मुफ्त में इतना सारा दान दक्षिणा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ?

मुफ्त में इतना सारा दान दक्षिणा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ? 
khoj123,भुख,गरिबी,


कहीं पर एक गुरुघंटाल द्वारा भक्तो को प्रवचन देते हुए ऑडियो विडियो देख सुन रहा था कि जो सिर्फ पेट के लिए जिये वह जानवर है ! जिसके विचारो पर मैं यही कहुँगा कि सिर्फ पेट के लिए जिने वालो को जानवर कहने वाले गुरुघंटाल ढोंगी पाखंडी वैसे मांसिक बिमार लोग हैं , जिनकी वजह से मानवता तो सबसे अधिक खतरे में है ही , पर पृथ्वी भी सबसे अधिक खतरे में है ! क्योंकि पेट के अलावे भी कुछ और की चाहत को पुरा करने के लिए ऐसे गुरुघंटाल ढोंगी पाखंडी लोग खुदको धरती का सबसे उच्च प्राणी कहकर झुठी शान में डुबकर धरती को ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने के लिए दिन रात ब्रेनवाश करने में लगे हुए हैं | जिनसे ब्रेनवाश हुए लोग धरती से ही उच्च ज्ञान वरदान पाकर धरती को ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने के साथ साथ खुदको भी भष्म करने में लगे हुए हैं | जो लोग ही दरसल अपडेट भष्मासुर हैं | जो दुसरो को भष्म करने के लिए भष्मासुर की तरह पिच्छे तो पड़े हैं ही , पर खुदको भी भष्म करते जा रहे हैं | जिस तरह के ढोंगी पाखंडी और भष्मासुरो से बचकर रहना चाहिए उन सभी इंसानो को जिनको लगता है कि इंसानो की वजह से ही अस्ट्रेलिया में जो अग्निकांड होकर लाखो जनवर मरे और मर रहे हैं , उस तरह की घटना के लिए ऐसे ही ब्रेनवाश हुए इंसान जिम्मेवार हैं | जिस घटना से सच्चे इंसानियत का ज्ञान लेने वाले तमाम इंसानो को प्राकृति के बिच मौजुद निर्दोश जानवर ही नही बल्कि प्राकृति का ध्यान रखना चाहिए | न कि भ्रम ज्ञान बांटने वाले गुरुघंटालो की ढोंग पाखंड ज्ञान की बातो को अपनी जिवन का मुल आदर्श मानकर भष्मासुर बनना चाहिए ! क्योंकि गुरुघंटालो को तो चूँकि बैठे बैठे ठुस ठुसकर खाते हुए पेट फटने तक मुफ्त में इतना सारा मिलता रहता है कि उन्हे क्या पता कि भुख से बड़ा दुःख क्या होता है ? जिन्हे गरिबी भुखमरी से मर रहे लोगो के बिच एक महिने के लिए बिना कोई दान दक्षिणा दिये भुखे पेट छोड़ दो तो पता चल जायेगा गरिबी भुखमरी देने वाले लोग बुरे सोच वाले होते हैं कि जिनकी जिवन को वे सिर्फ पेट के पिच्छे भागने वाले लोग जानवर होते हैं कह रहे हैं वह बुरी सोच वाली जिवन है ! जिस तरह के ढोंगी पाखंडी एक भी गुरुघंटालो की मौत भुखमरी से हुई है क्या ? और यदि हुई भी है तो पता कर लिया जाय कि कितने गुरुघंटालो की मौत भुखमरी से हर साल होती हैं ! हाँ यदि वे अँधविश्वास में भुखा रहकर दरसल आत्महत्या किये हो तो वह बात अलग है | वैसे धरती में ऐसे गुरुघंटालो की भी कमी नही है जो जान बुझकर सिर्फ इस विश्वास में अन्न जल त्यागकर ज्ञान बांटते रहते हैं कि आत्महत्या करने से स्वर्ग मिलेगा | मैं आँख मुँदकर आत्महत्या करने वालो की बात कर रहा हूँ न कि उन लोगो की बात कर रहा हूँ जिनके हक अधिकारो को लुटकर दरसल हत्या किये जा रहे हैं | बल्कि उनकी बात कर रहा हूँ जो जान बुझकर खाना पीना छोड़कर आँख मुँदकर सिर्फ यह सोचकर आत्महत्या करते हैं कि उनको स्वर्ग की प्राप्ति होगी | जिनको उस चीज की लालच है जिसका स्वाद आजतक किसी ने भी नही चखा है | और न ही उस स्वाद के बारे में कोई प्रमाणित जानकारी मौजुद है | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि इंसान अभी पृथ्वी को छोड़कर बाकि सारे ग्रहो में कैसी जिवन है ? इसके बारे में भी नही जान सका है तो वह उस स्वर्ग के बारे में क्या जान पायेगा जिसके बारे जानकारी ही उसे उन प्राचिन इंसानो से मिला है जिनको तब बिजली और मोबाईल वगैरा के बारे में भी पता नही था | जो लोग तब बिजली से क्या क्या चलाई और जलाई जाती है इसके बारे में भी नही जानते थे तो क्या जानते उस स्वर्ग के बारे में जिसका अता पता ही लापता है | क्योंकि फिलहाल तो सिर्फ कल्पना है कि ऐसा स्वर्ग नर्क भी होता है जहाँ अबतक मरने वाले सभी लोगो की अबादी मौजुद है | जो जाहिर है वर्तमान में मौजुद चीन की अबादी बल्कि पुरी धरती की अबादी से भी अधिक होगी यदि वाकई में सभी इंसान मर मरकर स्वर्ग नर्क जा रहे हैं | जाहिर है स्वर्ग की कामना में आत्महत्या करना सबसे महंगी ड्रक्स से भी ज्यादा नशा देनेवाला ऐसी चीज की कामना पुरा करने के लिए आत्महत्या करना है , जिसके बारे में सिर्फ कल्पना किया गया है कि स्वर्ग सुख की नशा से बड़कर और कोई नशा ही मौजुद नही है | जिससे अच्छा तो यदि सुख का नसा ही करना है तो धरती में ही बहुत सारी प्रमाणित सुख जिते जी उपलब्ध है | जिसकी नशा करो ! और वैसे भी इंसान भले स्वर्ग के बारे में सारी जिवन बड़बड़ाते रहता है , पर प्रयोगिक जिवन में उसे यदि तुम्हे अभी के अभी स्वर्ग का वासी होना है ? यह सवाल करने पर स्वर्गवाशी सुनकर ही वह घबरा और डर सा जाता है | तभी तो वह किसी भी हालत में जिन्दा रहने की कोशिष में दिन रात लगा रहता है | क्योंकि उसे प्रयोगिक जिवन में पता है कि यदि इंसान अमर हो जाय और भष्मासुर न बने तो पृथ्वी में मौजुद जिवन से बेहत्तर दुसरा और कहीं सुखमय जिवन मौजुद ही नही है | वह तो मुठीभर भष्मासुरो की वजह से करोड़ो इंसानो की जिवन में असहनीय पीड़ा से आत्महत्या करने तक की नौबत आ रही है | जिनके हक अधिकारो को छिनकर उनकी जिवन में शोषण अत्याचार दुःख तकलीफ इतने ज्यादे दिये जा रहे हैं कि करोड़ो पिड़ित इंसानो में कई तो हर रोज आत्महत्या तक कर रहे हैं | जिन दुःख तकलीफ से संघर्ष कर रहे पिड़ित लोगो को तो मैं यही कहूँगा कि आत्महत्या करने पर मजबुर करने वाला भी आखिर में इंसान ही है , और वह भी एकदिन मरेगा इसलिए पीड़ा को हसते हुए झेलकर पीड़ा देने वाले का मरने का इंतजार बेसब्री से करो ! और यदि तुम न कर सके तो अपनी नई पिड़ी को उसके मरने का इंतजार कराओ इस सत्य से निश्चित होकर कि तुम्हे सताते सताते एकदिन सताने वाला खुद खत्म हो जायेगा ! और जिसदिन वह मरेगा उसके द्वारा दी गयी पीड़ा से जितने लोग भी मरे या जिवित बचे हैं , वे सभी यह सोचकर जस्न मना सके कि सबसे अधिक पीड़ा देनेवाला मर गया | क्योंकि सौ प्रतिशत सत्य है कि पीड़ा देनेवाला भी एकदिन मरेगा ! न कि वह अमर है सोचकर पीड़ा दे रहा है | उसे भी मौत की चिंता दिन रात सताती रहती है कि पीड़ा देते देते एकदिन वह खुद ही टपक न जाये ! जिवन मानो तो मुश्किलो भरा है और न मानो तो जिवन ऐसा सुहाना सफर है , जो साक्षात मौजुद प्राकृति भगवान के साथ खड़ा बैठ और सोकर तय किया जा रहा है | क्योंकि साक्षात प्राकृति भगवान सभी इंसानो के भितर मौजुद है | जिस प्राकृति भगवान के जरिये यदि साँसे चल रही है तो उसी प्राकृति भगवान के द्वारा एकदिन साँसे छिन भी ली जायेगी | क्योंकि मरना तो एकदिन सबको है | दुनियाँ की सारी दौलत इकठा करके भी मौत से नही बचा जा सकता | अमिर को भी मरना है और गरिब को भी मरना है | नर को भी मरना है और नारी को भी मरना है | इसलिए तो मेरा विचार है कि दोनो एक दुसरे का पुरक बनके बेहत्तर जिवन की सुरुवात करें | धरती में सुख का अंबार है इसलिए निश्चित तौर पर यदि इंसान ही इंसान को पीड़ा देना छोड़कर एक दुसरे को सुखी करने के लिए सहयोग करने में सुखी महसुश करे तो मुमकिन है सभी इंसान मिलकर अमरता का दवा की खोज तो खैर कभी नही कर सकेगा पर हजारो या सायद लाखो साल जी सके ऐसी खोज सभी इंसानो की बुद्धी का बेहत्तर प्रयोग करके सायद खोज पाने में सफल हो पायेगा ! जिसके लिए सबसे पहले इंसानियत कायम करना होगा न कि खुदकी खुशी के लिए दुसरो को किसी परजिवी मच्छड़ खटमल और जू से भी बड़कर पीड़ा देकर खुदको उच्च इंसान कहकर अहंकार में डुबकर भष्मासुर बनना चाहिए ! क्योंकि मच्छड़ खटमल और जू को मारने की तो दवा इंसानो द्वारा भले खोज लिया गया है , पर दुसरो के हक अधिकारो को चुसकर पीड़ा देने वाले उन इंसानो जिनकी परजिवी सोच है , उनकी परजिवी सोच को बदलने की दवा आजतक न तो बना है , और न ही कभी बन पायेगा सिवाय खुदकी परजिवी सोच को खुद ही बदलने की | जो न बदल पाने की वजह से ही तो करोड़ो लोगो के हक अधिकार हर रोज छिने जा रहे हैं | हलांकि हक अधिकारो को छिनने वाले भी और अधिक और अधिक करते करते दिन रात बेचैन होकर मरते जा रहे हैं ! बजाय इसके कि पहले गरिबी भुखमरी को दुर करके अति अमिरी और अति गरिबी जिवन को संतुलित किया जाता उसके बाद दोनो मिलकर और अधिक और अधिक विकाश रेस लगाया जाता !

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