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शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

हिन्दू पुजा में नारियल फोड़ना बौद्धो का सर फोड़ना नही है

हिन्दू पुजा में नारियल फोड़ना बौद्धो का सर फोड़ना नही है !
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बहुत से बौद्धो का यह मानना है कि हिन्दू लोग जिसकी पुजा भगवान शिव के रुप में करते हैं , वह दरसल बुद्ध की मूर्ति है | जिस बुद्ध मुर्ति को बौद्ध विहारो में स्थापित करके बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग उसकी पुजा भगवान बुद्ध के रुप में करते हैं | जिन बौद्धो का ही मानना है कि हिन्दुओ की तो पहले कोई मंदिर ही नही हुआ करती थी | जिनका मानना  है कि पुष्यमित्र शुंग का शासन में हिन्दू मंदिर बनना सुरु हुआ | जिसे बहुत से बौद्ध और अन्य भी लोग कथित रामराज मानते हैं | जिस रामराज आने से पहले कोई हिन्दू मंदिर था ही नही | जो बिल्कुल मुमकिन है , क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृती की खुदाई में एक भी मंदिर नही मिले हैं | क्योंकि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के शासनकाल के समय मनुवादि इस देश में घुसपैठ ही नही किये थे तो वे क्या बनवाते अपने पुर्वजो की पुजा कराने वाली भव्य मंदिर | क्योंकि उस समय तो वे यूरेशिया में ही रह रहे थे | जिसके बारे में DNA रिपोर्ट आ चुकि है कि मनुवादियो का डीएनए यूरेशियन डीएनए है | इसलिए बिल्कुल मुमकिन है कि इस देश में बौद्ध विहारो का जो निर्माण बौद्ध धर्म का जन्म होने के बाद सुरु हुआ था , उसकी तोड़फोड़ करके और उसपर कब्जा करके राजा पुष्यमित्र शुंग ने उसे देवी देवता मंदिरो के रुप में अपडेट करके वहाँ पर देव पुजा सुरु किया होगा | जिसके बाद और भी कई देव मंदिरो का निर्माण सुरु हो गया होगा | जिस ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को बौद्धो ने बुद्धम् शरणम् गच्छामि कहकर सेनापति बनाकर दरसल उसके द्वारा खुदकी विनाश को न्योता दिया था | हलांकि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग का शासन समाप्ती के बाद बौद्धो ने अपना बौद्ध विहार बनाना फिर से सुरु कर दिया था | और बौद्ध विहारो के साथ साथ मनुवादियों ने भी अपने पुर्वजो की मुर्ति पुजा कराने के लिए नये मंदिरो का निर्माण करना सुरु किया | जिन मंदिरो में ऐसे भी बहुत सारे मंदिर बनने लगे जहाँ पर पहले से ही लिंग योनी पुजा स्थल मौजुद थे | जिन लिंग योनी पुजा स्थलो के आस पास आज लाखो मंदिरो का निर्माण किये जा चूके हैं | जिन मंदिरो को मनुवादियों का मंदिर कहना पुर्ण रुप से सत्य इसलिए भी नही है , क्योंकि उन मंदिरो में बहुत से मंदिर उन प्राकृति पुजा स्थलो पर बनाया गया है जहाँ पर इस देश के मुलनिवासी मंदिर बनने से पहले से ही पुजा पाठ करते आ रहे हैं | जिस स्थान को कब्जा करके वहाँ पर देव मंदिर अपडेट किये गए हैं | जैसे कि वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे बहुत सारे ढोंग पाखंड अपडेट किये गए हैं | दरसल मनुवादियों ने इस देश में प्रवेश करके शासक बनने के बाद सिर्फ दुसरे की हक अधिकारो में कब्जा करने में ही ज्यादे समय खपाया है | जिन्होने तो हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में भी कब्जा कर रखा है | क्योंकि मनुवादि मुल रुप से न तो हिन्दू है , और न ही उसने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया है | बल्कि उसमे मिलावट और छेड़छाड़ जरुर किया है | जिसके बारे में ठीक से समझने से पहले हमे यह बात समझनी जरुरी है कि हिन्दू शब्द इस देश की मुल पहचान सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृती और सिन्धु नदी से जुड़ा हुआ है | न कि हिन्दू शब्द यूरेशिया से जुड़ा हुआ है | यूरेशिया को अरब और फारस के लोग क्या कहते हैं ये तो वही लोग बेहतर जानते हैं , पर उन्होने सिन्धु को ही हिन्दु कहा यह सभी जानकार जानते हैं | जाहिर है हिन्दू पहचान चूँकि इस देश के मुलनिवासियों की पहचान है , जो की अब धार्मिक पहचान भी बन गया है , इसलिए हिन्दू प्राकृति पुजा स्थलो में देव मंदिर बनाकर वहाँ पर देवताओ की मुर्ती पुजा वह भी हिन्दू वेद पुराणो के द्वारा पाठ करके जबतक होती रहेगी तबतक वह पुर्ण रुप से मनुवादियो की मंदिर हो ही नही सकती | जैसे की देश को गुलाम करके इसी देश में गोरो के द्वारा बनाया गया इंडिया गेट में अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है बोर्ड लगाकर इंडिया गोरो की नही हो सकती थी  | और जो लोग इंडिया गेट में कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है पढ़कर ये तो गोरो का देश है कहकर देश छोड़ते वे दरसल गोरो को अपना देश सौंपते ! मनुवादि भी इसी देश में हिन्दू मंदिर बनाकर हिन्दू वेद पुराणो की पाठ करके अपने पुर्वज देवो की मुर्ति हिन्दू मंदिरो में बिठाकर बाहर गेट में शुद्रो का प्रवेश मना है लिखकर मंदिरो में सिर्फ मनुवादियो का अधिकार है यह साबित करना चाहते हैं जो मुल रुप से साबित कभी कर ही नही सकते |क्योंकि साबित करने के लिए उन्हे हिन्दु पहचान हिन्दू वेद पुराण और हिन्दुस्तान को छोड़कर खुदकी यूरेशियन धरती पर देव मंदिर बनाकर कोई मनुवादि पहचान देकर वहाँ पर मनुस्मृति से पुजा पाठ करना होगा | न कि हिन्दुस्तान में ही रहकर हिन्दू मंदिर पहचान और हिन्दू वेद पुराणो के द्वारा पुजा पाठ करके मनुवादियों का अधिकार पुर्ण रुप से साबित हो पायेगा | क्योंकि सुर्य और लिंग योनी का मंदिर बनाकर मनुवादि उसके बाहर ये कैसे बोर्ड लगा सकते हैं कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है ! सुर्य और लिंग योनी क्या सिर्फ मनुवादियों के लिए हैं ? हलांकि सुर्य और लिंग योनी की पुजा करने के लिये किसी भव्य मंदिर में प्रवेश करने की आवश्यकता भी नही है | क्योंकि प्राकृति की पुजा घर में भी और बाहर खुले में भी की जा सकती है | जिसके चलते ही तो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में प्राकृति की पुजा करने के लिए कोई मंदिर निर्माण नही होते थे | और जैसा कि बहुत से बौद्धो का भी मानना है कि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग जिसे बहुत से लोग क्षत्रीय राम कहते हैं , उसने ही सबसे पहले मंदिरो का निर्माण सुरु किया था | जिस ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग अथवा क्षत्रिय राम के नाम से भव्य मंदिर का निर्माण करने का विवाद लंबे समय से अबतक भी चल रहा है | हलांकि राम का अनेको मंदिर बहुत पहले भी बनवाये जा चुके हैं | जिस राम को  बहुत से बौद्ध दरसल राजा वृहद्रथ ही राम है कहते हैं | फिर उन्ही के ही द्वारा राम जन्म और रामायण पुरी तरह से काल्पनिक है यह बात क्यों कहा जाता है ? क्या बौद्ध सम्राट वृहद्रथ की हत्या जिस पुष्यमित्र शुंग ने किया था वह भी काल्पनिक व्यक्ती है ? जो ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग इतिहास में सम्राट वृहद्रथ मौर्य का सेनापति था | जो सम्राट वृहद्रथ मौर्य का सेनापति बनने के बाद बौद्ध राजा वृहद्रथ की हत्या करके रामराज कायम किया था | जिसका शासन भी काल्पनिक कही जानी चाहिए थी यदि राम काल्पनिक है | क्योंकि निश्चित रुप से यदि ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग ही क्षत्रिय राम है , तो फिर राम का जन्म अप्राकृति तरिके से खीर खाकर नही , बल्कि सचमुच में प्राकृति तरिके से जन्मा था | जिसकी जानकारी इतिहास में दर्ज है | हाँ मुमकिन है मनुवादियों ने चूँकि खुदको पुज्यनीय और उच्च बनवाने के लिए इस देश को गुलाम बनाकर हिन्दू वेद पुराणो के साथ साथ इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ और मिलावट किया है , जो कि अभी भी जारी है , इसलिए मुमकिन है उन्होने पुष्यमित्र शुंग का इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ और मिलावट करके ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को अलग और क्षत्रिय राम को अलग पहचान देकर राम को चमत्कारी अवतार साबित करने की कोशिष किया है | अथवा मनुवादियो ने खुदकी पुजा कराने के लिए राम की जिवनी में अलग से काल्पनिक अपडेट किया है | जैसे कि मनुवादियों ने वेद पुराणो को भी अपडेट किया है , ताकि बौद्ध विहारो को तोड़ फोड़ करने के बाद उसपर कब्जा करके उसे देवी देवताओ का मंदिर बनाकर उसमे अपने पुर्वजो की मूर्ति बिठाकर अपडेट वेद पुराणो का भारी बस्ता टांगकर ढोंग पाखंड की व्यापार जमकर किया जा सके | साथ ही जब पुजा किया जाय तो पुष्यमित्र शुंग की भी पुजा राम नाम से हो सके | भले राम काल्पनिक है इस विवाद के साथ उसकी पुजा हो ! क्योंकि बिना चमत्कारी पुरुष बतलाये पुष्यमित्र शुंग की पुजा तो कभी हो ही नही सकती थी खासकर उन प्रजाओ द्वारा जो चारो ओर साक्षात मौजुद उस प्राकृति की पुजा करते हैं , जिसने पुष्यमित्र शुंग को भी जन्म दिया है | जिस प्राकृति को वे सबसे ताकतवर और सारी सृष्टी का रचनाकार , पालनहार बल्कि वह सबकुछ गुणो से युक्त मानते हैं , जिससे कि यह दुनियाँ कायम और संचालित हो रही है | इसलिए पुजा करवाने के लिए देवी देवताओ को प्राकृति से भी अधिक चमत्कारी और शक्तीमान दर्शाना मनुवादियों के लिए जरुरी था | जबकि सच्चाई ये है कि बिना प्राकृति के देवी देवताओ के बारे में भी उन्हे जिन्दा विचरण करते हुए नही बतलाया गया है | क्योंकि देवताओ को प्राकृति के बिना कैसे जिवित रखा जाय मनुवादियों को समझ में नही आ रहा था | जिसके चलते उनको वेद पुराणो में मौजुद प्राकृति ज्ञान में मिलावट और छेड़छाड़ करके सबसे चमत्कारी और ताकतवर दर्शाने के लिए अप्राकृति काल्पनिक बाते गड़नी पड़ी है | जिन देवताओ को मनुवादि अब अपना पुर्वज मानते हैं | जैसा कि मनुवादि राम को भी अपना पुर्वज मानते हैं , न कि शंभुक को अपना पुर्वज मानते हैं | जिन मनुवादियों के पुर्वज माने जानेवाले  चमत्कारी देवता अब इस दुनियाँ में विचरण करने के लिए जिवित नही रहे | और यदि हैं भी तो सिर्फ उनकी कल्पना और आस्था विश्वास में मौजुद हैं | न कि राम अथवा पुष्यमित्र शुंग अब भी जिवित विचरन करते हुए उन मंदिरो में मिल जायेंगे जहाँ पर उनकी मुर्ति बिठाई गयी है | जो स्वभाविक है क्योंकि कोई भी व्यक्ती इस बात को अच्छी तरह से समझ सकता है कि यदि वर्तमान में जन्म ले रहे मनुवादि बाकि इंसानो की तरह ही मरते हैं तो निश्चित तौर पर उनके पुर्वज देवता भी मर गए हैं | जिन देवताओ को संभवता घुमकड़ कबिलई जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले संभवता कपड़ा पहनना भी नही आता था | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके हिन्दू बनने के बाद कपड़ा पहना सीखा और फिर कृषि सभ्यता संस्कृति के बारे में भी जाना | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियों से पारिवारिक रिस्ता जोड़कर हिन्दू परिवार समाज के बारे में जानकर उन्होने इस देश की नारी से अपना वंशवृक्ष भी बड़ा किया | क्योंकि मनुवादियों के पुर्वज इस देश में कबिलई झुंड बनाकर प्रवेश करते समय अपने साथ किसी नारी को नही लाए थे ये बात DNA रिपोर्ट से साबित हो चुका है | इस देश के नारियो के साथ परिवार बसाकर यहूदि DNA का मनुवादियों ने इस देश की हिन्दू सभ्यता संस्कृति में ढलकर बहुत से लाभ लेने के साथ साथ अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत का संक्रमण भी दिए हैं | रही बात मंदिरो की निर्माण करना कराना मनुवादि आखिर कब सिखे तो चूँकि बौद्ध जैन धर्म का स्थापना जब हुआ उस समय तक मनुवादियो की दबदबा इस कृषि प्रधान देश में कायम हो चुकि थी | और मनुवादि लोग सत्ता में भी उच्च पदो में चयन किये जाने लगे थे | जैसा कि इतिहास मौजुद है कि बौद्ध सम्राट ने ब्रह्मण पुष्यमित्र शुंग को सेनापति बनाया था | जिस एक उदाहरन से पता चलता है कि बौद्ध लोग मनुवादियो को कितने उच्च पदो में बैठाते थे | नंद सम्राट ने भी तो मनुवादियों को उच्च पद दे रखा था | जिसके चलते जिस नंद सम्राट के बारे में सिर्फ सुनकर शैतान सिकंदर भाग गया था | जो शैतान सिकंदर यूनान से विश्व लुटेरा बनने निकला था | पर जैसे ही पुरी दुनियाँ को लुटते लुटते इस देश में भी लुटपाट करने के लिए प्रवेश किया उसका अंत सुरु हो गया | जिसके चलते वह इस अखंड देश के किनारे हिस्से से ही डरकर भाग गया था | क्योंकि इतिहास गवाह है कि शैतान सिकंदर इस देश का वीर पुरु राजा से अधमरा होकर देश का किनारे हिस्से से ही भाग गया था | इस देश के रक्षको के साथ लड़ते हुए बुरी तरह से जख्मी होने की वजह से भरी जवानी में उसकी मौत हो गई थी | क्योंकि इस देश के वीर रक्षको ने देश और प्रजा की सुरक्षा करते हुए शैतान सिकंदर को इतना मारा कि यूनानी दवा से भी उसका इलाज नही हो पाया | हलांकि बहुत से इतिहासकारो का मानना है कि शैतान सिकंदर पुरु राजा के दिये गए जख्मो की वजह से नही मरा था , बल्कि वह चूँकि वह नशेड़ी था , इसलिए तब इस देश की राजधानी पाटलिपुत्र में कब्जा करने का सपना को साकार नही कर पाया तो खुदको विश्व विजेता सिकंदर इतिहास इस देश में न रच पाने की वजह से इस देश से भागने के बाद तनाव कम करने के लिए और अधिक पिने लगा और पी पीकर भरी जवानी में मर गया था | शैतान सिकंदर ने नंद सम्राट के बारे में सिर्फ सुनकर अपने देश वापस लौटने का फैशला कर लिया था | जिस नंद की हत्या भी तो ब्रह्मण चाणक्य ने सुपारी देकर करवाया था |  जिस चाणक्य पर नंद सम्राट का आरोप था कि उसने मगध की खास पुस्तक को चुराकर उसकी रचनाकार खुदको घोषित किया है | जो पुस्तक आज चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र के रुप में जाना जाता है | जिस चाणक्य के बारे में यह भी कहा जाता है कि कपटी चाणक्य ने अपनी स्वार्थपुर्ति और मगध में मनुवादियों की दबदबा कायम करने के लिए पहले तो लोहा ही लोहा को काटता है की सिद्धांत पर मुलनिवासी सम्राट नंद से भिड़वाने के लिए मुलनिवासी चंद्रगुप्त मौर्य को दास के रुप में खरिदकर उसे अपना शिष्य बनाकर उसे तैयार करके मगध की सत्ता प्राप्त करने तक उसकी बुद्धी बल का भरपुर इस्तेमाल किया , उसके बाद उसे सिकंदर के सेनापति की बेटी से चंद्रगुप्त के इंकार करने के बावजुद भी जोर जबरजस्ती विवाह करवाया | ताकि कबिलई विदेशियों से रिस्ता जोड़ने के बाद उनका खास सहयोग लेकर इस कृषि प्रधान देश में कबिलई सोच से ब्रह्मण राज कायम कर सके | और जिसमे रुकावट पैदा न हो इसके लिए चाणक्य ने इस देश के मुलनिवासी चंद्रगुप्त सम्राट को जहर देकर मारने की भी कोशिष किया था , ऐसा भी बहुत से इतिहासकारो का मानना है | पर चंद्रगुप्त को दिया गया जहर वाला भोजन को गलती से उसकी गर्भवती पत्नी ने खा लिया और चंद्रगुप्त के बजाय चंद्रगुप्त की पत्नी मर गयी थी , इसलिए जब चाणक्य को सजा देने की मांग उठने लगी तो चाणक्य सजा से बचने के लिए जंगलो में जाकर छिप गया था | जो लंबे समय तक घने जंगलो में ही जिवन यापन करने लगा | पर चूँकि कहा जाता है कि चंद्रगुप्त की गर्भवती पत्नी चाणक्य द्वारा दीया गया जहर से मरने के बावजुद भी , पेट में मौजुद बच्चा जिवित जन्म लेकर बच गया था , इसलिए चंद्रगुप्त के द्वारा बौद्ध भिक्षु बनने के बाद उसका बच्चा बड़ा होकर अपनी माँ का बदला चाणक्य से लेने की ठानकर मगध का सम्राट बनने के बाद चाणक्य को जंगलो से खोजकर जिन्दा जलवा दिया था | हलांकि बहुत से इतिहासकारो का मानना है कि जब चाणक्य पर चंद्रगुप्त को जहर देने , जिसे चंद्रगुप्त की गर्भवती पत्नी खाकर मर गई ऐसा आरोप लगा तो वह बदनामी सह नही सका और जंगलो में जाकर उसने बदनामी न सह सकने की वजह से आत्महत्या कर लिया था | हलांकि सच्चाई जो भी हो कि चाणक्य ने बदनामी से आत्महत्या किया था कि उसे चंद्रग्प्त की पत्नी को जहर देकर मारने की सजा देने के लिए जिन्दा जला दिया गया था , पर इतना तो तय है कि बौद्धो ने ब्रह्मणो को खास पदो पर बिठाया था | जिसकी वजह से ही बौद्धो का यदि विनाश हो रहा था तो फिर सवाल उठता है बौद्ध शासक बार बार एक ही गलती को क्यों दोहरा रहे थे ? बल्कि आज भी यह बाते बहुत से विद्वानो द्वारा कही सुनी जाती है कि बहुत से बौद्ध मंदिरो में जो भारी भेदभाव होता है , वह इसलिए होता है क्योंकि बौद्ध धर्म में भी ब्रह्मण घुसकर उच्च पदो में बैठकर बौद्ध मंदिरो में भेदभाव कर रहे हैं | जो बुद्धम् शरनम् गच्छामि सुनकर बौद्ध भिक्षु तो बन गए पर अपनी मनुस्मृति बुद्धी को अबतक नही छोड़ पाये हैं  | जो बात यदि सत्य है तो फिर चाहे हिन्दू मंदिरो हो या फिर बौद्ध मंदिर , दोनो जगह भष्म मनुस्मृति का भुत मंडरा रहा है | यानि जो हिन्दू मनुवादियों से अजादी पाने के लिए बौद्ध धर्म अपना रहे हैं , उनमे से बहुत से लोग बौद्ध मंदिरो में भी जाकर भारी भेदभाव का सामना कर रहे हैं | बल्कि बाकि धर्मो में भी भारी भेदभाव कायम है इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता | जाहिर है मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा का विवाद तब से सुरु हुआ होगा जबसे धर्म को अपना धँधा बनाने वाले ढोंगी पाखंडियों की घुसपैठ सभी धर्मो में सुरु हुई होगी | जिसके चलते आज भी धर्म के नाम से दंगा फसाद और अनेको विवाद होकर हिंसक लड़ाई जारी है | 

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