इस देश के मुलनिवासी क्या धर्म परिवर्तन करके भीमा कोरेगांव का इतिहास रचना और भारत का संविधान रचना किये थे ?

इस देश के मुलनिवासी क्या धर्म परिवर्तन करके भीमा कोरेगांव का इतिहास रचना और भारत का संविधान रचना किये थे ?
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मनुवादियों की तरह ही अपनी बुद्धी भ्रष्ट करके दिन रात बुद्धीहीन बलहीन और नालायक जैसे ताड़ना बंद करें वे लोग जो दरसल गाली देकर और अपमान करके इस देश के मुलनिवासियों से धर्म परिवर्तन कराना चाहते हैं | जो लोग आखिर बुद्धी नही है , हुनर नही है , कमजोर हैं यह सब कहकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं कि अपना धर्म परिवर्तन किये बगैर इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी कमजोर बुद्धीहीन और नालायक रहते हैं ? और धर्म परिवर्तन करने के बाद विद्वान ताकतवर और लायक बन जाते हैं ! तभी तो जो दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह हिन्दू पर्व त्योहार मनाते हुए अपना धर्म परिवर्तन नही किये हैं , उन्हे हिन्दू पर्व त्योहार मनाना छुड़वाने के लिए कुछ लोग दलाल बनकर उन्हे दिन रात ताड़ते रहते हैं , यह कहकर कि मनुवादि तुम्हे अपने पिछवाड़े की टटी पोछाकर फैकने वाली पत्थर की तरह इस्तेमाल करके फैंक देता है | जिस तरह कि निच तर्क करने वाले ध्यान रखें अंबेडकर भी तबतक हिन्दु ही थे जबतक कि वे धर्म परिवर्तन नही किये थे ! जिससे पहले क्या उनमे ये सब ताना देना तर्क संगत लगती है क्या ? और यदि लगती है तो क्या अजाद संविधान और हिन्दू कोड बिल की रचना बुद्धीहीन हिन्दू ने किया है , जिसे धर्म परिवर्तन करके बुद्धी आयी यह कहना चाहते हैं ? और रही बात कमजोरी की तो याद रखना भीमा कोरेगांव का इतिहास रचने वाले भी होली दिवाली मनाने वाले हिन्दू ही थे | जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों को धुल नही चटवाया था | जो यदि अपना धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों को धुल चटवाया होता तो उन्हे किसी धर्म से जोड़कर जरुर अपने धर्मो का प्रचार प्रसार किया जाता | पर चूँकि उन्होने अपना धर्म परिवर्तन नही किया था , इसलिए उन्हे दलित आदिवासी पिछड़ी कहा जाता है | ये धर्म परिवर्तन कराने वाले हिन्दू धर्म में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी को धार्मिक नही बताते हैं | और जब उन्हे धर्म परिवर्तन करा देते हैं तो उन्हे अपने धर्म की पहचान से जोड़कर अपने धर्म की प्रचार प्रसार करने लगते हैं | मानो दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी अपना हिन्दू धर्म परिवर्तन करके ही धार्मिक बन पाता है | जिससे पहले तो वह कोई भगवान पुजा ही नही करता है | सिर्फ होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाता है | और जैसे ही धर्म परिवर्तन करता है तो धर्म परिवर्तन कराने वालो के लिए धर्म से जुड़ी पुजा सुरु कर देता है | जो धर्म परिवर्तन कराने वाले क्यों नही उन दलित आदिवासियों के द्वारा मनाई जानेवाली पर्व त्योहारो में जो कि हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जाती है उसके बारे में साक्षात जानकारी लेने दलित आदिवासी पिछड़ी के द्वारा मनाई जानेवाली पर्व त्योहारो में भाग लेकर पता नही करते हैं कि वे लोग कोई पुजा करते हैं कि वे नास्तिक हैं ? और अगर इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह हिन्दू पर्व त्योहारो को मनाते हुए भगवान की पुजा करता है तो धर्म परिवर्तन कराने वाले उन्हे हिन्दू मानने से वे इंकार क्यों करते हैं ? क्यों उन्हे दिन रात मानो मनुवादियों की तरह ताड़कर उनकी बुद्धी में ये बात जोर जबरजस्ती घुसाया जा रहा है कि तुम हिन्दु नही हो ! जैसे की कभी मनुवादि भी इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू नही तुम शुद्र हो कहकर खुदको हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार बना रखा था | जिन मनुवादियों से लड़ते लड़ते अब जब इस देश के मुलनिवासी अपने हक अधिकारो को और अपने पुर्वजो के दिए गए विरासतो को वापस हासिल करने लगा है तो मनुवादियों के साथ साथ अब धर्म परिवर्तन कराने वाले लोग भी इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी को भ्रमित करने लगे हैं कि तुम हिन्दू नही हो और न ही हिन्दू वेद पुराण तुम्हारे पुर्वजो द्वारा रचे गए हैं | मानो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण यूरेशिया में पैदा हुआ था | इसलिए भीमा कोरेगांव इतिहास रचने वाले और संविधान रचना करने वाले शोषित वीर जवानो और विद्वानो को कमजोर और बुद्धीहीन कहने वाले सिर्फ एक झांकि देख सुन और पढ़कर अपनी सोच को बदल ले कि इस देश के मुलनिवासि बिना धर्म परिवर्तन किये भीमा कोरेगांव और संविधान की रचना कर सकते हैं , न कि धर्म परिवर्तन करने के बाद ही भीमा कोरेगांव इतिहास और संविधान रचना की जा सकती है ! क्योंकि बार बार मैं कुछ धर्म परिवर्तन कराने वाले दलालो को रोज रोज अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए उनके द्वारा अपने धर्म को सबसे बेहत्तर बताने के लिए मनुवादियों कि तरह ही ताड़ते देखता सुनता  हूँ | जो इस देश के मुलनिवासियों जिन्होने अपना हिन्दु धर्म नही बदला है , उन्हे गाली ग्लोज और ऐसी ऐसी हरकते करते रहते हैं कि उन्हे देख सुन पढ़कर कभी कभी यह ख्याल आता है कि ये लोग आखिर मनुवादियों को ताड़कर क्यों नही उन्हे धर्म परिवर्तन कराने का अभियान चलाते हैं ? बल्कि मुझे तो उनके द्वारा दलित आदिवासी पिछड़ी हिन्दूओ को ताड़ते हुए देख सुन और पढ़कर उनमे मनुवादियों की तरह झुठी शान और क्रुरता ही नजर आती है | इसलिए सायद मनुवादि और धर्म परिवर्तन कराने वाले ऐसे कुछ दलाल एक दुसरे को धर्म परिवर्तन कराने के लिए कभी सायद ही इस तरह से ताड़ते हुए देखे सुने और पढ़े जाते हैं | ध्यान रहे यहूदि डीएनए का मनुवादियों को मैं मुल हिन्दू नही मानता हूँ | और वैसे भी विज्ञान प्रमाणित हो चूका है कि मनुवादि मुल हिन्दू हो ही नही सकते ! क्योंकि हिन्दू शब्द का उच्चारण सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों के लिए किया गया है , न कि यूरेशिया से आए मनुवादियों के लिए हिन्दू का उच्चारण किया गया है | इसलिए सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को उनके हिन्दू होने की वजह से दिन रात बुद्धीहीन कमजोर और नालायक कहकर ताड़ने वाले मन में ये बात बिठा लें कि अपना धर्म परिवर्तन किये बिना इस देश के मुलनिवासी ताकतवर बुद्धीमान और लायक है | जिन्हे अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले बुद्धीमान अंबेडकर और भीमा कोरेगांव की इतिहास रचना करने वाले वीर जवानो की तरह बनने के लिए धर्म परिवर्तन करने की जरुरत नही है | बल्कि यदि अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले अंबेडकर ने बचपन में ही यदि धर्म परिवर्तन किये रहते और भीमा कोरेगांव का इतिहास रचने वाले सभी जवानो ने भी यदि बचपन में ही अपना धर्म परिवर्तन किये हुए रहते तो सायद वे न तो अजाद भारत का संविधान रचना कर पाते और न ही भीमा कोरेगांव का इतिहास रच पाते | जिस तरह के वीर विद्वान हिन्दूओ को ताड़कर धर्म परिवर्तन कराने की क्रुरता रचना करने वाले क्या सुख शांती और समृद्धी कायम करेंगे यदि इसी तरह दिन रात ताड़ ताड़कर सिर्फ धर्म परिवर्तन कराने में ही लगे रहेंगे ! जिस तरह की क्रुरता यदि अंबेडकर के समय भी होती होगी तो निश्चित तौर पर यह क्रुरता बंद होनी चाहिए | दरसल ऐसे लोगो की सोच में ही मनुवादियों की सोच संक्रमित हो गयी है | जिसके चलते उन्हे भी मनुवादियों की तरह खुदको उच्च विद्वान और ताकतवर समझने की ऐसी अहंकार की नशा चड़ गयी है , जिसमे चुर होकर वे दिन रात इस देश के मुलनिवासियों को ताड़ते रहते हैं ! बजाय इसके कि उन्हे उन मनुवादियों को ताड़ना चाहिए था जो मुलनिवासियों को ताड़ते रहते हैं | जिनमे और इनमे ताड़ते समय क्या फर्क रह जाता है | खासकर वे लोग जो झुठी शान में डुबे लोगो को बहुत चालाक विद्वान और ताकतवर लोग हैं कहकर उन्हे झाड़ में चड़ाकर भीमा कोरेगांव में धुल चटवाते हैं | और अजाद भारत का संविधान रचना करने की काबिल भी नही बना पाते हैं | जिस तरह के उदाहरन इतिहास में भरे पड़े हैं | जिसे पलटकर बुद्धी का इस्तेमाल करके जाना समझा जा सकता है कि इस देश के मुलनिवासी बिना धर्म परिवर्तन किये ही ज्यादे बुद्धी बल का इतिहास रचे हैं | और बुद्धी बल मैं परजिवी सोच से दुसरो के हक अधिकारो को छिनकर झुठी शान हासिल करने वाले लोगो को नही मानता ! जिन्हे तो मैं सबसे अविकसित बुद्धी बल मानता हूँ | जिन्हे अभी इंसानियत को जमिनी स्तर से समझने और प्राकृति को भी जमिन से जुड़कर समझने के लिए अपनी बुद्धी बल का विकाश उन लोगो की संगत में आकर करना होगा जिनके हक अधिकारो को अभी वे  अविकसित बुद्धी बल की वजह से बुद्धीहीन और कमजोर समझकर छिन रहे हैं ! हलांकि हो सकता है चूँकि हक अधिकारो को छिनने वाली कबिलई सोच कृषि सोच से बहुत पिच्छे की सोच है , जिनके विकाश प्रक्रिया में काफी लंबे समय का फर्क है , इसलिए हजारो साल बाद भी उनकी बुद्धी बल में अबतक इतनी बदलाव नही आ पाई है कि वे परजिवी सोच को त्यागकर अन्याय अत्याचार करना छोड़कर इंसानियत का विकाश वैसा ही कर लें जैसा कि विश्व के तमाम उन इंसानो ने अपने भितर इंसानियत का विकाश सबसे अधिक कर लिया है , जिनके पुर्वजो ने कभी भी किसी देश को गुलाम और प्रजा को दास नही बनाया है | बल्कि जिसने बनाया भी है तो उनकी नई पिड़ि में जिसने भी अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए परजिवी सोच की गलती को स्वीकार करके अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए कुकर्मो की प्राश्चित उनके पुर्वजो के द्वारा छिने गए हक अधिकारो को वापस करने में लगे हुए हैं वे भी मानो अपने भितर इंसानियत का विकाश करते हुए सही विकाश मार्ग को अपना लिए हैं ! और जो नही लगे हैं उन्ही के खिलाफ तो आज भी पुरी अजादी का संघर्ष चल रहा है |

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