कुछ सदस्य खुब सारा धन की रुप श्रृंगार करके अपनी रोजमरा जिवन को रंगीन करते रहते हैं ,और ज्यादेतर तो रोज पेटभर खाने पिने के लिए भी तरसते रहते हैं

गरिबी भुखमरी से अबतक पुर्ण रुप से अजाद न हो पाने की बजह से कुछ मुठिभर नागरिक तो देश के तमाम संसाधनो का भरपुर इस्तेमाल करके विदेशी भोग विलास में भी अक्सर लिप्त रहते हैं,जिसके चलते विदेशी बैंको में भी गुप्त खाता खुलती रहती है,जिसका कि कई लिस्ट आ भी चुकि है|जबकि दुसरी तरफ ज्यादेतर तो अपनी रोजमरा जिवन की मुल जरुरतो को भी पुरी नही कर पाते हैं!जाहिर है यदि किसी समृद्ध परिवार में सबके पास संतुलित हक अधिकारो का बंटवारा नही होता है तो आपसी तनाव या फिर आपसी बंटवारा की लड़ाई होती ही रहती है,जो परिवार विकाश की प्रक्रिया में भी बाधा डालती है!क्योंकि किसी संयुक्त परिवार में भी यदि आर्थिक बंटवारा के रुप में कुछ को मोटी रकम बार बार मिलती रहे और बहुतो को मानो अठनी चवनी तो फिर परिवार में जिसे भी बार बार अधिक धन मिलेगा वह अमिरी सेखी मारेगा,और बाकि यदि उसकी तरह अमिरी सेखी मारना भी चाहे मसलन इस देश का चालीस करोड़ बीपीएल में से ही कोई यदि मैं भी सोने की चिड़ियाँ का नागरिक हुँ कहकर अमिरी सुख संसाधन लेना चाहे तो भी बिना खुद धन इकठा किए बगैर सिर्फ भेदभाव बजट बंटवारा धन से कभी भी अमिर नही बन पाऐगा!क्योंकि गोरो से मिली अजादी के बाद भी इस देश परिवार में अबतक भारी आर्थिक भेदभाव होना बंद नही हुआ है!जैसे की गोरो के समय जब देश गुलाम था तो भी एक तरफ तो भारी अबादी गरिबी भुखमरी और कुपोषन का शिकार होने के साथ साथ बाढ़ आकाल और सुखा से मरी जा रही थी और दुसरी तरफ मुठीभर गुलाम करने वाले गोरो की लुट मार मास्टर माईंड के स्वागत में भारी बजट खर्च करके जस्न मनाई जा रही थी!जैसे की इस समय भी एक तरफ तो भारी अबादी के लिए नाम मात्र का बजट बनाकर पिठ पिच्छे कुछ मांसिक विकृत लोग गरिबो को मिलनेवाली सब्सिडी को भी खैरात नही मिलनी चाहिए कहकर अपनी अमिरी की सेखी मारते रहते हैं,जिसमे भी खुद सरकार का ही नेतृत्व करनेवाले एक प्रधानमंत्री का ही खुद कहना है कि गरिब जनता तक जो सहायता पहुँचाई जाती है वह उनतक पहुँचते पहुँचते 85% चोरी हो जाती है!जिसका मतलब साफ है कि चोर लुटेरे उपर से लेकर निचे तक ऐसे मांसिक विकृत लोगो के विचार से मिल रहे खैरात सब्सिडी को भी मुँह मारने के लिए अपनी पहुँच बनाये हुए हैं!जो मिल बांटकर मानो कथित खैरात लुटेरा गैंग बनाकर पिड़ी दर पिड़ी खैरात चोरी को किसी कसाई या बुचड़ खाना की तरह अपना पेशा बनाकर चोरी करते आ रहे हैं!जबकि दुसरी तरफ जो मुठीभर अबादी के लिए देश का बजट का आधा से थोड़ा कम जितनी बड़ी राशि अथवा कई कई लाख करोड़ हर साल सबसे बड़ी राशि खैरात में खर्च की जाती है,क्योंकि फ्री का सरकारी राशि यदि खैरात है तो माफी और छुट भी तो फ्री का बिन हाथ फैलाये मिलनेवाली सरकारी खैरात ही तो है सब्सिडी को खैरात कहने वालो की ही सुझ बुझ से!जिन माफी और छुट के हिस्से से कितनो की खैरात चोरी होती है ये किसी से छुपी नही है!क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि यदि गरिबो को मिलनेवाली सब्सिडी खैरात है तो मुठीभर धन्ना कुबेरो को जो भी धन सहायता या माफी के नाम से हर साल खर्च की जाती है उसे भी तो बिन मांगे मिलनेवाली खैरात ही माना जायेगा!बल्कि सबसे बड़ी खैरात,इतनी बड़ी खैरात की कई कई राज्यो की बजट बन जाय!जिसमे करोड़ो नागरिको को मिलनेवाली सब्सिडी भी शामिल है!जिसे कुछ मांसिक विकृत लोग खैरात मानते हैं|जो सायद अपनी माँ की दुध को भी खैरात ही मानते होंगे!क्योंकि मदर इंडिया द्वारा अपने नागरिक बच्चो को जिन्दा रहने के लिए और अपनी जिवन में सुधार के लिए जो हक अधिकार मिल रही है,उसे यदि खैरात कही जा रही है तो ऐसे लोगो की अपने माँ की दुध और माता पिता दोनो की ही वसियत को क्या माना जायेगा?जो यदि ये कहते हैं की धन्ना कुबेरो को मिलनेवाली सब्सिडी खैरात नही है| क्योंकि वे टैक्स देते हैं तो ऐसे मांसिक विकृत लोगो को क्या ये मालूम नही की देश में सिर्फ एक प्रकार का टैक्स नही है कि ये मान लिया जाय कि सिर्फ धन्ना कुबेर ही अकेले टैक्स देते हैं,बल्कि रोजमरा जिवन में भिखारी भी टैक्स देता है किसी न किसी रुप में ये टैक्स लेनेवाली सरकार को पता है!जिसके द्वारा दिए गए टैक्स की राशि भी हर साल धन्ना कुबेरो को मिलनेवाली छुट और माफी में शामिल रहती है|जिसे जानते हुए भी सरकार यदि धन्ना कुबेरो को हर साल देनेवाली छुट और माफी जितनी राशि एकबार भी यदि एक एक गरिब को दे दे तो मैं पुरी दावे के साथ कह सकता हुँ कि गरिब किसी धन्ना कुबेर से अधिक टैक्स हर साल चुकाएगा!न की कर्ज लेकर उसे बिना चुकाये घी पिने विदेश भाग जायेगा!कुल मिलाकर टैक्स चोरी हो या फिर कथित खैरात की चोरी,इन दोनो को ही चुराने वाला चोर वह पढ़ा लिखा लंगटा चोर है जो गरिबो के घर में चोरी करके पल रहा है और धन्ना कुबेरो का दुम हिलाना आदत बना लिया है!जिसे ही सबसे पहले आत्मनिर्भर होना पड़ेगा अपनी सरकारी और निजि नौकरी भी छोड़कर कुछ ऐसा काम धंधा करके जिसमे उसे टैक्स की चोरी और कथित खैरात की चोरी करने का मौका ही न मिले!क्योंकि सरकारी नौकरी करते समय सरकारी पद उसे कथित खैरात की चोरी करने का मौका देती है,और टैक्स की चोरी करने के लिए भी निजि तौर पर स्थापित गलत तरिके से कमाई के विभिन्न निजि रास्तो पर चलकर टैक्स की चोरी करने का मौका पैदा करके देती है!जिस तरह की मौको का सामना करके सबसे पहले उसे चोरी की लत को छोड़कर खुदको इस बात के लिए मजबुत करना होगा कि बिना कथित खैरात की चोरी और बिना टैक्स की चोरी किए ही सिर्फ अपनी श्रमधन की कमाई या हक अधिकार से मिली राशि मात्र से ही रोजमरा जिवन की जरुरत को जितनी बड़ी चादर उतनी बड़ी पाँव पसारकर पुरा करना होगा!न कि लालच या अति भोग विलाश करने की लत लगाकर उसकी पुर्ती करने के लिए जैसे कोई बेवड़ा अपनी नशा की पुर्ती करने के लिए उसके साथ साथ चोरी और अपनो के साथ भी अक्सर छिना झपटी करने की भी आदत डाल लेता है,उसी प्रकार ही अति भोग विलास करने वालो की भी बुद्धी जब भ्रष्ट हो जाती है और वे अच्छी खासी सरकारी कमाई या फिर निजि कमाई करते हुए भी अलग से अति भोग विलाश की पुर्ती के लिए टैक्स की चोरी और सब्सिडी अथवा कथित खैरात की चोरी करते रहते हैं तो उससे उनके अपनो को भी खासकर उनकी नई पिड़ि को भी इतिहास में भारी बदनामी का खतरा बना रहता है!जिनको सबसे पहले ये समझना होगा कि बड़े बड़े आविष्कारक और महात्मा समेत तमाम प्रमुख क्षेत्रो में सबसे बड़ी बड़ी उपलब्धि पाने वाले लोगो में कम पढ़ा लिखा और गरिबी जिवन भी जिकर ऐसा इतिहास रचकर गये हैं कि उनके सामने कई बड़ी बड़ी डिग्री और पैसे वालो की नई पिड़ी भी ज्यादेतर तो उनके जैसा इतिहास रचने की बस सपने ही देखते रहते है सबकुछ होते हुए भी| इसलिये उन्हे अपनी नई पिड़ी के उज्वल भविष्य के लिये बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने की जरुरत मेरे ख्याल से किसी के मन में कम पढ़ा लिखा और कम पैसे वाला कमजोर और मंद बुद्धीवाला होता है सोचकर भी भारी भुल नही होनी चाहिए|ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ खास हुनर इंसानो को मानो उनके जन्म के समय से ही ऐसी छिपाकर प्राकृतिक द्वारा मिली हुई रहती है कि उसे यदि कोई चाहे भी तो जबतक उसका संपुर्ण रुप प्रकट नही हो जाता इतिहास रचकर,तबतक उसके उस खास गुण की जानकारी के बारे में जानना चाहे भी तो वह नही जान सकता | क्योंकि उसपर किसी की कोई खास ध्यान नही देकर बाकि आम लोगो की ही तरह उसकी भी जिवन छोटी छोटी रोजमरा जरुरत की चीजो के लिये कड़ी संघर्ष कर रही होती है|जिसे देखकर कोई सायद ही ये विश्वास करने को तैयार होगा कि वह गरिब या कम पढ़ा लिखा व्यक्ती इतिहास रचेगा,जबतक की वह अपनी खास गुण को प्रयोगिक रुप से प्रकट नही कर देता|उसके बाद तो उसे न जानने वाले भी मानो ए तो मेरा लंगोटिया यार है,रिस्तेदार है,इसे मैं जानता हुँ वगैरा कहकर जबरजस्ती रिस्ता बनाने लगते हैं | जो इससे पहले तक उसके कई सचमुच का लंगोटिया यार और रिस्तेदार समेत बाकि खास करिबी भी उससे कई मामलो में पिच्छा छुड़ाते रहते हैं ये कहकर कि उसका दिमाक खराब हो गया है उल्टा सिधा सोचता और करता रहता है,वगैरा वगैरा|जिसके चलते ही कई आविष्कारक भी अपने पुराने रुपो में सजे धजे नही दिखते हैं और न ही मिल जुलकर आविष्कार करते दिखते हैं,क्योंकि तब उनका साथ देनेवाला सायद ही विरले लोग मिलते हैं|जिसके चलते मानो वह छिपते छुपाते अपनी छोटी मोटी रोजमरा की मुल जरुरतो की अभाव में भी खाली पेट या खाली जेब सिर्फ अपनी खास छिपी हुई हुनर के खास दम पर दिन रात ऐतिहासिक खोज में लगे रहते हैं|जिसके बारे में चाहे तो कोई भी इतिहास पलटकर महात्मा और कई गरिब और कम पढ़ा लिखा आविष्कारको समेत तमाम प्रमुख क्षेत्रो में जो लोग भी गरिबी और कम डिग्री में भी सबसे बड़ी बड़ी उपलब्धी पायी है उसके बारे में विस्तार पुर्वक जानकर पता लगाया जा सकता है|हलांकि मुझे अफसोस लगता है कि ज्यादेतर लोग इस तरह की संघर्ष करके गरिबी से मुक्ती पाने के बाद गरिबो के सुख दुःख में उनके घरो में जाकर उनके साथ खाना पीना आना जाना भुल जाते हैं, जिसे वे इससे पहले हर पल वे खुद भी प्रयोगिक रुप से जी रहे होते हैं|जिसके कारन अमिर लोग तो किसी गरिब के अमिर बनने पर उससे खुब लाभ लेते हैं पर गरिबो को सायद उन गरिब से अमिर बने खास सच्चे अमिरो से कम लाभ ही मिल पाती है|इसलिये भी सायद किसी गरिब या कम पढ़ा लिखा व्यक्ती के महान आविष्कारक या धन्ना वगैरा बनने से भी आजतक गरिबी भुखमरी से संघर्ष करना जारी है| फिलहाल इतना ही,आगे फिर अपनी विचार और ज्ञान बांटने जल्द नई पोस्ट लेकर आउँगा,तबतक के लिये धन्यवाद!

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