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शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

India भारत बंद पर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगाना गलत था

India भारत बंद पर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगाना गलत था

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DNA के आधार पर NRC हो इसकी मांग पर भारत बंद में धर्म के नाम से आपस में लड़ाने और बांटने वाले लोग भी मौजुद थे | जिनके बारे में पता करनी चाहिए कि कहीं वे भारत बंद का समर्थक नकाब पहनकर इस देश के मुलनिवासियों से हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा मनुवादियो से सुपारी लेकर तो नही लगवा रहे थे | क्योंकि उनके द्वारा हिन्दू धर्म के प्रति जो गंदी भावना देखा सुना उसके बारे में मंथन करके यही कह सकता हूँ कि ऐसे नारा दिलवाने वाले लोग यहूदि डीएनए के मनुवादियों का ही भेजे गये वे गुप्त एजेंट हो सकते हैं , जिन्हे दिल्ली चुनाव को देखते हुए धर्म के नाम से वोट बटोरवाने के लिये सुपारी दिया गया है | ताकि धर्म के नाम से नफरत फैलवाकर आपस में फुट डालकर ज्यादे से ज्यादे वोट बटोरा जा सके | क्योंकि दिल्ली में भी हिन्दू वोट सबसे अधिक है | क्योंकि ऐसे नारा लगवाने वाले दुसरो के धर्म के प्रति ऐसी हिन भावना और नफरत पैदा इसलिए नही करवाते हैं , क्योंकि उन्हे दुसरे धर्मो से कम वोट मिलेंगे | और अगर वाकई में ऐसा नारा वोट के लिये नही लगवाया जा रहा था तो निश्चित तौर पर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगवाने वाला हो सकता है खुदको यहूदि डीएनए का मनुवादियो की तरह ही उस विदेशी डीएनए का मानता है , जो डीएनए हिन्दू डीएनए नही है | इसलिए उसको हिन्दू धर्म और हिन्दूओ से नफरत है | जो नफरत वे दुसरे धर्म के प्रति नही दिखला सकता , चाहे क्यों न इस देश का टुकड़ा टुकड़ा करके उन धर्मो के नाम से अलग से कई राष्ट्र बन जाय | जबकि आजतक एक भी हिन्दू राष्ट्र बना नही है , और इतनी नफरत मानो जिसदिन यह देश हिन्दू राष्ट् बन गया उसदिन इस देश में बाकि धर्मो के लोग रहेंगे ही नही ! जबकि चाहे अरब हो या यूरोप धर्म के नाम से दर्जनो राष्ट्र बने हुए हैं , तो क्या वहाँ दुसरे धर्मो के लोग नही रहते हैं ? बिना वजह मानो भागो भेड़िया आया भेड़िया आया चिलाकर भ्रम फैलाया जा रहा है कि हिन्दू राष्ट्र बन गया तो मनुस्मृति लागू हो जायेगा और मनुवादि अपने परिवार के पढ़े लिखे लोगो को छोड़कर सबके कान में गर्म लोहा पीघलाकर डालना सुरु कर देंगे और और जीभ काटना अँगुठा काटना सुरु कर देंगे | बल्कि सबका धन लुटना भी सुरु कर देंगे क्योंकि मनुस्मृति अनुसार उच्च जाति छोड़कर बाकि सभी लोगो को धन रखना मना है | जबकि अभी भी तो ब्रह्मणो का राज चल रहा है | कया फिर मुस्लिम ईसाई बौद्ध का राज चल रहा है ? हाँ हिन्दू धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो के दर्जनो राष्ट्र पुरी दुनियाँ में जरुर बने हैं | बल्कि इस देश का भी धर्म के नाम से कई बंटवारा होकर बौद्ध राष्ट्र मुस्लिम राष्ट्र बने हैं | पर भारत पाकिस्तान बंटवारा करके हिन्दू परिवार में जन्मे अंबेडकर के डीएनए के दरसल मुल हिन्दूओ का राज आया क्या ? जो हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगवाया जा रहा है ! जिसका राज आया है वह ब्रह्मण तो यूरेशिया से आया यहूदि डीएनए का विदेशी मुल का शासक है | न कि मुल हिन्दू है कि हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगाने से उसके मुल भावनाओं पर भारी प्रभाव पड़ने वाला है | बल्कि बहुसंख्यक 85 मुलनिवासी मुल हिन्दू है | जो चाहे जिस धर्म को अपनाये हो उनके अंदर जो हिन्दू पुर्वजो का डीएनए है उसमे परिवर्तन नही होनेवाला है |  जैसे कि मनुवादियो के भितर जो यहूदि डीएनए है , उसमे भी परिवर्तन नही होनेवाला है | चाहे जितनी बार उसे हिन्दू मानकर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगवाओ  | मुल हिन्दू इस देश के मुलनिवासी हैं , जो होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार बाकि धर्मो के साथ भी मिल जुलकर मनाते हैं | जिनकी भावनाओं को काफी ठेस पहुँचती है जब हिन्दूवाद मुर्दाबाद कहकर हिन्दू धर्म के प्रति हिन भावना और नफरत फैलाई जाती है | जिससे मनुवादियो को ही लाभ होता है | क्योंकि ऐसा नारा लगाकर बहुसंख्यक हिन्दूओ को नाराज करके हिन्दू जब एकजुट होकर वोट करता है तो निश्चित तौर पर भाजपा और कांग्रेस भारी बहुमत से जीतकर दरसल उन नासमझो को तमाचा मारती है जो मनुवादियों की साजिश में मनुवादियों की मदत करते हैं हिन्दू धर्म की बुराई करके | जिसके चलते खुदको RSS का सबसे बड़ा विरोधी बतलाने वाले वामन मेश्राम जैसे लोगो के बारे में Rss के ब्रह्मणो के मुँह से खुशी के फुल झड़ते हुए यह सुना जाता है कि वामन मेश्राम दरसल भाजपा का मदत कर रहा है | जो स्वभाविक है ! क्योंकि वामन मेश्राम के ही नेतृत्व में डीएनए के आधार पर NRC हो की मांग पर भारत बंद तो बुलाया गया था | पर भारत बंद में कुछ लोग हिन्दूवाद मुर्दाबाद नारा दिलवाकर मनुवादियों को लाभ पहुँचाने की रास्ते ख रहे थे | जिसके बारे में वामन मेश्राम को सायद पता भी न हो | वो तो शुक्र है कि बहुसंख्यक अबादी हिन्दू मुस्लिम और बाकि भी धर्मो के के बिच भाईचारा पैदा करके एकजुट होकर आंदोलन कर रहे हैं | नही तो ये मुठीभर भिड़ लगाकर हिन्दूवाद मुर्दाबाद लगाने वाले तो मनुवादी सत्ता का पेड़ हिलना तो दुर पत्ता भी नही हिला नही पायेंगे | क्योंकि धर्म के नाम से जब वोट पड़ने लगती है तो ऐसे नारा लगवाने वालो की नफरत के जवाब में ही सबसे अधिक वोट धर्म के नाम से पड़ती है | इसलिए यदि मनुवाद के खिलाफ आंदोलन न होकर अगर राजनिती के लिए भी आंदोलन करने की सोच से हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा दिलवाया जा रहा था तो राजनिती लाभ के लिए भी हिन्दूवाद मुर्दाबाद नारा लगवाने वालो को तो मैं मनुवादियों को लाभ पहुँचाने वाला हि कहूँगा भले वे अनजाने में लाभ पहुँचवा रहे हो | जो वाकई में लाभ पहुँचा भी रहे हैं | क्योंकि यदि मेरी बातो पर उनको यकिन न आ रहा हो तो जिन देशो में हिन्दू अबादी अल्पसंख्यक है , वहाँ पर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा देनेवाले मुस्लिमवाद मुर्दाबाद,ईसाईवाद मुर्दाबाद ,बौद्धवाद मुर्दाबाद,जैनवाद मुर्दाबाद,यहूदिवाद मुर्दाबाद का नारा दिलवाकर दिखलाये पता चल जायेगा उन धर्मो के प्रति हिन भावना और नफरत फैलाकर उन धर्मो का नेतृत्व कर रहे लोगो को लाभ होगा कि नारा लगाने वाले को लाभ होगा | और याद रखना यहूदि डीएनए का मनुवादि हिन्दू धर्म की ठिकेदारी चूँकि कर रहा है इसलिए हिन्दू धर्म के प्रति जितनी नफरत फैलाओगे उतना ही ज्यादा लाभ मनुवादियो को ही होगा | इसलिए तो मैं बार बार कह रहा हूँ कि जब मनुवादि यूरेशिया से आया है और यहूदि डीएनए का है तो फिर क्यों उसे हिन्दू मानकर हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगवाया जा रहा है | उसे हिन्दू मानना बंद करो क्योंकि होली दिवाली मकर संक्रांति को वह यूरेशिया से नही लाया है | बल्कि हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगाने के बजाय मनुवाद मुर्दाबाद का नारा लगाया जाता ! दरसल ऐसे नारा लगवाने वाले नासमझ लोग उस हिन्दूवाद को क्या समझेंगे जो बच्चा नारी योनी से नही पुरुष मँह से भी हो सकता है ऐसी अप्राकृति बातो को मानने वाले मनुवाद को हिन्दूवाद समझते हैं | क्योंकि उनको अबतक पता ही नही कि मुल हिन्दूवाद प्राकृतिवाद है | जो मुल रुप से प्राकृति भगवान की पुजा करता है | जिसे नुकसान पहुँचाना प्राकृति को भी नाराज करना है | प्राकृतिवाद और मनुवाद को बराबर समझने वाले लोगो को दरसल मनुवाद के बारे सायद पता ही नही है कि जिसदिन मनुवादीयों का हिन्दू खाल उतर जायेगा उसदिन हिन्दू धर्म की ठिकेदारी जाने के बाद हिन्दूवाद को बदनाम करने वाला मनुवादी किस धर्म की ठिकेदारी करेगा | क्योंकि यहूदि धर्म में घर वापसी उसकी तभी हो सकेगी जब वह मनुस्मृति सोच को पुरी तरह से मल मुत्र की तरह त्याग देगा | क्योंकि सिर्फ हिन्दू धर्म ही फिलहाल एक मात्र धर्म पुरे विश्व में है जो मनुवादियो को इतने हजारो सालो से सुधरने का इंतजार कर सकता है | बाकि धर्मो में तो मनुवादी इतना ज्यादे भेदभाव शोषण अत्याचार करके हजारो साल टिकना तो दुर एक पिड़ी तक भी नही टिक पायेगा | जिसके बावजुद भी मनुवादीयों को ताड़ने के बजाय उल्टे हिन्दूवाद मुर्दाबाद का नारा लगवाकर मुल रुप से उन वीर मुल हिन्दूओं को क्यों ताड़ा जाता है जो हजारो सालो से मैला ढोकर भी मनुवादीयों को सुधारने में लगे हुए हैं | इतना ही नही एक धर्म प्रचारक के मुँह से हिन्दूओ के बारे में बुराई करते सुन देख रहा था कि वह sc,st,obc हिन्दूओं को " कुत्ते का दुम हैं कभी नही सुधरने वाले हैं , जिन्हे ब्रह्मण लोग इसी तरह पिटाई करो , जिसदिन हिन्दू धर्म को छोड़ेंगे फूल माला पहनाकर ब्रह्मणो की आरती उतारेंगे " इस तरह का भाषण प्रवचन करने वाले छुवा छुत करने वाले ब्रह्मणो को सुधरा हुआ और छुवाछुत का शिकार होनेवाले शोषित पिड़ितो को कभी नही सुधरेंगे कहकर क्या अपने धर्म को बदनाम नही कर रहे हैं ? ये तो सिर्फ झांकी है , इस तरह की ताड़नहार भाषण प्रवचन करने वालो के बारे में ऑडियो विडियो और लेख गुगल सर्च मारने पर भरे पड़े हैं , जिन्होने ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी को अपना आदर्श मानकर ताड़ने वाले मनुवादीयों को ताड़ने के बजाय हजारो सालो से शारिरिक और मांसिक पीड़ा देकर ताड़े जा रहे सहनशील वीर मूल हिन्दूओं को यहूदि डीएनए के मनुवादियों की तरह ताड़ते आ रहे हैं | जिसे देख सुन और पढ़कर पता किया जा सकता है कि कौन किस धर्म को बदनाम कर रहा है ! हो सकता है मैं भी उनको बारे में इस तरह की कड़वी ज्ञान बांटकर उनकी नजरो में अपने हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहा हूँ | पर मुझे पता है कि धर्म की बदनामी कौन लोग सबसे अधिक कर रहे हैं | क्योंकि ध्यान रहे यहूदि डीएनए का मनुवादि मुल हिन्दू नही है !
और हाँ मुल हिन्दू मेरा इस ज्ञान को कम से कम दस लोगो तक जरुर बांटे , ताकि मुल हिन्दू किसे कहा जाता है , और हिन्दू धर्म में भगवान पुजा क्या होता है , इसकी सत्य जानकारी सभी उन हिन्दूओं तक फैल सके जिन्हे अबतक मनुवादियो ने यह बतलाया है कि हिन्दू का मतलब जो मनुवादियो के पुर्वज देवताओ की पुजा करता है , उसे कहा जाता है | क्योंकि कई उच्च डिग्री प्राप्त किये भष्मासुरो की कमी नही है जो सायद झुठ बोलते हुए भष्मासुर की तरह नाच नाचकर अपनी ज्ञान वरदान का गलत उपयोग करते हुए मरते दम तक सायद यही झुठ बांटने वाले हैं कि यहूदि डीएनए का मनुवादि हिन्दू है | और भगवान पुजा मनुवादियो के पुर्वज देवताओ की पुजा है | जो दिमाक से अँधे और बहरे दोनो हैं | जिन्हे अबतक इस कृषि प्रधान देश में मौजुद हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार और अन्न जल धरती सूर्य वगैरा प्राकृति पुजा दिखाई और सुनाई नही दे रही है | बल्कि इस ज्ञान को लेकर कम से कम दस लोगो तक न बांटने वालो को भी मैं दिमाक से अँधे और बहरे मानूँगा |

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा के नाम से ज्ञान की पुजा क्यों किया जाता है ?

हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा के नाम से ज्ञान की पुजा क्यों किया जाता है ?
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चूँकि वेद पुराण काल में लिखाई पढ़ाई की खोज नही हुई थी | इसलिए वेद पुराण ज्ञान अथवा आवाज ध्वनि स्वर  से और दिखाकर ज्ञान बांटी जाती थी | जो सुनाई और दिखाई देने की गुण और ताकत भी साक्षात प्राकृति में मौजुद है | इसलिए सरस्वति की पुजा भी हिन्दू पुजा में शामिल है | जिस स्वर की पुजा ज्ञान का प्रतिक के रुप में इसलिए की जाती है , क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि जब पढ़ाई लिखाई की खोज इंसानो ने नही किया था , उस समय स्वर अथवा सिर्फ वेद या पुराण अथवा दिखाकर ज्ञान बांटी जाती थी | जिस वेद पुराण से आज भी बोलकर दिखाकर ज्ञान बांटी जाती है | पर साथ साथ अब लिखाई पढ़ाई और अन्य भी कई माध्यम से ज्ञान बांटी जाती है | और जबतक वेद अथवा स्वर और पुराण अथवा जो दिखलाई देता है , साक्षात प्राकृति में मौजुद रहेगी तबतक वेद पुराण ज्ञान मौजुद रहेगी | जिसके माध्यम से बोल और दिखलाकर ज्ञान बांटा जाता रहेगा | जो सुनाई और दिखलाई देनेवाला कृपा यदि प्राकृति भगवान की मौजुद न होती तो न किसी धार्मिक पुस्तको की रचना होती , और न ही किसी को मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा दिखलाई देता | और न ही कोई भाषण प्रवचन दे पाता | न गा पाता और न सुन बोल पाता और न ही अपना अभिनय दिखा पाता | तब इंसानो के साथ साथ बाकि भी जिव निर्जिव की मौजुदगी धरती में कैसी होती कल्पना से भी परे है | जो दिखाई और सुनाई देनेवाली प्रमाणित कृपा साक्षात प्राकृति की है | जिसे वेद अथवा स्वर और पुराण अथवा जो दिखाई दे चाहे वह पुराना और नया ही क्यों न हो ! पर वेद पुराणो में मनुवादियों के द्वारा ढोंग पाखंड का संक्रमण की वजह से हिन्दू धर्म की मान्यताओ को चूँकि अप्राकृति तरिके से बतलाया जाता आ रहा है , इसलिए हिन्दू धर्म के बारे में ऐसी बहुत सारी भ्रम फैली हुई है , जिसे सत्य मानकर असली सत्य को मानो छिपाई गई है | जिसका बाहर आना जैसे जैसे सुरु हुआ , वैसे वैसे मनुवादियों के द्वारा बांटा गया अप्राकृति झुठ में छिपी सत्य सामने आकर झुठ का भष्म होना सुरु हो गया है | जैसे कि मनुस्मृति की झुठ अथवा अप्राकृति मान्यताओ को इसलिए भष्म किया गया क्योंकि उसमे सेवा सुरक्षा के नाम से शोषण अत्याचार का नियम कानून को उत्तम सत्य मार्ग बतलाने के साथ साथ यह अप्राकृति झुठ भी बांटा गया है कि इंसान का जन्म नारी योनी से नही बल्कि पुरुष के मुँह छाती जँघा और चरणो से जन्म से ही उच्च निच बनाकर हुआ है | जिस तरह की अप्राकृति ढोंग पाखंड को हिन्दू धर्म नही मानता | और चूँकि अबतक भी मनुवादि हिन्दू धर्म की ठिकेदारी लिये हुए है , इसलिए अपनी मनुस्मृति सोच से वेद पुराण की ज्ञान अप्राकृति मिलावट करके जलदेव वायुदेव सूर्यदेव वगैरा बतलाकर बांटा जा रहा है | क्योंकि हिन्दू प्राकृति पुजा में उसे अपने पुर्वज देवो की पुजा की मिलावट करके उनकी भी पुजा करवाना है | जिसके चलते ही तो वह देव और दानव में देव की पुजा प्राकृति पुजा में मिलावट करके करवाता आ रहा है | पर चूँकि वह अपनी कल्पनाओ मं मानो झुठ की मिलावट सत्य में कर भी देता है तो भी चूँकि सत्य सत्य होता है , इसलिए प्राकृति सूर्य हवा पानी धरती को मनुवादियों द्वारा सूर्यदेव वायुदेव जलदेव वगैरा कहकर पुजा करने से मनुवादियो की पुर्वजो की पुजा नही बल्कि प्राकृति की ही पुजा होगी | जैसे की मनुवादि यदि सुबह शाम सूर्यदानव कहकर सूर्य की पुजा करेगा तो सूर्य की पुजा दानव पुजा नही हो जायेगा | सूर्य आखिर सूर्य है जो साक्षात प्राकृति का प्रतीक है | जो सभी इंसानो के जिवन के लिये है न की सिर्फ देव या दानव के लिये है | 

फिलहाल एक सूर्य की जानकारी इंसानो को जिस तरह मौजुद है उसी तरह सभी धर्मो में एक ही भगवान मौजुद है |


जिसकी कृपा सभी धर्मो के भक्तो में है | लेकिन फिर भी मानो इस धर्म में भगवान नही है कहकर दुसरे धर्मो को क्यों अपना लिया जाता है ? जबकि धर्म परिवर्तन के बाद भगवान का परिवर्तन नही होता है | जबकि चाहे जितनी बार धर्म परिवर्तन करो भगवान की वही मान्यता स्थिर कायम रहता है कि सबकी जिवन मरन किसी एक सत्य से जुड़ा हुआ है | जिसकी पुजा अलग अलग नामो से अलग अलग धर्मो में किया जाता है | जिस सत्य से दुनियाँ कायम है | लेकिन भी बहुत सारे भक्तो द्वारा अपना धर्म परिवर्तन इसलिए कर लिया जाता है , क्योंकि एक भगवान की पुजा करने के लिए इंसानो द्वारा भगवान को लेकर अलग अलग आस्था और विश्वास मौजुद है | जिसकी वजह से इंसानो ने अपनी अलग अलग आस्था और विश्वास से अलग अलग धर्म बनाकर जिससे दुनियाँ कायम है , जिसे अलग अलग नाम दिया गया है | हिन्दू धर्म में भगवान नाम दिया गया है | जिस भगवान की पुजा वह प्राकृति में आस्था और विश्वाश करके उसकी पुजा करता है | जैसे की बौद्ध धर्म में बुद्ध की मूर्ति और तस्वीर के सामने अपना सर झुकाकर उसकी आरती उतारते हुए भगवान बुद्ध कहकर पुजा किया जाता है | क्योंकि बौद्धो का मानना है कि बुद्ध ने सत्य बुद्धी अथवा सत्य की प्राप्ति पीपल पेड़ के निचे कर लिया था | जिस बुद्ध की बड़ी बड़ी प्रचिन मूर्ति हजारो साल पुरानी मिली है | हलांकि हिन्दू धर्म में मौजुद कई लोग उस मूर्ति को उस शिव की मूर्ति का कॉपी मानते हैं , जिसकी पुजा हिन्दू धर्म में सत्य का प्रतीक के रुप में किया जाता है | क्योंकि हिन्दू धर्म यह भी मानता है कि सत्य पर दुनियाँ टिकी हुई है | क्योंकि सत्य साक्षात प्रमाणित मौजुद होता है | जैसे की प्राकृति साक्षात प्रमाणित  मौजुद है | जिससे पुरी दुनियाँ प्रमाणित कायम है | और जैसा कि हमे पता है कि सत्य एक ही है , न कि अलग अलग है | चाहे उस एक सत्य को प्राप्त जिस धर्म के भक्त ने कर लिया है | जिस सत्य के बारे में हिन्दू वेद पुराणो में ज्ञान बांटते हुए यह बतलाया गया है कि एकबार भष्मासुर ने तपस्या करके सत्य से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह जिसपर अपना हाथ धरेगा वह भष्म हो जायेगा | जो वरदान भष्मासुर को मानो तपष्या अथवा वर्तमान अपडेट भाषा में पढ़ाई करके झुठ को भष्म करने की डिग्री हासिल हुआ था | जिस डिग्री का गलत इस्तेमाल करके भष्मासुर सत्य को ही भष्म करके झुठ कायम करने की गंदी सोच से खुदको ही भोष्म कर लिया था | क्योंकि जो डिग्री उसे कठिन तप करके मिला था वरदान के रुप में उसका गलत इस्तेमाल करते करते एकदिन काम वासना में खुशी से नाचते नाचते अपने आप में भी गलत इस्तेमाल करके प्राप्त डिग्री से खुदको ही भष्म कर लिया | हलांकि खुदको भष्म करने से पहले डिग्री का गलत इस्तेमाल करके बहुत सारे निर्दोशो को भी भष्म किया था | जिस तरह का ज्ञान प्रतीक के रुप में अनेको उदाहरन हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद है | और वेद अथवा स्वर भी साक्षात प्राकृति का ही प्रतीक है | जो स्वर सबके लिये है न कि चुनिंदा लोगो के लिए है | क्योंकि स्वर की आवश्यकता बुद्धी ज्ञान के लिए किसे जरुरी नही है ?बल्कि अब तो लिखाई पढ़ाई से भी ज्ञान ली और बांटी जाती है | जिस ज्ञान की पुजा सरस्वती पुजा है | जिसे स्वर ज्ञान की पुजा इसलिए भी कहा जाता है , क्योंकि लिखाई पढ़ाई से पहले वेद अथवा स्वर से ज्ञान बांटा जाता था | जिसमे मनुवादियो द्वारा भेदभाव करते हुए उच्च निच भेदभाव करते हुए मुलनिवासियों को निच  घोषित करके वेद ज्ञान मना किया गया था | जैसे कि आज लिखाई पढ़ाई मना रहता | वेद ज्ञान गलती से भी यदि निच घोषित किया गया मुलनिवासी ले लेता तो उसके कान में गर्म लोहा पीघलाकर डाल दिया जाता था | और अगर गलती से वेद ज्ञान लेकर बांटते हुए पकड़ा जाता तो उसकी जीभ काट दी जाती थी | जिस तरह के नियम कानून की रचना करने वाले जन्म से उच्च विद्वान पंडित और जन्म से उच्च वीर क्षत्रिय रक्षक कहलाने के काबिल मनुवादी सिर्फ खुदको खुद ही मान सकता है | बल्कि मनुवादियों ने यह भी नियम कानून बनाया कि जिसे निच घोषित किया गया है मनुस्मृति में उसे धन रखने का अधिकार नही है | जिसके पास धन यदि है भी तो उसे जब्त कर लिया जाय | जिससे क्या लगता है कि मनुवादी शासन स्थापित होने से पहले जन्म से धन्ना वैश्य भी क्या कहला सकता था ? क्योंकि हुआ भी होगा तो निश्चित तौर पर उसके पास जो धन होगा उसमे उन लोगो का ही धन होगा जिन्हे निच घोषित करके उनके हक अधिकारो को लुटा गया है | जो हक अधिकार वापस मिलने पर इस देश के सभी मुलनिवासी गरिबी भुखमरी से छुटकारा तो पा ही लेगा पर यदि कथित खुदको जन्म से उच्च जाति कहने वाले परिवारो में भी यदि एक प्रतिशत भी अबादी अपनो द्वारा अनदेखा करके अबतक गरिबी जिवन जी रहे होंगे तो उनकी भी गरिबी भुखमरी दुर होगी | क्योंकि हिन्दू जमिन से जुड़े कृषि प्रधान जिवनशैली पर सुख शांती और समृद्धी कायम होगा इसपर प्रमुखता देता है | जिस कृषी प्रधान जिवनशैली में यदि कोई भुखा प्यासा है तो अन्न जल का भंडार रखने वाला शासक सबकी भुख प्यास मिटाता है | न कि खुद तो बिसलेरी एक्वा पिते हुए बासमती खाये और प्रजा भुखा प्यासा रहे | बल्कि मुलनिवासी बलि सम्राट ने तो बामन अथवा गरिब ब्रह्मण को दान देकर अपनी सत्ता तक गंवाकर खुदको देवो द्वारा कैद कर लिया था | क्योंकि देवो ने अपनी जिवन गुजारा करने की याचना जिस बलि सम्राट से करके दान मांगा था , उसी महादानी सम्राट को जेल में कैद करके उसकी राजपाट पर कब्जा कर लिया था | इसलिए पुरानी छल कपट घटना से सबक लेते हुए मुलनिवासी भले अब दान में इतना बड़ा दान तो कभी नही देगा पर मुलनिवासी सत्ता वापस आने पर सबकी गरिबी भुखमरी दुर जरुर करेगा | बाकि इमानदारी से धन्ना कुबेर विद्वान और रक्षक बनने की हुनर मौजुद जिन मनुवादियों में है वे शिक्षक भी बनेगे , रक्षक भी बनेंगे और धन्ना भी बनेंगे | पर हाँ वैसा भेदभाव और छल कपट से नही बनेंगे जैसे कि एकलव्य के साथ किया गया था | 

छुवाछुत मूल हिन्दू करता है कि यहूदी DNA का मनुवादी करता है ?

छुवाछुत मूल हिन्दू करता है कि यहूदी DNA का मनुवादी करता है ?
khoj123,sc,st,obc छुवाछुत


मुल हिन्दू छुवा छुत नही करता | जैसे कि हिन्दू अंबेडकर ने छुवा छुत कभी नही किया  | और न ही वेद पुराण की रचना करने वाले हमारे पुर्वजो ने छुवा छुत करने को कहा है | लेकिन भी हिन्दू धर्म के प्रति हिन भावना उत्पन्न करने के लिए हिन्दू धर्म में छुवा छुत होता है भाषण प्रवचन ऐसा दिया जाता है जैसे सभी हिन्दू छुवा छुत करते हैं | जिस तरह की भ्रम फैलाने वालो को इतनी तो बुद्धी जरुर होगी कि अंबेडकर ने हिन्दू रहते देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करके अजाद भारत का संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना छुवा छुत करते हुए नही किया है | बल्कि मनुवादियो ने छुवा छुत करते हुए हिन्दू वेद पुराणो में छुवा छुत ढोंग पाखंड की मिलावट किया है | भले अंबेडकर ने यह कहा है कि वे हिन्दू जन्म लिये हैं , पर हिन्दू रहकर मरना नही चाहते हैं | जिस तरह कि बाते भी वे नही करते यदि हिन्दू धर्म में मनुवादियो का संक्रमण न होता | जिन मनुवादियो द्वारा हिन्दू धर्म में संक्रमण की वजह से अंबेडकर ने हिन्दूओ को बिमार तक कहा | तो क्या वे खुदको अथवा हिन्दू परिवार में जन्म लेकर देश विदेश में करिब 36 डिग्री लेकर करीब 9 जानकर अजाद भारत का संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना करने वाले  अंबेडकर को बिमार कह रहे थे ? बिल्कुल नही बल्कि वे मुल रुप से उन मनुवादियो को बिमार कह रहे थे , जिन्होने हिन्दू धर्म का नकाब लगाकर हिन्दू वेद पुराणो को संक्रमित किया है | जाहिर है मनुवादियो द्वारा छुवा छुत ढोंग पाखंड की मिलावट करके हिन्दू धर्म को बदनाम किया गया है | हलांकि बदनाम करने वाले बाकि धर्मो में भी मौजुद हैं | इसलिए यह कभी नही कहा जा सकता कि सिर्फ हिन्दू धर्म में छुवा छुत ढोंग पाखंड जैसी गंदी सोच का संक्रमण मौजुद है | जिसके बारे में अंबेडकर ने भी जानकारी इकठा जरुर किया होगा कि सभी धर्मो में धर्म को बदनाम करने वाले ऐसे ऐसे गंदी सोच रखने वाले मौजुद हैं , जिन्होने किसी न किसी धर्म से जुड़कर बड़े बड़े अपराध को अंजाम दिया हैं | जैसे कि यहूदि धर्म से जुड़कर यीशु को सुली पर चड़ाने वाले , ईसाई धर्म से जुड़कर कई देशो को गुलाम करने वाले , उसी तरह मुस्लिम धर्म को भी बदनाम करने वाले मोहम्मद गजनी जैसे खुन खराबा लुटमार कारनामा इतिहास रचने वालो के बारे में जानकारी भरे पड़े हैं | जिस तरह के बड़े बड़े अपराधिक कारनामे रचने वाले लोग किसी न किसी धर्म से जुड़े हुए इतिहास में मिल जायेंगे | जो की जिस धर्म से जुड़े हुए हैं उस धर्म को बदनाम किये हैं | जिस तरह की ऐतिहासिक कारनामे रचने वालो के बारे में अंबेडकर को भी जरुर पता होगा | जिन्होने सभी धर्मो के बारे में विचार करके कभी नही कहा कि बौद्ध छोड़ बाकि धर्मो को समाप्त कर देनी चाहिए ! क्योंकि उन्हे पता था कि बाकि धर्मो की तरह बौद्ध धर्म में भी बदनाम करने वाले लोग मौजुद हैं | जिसकी वजह से बौद्ध धर्म में भी भेदभाव होता है |

बुधवार, 29 जनवरी 2020

धर्म परिवर्तन करने से पहले मुलनिवासी अंबेडकर भी हिन्दू परिवार में ही जन्मे थे

धर्म परिवर्तन करने से पहले मुलनिवासी अंबेडकर भी हिन्दू परिवार में ही जन्मे थे
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धर्म परिवर्तन यात्रा के समय क्यों यह बात बार बार दोहराया जा रहा हैं कि sc,st,obc लोग हिन्दू नही हैं | क्यों यह कहा जा रहा है कि यूरेशिया से आए यहूदि डीएनए के मनुवादी ही मुल हिन्दू हैं | जबकि यह भाषण प्रवचन करते हुए उन्हे यह भी पता जरुर होता होगा कि धर्म परिवर्तन करने से पहले मुलनिवासी अंबेडकर भी हिन्दू परिवार में ही जन्मे थे | जिन्होने हिन्दू रहते हुए ही देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करके अजाद देश का संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना किया है | जिन्होने हिन्दू वेद पुराणो की ज्ञान भी हासिल किया था | जिस तरह की उपलब्धि जब भी कोई मुलनिवासी अपने हिन्दू धर्म में होते हुए हासिल करते हैं , तो धर्म परिवर्तन कराने वाले उनके पुर्वजो का धर्म के बारे में बताने से कतराते हैं | जिस बारे में बताने से इसलिए कतराते हैं , क्योंकि वे अपने धर्म का प्रचार प्रसार करते समय खुदके धर्म को ताकतवर और विद्वान लोगो का धर्म कहकर धर्म परिवर्तन कराने के लिए हिन भावना उत्पन्न कर सके | जिसके लिए इस देश के मुल हिन्दूओं को कमजोर और बुद्धीहीन कहकर तबतक ताड़ते रहा जा सके जबतक कि वे अपना धर्म परिवर्तन न कर लें | जिनके विचार से मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करने के बाद ही यहूदि डीएनए के मनुवादियों से ज्यादा ताकतवर और विद्वान बन पाते हैं | जिनको सायद पता होकर भी यह पता नही कि अंबेडकर और सम्राट अशोक भी हिन्दू रहते मनुवादियो से ज्यादे बुद्धी बल का इतिहास रचा है | तभी तो वे हिन्दू धर्म में मौजूद दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासियों को मनुवादियो से कमजोर और बुद्धीहीन कहकर हिन भावना उत्पन्न करते हैं | जबकि इस तरह की विचार रखने वाले दरसल कौन धर्म अधिक ताकतवर और विद्वान बनायेगा इसके बारे में बिना वजह सोचकर खुद इतने भ्रमित लोग हैं कि उन्हे पता ही नही कि धर्म परिवर्तन करके यदि वाकई में लोग विद्वान और ताकतवर हो जाते फिर तो वे न तो विद्वान बनने के लिए विद्यालय जाते और न ही प्रशिक्षण करके रक्षक बनते ! सिधे धर्म परिवर्तन करके खुदके मन से ताकतवर और विद्वान बन जाते | जैसा कि सायद छुवा छुत करने वाला मनुवादी खुदके मन से जन्म से हि खुदको उच्च विद्वान पंडित और वीर क्षत्रिय घोषित किए हुए रहता हैं | और शोषित पिड़ित कमजोर शब्द का उच्चारण मनुवादीयो के द्वारा शोषण अत्याचार करने की वजह से जो किया जाता है , उन शोषित पिड़ितो को धर्म परिवर्तन कराते ही यह घोषित कर दी जाती कि अब तुम विद्वान और वीर हो गए हो , इसलिए अब मनुवादियो की तरह खुदको सबसे ताकतवर और उच्च विद्वान कह सकते हो | मानो बाकि धर्मो में शोषित पिड़ित मौजुद ही नही हैं | जिस तरह की गलतफेमी की वजह से भी धर्म परिवर्तन कराने वाले यह कहते फिर रहे हैं कि बुद्धी बल का इतिहास रचने वाले विर विद्वान लोग हिन्दू नही थे | वे अपने धर्म के बारे में यह प्रचार प्रसार कर रहे हैं कि बुद्धी बल का इतिहास रचने वाले फलाना डिमका धर्म के थे | जबकि उन्हे यह अच्छी तरह से पता है कि धर्म परिवर्तन करने से डीएनए में भी परिवर्तन नही होता | जिसके चलते बाकि धर्मो को अपनाने वाले इस देश के सभी मुलनिवासी अब भी हिन्दू धर्म में मौजुद Sc,sct,obc डीएनए के ही हैं | इसलिए अंबेडकर और अशोक जैसे ऐतिहासिक लोग हिन्दू नही दलित आदिवासी पिछड़ी थे यह यदि कहना ही है तो इस देश में मौजुद सभी धर्म के मुलनिवासियों को दलित आदिवासी पिछड़ी कहकर यह कहो कि इस देश के मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले किसी भी धर्म के नही होते हैं | सभी सिर्फ और सिर्फ दलित आदिवासी पिछड़ी होते हैं ! क्यों सिर्फ हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी के बारे में यह कहा जा रहा है कि वे हिन्दू नही हैं | क्यों बाकि धर्मो के लोगो के बारे में यह नही कहा जाता कि तुम मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध जैन नही बल्कि दलित आदिवासी पिछड़ी और ब्रह्मण क्षत्रिय या वैश्य हो | धर्म परिवर्तन कराते समय भी तर्क में भारी भेदभाव भाषण प्रवचन क्यों दिया जाता है ? जबकि सबको पता है कि इन सारे धर्मो में मौजुद बहुसंख्यक लोग भी तो दलित आदिवासी पिछड़ी ही हैं | न कि अरब और रोम यूनान से आए हुए लोग हैं | पर धर्म परिवर्तन कराने वाले इस तरह की भेदभाव मुक्त तर्क इसलिए नही दे सकते , क्योंकि यदि ऐसा कहेंगे तो दुसरे धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी को भी सिर्फ दलित आदिवासी पिछड़ी ही बतलाना होगा | और ऐसा बतलाकर धर्म परिवर्तन यात्रा में यह भ्रम नही फैलाया जा सकता कि धर्म परिवर्तन करने के बाद मनुवादियो की गुलामी से अजादी मिल जायेगी | जिसके चलते धर्म परिवर्तन कराने वालो द्वारा हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासियों के बिच दरसल यह हिन भावना उत्पन्न किया जा रहा है कि उनका धर्म खराब है , और बाकि धर्म बेहत्तर है | जिसके लिए बार बार यह कहा जा रहा हैं कि तुम हिन्दू नही हो मुल हिन्दू ढोंगी पाखंडी मनुवादि लोग हैं | जिस तरह की बाते यदि बाकि धर्मो को अपनाने वाले मुलनिवासीयों को भी कहा जाता कि तुम मुस्लिम ईसाई बौद्ध नही हो बल्कि मुस्लिम अरब के लोग हैं , ईसाई गोरे हैं , और बौद्ध महलो में रहकर कई ब्रह्मणो से वेद पुराण की ज्ञान बिना भेदभाव बिना छुवा छुत के लेने वाले क्षत्रिय बुद्ध हैं , तो क्या यह तर्क उचित लगता ? बल्कि मेरा तो यह भी मानना है कि क्षत्रिय सिद्धार्थ को महलो में रहकर कई ब्रह्मणो से वेद पुराण की ज्ञान बिना भेदभाव बिना छुवा छुत के लेने के बाद महलो से बाहर मुलनिवासियों के बिच जाकर पीपल पेड़ के निचे यदी जिवन मरन की प्राकृति बुद्धी प्राप्त हुई हैं , तो वह बुद्धी हिन्दू धर्म के लोगो के पास पहले से ही मौजुद है | जिन हिन्दूओ से बुद्ध ने खुद बहुत सी सत्यबुद्धी लिया है , जो उसे महलो में इसलिए नही मिली , क्योंकि छुवा छुत करने वाले ब्रह्मणो ने उन्हे हिन्दू धर्म के वेद पुराणो में मौजुद प्राकृति ज्ञान के बारे में ज्ञान बांटने के बजाय मिलावट की गई सूर्यदेव , वायुदेव , अन्नदेव कामदेव वगैरा बताकर ढोंग पाखंड छुवा छुत मिलावट ज्ञान प्रदान किया | जिसके चलते बुद्ध ने महलो से बाहर आकर जिवन मरन का प्राकृति ज्ञान हासिल किया | न कि बुद्ध ने हिन्दूओ को जिवन मरन का प्राकृति बुद्धी दिया तब हिन्दू को प्राकृति जिवन मरन के बारे में बुद्धी प्राप्त हुआ है | जबकि जो बुद्धी बुद्ध को खुद प्राप्त हुआ है वह हिन्दू धर्म का मानो सागर से प्राप्त चंद बुंद है | क्योंकि हिन्दू जिस प्राकृति की पुजा बुद्ध और बौद्ध धर्म के जन्म से पहले से ही करता आ रहा है , उस प्राकृति के पास ज्ञान का सागर से भी बड़कर अनंत ज्ञान मौजुद है | जिस ज्ञान को ही तो विज्ञान भी दिन रात खोज खोजकर बटोरने में लगा हुआ है | जो ज्ञान कभी खत्म नही होगा चाहे क्यों न पृथ्वी का उम्र खत्म हो जाय और एकदिन मानवजाती लुप्त हो जाय | लेकिन तब भी यदि इंसानो की तरह जिवन बाकि भी कई ग्रहो में मौजुद होगी तो निश्चित तौर पर वे भी प्राकृति से ही ज्ञान बटोर रहे होंगे | जिनके धर्म के बारे में किसी भी धर्म पुस्तक में जानकारी उपलब्ध इसलिए नही है , क्योंकि उन पुस्तको को उन इंसानो ने लिखा है जिसे आजतक भी यह नही मालुम कि पृथ्वी छोड़ बाकि किस ग्रह में एलियन जिवन मौजुद है | जिसे खुदके द्वारा बनाया धर्म में कौन सभी इंसानो का धर्म है , इसकी जानकारी भी नही है तो वह क्या बतला पायेगा कि पृथ्वी से बाहर दुसरे ग्रहो में रहने वाले एलियन कौन सा धर्म को मानते हैं ? हाँ यह दावा सभी धर्मो द्वारा जरुर किया जाता है कि उसके धर्म पुस्तको में इंसान और एलियन समेत जिव निर्जिव सबकी रचना करने वाले के बारे में जानकारी उपलब्ध है | जो जानकारी हिन्दू धर्म के वेद पुराण भी प्राकृति को इंसान और एलियन सबकी रचनाकार और पालनहार बतलाकर उपलब्ध है | जिन वेद पुराणो में यहूदि डीएनए के मनुवादीयों ने ढोंग पाखंड की अप्राकृति मिलावट करके भ्रम ज्ञान बांटा है | जिसकी वजह से हिन्दू धर्म के बारे में यह भ्रम फैला हुआ है कि हिन्दू धर्म में छुवा छुत ढोंग पाखंड मौजुद है | वह तो मनुवादि जिस धर्म में भी अपनी मनुस्मृति गंदी सोच को लेकर उस धर्म की ठिकेदारी करेंगे उस धर्म में छुवा छुत ढोंग पाखंड की मौजुदगी रहेगी ही रहेगी | जो यहूदि डीएनए के मनुवादि हिन्दू ही नही हैं तो उनकी गंदी सोच को हिन्दूओं की सोच कैसे मान लिया जाय ? क्योंकि मुल हिन्दू छुवा छुत नही करता |

यहूदी DNA का मनुवादियों के आने से पहले से ही हिन्दू किसकी पूजा करता आ रहा है ?

यहूदी DNA का मनुवादियों के आने से पहले से ही हिन्दू किसकी पूजा करता आ रहा है ?

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होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार यूरेशिया से नही लाये गए हैं , बल्कि इस कृषि प्रधान देश के मुल पर्व त्योहार हैं ? जिन पर्व त्योहारो को इस देश के मुलनिवासी हजारो सालो से मनाते आ रहे हैं | जिसको मनाने वाले मुलनिवासी अन्न जल धरती सूर्य प्राकृति भगवान की पुजा पाठ करते हैं | जिन मुलनिवासियों के बारे में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि इस देश के मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले किसी भी धर्म को न मानने वाले लोग होते हैं ! जबकि यदि धर्म का मतलब धारन करना होता है तो क्या होली दिवाली मनाने वाले मुलनिवासी किसी भी पुजा पाठ को धारन किए हुए नही हैं ? क्या होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते समय प्राकृति की पुजा नही की जाती है ? और यदि की जाती है तो धर्म परिवर्तन कराने के लिए भ्रम फैलाने वालो को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि अन्न जल धरती सूर्य प्राकृति की पुजा ही हिन्दूओ की मुल पुजा  है ! जिसमे मनुवादियों द्वारा ढोंग पाखंड की मिलावट करने से यहूदी DNA का ब्रह्मण मुल हिन्दू नही बन जाता | जिस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाय धर्म परिवर्तन कराने के लिए भ्रम फैलाने वालो के द्वारा दुसरे धर्म से जोड़ने के लिए होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासीयों को भ्रमित किया जा रहा है कि तुम हिन्दू नही दलित आदिवासी पिछड़ी हो ! जो बाते बाकि धर्मो के भी दलित आदिवासी पिछड़ी को क्यों नही कहा जाता है कि तुम बौद्ध जैन ईसाई मुस्लिम वगैरा धर्म के नही हो , बल्कि तुम दलित आदिवासी पिछड़ी हो | सिर्फ हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासियों को तुम हिन्दू नही हो भ्रम फैलाकर धर्म परिवर्तन कराने में भी क्यों भेदभाव किया जा रहा है | धर्म परिवर्तन कराने वालो को आखिर हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी ही क्यों दलित आदिवासी पिछड़ी लगता है ? बाकि धर्मो में मौजुद sc,st,obc मुस्लिम,ईसाई,बौद्ध जैन वगैरा क्यों लगता है ? क्योंकि धर्म परिवर्तन कराने वाले इस देश के दलित आदिवासी मुलनिवासीयों को ही धर्म परिवर्तन कराना अपना मुल लक्ष बनाये हुए हैं ! जिसके चलते इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो का मुल हिन्दू धर्म से अलग करके कैसे बाद में जन्मे धर्मो में ले जाया जा सके इसका मुख्य लक्ष साधकर धर्म परिवर्तन यात्रा चलाया जा रहा है | ताकि दुसरे धर्मो के नाम से यह देश धार्मिक राष्ट्र बन सके | जबकि दर्जनो मुस्लिम और बौद्ध राष्ट्र बने हैं | जैसे कि धर्म के नाम से इसी देश से अलग होकर पाकिस्तान बंग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र और श्रीलंका बौद्ध राष्ट्र बने | पर बहुसंख्यक हिन्दू अबादी होते हुए भी एक भी हिन्दू राष्ट्र आजतक क्यों नही बना है | हिन्दू धर्म के प्रति इतनी हिन भावना क्यों ? विश्व के बाकि  बहुत सारे देशो का तो खैर सायद कोई अपना धर्म नही था , इसलिए वे बाहर से आए धर्मो के नाम से अपने देश को मुस्लिम ईसाई बौद्ध राष्ट्र बनाये ! पर इस कृषि प्रधान देश में तो बाकि धर्मो के आने या जन्म लेने से हजारो साल पहले से ही इस देश के मुलनिवासी प्राकृति पुजा को धारन किये हुए हैं | जिसकी पुजा करते हुए हिन्दूओ ने सिन्धु घाटी जैसे प्राचिन कृषि सभ्यता संस्कृति का निर्माण करते हुए खास इतिहास रचा है | जिस सिन्धु को फारस और अरब के लोगो ने अपनी भाषा बोली से हिन्दू कहा और यूनान के लोगो ने इंडस ! जिसकी वजह से विदेशियो के द्वारा हिन्दूस्तान और इंडिया नाम दिया गया | जिसकी वजह से सिन्धु से हिन्दू धर्म कहकर इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू कहा गया | न कि यहूदि DNA के मनुवादीयो को हिन्दू कहा गया है | जिन मनुवादीयो से तो बाहर से आए सुरुवाती मुस्लिम शासक जजिया कर भी नही लेते थे | जो की मुस्लिम धर्म के नागरिको को छोड़कर दुसरे धर्मो के नागरिको से लिया जाता था | जिसके बारे में कुछ मनुवादीयो का तर्क है कि उनसे जजिया कर इसलिए नही लिया जाता था , क्योंकि तब वे किसी तरह दान मांगकर गुजारा करते थे | और  चूँकि आर्थिक रुप से सक्षम न होनेवालो से जजिया कर नही लिया जाता था , इसलिए कुछ ब्रह्मणो का कहना है कि गरिब बीपीएल मानकर उनसे भी नही लिया जाता था | लेकिन इतिहास दर्ज है कि उन्ही ब्रह्मणो की हत्या करके मुस्लिम शासको ने सोमनाथ मंदिर को सत्रह बार लुटा था | और हर बार टनो टन सोना मंदिर से निकला था | जिस धन के बारे में जानकर ही क्या मुस्लिम शासक ब्रह्मणो को आर्थिक रुप से सक्षम नही समझते थे ! जिन ब्रह्मणो के पास आज भी कितना धन मौजुद है देश विदेश के खातो में , ये तो विदेशी खातो का लिस्ट आने से भी पता चल जाता है | साथ साथ जमिन जायदात किसके नाम से सबसे अधिक रजिस्ट्री में दर्ज है , यह पता करने से भी पता चल जाता है कि किसके पास आज भी सबसे अधिक धन मौजुद है | वैसे ये सब पता करने की भी जरुरत नही पड़ती है जब इस देश में मौजुद टॉप दस धन्ना कुबेरो के बारे में लिस्ट जारी होता है | हाँ मनुवादियों के पुर्वज यूरेशिया से इस देश में प्रवेश करके हिन्दू धर्म की ठिकेदारी लेने से पहले बिल्कुल कंगाल रहे होंगे इस बात पर मुझे कोई एतराज नही है | पर इस देश में प्रवेश करने के बाद मुस्लिम शासन में गरिब बीपीएल जिवन जी रहे होंगे इसपर एतराज है | क्योंकि गोरो और मुस्लिम शासन स्थापित होने से भी हजारो साल पहले से मनुवादी इस देश की धन दौलत बटोरते आ रहे हैं | बल्कि इस देश के मुलनिवासीयों को मनुवादियो ने निच घोषित करके निच जाति के लोग धन नही रख सकते सिर्फ उच्च जाति ही धन रख सकते हैं , यह नियम कानून बनाकर मनुस्मृति लागू करके लंबे समय से इस देश की धन संपदा को बटोरते आए हैं | और आज भी सबसे अधिक धन कथित खुदको उच्च जाति घोषित करने वाले मनुवादी लोग ही बटोरकर देश विदेश के बैंको में सबसे अधिक धन जमा कर रहे हैं | जिनका जान माल नोटबंदी में भी सुरक्षित रहता है | क्योंकि मनुवादी का ही शासन चल रहा है | जिनके शासन में इस देश के मुलनिवासियों की ही जान माल को सबसे अधिक खतरा मौजुद है | भले वे इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश में विदेशी मुल के लोगो का शासन कई बार स्थापित होने के बाद गरिब बीपीएल बन गए हो , लेकिन भी गरिब बीपीएल बनाकर जान माल का खतरा सबसे अधिक मुलनिवासियों को ही है , चाहे वे जिस धर्म में मौजुद हो | जैसे की नोटबंदी में भी सबसे अधिक जान माल का नुकसान इस देश के मुलनिवासियों को ही हुआ , चाहे वे जिस धर्म में मौजुद हो |

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

छुवा छुत गंदी सोच को तो अबतक शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था

छुवा छुत गंदी सोच को तो अबतक शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था
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छुवा छुत इस देश का मुलनिवासी नही करता चाहे वह जिस धर्म में मौजुद हो | बल्कि छुवा छुत मनुवादी करता है , जो युरेशिया से आया है | क्योंकि अब तो DNA रिपोर्ट से भी साबित हो चूका है , कि मनुवादी मुल हिन्दू नही बल्कि यहूदि डीएनए के विदेशी मुल के कबिलई लोग हैं | जिन्होने न तो सिंधु घाटी सभ्यता कृषि संस्कृति का निर्माण किया है , और न ही हिन्दू कलैंडर और वेद पुराण की रचना किया है | और न ही मनुवादी लोगो ने हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली मुलता साक्षात विज्ञान प्रमाणित कृषि व प्राकृतिक से जुड़ी होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार की रचना किया है | जिसके चलते उन्हे हिन्दूओ की कृषि सभ्यता संस्कृती से न तो जमिन से जुड़ा हुआ लगाव है , और न ही इस देश के मुलनिवासियों के जमिन से जुड़ी हुई कृषि जिवन से लगाव है | लगाव होता तो प्रजा सेवा के लिए छुवा छुत मनुस्मृति रचना नही , बल्कि छुवा छुत मुक्त अजाद देश का संविधान रचना करते | जैसा कि अवसर मिलने पर मुल हिन्दू अंबेडकर ने किया | हलांकि यह बात अलग है कि अजाद देश का संविधान लागू होने के इतने सालो बाद भी छुवा छुत कायम है | क्योंकि गोरो का शासन समाप्त होने के बाद मनुवादियों को मुल हिन्दू मानकर मनुवादी शासन कायम हो गया है | जिस शासन के दौरान मुल हिन्दू के द्वारा रचे गए संविधान में मनुस्मृति की मिलावट करने की कोशिष इसलिए भी हो रही है , क्योंकि जैसा की बतलाया कि मनुवादि अबतक भेदभाव करना नही छोड़े हैं | जिसके चलते ही तो वे मनुस्मृति को अपडेट करते रहना चाहते हैं | क्योंकि वे मुल हिन्दू नही हैं , इसलिए मुल हिन्दूओ से छुवा छुत करते हैं | मनुवादी जिस मनुस्मृति सोच के हैं उसी सोच से तो शासन चलाने के लिए भेदभाव शोषण अत्याचार हुनर का उपयोग में लगे हुए हैं | जबकि मनुवादियो को हजारो सालो का छुवा छुत विरासत को ढोते हुए मनुस्मृति के भष्म होते ही उसकी छुवा छुत हड्डियों को बहाकर खुदको अबतक बदल लेना चाहिए था | अथवा कान में गर्म पीघला लोहा डालने , जीभ काटने ,गले में थुक हांडी टंगवाने ,कमर में झाड़ू टंगवाने  जैसी गंदी सोच रखने वाले ताड़नहार वीर विद्वानो की गंदी सोच को शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था | क्योंकि मन की गंदगी तन की गंदगी से ज्यादे खतरनाक है | जिसका इलाज नही है , भले तन की गंदगी से होने वाली बिमारियों का अनेको इलाज खोज लिया गया है | पर मन की गंदगी से होनेवाली भेदभाव करने वाली बिमारी का इलाज आजतक पुरे विश्व में खोजा नही जा सका है | चाहे क्यों न पुरी दुनियाँ के वैज्ञानिक और डॉक्टर खतरनाक से खतरनाक बिमारी का इलाज खोजने में दिन रात लगे हुए हो , लेकिन एक भी वैज्ञानिक और डॉक्टर भेदभाव करने वाली बिमारी का कोई दवा मिल जाय इसकी खोज में नही लगे हैं | क्योंकि मन की गंदगी से होनेवाली भेदभाव करने वाली बिमारी का इलाज किसी दवा से मुमकिन ही नही है | मुमकिन ही नही है कि कोई ऐसा दवा बन जाय जिसे भेदभाव करने वाला मरिज खाकर भेदभाव करना छोड़ दे | जिसके चलते आजतक ऐसा दवा नही बन सका जिसे खाकर मनुवादि भेदभाव करना छोड़ दे | जिसके कारन भी सायद आजतक मनुस्मृति सोच रखने वाले उच्च डिग्री और खुब सारा धन संपदा हासिल करके भी छुवा छुत करते हैं | जबकि उन्हे विकसित परिवार समाज के बारे में ज्ञान हासिल होते ही यह समझ जाना चाहिए था कि छुवा छुत सोच परिवार समाज और गणतंत्र को विकसित करने वाली सोच नही है | अगर रहता तो छुवा छुत को विकसित सोच मानकर पुरे विश्व में छुवा छुत करना अच्छा है , ये ज्ञान विद्यालयो में बांटी जाती | जिसे अपनाकर मानवता का विकाश हो जाएगा यह मानकर प्रजा का सेवक बनते समय भी यह शपथ दिलवाई जाती कि अच्छी तरह से छुवा छुत करते हुए प्रजा की सेवा की जायेगी | बल्कि यदि छुवा छुत और गोरा काला जैसे भेदभाव न हो तो इंसानियत कायम होकर प्रजा भेदभाव के खिलाफ कभी आंदोलन संघर्ष ही नही चलाएगी | पर चूँकि मनुवादी शासन में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भारी भेदभाव कायम होकर अबतक भी मनुस्मृति सोच को अपडेट करना जारी है | इसलिए अधुरी अजादी महसुश करते हुए मुलनिवासी प्रजा आज भी मनुवादी गंदी सोच के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रही है | जिसके बारे में मनुवादियो को यदि कोई अनुभव नही है कि भेदभाव के खिलाफ आंदोलन संघर्ष क्या होता है ? तो वे अपनी दबदबा मनुवादी शासन में ही भेदभाव के खिलाफ चल रहे आंदोलन संघर्ष को देख सुन और पढ़कर कुछ समय के लिए खुदको भेदभाव से पिड़ित मानकर जानकारी हासिल कर सकते हैं | और अगर तब भी उनको प्रयोगिक जानकारी नही मिलती है , तो वे गोरो का शासन के बारे में जानकारी हासिल करते हुए गोरो से अजादी आंदोलन में भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव रखने वाले गाँधी के साथ भेदभाव हुई उस घटना को याद करे , जब गाँधी के साथ रेल में एक ऐसी घटना घटी थी , जब गाँधी सायद यह सोचकर गोरो के साथ गोरो की तरह सुटबुट लगाकर रेल सफर करते थे कि गाँधी और गोरे दोनो को एक साथ खास रेल डब्बे में सफर करते हुए कोई भेदभाव नही होता होगा | बल्कि भेदभाव तो सिर्फ मनुस्मृति में जिसे शुद्र निच कहा गया है , उसके साथ होता है | लेकिन गाँधी उस समय इतना झटका खाकर जमिन में गिरे कि कुछ समय में ही शहरी सुटबुट से सिधे ग्रामीण धोती डंडा में आ गए | जब गोरो ने उसे काला इंडियन कहकर लात मारकर रेल डब्बे से बाहर फैंक दिया था | जिस समय गाँधी को भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव अच्छी तरह से हो गया होगा | जबकि इस देश के मुलनिवासियों को गोरो के आने से भी हजारो साल पहले से ही भेदभाव क्या होता है उसका प्रयोगिक अनुभव है | क्योंकि हजारो सालो से मनुवादियो द्वारा छुवा छुत किये जाने से इस देश के हर उस मुलनिवासी को छुवा छुत का प्रयोगिक अनुभव है , जिसे कभी न कभी मनुवादियो द्वारा भेदभाव किया गया है , या फिर अपने पुर्वजो के साथ किये गए भारी भेदभाव के बारे में जानकारी हो | जो भेदभाव मनुवादि धन दौलत बुद्धी बल और धर्म देखकर नही करते हैं , बल्कि इस देश का मुलनिवासी कौन है यह देखकर करते हैं | जैसे की ब्रह्मण गाँधी ने भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव के बावजुद भी इस देश के मुलनिवासियों को हरिजन कहकर छल कपट का सहारा लेकर भेदभाव युक्त पुणे में अंबेडकर के साथ समझौता किया | जो स्वभाविक है क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि भेदभाव बिमारी का कोई इलाज नही है | जिसे ही तो अंबेडकर ने भी मनुवादियो को मुल हिन्दू मानकर हिन्दूओ में बिमारी है कहा था | न कि वे खुदको भेदभाव करने वाले गंदी सोच से बिमार युक्त परिवार में पैदा हुआ मानकर हिन्दू धर्म का बुराई कर रहे थे | बल्कि वे मनुवादियो की उस गंदी सोच को बिमार बताये हैं , जो मुल हिन्दू सोच नही है | क्योंकि भेदभाव करनेवाला मनुवादि मुल हिन्दू नही है | जो बात यदि सत्य नही होता तो खुदको हिन्दू बताने वाले मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में आजतक नही होता , बल्कि भेदभाव मुक्त बहाली होकर बहुसंख्यक मुलनिवासियों का हिस्सेदारी बेहत्तर होता चाहे वे जिस धर्म को अपना लिये हो | क्योंकि मनुवादियो ने देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करने वाले अंबेडकर के साथ छुवा छुत करना नही छोड़ा तो बाकि उन मुलनिवासियो के साथ भेदभाव करना क्या तबतक छोड़ेंगे जबतक की इस देश में मुलनिवासियों का शासन आने के साथ साथ लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भेदभाव मुक्त  हक अधिकार कायम न हो जाय | वह भी वे पुरी तरह छोड़ेंगे नही बल्कि बेहत्तर शासन में भेदभाव करने वालो को सजा देने के लिए बनाये गए नियम कानून का पालन करेंगे | जो वे अभी इसलिए नही कर पा रहे हैं क्योंकि मनुवादियों का शासन है | जिसके चलते वे पुरी आत्मविश्वाश के साथ भेदभाव शोषण अत्याचार कर रहे हैं | इसलिए इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस धर्म में मौजुद हो सबका DNA एक है , वे सभी मन में ये बात बिठा ले कि जिस भी पार्टी में भी मनुवादियो की दबदबा कायम है उसे न तो वोट दें , और न ही लालच में आकर उस पार्टी से चुनाव लड़ें | मुलनिवासी शासन एक झटके में आ जायेगी | बल्कि मैने जो ज्ञान बांटा है मुलनिवासी शासन कायम करने के लिए उसे यदि अपनाया गया तो निश्चित रुप से अगली चुनाव की जरुरत भी नही पड़ेगी और मनुवादि सरकार गिरकर मुलनिवासी शासन स्थापित हो जायेगी | क्योंकि सभी मुलनिवासी सांसद यदि एकजुट होकर मनुवादी सरकार गिराकर अपनी खुदकी सरकार बना ले तो फिर से जब भी चुनाव होगी मनुवादी सरकार कभी बन ही नही पायेगी | पर चूँकि मुलनिवासियों के बिच फूट डालकर मनुवादी राज कायम है , इसलिए जबतक सभी मुलनिवासी सांसद और विधायको समेत तमाम मुलनिवासी नेता चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , उनके बिच एकता कायम होकर इस देश की राजनिती में क्रांतीकारी बदलाव नही आ जाती , तबतक मानो मनुवादि अपने गुलामो की सहायता और मुलनिवासी सांसद विधायक बल से ही मनुवादी राज कायम किये हुए रहेंगे |

sc,st,obc हिन्दू नही हैं , और यदि धर्म परिवर्तन कर दे तो sc,st,obc मुस्लिम , बौद्ध , जैन , ईसाई हैं ! हद है !!

sc,st,obc हिन्दू नही हैं , और यदि धर्म परिवर्तन कर दे तो sc,st,obc मुस्लिम , बौद्ध , जैन , ईसाई हैं ! हद है !!
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एक तो मनुवादि खुदको जन्म से उच्च और इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित करके ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहते हुए हजारो सालो से ताड़ते आ रहे हैं , उपर से मनुवादियों द्वारा शोषण अत्याचार किए जा रहे दलित आदिवासी पिछड़ी को ताड़ते हुए देखकर धर्म परिवर्तन कराने के लिए जले पर नमक छिड़ककर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि होली दिवाली मकर संक्रांती जैसे पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के मुलनिवासी लोग हिन्दू नही हैं | जिनके मुताबिक होली दिवाली मकर संक्रांति मनाने वाले sc,st,obc हिन्दू नही हैं , और यदि धर्म परिवर्तन कर दे तो sc,st,obc मुस्लिम , बौद्ध , जैन ईसाई हैं ! हद है !! ये तो जैसे कभी मनुवादि इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानने से इंकार करते थे , उसी तरह धर्म परिवर्तन कराने के लिए इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानने से इनकार किया जा रहा है | जिनका तर्क है कि इस देश के मुलनिवासी जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन नही किया है , वे दलित आदिवासी और पिछड़ी हैं | जबकि वही लोग ये भी स्वीकार कर रहे हैं कि मनुवादि युरेशिया से आए हुए यहूदि DNA के लोग हैं | यहूदि और मनुवादि दोनो भाई भाई हैं | फिर भी मनुवादियो को हिन्दू क्यों कहा जा रहा है ? क्या हिन्दू परिवार में जन्मे sc अंबेडकर भी बौद्ध धर्म अपनाने से पहले हिन्दू नही थे ? जिन्होने हिन्दू परिवार में ही जन्म लेकर हिन्दू रहते देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करके भारत का संविधान रचना और हिन्दू कोड बिल रचना जैसे ऐतिहासिक उपल्धि हासिल किया है | जो उपलब्धि सायद तब नही हासिल कर पाते यदि वे बचपन में ही अपना धर्म परिवर्तन किये होते | पर उनकी उपलब्धियो के बारे में भी धर्म परिवर्तन कराने वाले ऐसे बतलाते हैं , जैसे की अंबेडकर यदि बौद्ध नही बनते तो न देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल कर पाते , और न ही भारत का संविधान रचना व हिन्दू कोड बिल रचना जैसे ऐतिहासिक उपल्धि हासिल कर पाते | जबकि मुल हिन्दूओं ने हजारो साल पहले उस समय ही सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृती का निर्माण जैसे प्राचिन उपलब्धि को भी हासिल कर लिया था जब इस कृषि प्रधान देश में यहूदि DNA के मनुवादियो का आगमन भी नही हुआ था | जिसका राखीगड़ DNA रिपोर्ट भी आ चुका है कि ढाई से तीन हजार साल दपहले तक इस देश में मनुवादियो का मौजुदिगी का DNA प्रमाण नही मिला है | जबकि उससे पहले ही इस कृषि प्रधान देश में आधुनिक सभ्यता संस्कृती और गणतंत्र का निर्माण सिन्धु नदी के किनारे हो चुका था | जिसे फारस और अरब के लोगो ने सिन्धु को हिन्दू कहकर इस देश को हिन्दूस्तान कहा , और  यूनान के लोगो ने सिन्धु को इंडु कहकर इस देश को इंडिया कहा | जो इंडिया शब्द संविधान में भी लिखा हुआ है | जिस इंडिया शब्द को अपनी भाषा बोली के आधार पर विदेशियो ने दिया है | जैसे कि हम अपनी हिन्दी भाषा बोली में English को अंग्रेजी कहते हैं | इसका मतलब ये नही कि English और अंग्रेजी का मतलब अलग होता है | उसी तरह इंडिया और हिन्दूस्तान का मतलब सिन्धु से ही जुड़ा हुआ शब्द है | न कि यूरेशिया से जुड़ा हआ है कि मनुवादियो को मुल हिन्दू मान लिया जाय और हिन्दू परिवार समाज में जन्मे sc,st,obc को हिन्दू माना ही न जाय | जो sc,st,obc चाहे धर्म बदलकर जिस धर्म में भी मौजुद हो उन सभी के पुर्वज मुल हिन्दू ही थे | जिसके चलते अंबेडकर को भी स्वीकार करना पड़ा कि उनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ है | दरसल sc,st,obc को तुम हिन्दू नही हो कहकर भ्रमित इसलिए किया जा रहा है , ताकि किसी भी तरह से भ्रमित करके अपने धर्म के प्रति हिन भावना उत्पन्न करके उनसे धर्म परिवर्तन कराया जा सके | जिसकी कोशिष में ही तो भ्रम फैलाने वाले सिर्फ हिन्दू धर्म में मौजुद sc,st,obc को तुम हिन्दू नही हो ये भ्रम फैलाकर दिन रात लार टपकाते फिरते हैं | बजाय इसके कि वे अपने धर्मो के साथ साथ बाकि भी सभी धर्मो के लोगो को यह बतलाते कि इस देश के मुलनिवासी ही मुल हिन्दू हैं | जो छुवा छुत नही करते हैं | जैसे कि अंबेडकर ने भी कभी भी छुवा छुत नही किया | जिन्होने अपना हिन्दू धर्म परिवर्तन जिवन के अंतिम पड़ाव में तब किया जब यहूदि DNA के मनुवादियो द्वारा भारी भेदभाव शोषण अत्याचार किये जाने की वजह से उन्हे लगा कि मुल हिन्दू मनुवादि लोग हैं | जो लोग ऐसे मांसिक बिमार लोग हैं , जिनकी छुवा छुत बिमारी से दुर ले जाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने का फैशला किया | क्योंकि उनके लिए सभी धर्मो के बारे में मंथन करने के बाद मनुवादियो से छुटकारा पाने का बेहत्तर मार्ग बौद्ध धर्म अपनाना लगा | न कि उन्होने कभी भितर से ये कहा है कि चूँकि खुद भी वे हिन्दू परिवार में जन्म लेकर देश विदेश की कई उच्च डिग्री हासिल करके हिन्दू रहते ऐतिहासिक जिवन जीया है , इसलिए उन्होने बिमार होकर अजाद देश का संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना किया है | जो वे कभी कह भी नही सकते थे , क्योंकि मुल हिन्दू साथ में मिल जुलकर आपस में जोड़ाकर नाच गान करते और प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते हुए खुशियो का मेला लगाता है | जो खुशियों का मेला लगाने के लिए मनुवादि मनुस्मृति रचना किये हैं क्या ? क्योंकि सच्चाई ये है कि मनुवादि लोग मुल हिन्दू नही हैं | बस हिन्दू नकाब लगाकर इस देश के मुल हिन्दूओ को मानो रामराज का वानर सेना बनाकर मनुस्मृति को फिर से अपडेट करना चाहते हैं | ताकि राजा राम की तरह खुदकी भी पुजा कराते हुए शंभुक प्रजा को दुःख पीड़ा देकर ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी का पालन करते हुए सीता को धरती में समवाकर , खुद भी जिते जी सरयू नदी में डूबकर अपनी अपडेट मनुवादी शासन समाप्त कर सके | लेकिन इसबार का अपडेट मनुवादी शासन रामराज की तरह खुद ही समाप्त नही होगा | बल्कि अपने पुर्वजो के द्वारा रचे वेद पुराणो का ज्ञान हासिल शंभुक प्रजा द्वारा करके वेद पुराणो में की गई छुवा छुत ढोंग पाखंड मिलावट को दुर करते हुए कड़ी संघर्ष करके मनुवादी शासन समाप्त होगा |

सोमवार, 27 जनवरी 2020

ब्रह्मण लोग हिन्दूओ को क्या हिन्दू बनायेंगे जो खुद यहूदि DNA के होते हुए भी हिन्दू का नकाब लगाये हुए हैं !

ब्रह्मण लोग हिन्दूओ को क्या हिन्दू बनायेंगे जो खुद यहूदि DNA के होते हुए भी हिन्दू का नकाब लगाये हुए हैं !

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" भारत में जो भी मुसलमान है , वो सारे के सारे भारतीय लोग हैं | लखनऊ में रिसर्च हुआ DNA का तो भारतीय लोगो का DNA से मिल गया | ब्रह्मण का DNA यहूदि से मिल गया | मुसलमानो को यहूदियो के बारे में बताने की जरुरत नही है | ध्यान रखना ! यहूदियो ने मोहम्मद साहब को नही बक्सा तुमको बक्स देंगे ? " 


                                                          वामन मेश्राम

खुद वामन मेश्राम के ही इस जानकारी से साफ हो जाता है कि ब्रह्मण DNA के आधार पर भी यहूदि है | न कि हिन्दू है | फिर क्यों जिस तरह कभी ब्रह्मण लोग इस देश के मुलनिवासियो को हिन्दू मानने से इंकार करते थे , उसी तरह वामन मेश्राम जैसे लोगो द्वारा भी यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू नही हैं | क्या वामन मेश्राम ये कहना चाहते हैं कि मुस्लिम , ईसाई , बौद्ध , जैन वगैरा दुसरे धर्मो में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी लोग मुस्लिम , ईसाई , बौद्ध , जैन , नही हैं ? जैसे कि हिन्दू परिवार में जन्मे अंबेडकर बौद्ध नही बल्कि दलित थे ! जिस जानकारी को अपडेट किया जाना चाहिए क्या इतिहास में ? क्योंकि वामन मेश्राम ही नही पुरी दुनियाँ जानती है कि अंबेडकर का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था | जिन्होने हिन्दू परिवार में ही जन्म लेकर देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करके अजाद भारत का संविधान रचना के साथ साथ हिन्दू कोड बिल की रचना करने के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया | जिस अंबेडकर को अपना पिता मानते हुए भी वामन मेश्राम ऐसा क्यों बोल रहे हैं कि अंबेडकर DNA के sc , st , obc हिन्दू नही हैं ? जबकि दलित अंबेडकर की तरह करोड़ो दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासि हिन्दू परिवार में ही जन्म लिये हैं | जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन नही किया है | जो होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाते हैं | जो पर्व त्योहार यूरेशिया से मनुवादी नही लाए हैं | यह सब कुछ जानते हुए भी दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही हैं क्यों कहा जा रहा है ? जबकि अब तो DNA रिपोर्ट से भी पता चल चूका है कि यहूदि DNA के ब्रह्मण यूरेशिया से आए हुए लोग हैं | जो लोग हिन्दूओ को क्या हिन्दू बनायेंगे जो खुद यहूदि DNA के होते हुए भी हिन्दू का नकाब लगाये हुए हैं ! ताकि वे हिन्दू धर्म की ठिकेदारी करके हिन्दूओ के उन हक अधिकारो पर कब्जा कर सके जो हिन्दूओ की मुल विरासत और सभ्यता संस्कृति है | क्योंकि यहूदि DNA का ब्रह्मण यदि खुदको हिन्दू नही कहा तो उसकी हाथ से सत्ता भी चली जायेगी और हिन्दू धर्म की वह ठिकेदारी भी चली जायेगी जिसे प्राप्त कर वह मंदिरो में धन संपदा जमा करके रखा हुआ है | जिस बात पर वामन मेश्राम समेत किसी भी मुलनिवासी को यदि यकिन नही हो रहा हो तो वामन मेश्राम के ही मुताबिक किसी ब्रह्मण को यहूदि होने का सार्टिपिकेट से नागरिकता देकर चुनाव लड़ाया जाय , और हिन्दू धर्म का पुजारी भी बनाया जाय , प्रयोगिक सत्य पता चल जायेगा कि मैं जो ज्ञान बांट रहा हूँ वह सत्य है कि इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू नही हैं यह सत्य है ? इस देश के तमाम मुलनिवासी जिनके पुर्वज धर्म परिवर्तन से पहले हिन्दू जन्मे लेकिन बाद में अपना धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्मो में चले गए है , वे सभी मेरा यह सत्य बात हमेशा याद रखें की धर्म बदलने के बाद भले हिन्दू धर्म के प्रति विचारो में भी भारी परिवर्तन हो गया है , पर DNA में परिवर्तन नही हुआ है | क्योंकि DNA तो उन्ही मुलनिवासी पुर्वजो का है जो हिन्दू जन्मे थे | जिनका डीएनए यहूदि DNA नही है | जो चाहे जितनी बार अपना धर्म बदल लें , आखिर में कहलायेंगे तो धर्म परिवर्तन करने वाले sc,st,obc | जिस तरह कहलाने के लिए ही यदि किसी के द्वारा sc,st,obc लोग हिन्दू नही है यह झुठ बांटकर परिवर्तन यात्रा के साथ साथ धर्म परिवर्तन यात्रा चलाया जा रहा है , तो निश्चित तौर पर इस धर्म परिवर्तन यात्रा में यहूदि DNA के मनुवादियो को मुल हिन्दू मानकर शामिल किया जाना चाहिए | जिसके बाद सबसे पहले उनका धर्म परिवर्तन कराया जाना चाहिए | क्योंकि यदि sc,st,obc का कोई धर्म ही नही है तो उन्हे तुम हिन्दू नही हो कहकर धर्म परिवर्तन क्यों कराया जा रहा है ? बल्कि क्यों कहा जाता है हिन्दू अंबेडकर अपना धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाया था ? हद है इतना बड़ा झुठ बांटा जा रहा है कि तुम हिन्दू नही हो ! वह भी क्या सिर्फ इसलिए ताकि यह देश हिन्दू राष्ट्र न बन जाय ! भले धर्म परिवर्तन कराकर इस हिन्दूस्तान से टुकड़ा टुकड़ा करके पाकिस्तान श्रीलंका जैसे दुसरे धर्मो के राष्ट्र बनता जाय | बल्कि पुरे विश्व में सभी देश खुदको मुस्लिम राष्ट्र , ईसाई राष्ट्र , यहूदि राष्ट्र बौद्ध राष्ट्र बनाते रहे , पर यह देश हिन्दू राष्ट्र कभी न बने | वह भी सिर्फ क्या इसलिए क्योंकि यहूदि DNA का ब्रह्मण मुल हिन्दू नही है | जो यदि यहूदि DNA का न होकर sc,st,obc मुलनिवासियो का ही DNA का होता तो सायद हिन्दू राष्ट्र बनने से एतराज न होता | तो इसमे दिक्कत क्या है ? इस देश के मुलनिवासि जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हैं , वे सभी मिलकर DNA के आधार पर NRC आंदोलन जो चलाया जायेगा 29 जनवरी 2020 ई० से उसके सफल होने के बाद DNA के आधार पर NRC लागू होते ही यहूदि DNA का ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य को यहूदि के आधार पर नागरिकता देकर उन्हे घर वापसी कराकर सभी मुल हिन्दू जिन्होने यहूदि DNA का ब्रह्मण को मुल हिन्दू समझकर अपने पुर्वजो का धर्म को छोड़ा है , वे भी अपना घर वापसी करके इस देश को छुवा छुत मुक्त हिन्दू राष्ट्र बना दिया जाय | क्योंकि छुवा छुत नही करने वाले अंबेडकर हिन्दू जन्मे तो निश्चित तौर पर उसके ही DNA के वे सभी मुलनिवासी भी धर्म परिवर्तन से पहले सभी हिन्दू ही थे | जो सभी छुवा छुत नही करते हैं | क्योंकि मुल हिन्दू छुवा छुत नही करता चाहे जिस धर्म में गए हो | जो यदि अपना हिन्दू  धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्मो में कभी गए ही नही होते तो पुरे राष्ट्र में DNA के आधार पर कितने प्रतिशत गैर हिन्दू बाहर से आए हैं जिसकी वजह से इस देश को आजतक हिन्दू राष्ट्र नही बनाया जा सका है ? किस वजह से हिन्दू राष्ट्र बनने से रुकावट आ रही थी और आ रही है ? जबकि यह देश हिन्दू राष्ट्र भले अबतक न बन पा रहा हो , पर दुसरे धर्मो की यदि इतनी अबादी होती तो यह देश दुसरे धर्म के नाम से कबका राष्ट्र बन गया होता | बल्कि हिन्दू नही बनने देंगे कहते कहते धर्म के नाम से पाकिस्तान और श्रीलंका बंग्लादेश वगैरा राष्ट्र बन भी गया है | और अगर भविष्य में इसी तरह धर्म परिवर्तन यात्रा चलता रहा तो फिर याद रखना मुलनिवासियों यह सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश जो कि यहूदि DNA के ब्रह्मणो की छुवा छुत ढोंग पाखंड बुद्धी की वजह से विश्वगुरु नही कहलाता है , उसे दुसरे धर्म के नाम से सागर जैसा विशाल कृषि प्रधान देश को खंड खंड करके छोटे छोटे कबिलई देशो की तरह बांट दिया जायेगा | हिन्दू राष्ट्र बनाने का सिर्फ विवाद ही इसलिए खड़ा किया जाता आ रहा है ताकि यह देश हिन्दू राष्ट्र कभी बने ही नही | भले अरब यूरेशिया में मौजुद छोटे छोटे टुकड़े में बंटे धार्मिक राष्ट्र बने | क्योंकि यदि दुनियाँ से गरिबी भुखमरी अशिक्षा जैसी मुल समस्याओं का समाधान सभी धर्मो द्वारा मिल जुलकर किया जाय इसे ज्यादा महत्व देने के बजाय यदि धर्म के नाम से ज्यादे से ज्यादे राष्ट्र बनाने के लिए विश्वभर में धर्म परिवर्तन यात्रा चलाया जा रहा हैं तो कम से कम गिनती में एक तो हिन्दू राष्ट्र बने इसका मैं समर्थन जरुर करता हूँ ! पर इस सर्त पर कि ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य को यहूदि DNA के आधार पर नागरिकता देकर बने ! जो बन जाने पर बाकि सभी धर्मो के लोग हिन्दू राष्ट्र में सुख चैन से नही रह पायेंगे और इस समय यहूदि DNA के ब्रह्मणो का शासन में सुख चैन से रह रहे हैं , यह कहना चाहते हैं क्या वे लोग जो ये मानते हैं कि इस देश को हिन्दू राष्ट्र नही बनना चाहिए ? जिन्हे यदि बाकि धर्मो के नाम से दुनियाभर में राष्ट्र बनते रहने पर एतराज नही है तो एक हिन्दू राष्ट्र बनने से क्यों एतराज है ? मुझे तो धर्म के नाम से राष्ट्र बनने से ही एतराज है , पर फिर भी मेरे और मेरे जैसे करोड़ो हिन्दूओ के एतराज करने के बावजुद भी यदि धर्म के नाम से दुसरे धर्मो का कई कई राष्ट्र बनाया जा रहा है तो क्या हिन्दू को इतनी हिन भावना से पुरे विश्व में भेदभाव किया जाता रहे कि उसे एक भी हिन्दू राष्ट्र कभी बनाने ही न दिया जाय ! ये तो अन्याय अत्याचार और पाप है ! जिसका न्याय सायद उस एक प्राकृति भगवान के पास मौजुद है , जिसने सभी धर्मो को नही बनाया है , बल्कि सभी धर्मो को बनाने वाले इंसान कितने कितने राष्ट्र अपना अपना धर्म के हिस्से में बांटकर हक अधिकार बांटा जा रहा है , इसका न्याय दुनियाँ के सभी अदालतो से भी उपर की अदालत में सुनाया जायेगा ! तब हिन्दू धर्म का एक भी राष्ट्र क्यों नही बनने दिया गया था इसके बारे में जवाब देना होगा | जो हिसाब हो या न हो पर इतिहास में तो हिसाब दर्ज हो रहा है | बल्कि धर्म परिवर्तन कराकर प्राकृति के साथ भारी परिवर्तन कराने का असंतुलित हालात पैदा कराकर प्राकृति का विनाशलीला भी दर्ज हो रहा है | क्योंकि विश्व के सभी अदालतो से उपर की अदालत में हिन्दू धर्म के लोगो को प्राकृति खनिज संपदा से संपन्न समृद्ध राष्ट्र स्थापित करने का आशीर्वाद देकर यदि सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने का बुद्धी बल दिया है तो निश्चित तौर पर उन हिन्दूओ का धर्म परिवर्तन कराकर कई दुसरे धर्मो का राष्ट्र बनाया जाय पर प्राकृति की पुजा और प्राकृति पर्व त्योहार मनाने वाले मुल हिन्दूओ को एक भी हिन्दू राष्ट्र बनने नही दिया जाय इतनी भेदभाव करने वालो को हिसाब तो जरुर देना होगा !

सोने की चिड़िया और विश्वगुरु

सोने की चिड़िया और विश्वगुरु

सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला यह कृषी प्रधान देश,प्राकृति धन संपदा से समृद्ध होते हुए भी अमिरी की गोद में गरिबी भुखमरी पल रही है ? क्योंकि अब भी इस देश में ऐसे परजिवी मौजुद हैं , जो दुसरो के हक अधिकारो को चुसकर मच्छड़ , खटमल और जू जैसी भ्रष्ट जिवन जी रहे हैं | जिनसे छुटकारा पाने के लिए करोड़ो नागरिको द्वारा दिन रात संघर्ष चल रही है | जिसके संघर्ष में शामिल होते हुए पुरे विश्व की मानवता और पर्यावरण में संतुलित परिवर्तन लाने के लिए ही मैने राजनीति , धर्म , चूनाव वगैरा के बारे में अपने विचार रखे हैं | जिसके बारे में जाननी है तो निचे मैने अपने वेबसाईट का लिंक दिया हुआ है जहाँ पर जाकर सारी जानकारी ली जा सकती है | धन्यवाद 
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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

manuvadi virus full form in hindi मनुवादी वायरस

मनुवादी दबदबा में नासमझो की नासमझी मनुवादी वायरस ज्ञान बंटते रहेगी ! जिन वायरस ज्ञान का एंटिवायरस ज्ञान भी बंटते रहेगी
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,यहूदि,बौद्ध,जैन khoj123


यहूदि धर्म को मानने वालो ने यीशु को सुली में चड़ाया ,ईसाई धर्म को मानने वाले गोरो ने कई देशो को गुलाम किया ,मुस्लिम धर्म को मानने वालो ने भी कई देशो के साथ साथ इस देश को भी लुटा और जजिया कर लगाकर शासन किया,उसी तरह हिन्दू धर्म को मानने वाले यहूदि डीएनए के मनुवादियो ने भी इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र अच्छुत दास बनाकर शोषण अत्याचार किया , और मुलनिवासियों के ही द्वारा रचे हिन्दू वेद पुराणो का ज्ञान हासिल करने से उन्हे रोक लगाया | इसका मतलब ये नही कि यहूदि डीएनए के मनुवादियो ने यदि खुदको हिन्दू मानकर छुवा छुत ढोंग पाखंड किया तो हिन्दू धर्म ही खराब है | बल्कि धर्म को अपनाकर जिसने अधर्म किया है वह खराब है | जिसकी बातो को मत मानो और जो ऐसी सत्य बाते है , जिसे मानने से मानवता और पर्यावरण संतुलित होकर सुख शांती और समृद्धी कायम होता है , उसे मानो | उदाहरन के तौर पर मनुवादियो ने जन्म से खुदको उच्च और दुसरो को निच घोषित किया इसलिए यदि कोई ये मानता है कि हिन्दू धर्म में छुवा छुत मौजुद है , तो क्या वे यह कहना चाहते हैं कि कोई यदि किसी धर्म को मानकर देश गुलाम बनाता है तो उसके गुलाम करने से यह मान लेना चाहिए कि उस धर्म में गुलाम बनाया जाता है ! बिल्कुल नही क्योंकि अजादी को मानने वालो के लिए गुलाम बनाना धर्म नही है | और न ही छुवा छुत को न मानने वालो के लिए छुवा छुत करना धर्म है ! लेकिन चूँकि समझ का अभाव में कुछ लोग हिन्दू धर्म के बारे में भी वायरस ज्ञान लोगो को बांट रहे हैं कि हिन्दू धर्म में छुवा छुत होता है , ईसाई धर्म में गुलाम बनाया जाता है , मुस्लिम धर्म में लुटपाट हिंसा आतंकवादी बनाया जाता है | जिन नासमझो की बातो को गंभिरता पुर्वक लेने का मतलब साफ है कि उनकी नासमझी अनुसार तो आजतक कोई धर्म पैदा ही नही हुआ जिसे मानने वालो में अपराधी मौजुद नही हैं | क्योंकि सारे धर्मो में अपराधी मौजुद हैं , जो उस धर्म को मानते हैं ! बौद्ध जैन धर्म में भी अपराधी और भेदभाव करने वाले मौजुद हैं | जो यदि नही होते तो इन धर्मो को मानने वाले किसी भी देश में जेल न होता | जिन जेलो में सजा काट रहे अपराधियो में सिर्फ दुसरे धर्मो के अपराधी नही हैं | जिसका मतलब ये नही कि उस धर्म में अपराध होता है | इसलिए नासमझो की बातो को गंभीरता पुर्वक लेने के बजाय नासमझी बाते करने वाले गंभीर बिमार लोगो का इलाज उन्हे ये समझाकर करना चाहिए कि अंबेडकर भी हिन्दू थे पर उन्होने कभी छुवा छुत नही किया | क्योंकि छुवा छुत यहूदि डीएनए का मनुवादि करता है , हिन्दू नही ! और छुवा छुत करने वाले मनुवादियो ने हिन्दू बनाने का अभियान नही चलाया बल्कि मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानने का अभियान चलाया | क्योंकि मनुवादियो ने हिन्दू धर्म की ठिकेदारी अपनाकर मुल हिन्दूओ को हिन्दू मानने से इंकार कर दिया था | जिसके चलते उन्होने हिन्दू वेद पुराणो का ज्ञान मंदिरो में वेद पुराणो के रचनाकार मुल हिन्दूओ को ही प्रवेश करने से रोका गया था | जैसे कि गोरो ने इस देश को गुलाम करके इस देश के ही लोगो को शासन करने से रोक लगाकर देश गुलाम करके खुद शासक बनकर गेट में लिखते थे कि कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | इसका मतलब ये नही कि गोरे ईसाई थे इसलिए ऐसा कर रहे थे | मनुवादि भी इस देश के मुलनिवासी नही हैं फिर भी इस देश के मुलनिवासियो का शासन नही बल्कि मनुवादि शासन है क्यों कहा जाता है | उसी तरह यहूदि डीएनए का मनुवादि खुदको कट्टर हिन्दू है और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाला मुलनिवासी हिन्दू नही है क्यों कहा जाता है ? क्योंकि मनुवादियो की दबदबा कायम है |जो समाप्त होते ही जिनको समझ में नही आ रहा है कि मुल हिन्दू इस देश का मुलनिवासी है , उसे भी समझ में आ जायेगा | जो मुलनिवासी ही हिन्दू वेद पुराणो में मनुवादियो द्वारा किया गया छेड़छाड़ और ढोंग पाखंड अप्राकृति मिलावट को सुधार करेगा जब मनुवादियो का शासन समाप्त होने के साथ साथ हिन्दू धर्म में मौजुद मनुवादियो की ठिकेदारी भी समाप्त होगी | तबतक नासमझो की नासमझी मनुवादी वायरस ज्ञान बंटते रहेगी ! जिन वायरस ज्ञान को समाप्त करने के लिए इस तरह की सत्य ज्ञान भी एंटिवायरस के रुप में बंटते रहेगी | जिस एंटिवायरस ज्ञान का लिंक कम से कम दस लोगो को जरुर बांटनी चाहिए ! जिसे ज्यादे से ज्यादे लोगो तक बांटने में जितनी देर होगी उतनी जल्दी जल्दी नासमझो की मनुवादी वायरस ज्ञान फैलती रहेगी |

रविवार, 19 जनवरी 2020

इस देश के मुलनिवासी क्या धर्म परिवर्तन करके भीमा कोरेगांव का इतिहास रचना और भारत का संविधान रचना किये थे ?

इस देश के मुलनिवासी क्या धर्म परिवर्तन करके भीमा कोरेगांव का इतिहास रचना और भारत का संविधान रचना किये थे ?
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मनुवादियों की तरह ही अपनी बुद्धी भ्रष्ट करके दिन रात बुद्धीहीन बलहीन और नालायक जैसे ताड़ना बंद करें वे लोग जो दरसल गाली देकर और अपमान करके इस देश के मुलनिवासियों से धर्म परिवर्तन कराना चाहते हैं | जो लोग आखिर बुद्धी नही है , हुनर नही है , कमजोर हैं यह सब कहकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं कि अपना धर्म परिवर्तन किये बगैर इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी कमजोर बुद्धीहीन और नालायक रहते हैं ? और धर्म परिवर्तन करने के बाद विद्वान ताकतवर और लायक बन जाते हैं ! तभी तो जो दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह हिन्दू पर्व त्योहार मनाते हुए अपना धर्म परिवर्तन नही किये हैं , उन्हे हिन्दू पर्व त्योहार मनाना छुड़वाने के लिए कुछ लोग दलाल बनकर उन्हे दिन रात ताड़ते रहते हैं , यह कहकर कि मनुवादि तुम्हे अपने पिछवाड़े की टटी पोछाकर फैकने वाली पत्थर की तरह इस्तेमाल करके फैंक देता है | जिस तरह कि निच तर्क करने वाले ध्यान रखें अंबेडकर भी तबतक हिन्दु ही थे जबतक कि वे धर्म परिवर्तन नही किये थे ! जिससे पहले क्या उनमे ये सब ताना देना तर्क संगत लगती है क्या ? और यदि लगती है तो क्या अजाद संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना बुद्धीहीन हिन्दू ने किया है , जिसे धर्म परिवर्तन करके बुद्धी आयी यह कहना चाहते हैं ? और रही बात कमजोरी की तो याद रखना भीमा कोरेगांव का इतिहास रचने वाले भी होली दिवाली मनाने वाले हिन्दू ही थे | जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों को धुल नही चटवाया था | जो यदि अपना धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों को धुल चटवाया होता तो उन्हे किसी धर्म से जोड़कर जरुर अपने धर्मो का प्रचार प्रसार किया जाता | पर चूँकि उन्होने अपना धर्म परिवर्तन नही किया था , इसलिए उन्हे दलित आदिवासी पिछड़ी कहा जाता है | ये धर्म परिवर्तन कराने वाले हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी को धार्मिक नही बताते हैं | और जब उन्हे धर्म परिवर्तन करा देते हैं तो उन्हे अपने धर्म की पहचान से जोड़कर अपने धर्म की प्रचार प्रसार करने लगते हैं | मानो दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी अपना हिन्दू धर्म परिवर्तन करके ही धार्मिक बन पाता है | जिससे पहले तो वह कोई भगवान पुजा ही नही करता है | सिर्फ होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाता है | और जैसे ही धर्म परिवर्तन करता है तो धर्म परिवर्तन कराने वालो के लिए धर्म से जुड़ी पुजा सुरु कर देता है | जो धर्म परिवर्तन कराने वाले क्यों नही उन दलित आदिवासियों के द्वारा मनाई जानेवाली पर्व त्योहारो में जो कि हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जाती है उसके बारे में साक्षात जानकारी लेने दलित आदिवासी पिछड़ी के द्वारा मनाई जानेवाली पर्व त्योहारो में भाग लेकर पता नही करते हैं कि वे लोग कोई पुजा करते हैं कि वे नास्तिक हैं ? और अगर इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह हिन्दू पर्व त्योहारो को मनाते हुए भगवान की पुजा करता है तो धर्म परिवर्तन कराने वाले उन्हे हिन्दू मानने से वे इंकार क्यों करते हैं ? क्यों उन्हे दिन रात मानो मनुवादियों की तरह ताड़कर उनकी बुद्धी में ये बात जोर जबरजस्ती घुसाया जा रहा है कि तुम हिन्दु नही हो ! जैसे की कभी मनुवादि भी इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू नही तुम शुद्र हो कहकर खुदको हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार बना रखा था | जिन मनुवादियों से लड़ते लड़ते अब जब इस देश के मुलनिवासी अपने हक अधिकारो को और अपने पुर्वजो के दिए गए विरासतो को वापस हासिल करने लगा है तो मनुवादियों के साथ साथ अब धर्म परिवर्तन कराने वाले लोग भी इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी को भ्रमित करने लगे हैं कि तुम हिन्दू नही हो और न ही हिन्दू वेद पुराण तुम्हारे पुर्वजो द्वारा रचे गए हैं | मानो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण यूरेशिया में पैदा हुआ था | इसलिए भीमा कोरेगांव इतिहास रचने वाले और संविधान रचना करने वाले शोषित वीर जवानो और विद्वानो को कमजोर और बुद्धीहीन कहने वाले सिर्फ एक झांकि देख सुन और पढ़कर अपनी सोच को बदल ले कि इस देश के मुलनिवासि बिना धर्म परिवर्तन किये भीमा कोरेगांव और संविधान की रचना कर सकते हैं , न कि धर्म परिवर्तन करने के बाद ही भीमा कोरेगांव इतिहास और संविधान रचना की जा सकती है ! क्योंकि बार बार मैं कुछ धर्म परिवर्तन कराने वाले दलालो को रोज रोज अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए उनके द्वारा अपने धर्म को सबसे बेहत्तर बताने के लिए मनुवादियों कि तरह ही ताड़ते देखता सुनता  हूँ | जो इस देश के मुलनिवासियों जिन्होने अपना हिन्दु धर्म नही बदला है , उन्हे गाली ग्लोज और ऐसी ऐसी हरकते करते रहते हैं कि उन्हे देख सुन पढ़कर कभी कभी यह ख्याल आता है कि ये लोग आखिर मनुवादियों को ताड़कर क्यों नही उन्हे धर्म परिवर्तन कराने का अभियान चलाते हैं ? बल्कि मुझे तो उनके द्वारा दलित आदिवासी पिछड़ी हिन्दूओ को ताड़ते हुए देख सुन और पढ़कर उनमे मनुवादियों की तरह झुठी शान और क्रुरता ही नजर आती है | इसलिए सायद मनुवादि और धर्म परिवर्तन कराने वाले ऐसे कुछ दलाल एक दुसरे को धर्म परिवर्तन कराने के लिए कभी सायद ही इस तरह से ताड़ते हुए देखे सुने और पढ़े जाते हैं | ध्यान रहे यहूदि डीएनए का मनुवादियों को मैं मुल हिन्दू नही मानता हूँ | और वैसे भी विज्ञान प्रमाणित हो चूका है कि मनुवादि मुल हिन्दू हो ही नही सकते ! क्योंकि हिन्दू शब्द का उच्चारण सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों के लिए किया गया है , न कि यूरेशिया से आए मनुवादियों के लिए हिन्दू का उच्चारण किया गया है | इसलिए सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को उनके हिन्दू होने की वजह से दिन रात बुद्धीहीन कमजोर और नालायक कहकर ताड़ने वाले मन में ये बात बिठा लें कि अपना धर्म परिवर्तन किये बिना इस देश के मुलनिवासी ताकतवर बुद्धीमान और लायक है | जिन्हे अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले बुद्धीमान अंबेडकर और भीमा कोरेगांव की इतिहास रचना करने वाले वीर जवानो की तरह बनने के लिए धर्म परिवर्तन करने की जरुरत नही है | बल्कि यदि अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले अंबेडकर ने बचपन में ही यदि धर्म परिवर्तन किये रहते और भीमा कोरेगांव का इतिहास रचने वाले सभी जवानो ने भी यदि बचपन में ही अपना धर्म परिवर्तन किये हुए रहते तो सायद वे न तो अजाद भारत का संविधान रचना कर पाते और न ही भीमा कोरेगांव का इतिहास रच पाते | जिस तरह के वीर विद्वान हिन्दूओ को ताड़कर धर्म परिवर्तन कराने की क्रुरता रचना करने वाले क्या सुख शांती और समृद्धी कायम करेंगे यदि इसी तरह दिन रात ताड़ ताड़कर सिर्फ धर्म परिवर्तन कराने में ही लगे रहेंगे ! जिस तरह की क्रुरता यदि अंबेडकर के समय भी होती होगी तो निश्चित तौर पर यह क्रुरता बंद होनी चाहिए | दरसल ऐसे लोगो की सोच में ही मनुवादियों की सोच संक्रमित हो गयी है | जिसके चलते उन्हे भी मनुवादियों की तरह खुदको उच्च विद्वान और ताकतवर समझने की ऐसी अहंकार की नशा चड़ गयी है , जिसमे चुर होकर वे दिन रात इस देश के मुलनिवासियों को ताड़ते रहते हैं ! बजाय इसके कि उन्हे उन मनुवादियों को ताड़ना चाहिए था जो मुलनिवासियों को ताड़ते रहते हैं | जिनमे और इनमे ताड़ते समय क्या फर्क रह जाता है | खासकर वे लोग जो झुठी शान में डुबे लोगो को बहुत चालाक विद्वान और ताकतवर लोग हैं कहकर उन्हे झाड़ में चड़ाकर भीमा कोरेगांव में धुल चटवाते हैं | और अजाद भारत का संविधान रचना करने की काबिल भी नही बना पाते हैं | जिस तरह के उदाहरन इतिहास में भरे पड़े हैं | जिसे पलटकर बुद्धी का इस्तेमाल करके जाना समझा जा सकता है कि इस देश के मुलनिवासी बिना धर्म परिवर्तन किये ही ज्यादे बुद्धी बल का इतिहास रचे हैं | और बुद्धी बल मैं परजिवी सोच से दुसरो के हक अधिकारो को छिनकर झुठी शान हासिल करने वाले लोगो को नही मानता ! जिन्हे तो मैं सबसे अविकसित बुद्धी बल मानता हूँ | जिन्हे अभी इंसानियत को जमिनी स्तर से समझने और प्राकृति को भी जमिन से जुड़कर समझने के लिए अपनी बुद्धी बल का विकाश उन लोगो की संगत में आकर करना होगा जिनके हक अधिकारो को अभी वे  अविकसित बुद्धी बल की वजह से बुद्धीहीन और कमजोर समझकर छिन रहे हैं ! हलांकि हो सकता है चूँकि हक अधिकारो को छिनने वाली कबिलई सोच कृषि सोच से बहुत पिच्छे की सोच है , जिनके विकाश प्रक्रिया में काफी लंबे समय का फर्क है , इसलिए हजारो साल बाद भी उनकी बुद्धी बल में अबतक इतनी बदलाव नही आ पाई है कि वे परजिवी सोच को त्यागकर अन्याय अत्याचार करना छोड़कर इंसानियत का विकाश वैसा ही कर लें जैसा कि विश्व के तमाम उन इंसानो ने अपने भितर इंसानियत का विकाश सबसे अधिक कर लिया है , जिनके पुर्वजो ने कभी भी किसी देश को गुलाम और प्रजा को दास नही बनाया है | बल्कि जिसने बनाया भी है तो उनकी नई पिड़ि में जिसने भी अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए परजिवी सोच की गलती को स्वीकार करके अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए कुकर्मो की प्राश्चित उनके पुर्वजो के द्वारा छिने गए हक अधिकारो को वापस करने में लगे हुए हैं वे भी मानो अपने भितर इंसानियत का विकाश करते हुए सही विकाश मार्ग को अपना लिए हैं ! और जो नही लगे हैं उन्ही के खिलाफ तो आज भी पुरी अजादी का संघर्ष चल रहा है |

मुफ्त में इतना सारा दान दक्षिणा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ?

मुफ्त में इतना सारा दान दक्षिणा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ? 
khoj123,भुख,गरिबी,


कहीं पर एक गुरुघंटाल द्वारा भक्तो को प्रवचन देते हुए ऑडियो विडियो देख सुन रहा था कि जो सिर्फ पेट के लिए जिये वह जानवर है ! जिसके विचारो पर मैं यही कहुँगा कि सिर्फ पेट के लिए जिने वालो को जानवर कहने वाले गुरुघंटाल ढोंगी पाखंडी वैसे मांसिक बिमार लोग हैं , जिनकी वजह से मानवता तो सबसे अधिक खतरे में है ही , पर पृथ्वी भी सबसे अधिक खतरे में है ! क्योंकि पेट के अलावे भी कुछ और की चाहत को पुरा करने के लिए ऐसे गुरुघंटाल ढोंगी पाखंडी लोग खुदको धरती का सबसे उच्च प्राणी कहकर झुठी शान में डुबकर धरती को ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने के लिए दिन रात ब्रेनवाश करने में लगे हुए हैं | जिनसे ब्रेनवाश हुए लोग धरती से ही उच्च ज्ञान वरदान पाकर धरती को ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने के साथ साथ खुदको भी भष्म करने में लगे हुए हैं | जो लोग ही दरसल अपडेट भष्मासुर हैं | जो दुसरो को भष्म करने के लिए भष्मासुर की तरह पिच्छे तो पड़े हैं ही , पर खुदको भी भष्म करते जा रहे हैं | जिस तरह के ढोंगी पाखंडी और भष्मासुरो से बचकर रहना चाहिए उन सभी इंसानो को जिनको लगता है कि इंसानो की वजह से ही अस्ट्रेलिया में जो अग्निकांड होकर लाखो जनवर मरे और मर रहे हैं , उस तरह की घटना के लिए ऐसे ही ब्रेनवाश हुए इंसान जिम्मेवार हैं | जिस घटना से सच्चे इंसानियत का ज्ञान लेने वाले तमाम इंसानो को प्राकृति के बिच मौजुद निर्दोश जानवर ही नही बल्कि प्राकृति का ध्यान रखना चाहिए | न कि भ्रम ज्ञान बांटने वाले गुरुघंटालो की ढोंग पाखंड ज्ञान की बातो को अपनी जिवन का मुल आदर्श मानकर भष्मासुर बनना चाहिए ! क्योंकि गुरुघंटालो को तो चूँकि बैठे बैठे ठुस ठुसकर खाते हुए पेट फटने तक मुफ्त में इतना सारा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ? जिन्हे गरिबी भुखमरी से मर रहे लोगो के बिच एक महिने के लिए बिना कोई दान दक्षिणा दिये भुखे पेट छोड़ दो तो पता चल जायेगा गरिबी भुखमरी देने वाले लोग बुरे सोच वाले होते हैं कि जिनकी जिवन को वे सिर्फ पेट के पिच्छे भागने वाले लोग जानवर होते हैं कह रहे हैं वह बुरी सोच वाली जिवन है ! जिस तरह के ढोंगी पाखंडी एक भी गुरुघंटालो की मौत भुखमरी से हुई है क्या ? और यदि हुई भी है तो पता कर लिया जाय कि कितने गुरुघंटालो की मौत भुखमरी से हर साल होती हैं ! हाँ यदि वे अँधविश्वास में भुखा रहकर दरसल आत्महत्या किये हो तो वह बात अलग है | वैसे धरती में ऐसे गुरुघंटालो की भी कमी नही है जो जान बुझकर सिर्फ इस विश्वास में अन्न जल त्यागकर ज्ञान बांटते रहते हैं कि आत्महत्या करने से स्वर्ग मिलेगा | मैं आँख मुँदकर आत्महत्या करने वालो की बात कर रहा हूँ न कि उन लोगो की बात कर रहा हूँ जिनके हक अधिकारो को लुटकर दरसल हत्या किये जा रहे हैं | बल्कि उनकी बात कर रहा हूँ जो जान बुझकर खाना पीना छोड़कर आँख मुँदकर सिर्फ यह सोचकर आत्महत्या करते हैं कि उनको स्वर्ग की प्राप्ति होगी | जिनको उस चीज की लालच है जिसका स्वाद आजतक किसी ने भी नही चखा है | और न ही उस स्वाद के बारे में कोई प्रमाणित जानकारी मौजुद है | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि इंसान अभी पृथ्वी को छोड़कर बाकि सारे ग्रहो में कैसी जिवन है ? इसके बारे में भी नही जान सका है तो वह उस स्वर्ग के बारे में क्या जान पायेगा जिसके बारे जानकारी ही उसे उन प्राचिन इंसानो से मिला है जिनको तब बिजली और मोबाईल वगैरा के बारे में भी पता नही था | जो लोग तब बिजली से क्या क्या चलाई और जलाई जाती है इसके बारे में भी नही जानते थे तो क्या जानते उस स्वर्ग के बारे में जिसका अता पता ही लापता है | क्योंकि फिलहाल तो सिर्फ कल्पना है कि ऐसा स्वर्ग नर्क भी होता है जहाँ अबतक मरने वाले सभी लोगो की अबादी मौजुद है | जो जाहिर है वर्तमान में मौजुद चीन की अबादी बल्कि पुरी धरती की अबादी से भी अधिक होगी यदि वाकई में सभी इंसान मर मरकर स्वर्ग नर्क जा रहे हैं | जाहिर है स्वर्ग की कामना में आत्महत्या करना सबसे महंगी ड्रक्स से भी ज्यादा नशा देनेवाला ऐसी चीज की कामना पुरा करने के लिए आत्महत्या करना है , जिसके बारे में सिर्फ कल्पना किया गया है कि स्वर्ग सुख की नशा से बड़कर और कोई नशा ही मौजुद नही है | जिससे अच्छा तो यदि सुख का नसा ही करना है तो धरती में ही बहुत सारी प्रमाणित सुख जिते जी उपलब्ध है | जिसकी नशा करो ! और वैसे भी इंसान भले स्वर्ग के बारे में सारी जिवन बड़बड़ाते रहता है , पर प्रयोगिक जिवन में उसे यदि तुम्हे अभी के अभी स्वर्ग का वासी होना है ? यह सवाल करने पर स्वर्गवाशी सुनकर ही वह घबरा और डर सा जाता है | तभी तो वह किसी भी हालत में जिन्दा रहने की कोशिष में दिन रात लगा रहता है | क्योंकि उसे प्रयोगिक जिवन में पता है कि यदि इंसान अमर हो जाय और भष्मासुर न बने तो पृथ्वी में मौजुद जिवन से बेहत्तर दुसरा और कहीं सुखमय जिवन मौजुद ही नही है | वह तो मुठीभर भष्मासुरो की वजह से करोड़ो इंसानो की जिवन में असहनीय पीड़ा से आत्महत्या करने तक की नौबत आ रही है | जिनके हक अधिकारो को छिनकर उनकी जिवन में शोषण अत्याचार दुःख तकलीफ इतने ज्यादे दिये जा रहे हैं कि करोड़ो पिड़ित इंसानो में कई तो हर रोज आत्महत्या तक कर रहे हैं | जिन दुःख तकलीफ से संघर्ष कर रहे पिड़ित लोगो को तो मैं यही कहूँगा कि आत्महत्या करने पर मजबुर करने वाला भी आखिर में इंसान ही है , और वह भी एकदिन मरेगा इसलिए पीड़ा को हसते हुए झेलकर पीड़ा देने वाले का मरने का इंतजार बेसब्री से करो ! और यदि तुम न कर सके तो अपनी नई पिड़ी को उसके मरने का इंतजार कराओ इस सत्य से निश्चित होकर कि तुम्हे सताते सताते एकदिन सताने वाला खुद खत्म हो जायेगा ! और जिसदिन वह मरेगा उसके द्वारा दी गयी पीड़ा से जितने लोग भी मरे या जिवित बचे हैं , वे सभी यह सोचकर जस्न मना सके कि सबसे अधिक पीड़ा देनेवाला मर गया | क्योंकि सौ प्रतिशत सत्य है कि पीड़ा देनेवाला भी एकदिन मरेगा ! न कि वह अमर है सोचकर पीड़ा दे रहा है | उसे भी मौत की चिंता दिन रात सताती रहती है कि पीड़ा देते देते एकदिन वह खुद ही टपक न जाये ! जिवन मानो तो मुश्किलो भरा है और न मानो तो जिवन ऐसा सुहाना सफर है , जो साक्षात मौजुद प्राकृति भगवान के साथ खड़ा बैठ और सोकर तय किया जा रहा है | क्योंकि साक्षात प्राकृति भगवान सभी इंसानो के भितर मौजुद है | जिस प्राकृति भगवान के जरिये यदि साँसे चल रही है तो उसी प्राकृति भगवान के द्वारा एकदिन साँसे छिन भी ली जायेगी | क्योंकि मरना तो एकदिन सबको है | दुनियाँ की सारी दौलत इकठा करके भी मौत से नही बचा जा सकता | अमिर को भी मरना है और गरिब को भी मरना है | नर को भी मरना है और नारी को भी मरना है | इसलिए तो मेरा विचार है कि दोनो एक दुसरे का पुरक बनके बेहत्तर जिवन की सुरुवात करें | धरती में सुख का अंबार है इसलिए निश्चित तौर पर यदि इंसान ही इंसान को पीड़ा देना छोड़कर एक दुसरे को सुखी करने के लिए सहयोग करने में सुखी महसुश करे तो मुमकिन है सभी इंसान मिलकर अमरता का दवा की खोज तो खैर कभी नही कर सकेगा पर हजारो या सायद लाखो साल जी सके ऐसी खोज सभी इंसानो की बुद्धी का बेहत्तर प्रयोग करके सायद खोज पाने में सफल हो पायेगा ! जिसके लिए सबसे पहले इंसानियत कायम करना होगा न कि खुदकी खुशी के लिए दुसरो को किसी परजिवी मच्छड़ खटमल और जू से भी बड़कर पीड़ा देकर खुदको उच्च इंसान कहकर अहंकार में डुबकर भष्मासुर बनना चाहिए ! क्योंकि मच्छड़ खटमल और जू को मारने की तो दवा इंसानो द्वारा भले खोज लिया गया है , पर दुसरो के हक अधिकारो को चुसकर पीड़ा देने वाले उन इंसानो जिनकी परजिवी सोच है , उनकी परजिवी सोच को बदलने की दवा आजतक न तो बना है , और न ही कभी बन पायेगा सिवाय खुदकी परजिवी सोच को खुद ही बदलने की | जो न बदल पाने की वजह से ही तो करोड़ो लोगो के हक अधिकार हर रोज छिने जा रहे हैं | हलांकि हक अधिकारो को छिनने वाले भी और अधिक और अधिक करते करते दिन रात बेचैन होकर मरते जा रहे हैं ! बजाय इसके कि पहले गरिबी भुखमरी को दुर करके अति अमिरी और अति गरिबी जिवन को संतुलित किया जाता उसके बाद दोनो मिलकर और अधिक और अधिक विकाश रेस लगाया जाता !

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

हिन्दू पुजा में नारियल फोड़ना बौद्धो का सर फोड़ना नही है

हिन्दू पुजा में नारियल फोड़ना बौद्धो का सर फोड़ना नही है !
हिन्दू,बौद्ध,धर्म,khoj123


बहुत से बौद्धो का यह मानना है कि हिन्दू लोग जिसकी पुजा भगवान शिव के रुप में करते हैं , वह दरसल बुद्ध की मूर्ति है | जिस बुद्ध मुर्ति को बौद्ध विहारो में स्थापित करके बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग उसकी पुजा भगवान बुद्ध के रुप में करते हैं | जिन बौद्धो का ही मानना है कि हिन्दुओ की तो पहले कोई मंदिर ही नही हुआ करती थी | जिनका मानना  है कि पुष्यमित्र शुंग का शासन में हिन्दू मंदिर बनना सुरु हुआ | जिसे बहुत से बौद्ध और अन्य भी लोग कथित रामराज मानते हैं | जिस रामराज आने से पहले कोई हिन्दू मंदिर था ही नही | जो बिल्कुल मुमकिन है , क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृती की खुदाई में एक भी मंदिर नही मिले हैं | क्योंकि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के शासनकाल के समय मनुवादि इस देश में घुसपैठ ही नही किये थे तो वे क्या बनवाते अपने पुर्वजो की पुजा कराने वाली भव्य मंदिर | क्योंकि उस समय तो वे यूरेशिया में ही रह रहे थे | जिसके बारे में DNA रिपोर्ट आ चुकि है कि मनुवादियो का डीएनए यूरेशियन डीएनए है | इसलिए बिल्कुल मुमकिन है कि इस देश में बौद्ध विहारो का जो निर्माण बौद्ध धर्म का जन्म होने के बाद सुरु हुआ था , उसकी तोड़फोड़ करके और उसपर कब्जा करके राजा पुष्यमित्र शुंग ने उसे देवी देवता मंदिरो के रुप में अपडेट करके वहाँ पर देव पुजा सुरु किया होगा | जिसके बाद और भी कई देव मंदिरो का निर्माण सुरु हो गया होगा | जिस ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को बौद्धो ने बुद्धम् शरणम् गच्छामि कहकर सेनापति बनाकर दरसल उसके द्वारा खुदकी विनाश को न्योता दिया था | हलांकि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग का शासन समाप्ती के बाद बौद्धो ने अपना बौद्ध विहार बनाना फिर से सुरु कर दिया था | और बौद्ध विहारो के साथ साथ मनुवादियों ने भी अपने पुर्वजो की मुर्ति पुजा कराने के लिए नये मंदिरो का निर्माण करना सुरु किया | जिन मंदिरो में ऐसे भी बहुत सारे मंदिर बनने लगे जहाँ पर पहले से ही लिंग योनी पुजा स्थल मौजुद थे | जिन लिंग योनी पुजा स्थलो के आस पास आज लाखो मंदिरो का निर्माण किये जा चूके हैं | जिन मंदिरो को मनुवादियों का मंदिर कहना पुर्ण रुप से सत्य इसलिए भी नही है , क्योंकि उन मंदिरो में बहुत से मंदिर उन प्राकृति पुजा स्थलो पर बनाया गया है जहाँ पर इस देश के मुलनिवासी मंदिर बनने से पहले से ही पुजा पाठ करते आ रहे हैं | जिस स्थान को कब्जा करके वहाँ पर देव मंदिर अपडेट किये गए हैं | जैसे कि वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे बहुत सारे ढोंग पाखंड अपडेट किये गए हैं | दरसल मनुवादियों ने इस देश में प्रवेश करके शासक बनने के बाद सिर्फ दुसरे की हक अधिकारो में कब्जा करने में ही ज्यादे समय खपाया है | जिन्होने तो हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में भी कब्जा कर रखा है | क्योंकि मनुवादि मुल रुप से न तो हिन्दू है , और न ही उसने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया है | बल्कि उसमे मिलावट और छेड़छाड़ जरुर किया है | जिसके बारे में ठीक से समझने से पहले हमे यह बात समझनी जरुरी है कि हिन्दू शब्द इस देश की मुल पहचान सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृती और सिन्धु नदी से जुड़ा हुआ है | न कि हिन्दू शब्द यूरेशिया से जुड़ा हुआ है | यूरेशिया को अरब और फारस के लोग क्या कहते हैं ये तो वही लोग बेहतर जानते हैं , पर उन्होने सिन्धु को ही हिन्दु कहा यह सभी जानकार जानते हैं | जाहिर है हिन्दू पहचान चूँकि इस देश के मुलनिवासियों की पहचान है , जो की अब धार्मिक पहचान भी बन गया है , इसलिए हिन्दू प्राकृति पुजा स्थलो में देव मंदिर बनाकर वहाँ पर देवताओ की मुर्ती पुजा वह भी हिन्दू वेद पुराणो के द्वारा पाठ करके जबतक होती रहेगी तबतक वह पुर्ण रुप से मनुवादियो की मंदिर हो ही नही सकती | जैसे की देश को गुलाम करके इसी देश में गोरो के द्वारा बनाया गया इंडिया गेट में अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है बोर्ड लगाकर इंडिया गोरो की नही हो सकती थी  | और जो लोग इंडिया गेट में कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है पढ़कर ये तो गोरो का देश है कहकर देश छोड़ते वे दरसल गोरो को अपना देश सौंपते ! मनुवादि भी इसी देश में हिन्दू मंदिर बनाकर हिन्दू वेद पुराणो की पाठ करके अपने पुर्वज देवो की मुर्ति हिन्दू मंदिरो में बिठाकर बाहर गेट में शुद्रो का प्रवेश मना है लिखकर मंदिरो में सिर्फ मनुवादियो का अधिकार है यह साबित करना चाहते हैं जो मुल रुप से साबित कभी कर ही नही सकते |क्योंकि साबित करने के लिए उन्हे हिन्दु पहचान हिन्दू वेद पुराण और हिन्दुस्तान को छोड़कर खुदकी यूरेशियन धरती पर देव मंदिर बनाकर कोई मनुवादि पहचान देकर वहाँ पर मनुस्मृति से पुजा पाठ करना होगा | न कि हिन्दुस्तान में ही रहकर हिन्दू मंदिर पहचान और हिन्दू वेद पुराणो के द्वारा पुजा पाठ करके मनुवादियों का अधिकार पुर्ण रुप से साबित हो पायेगा | क्योंकि सुर्य और लिंग योनी का मंदिर बनाकर मनुवादि उसके बाहर ये कैसे बोर्ड लगा सकते हैं कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है ! सुर्य और लिंग योनी क्या सिर्फ मनुवादियों के लिए हैं ? हलांकि सुर्य और लिंग योनी की पुजा करने के लिये किसी भव्य मंदिर में प्रवेश करने की आवश्यकता भी नही है | क्योंकि प्राकृति की पुजा घर में भी और बाहर खुले में भी की जा सकती है | जिसके चलते ही तो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में प्राकृति की पुजा करने के लिए कोई मंदिर निर्माण नही होते थे | और जैसा कि बहुत से बौद्धो का भी मानना है कि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग जिसे बहुत से लोग क्षत्रीय राम कहते हैं , उसने ही सबसे पहले मंदिरो का निर्माण सुरु किया था | जिस ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग अथवा क्षत्रिय राम के नाम से भव्य मंदिर का निर्माण करने का विवाद लंबे समय से अबतक भी चल रहा है | हलांकि राम का अनेको मंदिर बहुत पहले भी बनवाये जा चुके हैं | जिस राम को  बहुत से बौद्ध दरसल राजा वृहद्रथ ही राम है कहते हैं | फिर उन्ही के ही द्वारा राम जन्म और रामायण पुरी तरह से काल्पनिक है यह बात क्यों कहा जाता है ? क्या बौद्ध सम्राट वृहद्रथ की हत्या जिस पुष्यमित्र शुंग ने किया था वह भी काल्पनिक व्यक्ती है ? जो ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग इतिहास में सम्राट वृहद्रथ मौर्य का सेनापति था | जो सम्राट वृहद्रथ मौर्य का सेनापति बनने के बाद बौद्ध राजा वृहद्रथ की हत्या करके रामराज कायम किया था | जिसका शासन भी काल्पनिक कही जानी चाहिए थी यदि राम काल्पनिक है | क्योंकि निश्चित रुप से यदि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग ही क्षत्रिय राम है , तो फिर राम का जन्म अप्राकृति तरिके से खीर खाकर नही , बल्कि सचमुच में प्राकृति तरिके से जन्मा था | जिसकी जानकारी इतिहास में दर्ज है | हाँ मुमकिन है मनुवादियों ने चूँकि खुदको पुज्यनीय और उच्च बनवाने के लिए इस देश को गुलाम बनाकर हिन्दू वेद पुराणो के साथ साथ इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ और मिलावट किया है , जो कि अभी भी जारी है , इसलिए मुमकिन है उन्होने पुष्यमित्र शुंग का इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ और मिलावट करके ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को अलग और क्षत्रिय राम को अलग पहचान देकर राम को चमत्कारी अवतार साबित करने की कोशिष किया है | अथवा मनुवादियो ने खुदकी पुजा कराने के लिए राम की जिवनी में अलग से काल्पनिक अपडेट किया है | जैसे कि मनुवादियों ने वेद पुराणो को भी अपडेट किया है , ताकि बौद्ध विहारो को तोड़ फोड़ करने के बाद उसपर कब्जा करके उसे देवी देवताओ का मंदिर बनाकर उसमे अपने पुर्वजो की मूर्ति बिठाकर अपडेट वेद पुराणो का भारी बस्ता टांगकर ढोंग पाखंड की व्यापार जमकर किया जा सके | साथ ही जब पुजा किया जाय तो पुष्यमित्र शुंग की भी पुजा राम नाम से हो सके | भले राम काल्पनिक है इस विवाद के साथ उसकी पुजा हो ! क्योंकि बिना चमत्कारी पुरुष बतलाये पुष्यमित्र शुंग की पुजा तो कभी हो ही नही सकती थी खासकर उन प्रजाओ द्वारा जो चारो ओर साक्षात मौजुद उस प्राकृति की पुजा करते हैं , जिसने पुष्यमित्र शुंग को भी जन्म दिया है | जिस प्राकृति को वे सबसे ताकतवर और सारी सृष्टी का रचनाकार , पालनहार बल्कि वह सबकुछ गुणो से युक्त मानते हैं , जिससे कि यह दुनियाँ कायम और संचालित हो रही है | इसलिए पुजा करवाने के लिए देवी देवताओ को प्राकृति से भी अधिक चमत्कारी और शक्तीमान दर्शाना मनुवादियों के लिए जरुरी था | जबकि सच्चाई ये है कि बिना प्राकृति के देवी देवताओ के बारे में भी उन्हे जिन्दा विचरण करते हुए नही बतलाया गया है | क्योंकि देवताओ को प्राकृति के बिना कैसे जिवित रखा जाय मनुवादियों को समझ में नही आ रहा था | जिसके चलते उनको वेद पुराणो में मौजुद प्राकृति ज्ञान में मिलावट और छेड़छाड़ करके सबसे चमत्कारी और ताकतवर दर्शाने के लिए अप्राकृति काल्पनिक बाते गड़नी पड़ी है | जिन देवताओ को मनुवादि अब अपना पुर्वज मानते हैं | जैसा कि मनुवादि राम को भी अपना पुर्वज मानते हैं , न कि शंभुक को अपना पुर्वज मानते हैं | जिन मनुवादियों के पुर्वज माने जानेवाले  चमत्कारी देवता अब इस दुनियाँ में विचरण करने के लिए जिवित नही रहे | और यदि हैं भी तो सिर्फ उनकी कल्पना और आस्था विश्वास में मौजुद हैं | न कि राम अथवा पुष्यमित्र शुंग अब भी जिवित विचरन करते हुए उन मंदिरो में मिल जायेंगे जहाँ पर उनकी मुर्ति बिठाई गयी है | जो स्वभाविक है क्योंकि कोई भी व्यक्ती इस बात को अच्छी तरह से समझ सकता है कि यदि वर्तमान में जन्म ले रहे मनुवादि बाकि इंसानो की तरह ही मरते हैं तो निश्चित तौर पर उनके पुर्वज देवता भी मर गए हैं | जिन देवताओ को संभवता घुमकड़ कबिलई जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले संभवता कपड़ा पहनना भी नही आता था | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके हिन्दू बनने के बाद कपड़ा पहना सीखा और फिर कृषि सभ्यता संस्कृति के बारे में भी जाना | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियों से पारिवारिक रिस्ता जोड़कर हिन्दू परिवार समाज के बारे में जानकर उन्होने इस देश की नारी से अपना वंशवृक्ष भी बड़ा किया | क्योंकि मनुवादियों के पुर्वज इस देश में कबिलई झुंड बनाकर प्रवेश करते समय अपने साथ किसी नारी को नही लाए थे ये बात DNA रिपोर्ट से साबित हो चुका है | इस देश के नारियो के साथ परिवार बसाकर यहूदि DNA का मनुवादियों ने इस देश की हिन्दू सभ्यता संस्कृति में ढलकर बहुत से लाभ लेने के साथ साथ अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत का संक्रमण भी दिए हैं | रही बात मंदिरो की निर्माण करना कराना मनुवादि आखिर कब सिखे तो चूँकि बौद्ध जैन धर्म का स्थापना जब हुआ उस समय तक मनुवादियो की दबदबा इस कृषि प्रधान देश में कायम हो चुकि थी | और मनुवादि लोग सत्ता में भी उच्च पदो में चयन किये जाने लगे थे | जैसा कि इतिहास मौजुद है कि बौद्ध सम्राट ने ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को सेनापति बनाया था | जिस एक उदाहरन से पता चलता है कि बौद्ध लोग मनुवादियो को कितने उच्च पदो में बैठाते थे | नंद सम्राट ने भी तो मनुवादियों को उच्च पद दे रखा था | जिसके चलते जिस नंद सम्राट के बारे में सिर्फ सुनकर शैतान सिकंदर भाग गया था | जो शैतान सिकंदर यूनान से विश्व लुटेरा बनने निकला था | पर जैसे ही पुरी दुनियाँ को लुटते लुटते इस देश में भी लुटपाट करने के लिए प्रवेश किया उसका अंत सुरु हो गया | जिसके चलते वह इस अखंड देश के किनारे हिस्से से ही डरकर भाग गया था | क्योंकि इतिहास गवाह है कि शैतान सिकंदर इस देश का वीर पुरु राजा से अधमरा होकर देश का किनारे हिस्से से ही भाग गया था | इस देश के रक्षको के साथ लड़ते हुए बुरी तरह से जख्मी होने की वजह से भरी जवानी में उसकी मौत हो गई थी | क्योंकि इस देश के वीर रक्षको ने देश और प्रजा की सुरक्षा करते हुए शैतान सिकंदर को इतना मारा कि यूनानी दवा से भी उसका इलाज नही हो पाया | हलांकि बहुत से इतिहासकारो का मानना है कि शैतान सिकंदर पुरु राजा के दिये गए जख्मो की वजह से नही मरा था , बल्कि वह चूँकि वह नशेड़ी था , इसलिए तब इस देश की राजधानी पाटलिपुत्र में कब्जा करने का सपना को साकार नही कर पाया तो खुदको विश्व विजेता सिकंदर इतिहास इस देश में न रच पाने की वजह से इस देश से भागने के बाद तनाव कम करने के लिए और अधिक पिने लगा और पी पीकर भरी जवानी में मर गया था | शैतान सिकंदर ने नंद सम्राट के बारे में सिर्फ सुनकर अपने देश वापस लौटने का फैशला कर लिया था | जिस नंद की हत्या भी तो ब्रह्मण चाणक्य ने सुपारी देकर करवाया था |  जिस चाणक्य पर नंद सम्राट का आरोप था कि उसने मगध की खास पुस्तक को चुराकर उसकी रचनाकार खुदको घोषित किया है | जो पुस्तक आज चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र के रुप में जाना जाता है | जिस चाणक्य के बारे में यह भी कहा जाता है कि कपटी चाणक्य ने अपनी स्वार्थपुर्ति और मगध में मनुवादियों की दबदबा कायम करने के लिए पहले तो लोहा ही लोहा को काटता है की सिद्धांत पर मुलनिवासी सम्राट नंद से भिड़वाने के लिए मुलनिवासी चंद्रगुप्त मौर्य को दास के रुप में खरिदकर उसे अपना शिष्य बनाकर उसे तैयार करके मगध की सत्ता प्राप्त करने तक उसकी बुद्धी बल का भरपुर इस्तेमाल किया , उसके बाद उसे सिकंदर के सेनापति की बेटी से चंद्रगुप्त के इंकार करने के बावजुद भी जोर जबरजस्ती विवाह करवाया | ताकि कबिलई विदेशियों से रिस्ता जोड़ने के बाद उनका खास सहयोग लेकर इस कृषि प्रधान देश में कबिलई सोच से ब्रह्मण राज कायम कर सके | और जिसमे रुकावट पैदा न हो इसके लिए चाणक्य ने इस देश के मुलनिवासी चंद्रगुप्त सम्राट को जहर देकर मारने की भी कोशिष किया था , ऐसा भी बहुत से इतिहासकारो का मानना है | पर चंद्रगुप्त को दिया गया जहर वाला भोजन को गलती से उसकी गर्भवती पत्नी ने खा लिया और चंद्रगुप्त के बजाय चंद्रगुप्त की पत्नी मर गयी थी , इसलिए जब चाणक्य को सजा देने की मांग उठने लगी तो चाणक्य सजा से बचने के लिए जंगलो में जाकर छिप गया था | जो लंबे समय तक घने जंगलो में ही जिवन यापन करने लगा | पर चूँकि कहा जाता है कि चंद्रगुप्त की गर्भवती पत्नी चाणक्य द्वारा दीया गया जहर से मरने के बावजुद भी , पेट में मौजुद बच्चा जिवित जन्म लेकर बच गया था , इसलिए चंद्रगुप्त के द्वारा बौद्ध भिक्षु बनने के बाद उसका बच्चा बड़ा होकर अपनी माँ का बदला चाणक्य से लेने की ठानकर मगध का सम्राट बनने के बाद चाणक्य को जंगलो से खोजकर जिन्दा जलवा दिया था | हलांकि बहुत से इतिहासकारो का मानना है कि जब चाणक्य पर चंद्रगुप्त को जहर देने , जिसे चंद्रगुप्त की गर्भवती पत्नी खाकर मर गई ऐसा आरोप लगा तो वह बदनामी सह नही सका और जंगलो में जाकर उसने बदनामी न सह सकने की वजह से आत्महत्या कर लिया था | हलांकि सच्चाई जो भी हो कि चाणक्य ने बदनामी से आत्महत्या किया था कि उसे चंद्रग्प्त की पत्नी को जहर देकर मारने की सजा देने के लिए जिन्दा जला दिया गया था , पर इतना तो तय है कि बौद्धो ने ब्रह्मणो को खास पदो पर बिठाया था | जिसकी वजह से ही बौद्धो का यदि विनाश हो रहा था तो फिर सवाल उठता है बौद्ध शासक बार बार एक ही गलती को क्यों दोहरा रहे थे ? बल्कि आज भी यह बाते बहुत से विद्वानो द्वारा कही सुनी जाती है कि बहुत से बौद्ध मंदिरो में जो भारी भेदभाव होता है , वह इसलिए होता है क्योंकि बौद्ध धर्म में भी ब्रह्मण घुसकर उच्च पदो में बैठकर बौद्ध मंदिरो में भेदभाव कर रहे हैं | जो बुद्धम् शरनम् गच्छामि सुनकर बौद्ध भिक्षु तो बन गए पर अपनी मनुस्मृति बुद्धी को अबतक नही छोड़ पाये हैं  | जो बात यदि सत्य है तो फिर चाहे हिन्दू मंदिरो हो या फिर बौद्ध मंदिर , दोनो जगह भष्म मनुस्मृति का भुत मंडरा रहा है | यानि जो हिन्दू मनुवादियों से अजादी पाने के लिए बौद्ध धर्म अपना रहे हैं , उनमे से बहुत से लोग बौद्ध मंदिरो में भी जाकर भारी भेदभाव का सामना कर रहे हैं | बल्कि बाकि धर्मो में भी भारी भेदभाव कायम है इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता | जाहिर है मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा का विवाद तब से सुरु हुआ होगा जबसे धर्म को अपना धँधा बनाने वाले ढोंगी पाखंडियों की घुसपैठ सभी धर्मो में सुरु हुई होगी | जिसके चलते आज भी धर्म के नाम से दंगा फसाद और अनेको विवाद होकर हिंसक लड़ाई जारी है | 

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...