुवादीयों के भितर जो शोषण अत्याचार करने का खतरनाक नशा मौजुद है उसे भी तो छुड़ाने की कोशिष में लंबा समय बर्बाद हो चुका है  | जो नशा मनुवादियों की सबसे खतरनाक नशा है | जिस नशे को करके ही तो मनुवादी अबतक झुठी शान में डुबकर शोषण अत्याचार शान से करते रहते हैं | जैसे की नशेड़ी लोग नशे में खुदको सबसे अधिक बुद्धी बल वाला समझकर नशे में डुबकर उन्हे भी सताने लगते हैं जिनके पास बिना नशा किये जाकर सर झुकाकर माफी मांगने लगते हैं | मनुवादी भी जिसदिन शोषण अत्याचार नशा करना पुर्ण रुप से छोड़ देगा उसदिन इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासियों से माफी मांगकर अपने किये गए पाप कुकर्मो का प्राश्चित करने की कोशिष करेगा | फिलहाल तो वह भेदभाव शोषण अत्याचार नशे में चुर और झुठी शान में डुबकर अपनी नई पिड़ी को शर्म से चुलूभर पानी में डुब मरने की शर्मनाक इतिहास रचते जा रहा है | जो इतिहास रचने वाला वर्तमान का मनुवादी सौ साल बाद तो सत्ता में नही रहेगा पर उसके द्वारा किये गए पाप कुकर्मो का इतिहास जरुर मौजुद रहेगा |

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