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गुरुवार, 30 जनवरी 2020

हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा के नाम से ज्ञान की पुजा क्यों किया जाता है ?

हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा के नाम से ज्ञान की पुजा क्यों किया जाता है ?
khoj123,सरस्वती पूजा ,वसंत पंचमी


चूँकि वेद पुराण काल में लिखाई पढ़ाई की खोज नही हुई थी | इसलिए वेद पुराण ज्ञान अथवा आवाज ध्वनि स्वर  से और दिखाकर ज्ञान बांटी जाती थी | जो सुनाई और दिखाई देने की गुण और ताकत भी साक्षात प्राकृति में मौजुद है | इसलिए सरस्वति की पुजा भी हिन्दू पुजा में शामिल है | जिस स्वर की पुजा ज्ञान का प्रतिक के रुप में इसलिए की जाती है , क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि जब पढ़ाई लिखाई की खोज इंसानो ने नही किया था , उस समय स्वर अथवा सिर्फ वेद या पुराण अथवा दिखाकर ज्ञान बांटी जाती थी | जिस वेद पुराण से आज भी बोलकर दिखाकर ज्ञान बांटी जाती है | पर साथ साथ अब लिखाई पढ़ाई और अन्य भी कई माध्यम से ज्ञान बांटी जाती है | और जबतक वेद अथवा स्वर और पुराण अथवा जो दिखलाई देता है , साक्षात प्राकृति में मौजुद रहेगी तबतक वेद पुराण ज्ञान मौजुद रहेगी | जिसके माध्यम से बोल और दिखलाकर ज्ञान बांटा जाता रहेगा | जो सुनाई और दिखलाई देनेवाला कृपा यदि प्राकृति भगवान की मौजुद न होती तो न किसी धार्मिक पुस्तको की रचना होती , और न ही किसी को मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा दिखलाई देता | और न ही कोई भाषण प्रवचन दे पाता | न गा पाता और न सुन बोल पाता और न ही अपना अभिनय दिखा पाता | तब इंसानो के साथ साथ बाकि भी जिव निर्जिव की मौजुदगी धरती में कैसी होती कल्पना से भी परे है | जो दिखाई और सुनाई देनेवाली प्रमाणित कृपा साक्षात प्राकृति की है | जिसे वेद अथवा स्वर और पुराण अथवा जो दिखाई दे चाहे वह पुराना और नया ही क्यों न हो ! पर वेद पुराणो में मनुवादियों के द्वारा ढोंग पाखंड का संक्रमण की वजह से हिन्दू धर्म की मान्यताओ को चूँकि अप्राकृति तरिके से बतलाया जाता आ रहा है , इसलिए हिन्दू धर्म के बारे में ऐसी बहुत सारी भ्रम फैली हुई है , जिसे सत्य मानकर असली सत्य को मानो छिपाई गई है | जिसका बाहर आना जैसे जैसे सुरु हुआ , वैसे वैसे मनुवादियों के द्वारा बांटा गया अप्राकृति झुठ में छिपी सत्य सामने आकर झुठ का भष्म होना सुरु हो गया है | जैसे कि मनुस्मृति की झुठ अथवा अप्राकृति मान्यताओ को इसलिए भष्म किया गया क्योंकि उसमे सेवा सुरक्षा के नाम से शोषण अत्याचार का नियम कानून को उत्तम सत्य मार्ग बतलाने के साथ साथ यह अप्राकृति झुठ भी बांटा गया है कि इंसान का जन्म नारी योनी से नही बल्कि पुरुष के मुँह छाती जँघा और चरणो से जन्म से ही उच्च निच बनाकर हुआ है | जिस तरह की अप्राकृति ढोंग पाखंड को हिन्दू धर्म नही मानता | और चूँकि अबतक भी मनुवादि हिन्दू धर्म की ठिकेदारी लिये हुए है , इसलिए अपनी मनुस्मृति सोच से वेद पुराण की ज्ञान अप्राकृति मिलावट करके जलदेव वायुदेव सूर्यदेव वगैरा बतलाकर बांटा जा रहा है | क्योंकि हिन्दू प्राकृति पुजा में उसे अपने पुर्वज देवो की पुजा की मिलावट करके उनकी भी पुजा करवाना है | जिसके चलते ही तो वह देव और दानव में देव की पुजा प्राकृति पुजा में मिलावट करके करवाता आ रहा है | पर चूँकि वह अपनी कल्पनाओ मं मानो झुठ की मिलावट सत्य में कर भी देता है तो भी चूँकि सत्य सत्य होता है , इसलिए प्राकृति सूर्य हवा पानी धरती को मनुवादियों द्वारा सूर्यदेव वायुदेव जलदेव वगैरा कहकर पुजा करने से मनुवादियो की पुर्वजो की पुजा नही बल्कि प्राकृति की ही पुजा होगी | जैसे की मनुवादि यदि सुबह शाम सूर्यदानव कहकर सूर्य की पुजा करेगा तो सूर्य की पुजा दानव पुजा नही हो जायेगा | सूर्य आखिर सूर्य है जो साक्षात प्राकृति का प्रतीक है | जो सभी इंसानो के जिवन के लिये है न की सिर्फ देव या दानव के लिये है | 

फिलहाल एक सूर्य की जानकारी इंसानो को जिस तरह मौजुद है उसी तरह सभी धर्मो में एक ही भगवान मौजुद है |


जिसकी कृपा सभी धर्मो के भक्तो में है | लेकिन फिर भी मानो इस धर्म में भगवान नही है कहकर दुसरे धर्मो को क्यों अपना लिया जाता है ? जबकि धर्म परिवर्तन के बाद भगवान का परिवर्तन नही होता है | जबकि चाहे जितनी बार धर्म परिवर्तन करो भगवान की वही मान्यता स्थिर कायम रहता है कि सबकी जिवन मरन किसी एक सत्य से जुड़ा हुआ है | जिसकी पुजा अलग अलग नामो से अलग अलग धर्मो में किया जाता है | जिस सत्य से दुनियाँ कायम है | लेकिन भी बहुत सारे भक्तो द्वारा अपना धर्म परिवर्तन इसलिए कर लिया जाता है , क्योंकि एक भगवान की पुजा करने के लिए इंसानो द्वारा भगवान को लेकर अलग अलग आस्था और विश्वास मौजुद है | जिसकी वजह से इंसानो ने अपनी अलग अलग आस्था और विश्वास से अलग अलग धर्म बनाकर जिससे दुनियाँ कायम है , जिसे अलग अलग नाम दिया गया है | हिन्दू धर्म में भगवान नाम दिया गया है | जिस भगवान की पुजा वह प्राकृति में आस्था और विश्वाश करके उसकी पुजा करता है | जैसे की बौद्ध धर्म में बुद्ध की मूर्ति और तस्वीर के सामने अपना सर झुकाकर उसकी आरती उतारते हुए भगवान बुद्ध कहकर पुजा किया जाता है | क्योंकि बौद्धो का मानना है कि बुद्ध ने सत्य बुद्धी अथवा सत्य की प्राप्ति पीपल पेड़ के निचे कर लिया था | जिस बुद्ध की बड़ी बड़ी प्रचिन मूर्ति हजारो साल पुरानी मिली है | हलांकि हिन्दू धर्म में मौजुद कई लोग उस मूर्ति को उस शिव की मूर्ति का कॉपी मानते हैं , जिसकी पुजा हिन्दू धर्म में सत्य का प्रतीक के रुप में किया जाता है | क्योंकि हिन्दू धर्म यह भी मानता है कि सत्य पर दुनियाँ टिकी हुई है | क्योंकि सत्य साक्षात प्रमाणित मौजुद होता है | जैसे की प्राकृति साक्षात प्रमाणित  मौजुद है | जिससे पुरी दुनियाँ प्रमाणित कायम है | और जैसा कि हमे पता है कि सत्य एक ही है , न कि अलग अलग है | चाहे उस एक सत्य को प्राप्त जिस धर्म के भक्त ने कर लिया है | जिस सत्य के बारे में हिन्दू वेद पुराणो में ज्ञान बांटते हुए यह बतलाया गया है कि एकबार भष्मासुर ने तपस्या करके सत्य से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह जिसपर अपना हाथ धरेगा वह भष्म हो जायेगा | जो वरदान भष्मासुर को मानो तपष्या अथवा वर्तमान अपडेट भाषा में पढ़ाई करके झुठ को भष्म करने की डिग्री हासिल हुआ था | जिस डिग्री का गलत इस्तेमाल करके भष्मासुर सत्य को ही भष्म करके झुठ कायम करने की गंदी सोच से खुदको ही भोष्म कर लिया था | क्योंकि जो डिग्री उसे कठिन तप करके मिला था वरदान के रुप में उसका गलत इस्तेमाल करते करते एकदिन काम वासना में खुशी से नाचते नाचते अपने आप में भी गलत इस्तेमाल करके प्राप्त डिग्री से खुदको ही भष्म कर लिया | हलांकि खुदको भष्म करने से पहले डिग्री का गलत इस्तेमाल करके बहुत सारे निर्दोशो को भी भष्म किया था | जिस तरह का ज्ञान प्रतीक के रुप में अनेको उदाहरन हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद है | और वेद अथवा स्वर भी साक्षात प्राकृति का ही प्रतीक है | जो स्वर सबके लिये है न कि चुनिंदा लोगो के लिए है | क्योंकि स्वर की आवश्यकता बुद्धी ज्ञान के लिए किसे जरुरी नही है ?बल्कि अब तो लिखाई पढ़ाई से भी ज्ञान ली और बांटी जाती है | जिस ज्ञान की पुजा सरस्वती पुजा है | जिसे स्वर ज्ञान की पुजा इसलिए भी कहा जाता है , क्योंकि लिखाई पढ़ाई से पहले वेद अथवा स्वर से ज्ञान बांटा जाता था | जिसमे मनुवादियो द्वारा भेदभाव करते हुए उच्च निच भेदभाव करते हुए मुलनिवासियों को निच  घोषित करके वेद ज्ञान मना किया गया था | जैसे कि आज लिखाई पढ़ाई मना रहता | वेद ज्ञान गलती से भी यदि निच घोषित किया गया मुलनिवासी ले लेता तो उसके कान में गर्म लोहा पीघलाकर डाल दिया जाता था | और अगर गलती से वेद ज्ञान लेकर बांटते हुए पकड़ा जाता तो उसकी जीभ काट दी जाती थी | जिस तरह के नियम कानून की रचना करने वाले जन्म से उच्च विद्वान पंडित और जन्म से उच्च वीर क्षत्रिय रक्षक कहलाने के काबिल मनुवादी सिर्फ खुदको खुद ही मान सकता है | बल्कि मनुवादियों ने यह भी नियम कानून बनाया कि जिसे निच घोषित किया गया है मनुस्मृति में उसे धन रखने का अधिकार नही है | जिसके पास धन यदि है भी तो उसे जब्त कर लिया जाय | जिससे क्या लगता है कि मनुवादी शासन स्थापित होने से पहले जन्म से धन्ना वैश्य भी क्या कहला सकता था ? क्योंकि हुआ भी होगा तो निश्चित तौर पर उसके पास जो धन होगा उसमे उन लोगो का ही धन होगा जिन्हे निच घोषित करके उनके हक अधिकारो को लुटा गया है | जो हक अधिकार वापस मिलने पर इस देश के सभी मुलनिवासी गरिबी भुखमरी से छुटकारा तो पा ही लेगा पर यदि कथित खुदको जन्म से उच्च जाति कहने वाले परिवारो में भी यदि एक प्रतिशत भी अबादी अपनो द्वारा अनदेखा करके अबतक गरिबी जिवन जी रहे होंगे तो उनकी भी गरिबी भुखमरी दुर होगी | क्योंकि हिन्दू जमिन से जुड़े कृषि प्रधान जिवनशैली पर सुख शांती और समृद्धी कायम होगा इसपर प्रमुखता देता है | जिस कृषी प्रधान जिवनशैली में यदि कोई भुखा प्यासा है तो अन्न जल का भंडार रखने वाला शासक सबकी भुख प्यास मिटाता है | न कि खुद तो बिसलेरी एक्वा पिते हुए बासमती खाये और प्रजा भुखा प्यासा रहे | बल्कि मुलनिवासी बलि सम्राट ने तो बामन अथवा गरिब ब्रह्मण को दान देकर अपनी सत्ता तक गंवाकर खुदको देवो द्वारा कैद कर लिया था | क्योंकि देवो ने अपनी जिवन गुजारा करने की याचना जिस बलि सम्राट से करके दान मांगा था , उसी महादानी सम्राट को जेल में कैद करके उसकी राजपाट पर कब्जा कर लिया था | इसलिए पुरानी छल कपट घटना से सबक लेते हुए मुलनिवासी भले अब दान में इतना बड़ा दान तो कभी नही देगा पर मुलनिवासी सत्ता वापस आने पर सबकी गरिबी भुखमरी दुर जरुर करेगा | बाकि इमानदारी से धन्ना कुबेर विद्वान और रक्षक बनने की हुनर मौजुद जिन मनुवादियों में है वे शिक्षक भी बनेगे , रक्षक भी बनेंगे और धन्ना भी बनेंगे | पर हाँ वैसा भेदभाव और छल कपट से नही बनेंगे जैसे कि एकलव्य के साथ किया गया था | 

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