छुवा छुत गंदी सोच को तो अबतक शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था

छुवा छुत गंदी सोच को तो अबतक शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था
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छुवा छुत इस देश का मुलनिवासी नही करता चाहे वह जिस धर्म में मौजुद हो | बल्कि छुवा छुत मनुवादी करता है , जो युरेशिया से आया है | क्योंकि अब तो DNA रिपोर्ट से भी साबित हो चूका है , कि मनुवादी मुल हिन्दू नही बल्कि यहूदि डीएनए के विदेशी मुल के कबिलई लोग हैं | जिन्होने न तो सिंधु घाटी सभ्यता कृषि संस्कृति का निर्माण किया है , और न ही हिन्दू कलैंडर और वेद पुराण की रचना किया है | और न ही मनुवादी लोगो ने हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली मुलता साक्षात विज्ञान प्रमाणित कृषि व प्राकृतिक से जुड़ी होली दिवाली मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार की रचना किया है | जिसके चलते उन्हे हिन्दूओ की कृषि सभ्यता संस्कृती से न तो जमिन से जुड़ा हुआ लगाव है , और न ही इस देश के मुलनिवासियों के जमिन से जुड़ी हुई कृषि जिवन से लगाव है | लगाव होता तो प्रजा सेवा के लिए छुवा छुत मनुस्मृति रचना नही , बल्कि छुवा छुत मुक्त अजाद देश का संविधान रचना करते | जैसा कि अवसर मिलने पर मुल हिन्दू अंबेडकर ने किया | हलांकि यह बात अलग है कि अजाद देश का संविधान लागू होने के इतने सालो बाद भी छुवा छुत कायम है | क्योंकि गोरो का शासन समाप्त होने के बाद मनुवादियों को मुल हिन्दू मानकर मनुवादी शासन कायम हो गया है | जिस शासन के दौरान मुल हिन्दू के द्वारा रचे गए संविधान में मनुस्मृति की मिलावट करने की कोशिष इसलिए भी हो रही है , क्योंकि जैसा की बतलाया कि मनुवादि अबतक भेदभाव करना नही छोड़े हैं | जिसके चलते ही तो वे मनुस्मृति को अपडेट करते रहना चाहते हैं | क्योंकि वे मुल हिन्दू नही हैं , इसलिए मुल हिन्दूओ से छुवा छुत करते हैं | मनुवादी जिस मनुस्मृति सोच के हैं उसी सोच से तो शासन चलाने के लिए भेदभाव शोषण अत्याचार हुनर का उपयोग में लगे हुए हैं | जबकि मनुवादियो को हजारो सालो का छुवा छुत विरासत को ढोते हुए मनुस्मृति के भष्म होते ही उसकी छुवा छुत हड्डियों को बहाकर खुदको अबतक बदल लेना चाहिए था | अथवा कान में गर्म पीघला लोहा डालने , जीभ काटने ,गले में थुक हांडी टंगवाने ,कमर में झाड़ू टंगवाने  जैसी गंदी सोच रखने वाले ताड़नहार वीर विद्वानो की गंदी सोच को शौचालय में मल मुत्र की तरह त्यागकर उसमे पानी डालकर बहा देना चाहिए था | क्योंकि मन की गंदगी तन की गंदगी से ज्यादे खतरनाक है | जिसका इलाज नही है , भले तन की गंदगी से होने वाली बिमारियों का अनेको इलाज खोज लिया गया है | पर मन की गंदगी से होनेवाली भेदभाव करने वाली बिमारी का इलाज आजतक पुरे विश्व में खोजा नही जा सका है | चाहे क्यों न पुरी दुनियाँ के वैज्ञानिक और डॉक्टर खतरनाक से खतरनाक बिमारी का इलाज खोजने में दिन रात लगे हुए हो , लेकिन एक भी वैज्ञानिक और डॉक्टर भेदभाव करने वाली बिमारी का कोई दवा मिल जाय इसकी खोज में नही लगे हैं | क्योंकि मन की गंदगी से होनेवाली भेदभाव करने वाली बिमारी का इलाज किसी दवा से मुमकिन ही नही है | मुमकिन ही नही है कि कोई ऐसा दवा बन जाय जिसे भेदभाव करने वाला मरिज खाकर भेदभाव करना छोड़ दे | जिसके चलते आजतक ऐसा दवा नही बन सका जिसे खाकर मनुवादि भेदभाव करना छोड़ दे | जिसके कारन भी सायद आजतक मनुस्मृति सोच रखने वाले उच्च डिग्री और खुब सारा धन संपदा हासिल करके भी छुवा छुत करते हैं | जबकि उन्हे विकसित परिवार समाज के बारे में ज्ञान हासिल होते ही यह समझ जाना चाहिए था कि छुवा छुत सोच परिवार समाज और गणतंत्र को विकसित करने वाली सोच नही है | अगर रहता तो छुवा छुत को विकसित सोच मानकर पुरे विश्व में छुवा छुत करना अच्छा है , ये ज्ञान विद्यालयो में बांटी जाती | जिसे अपनाकर मानवता का विकाश हो जाएगा यह मानकर प्रजा का सेवक बनते समय भी यह शपथ दिलवाई जाती कि अच्छी तरह से छुवा छुत करते हुए प्रजा की सेवा की जायेगी | बल्कि यदि छुवा छुत और गोरा काला जैसे भेदभाव न हो तो इंसानियत कायम होकर प्रजा भेदभाव के खिलाफ कभी आंदोलन संघर्ष ही नही चलाएगी | पर चूँकि मनुवादी शासन में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भारी भेदभाव कायम होकर अबतक भी मनुस्मृति सोच को अपडेट करना जारी है | इसलिए अधुरी अजादी महसुश करते हुए मुलनिवासी प्रजा आज भी मनुवादी गंदी सोच के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रही है | जिसके बारे में मनुवादियो को यदि कोई अनुभव नही है कि भेदभाव के खिलाफ आंदोलन संघर्ष क्या होता है ? तो वे अपनी दबदबा मनुवादी शासन में ही भेदभाव के खिलाफ चल रहे आंदोलन संघर्ष को देख सुन और पढ़कर कुछ समय के लिए खुदको भेदभाव से पिड़ित मानकर जानकारी हासिल कर सकते हैं | और अगर तब भी उनको प्रयोगिक जानकारी नही मिलती है , तो वे गोरो का शासन के बारे में जानकारी हासिल करते हुए गोरो से अजादी आंदोलन में भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव रखने वाले गाँधी के साथ भेदभाव हुई उस घटना को याद करे , जब गाँधी के साथ रेल में एक ऐसी घटना घटी थी , जब गाँधी सायद यह सोचकर गोरो के साथ गोरो की तरह सुटबुट लगाकर रेल सफर करते थे कि गाँधी और गोरे दोनो को एक साथ खास रेल डब्बे में सफर करते हुए कोई भेदभाव नही होता होगा | बल्कि भेदभाव तो सिर्फ मनुस्मृति में जिसे शुद्र निच कहा गया है , उसके साथ होता है | लेकिन गाँधी उस समय इतना झटका खाकर जमिन में गिरे कि कुछ समय में ही शहरी सुटबुट से सिधे ग्रामीण धोती डंडा में आ गए | जब गोरो ने उसे काला इंडियन कहकर लात मारकर रेल डब्बे से बाहर फैंक दिया था | जिस समय गाँधी को भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव अच्छी तरह से हो गया होगा | जबकि इस देश के मुलनिवासियों को गोरो के आने से भी हजारो साल पहले से ही भेदभाव क्या होता है उसका प्रयोगिक अनुभव है | क्योंकि हजारो सालो से मनुवादियो द्वारा छुवा छुत किये जाने से इस देश के हर उस मुलनिवासी को छुवा छुत का प्रयोगिक अनुभव है , जिसे कभी न कभी मनुवादियो द्वारा भेदभाव किया गया है , या फिर अपने पुर्वजो के साथ किये गए भारी भेदभाव के बारे में जानकारी हो | जो भेदभाव मनुवादि धन दौलत बुद्धी बल और धर्म देखकर नही करते हैं , बल्कि इस देश का मुलनिवासी कौन है यह देखकर करते हैं | जैसे की ब्रह्मण गाँधी ने भेदभाव का प्रयोगिक अनुभव के बावजुद भी इस देश के मुलनिवासियों को हरिजन कहकर छल कपट का सहारा लेकर भेदभाव युक्त पुणे में अंबेडकर के साथ समझौता किया | जो स्वभाविक है क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि भेदभाव बिमारी का कोई इलाज नही है | जिसे ही तो अंबेडकर ने भी मनुवादियो को मुल हिन्दू मानकर हिन्दूओ में बिमारी है कहा था | न कि वे खुदको भेदभाव करने वाले गंदी सोच से बिमार युक्त परिवार में पैदा हुआ मानकर हिन्दू धर्म का बुराई कर रहे थे | बल्कि वे मनुवादियो की उस गंदी सोच को बिमार बताये हैं , जो मुल हिन्दू सोच नही है | क्योंकि भेदभाव करनेवाला मनुवादि मुल हिन्दू नही है | जो बात यदि सत्य नही होता तो खुदको हिन्दू बताने वाले मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में आजतक नही होता , बल्कि भेदभाव मुक्त बहाली होकर बहुसंख्यक मुलनिवासियों का हिस्सेदारी बेहत्तर होता चाहे वे जिस धर्म को अपना लिये हो | क्योंकि मनुवादियो ने देश विदेश में कई उच्च डिग्री हासिल करने वाले अंबेडकर के साथ छुवा छुत करना नही छोड़ा तो बाकि उन मुलनिवासियो के साथ भेदभाव करना क्या तबतक छोड़ेंगे जबतक की इस देश में मुलनिवासियों का शासन आने के साथ साथ लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भेदभाव मुक्त  हक अधिकार कायम न हो जाय | वह भी वे पुरी तरह छोड़ेंगे नही बल्कि बेहत्तर शासन में भेदभाव करने वालो को सजा देने के लिए बनाये गए नियम कानून का पालन करेंगे | जो वे अभी इसलिए नही कर पा रहे हैं क्योंकि मनुवादियों का शासन है | जिसके चलते वे पुरी आत्मविश्वाश के साथ भेदभाव शोषण अत्याचार कर रहे हैं | इसलिए इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस धर्म में मौजुद हो सबका DNA एक है , वे सभी मन में ये बात बिठा ले कि जिस भी पार्टी में भी मनुवादियो की दबदबा कायम है उसे न तो वोट दें , और न ही लालच में आकर उस पार्टी से चुनाव लड़ें | मुलनिवासी शासन एक झटके में आ जायेगी | बल्कि मैने जो ज्ञान बांटा है मुलनिवासी शासन कायम करने के लिए उसे यदि अपनाया गया तो निश्चित रुप से अगली चुनाव की जरुरत भी नही पड़ेगी और मनुवादि सरकार गिरकर मुलनिवासी शासन स्थापित हो जायेगी | क्योंकि सभी मुलनिवासी सांसद यदि एकजुट होकर मनुवादी सरकार गिराकर अपनी खुदकी सरकार बना ले तो फिर से जब भी चुनाव होगी मनुवादी सरकार कभी बन ही नही पायेगी | पर चूँकि मुलनिवासियों के बिच फूट डालकर मनुवादी राज कायम है , इसलिए जबतक सभी मुलनिवासी सांसद और विधायको समेत तमाम मुलनिवासी नेता चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , उनके बिच एकता कायम होकर इस देश की राजनिती में क्रांतीकारी बदलाव नही आ जाती , तबतक मानो मनुवादि अपने गुलामो की सहायता और मुलनिवासी सांसद विधायक बल से ही मनुवादी राज कायम किये हुए रहेंगे |

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