आजाद भारत का संविधान की रक्षा

भारी भेदभाव करने की मानसिकता दरसल उन लोगो की उपज है,जो कि अपनी शिकारी सोच से अबतक भी खुदको बाहर निकाल नही पाये हैं|जिस तरह की मांसिकता कबिलई लोगो में उन बुरे लोगो की रही है जिनके खिलाफ उनके अपने भी लंबे समय तक कड़ी संघर्ष करते रहे हैं|खासकर उन लोगो के खिलाफ जो कि लंबे समय से किसी मच्छड़,खटमल और जू जैसे परजिवी की तरह घुम घुमकर किसी कृषी समाज से चिपककर हजारो सालो से दुसरे की हक अधिकारो को चुसते रहे हैं|जिनके अवगुणो को आज भी छुवा छुत करना नही छोड़ने वाले अपना आदर्श मानकर चल रहे हैं!क्योंकि उन्हे लगता है छुवा छुत करके ही सबसे विकसित बुद्धी बल का विकाश होता है|दुसरी तरफ छुवा छुत का शिकार मुल कृषि सभ्यता संस्कृती को हजारो साल पहले ही विकसित करने वाले लोगो को लगता है, कि छुवा छुत करना अपनी अविकसित मांसिकता को दर्शाना है|जिनको पुरा यकिन है कि भविष्य की नई पिड़ी कभी नही बहुत लाभकारी बतलाकर छुवा छुत जैसे भ्रष्ट संस्कार का अपनायेगी|जो मेरे ख्याल से सबसे विकसित विचार है|लेकिन भी ऐसी ज्ञान बांटने वाली बुद्धी बल को निच और कमजोर बतलाकर हजारो सालो से उच्च निच का भेदभाव करना जारी है|मानो ढोल,गंवार,शूद्र,पशु नारी,शकल ताड़न के अधिकारी में ताड़ना मतलब सिखाना होता है कहकर कान में पिघला लोहा डालना ,जीभ काटना ,अँगुठा काटना जैसी बाते लंबे समय से सिखलाई जाती रही है अपने नई अपडेट छुवा छुत पिड़ी को|जो अपडेट 21वीं सदी में भी छुवा छुत कायम रखकर मानो अजाद भारत का संविधान रचना करने वालो को मानवता की सेवा करना सिखलाई जा रही है कि मनुस्मृती को लागू करके और कानून द्वारा खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित करके मनुस्मृती की रचना करने वाले बहुत महान कार्य मानवता की भलाई के लिए कर रहे थे|जिसके चलते ही वे खुदको जन्म से ही उच्च विद्वान पंडित कहते रहे हैं|जिनके द्वारा रचित मनुस्मृती को गोरो से अजादी मिलने से पहले ही भष्म करके बाद में अजाद भारत का रचना किया गया है|वह भी उन्ही शुद्र कहलाने वालो में ही एक शोषित पिड़ित द्वारा जिसने मनुस्मृती की तुलना रोमराज से किया है|जाहिर है जन्म से ही छुवा छुत का शिकार होने वाले और जन्म से ही खुदको उच्च कहकर बाकियो को निच बतलाने वाले दोनो के बिच हिंसक और अहिंसक तरिके से लंबे समय से संघर्ष चलती रही हैं|छुवा छुत करने वाला मंदिरो में शुद्र का प्रवेश मना है बोर्ड लगाकर मंदिरो में एकाधिकार बनाकर और खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित बतलाकर बाकियो को ढोल,गंवार,शूद्र,पशु नारी,शकल ताड़न के अधिकारी सोच के जरिये हमेशा ताड़ते रहना चाहता है|जिसके चलते ही तो आजतक भी छुवा छुत जैसे शोषन अत्याचार करने वाले पिड़ि दर पिड़ि छुवा छुत को मानो पुर्वजो की खास विरासत समझकर उसे आज तक भी अपने पीठ में मनुस्मृती का भारी बस्ता ढोकर विशेष प्रकार की ताड़ने की हुनर अपनी नई पिड़ी को भी बहुत जरुरी है बतलाकर सिखलाते आ रहे हैं|जिसके चलते आज भी इस अजाद देश में छुवा छुत जैसी ऐसी अँधेरा कायम है|जैसे मानो सुर्य ग्रहण के समय हो जाती है|और इस समय अजाद भारत का संविधान यदि सुर्य है तो अजाद भारत का संविधान को ग्रहण लगाने वाला भष्म मनुस्मृती का भुत है|जिस अँधेरे के खिलाफ कड़ी संघर्ष करने वाला मनुस्मृती सोच के खिलाफ आवाज उठाकर हजारो सालो से छुवा छुत करने वालो को ये समझाने की कोशिष करने में लगे हुए हैं कि छुवा छुत करना इंसानियत और समाज लोकतंत्र सभी के लिए बहुत हानिकारक है|जैसे की सुर्य ग्रहण के समय उससे निकलने वाली रौशनी हानिकारक होती है|जिस तरह की ही इंसानियत की हानि से बचने के लिए आज भी कृषी समाज में अपने सर से सुख शांती और समृद्धी का ताज भी गवाकर सर में छुवा छुत जैसे शोषन अत्याचार का मैला ढोकर भी भारी भेदभाव के खिलाफ संघर्ष जारी है|बल्कि कभी कभी तो कई कबिलई समाज में भी अपने ही कबिलई मांसिकता के विरुद्ध दुसरे कबिलई मांसिकता के लोग कड़ी संघर्ष करते रहे हैं|जो लोग भी भारी शोषन अत्याचार और गुलामी के खिलाफ अपने ही दुसरे कबिलई लोगो से भिड़ते रहे हैं!जिसका सबसे बड़ा उदाहरन प्राचिन रोमराज के खिलाफ कड़ी संघर्ष चली है|जिस रोमराज की तुलना बाबा अंबेडकर ने मनुस्मृती से किया है|जिस तरह की रोमराज न तो प्राचिन में भले लोग चाहते थे और न ही वर्तमान के भी लोग रोमराज लाना चाहेंगे|बल्कि समय समय पर एक जगह ही जिन तीन धर्मो का उदय हुआ है यहूदी,मुस्लिम और इसाई धर्म के रुप में उन तीनो धर्मो के खास इंसानियत के लिए जन्मे इंसानो ने भी भारी भेदभाव और गुलामी के खिलाफ अजादी संघर्ष किये हैं|जैसे कि संदेश वाहक मुसा ने अपने ही परिवार के खिलाफ अजादी की लड़ाई लड़ने के लिए महल को त्यागा था और मसीह यीशु भी अजादी संघर्ष करते करते सुली पर चड़ाये गए थे!उसी तरह मोहम्मद पैगंबर भी भारी भेदभाव और गुलामी के खिलाफ हक अधिकार और अजादी के लिए जंग लड़े थे|जो जंग इंसानियत अमन को कायम करने अजादी प्रेम बांटने के लिये लड़ी गई थी|जिस इंसानियत को अँधेरा कायम करके गुलामी और भारी भेदभाव जैसे शोषन अन्याय अत्याचार करने वाले कोई कृषी मांसिकता के लोग नही थे,बल्कि कबिलई और शिकारी मांसिकता के लोग थे|जो कि दुसरे की हक अधिकारो को लुटकर और कब्जा करके भारी शोषन अत्याचार कर रहे थे!जिनकी शिकारी मांसिकता की वजह से उस समय अरब में नारी को पैदा होते ही खत्म करने जैसी नियम कानून बनाकर गुलामी और नफरत की शिकार की जा रही थी!जिस तरह के कबिलई शिकारी मांसिकता के लोग अपने ही लोगो को तो सताये ही हैं लंबे समय से,पर दुसरे लोगो को भी हजारो सालो से सताते रहे हैं|जिनके द्वारा दिए गए जख्म आज भी पुरे विश्व में भरे पड़े हैं|जो कि किसी नदी किनारे हजारो साल पहले ही विकसित कृषी सभ्यता संस्कृती के द्वारा नही दिए गए हैं,बल्कि उन घुमकड़ कबिलई द्वारा दिए गए हैं,जो कि आज भी अपनी फंदा लगाउ शिकारी सोच से बाहर नही निकल पाये हैं|जिसकी वजह से आज भी बस उसे अपडेट ही करते आ रहे हैं|जैसे की पुराने गोरे अपनी बेहत्तर बुद्धी और बल का विकाश करने की बाते करके इस्ट इंडिया कंपनी का गुलामी फंदा लगाकर यीशु अजादी प्रेम बांटने के बजाय लंबे समय तक कई देशो का शिकार करके गुलाम बनाकर मान सम्मान जान और धन वगैरा लुटते रहे|जो यदि अपना पेट पालने के लिए और कथित अपना विकाश करने के लिए भी मुलता घुमकड़ लुटपाट आदत छोड़कर अपने मुल स्थान पर ही स्थिर होकर कृषी सभ्यता संस्कृती को मुल रुप से अपना लेते,तो कभी भी किसी देश को गुलाम या दास बनाकर शोषन अत्याचार करने की नही सोचते!जो इतिहास में कई देशो को न्याय करने का जज बनकर भी गुलाम करने के लिए चर्चित हैं|जैसे की प्राचिन रोमराज कई देशो के साथ घोर अन्याय अत्याचार करने के लिए इतिहास में चर्चित है|उसी तरह हिन्दुस्तान में भी खुदको भगवान का सबसे बड़ा पुजारी बतलाकर छुवा छुत करने के लिए जो लोग चर्चित हैं,उनकी सोच कोई हिन्दुस्तान की सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती से नही जन्मी है,बल्कि किसी रोमराज जैसे किसी कबिलई सोच की ही उपज है|जिनकी वजह से इस कृषी प्रधान देश को न जाने कितने हजार साल छुवा छुत की जकड़न से खुदको छुड़ाने में बर्बाद हुए, और आज भी हो रहे हैं|और आगे भी और न जाने कितने ही साल इसी तरह छुवा छुत की जकड़न की वजह से बर्बाद होते रहेंगे|जिन छुवा छुत करने वालो के लिये तो अब छुवा छुत आधुनिक साईनिंग और डीजिटल   अपडेट लेकर आई है|क्योंकि कहने को आज इंसान की सोच मंगल तक भी पहुँच चुकी है,पर फिर भी इस देश में छुवा छुत करने वालो की सोच हजारो साल पिच्छे प्राचिन रोमराज सोच को अपडेट करने में ही लगी हुई है|जो कोई भले या विकाश के लिए नही बल्कि शोषन अत्याचार और विनाश के लिए ही आज भी छुवा छुत की जा रही है|जिस तरह की भ्रष्ट मांसिकत वाली एक भी भ्रष्ट बुद्धी नई पिड़ी को छुवा छुत करना जबतक सिखलाती रहेगी तबतक हिन्दुस्तान से छुवा छुत मानो मनुस्मृती को भष्म करके अजाद भारत का संविधान रचना करके भी मनुस्मृती का भुत किसी शोषित पिड़ित के पिठ में लदे बैताल भुत की तरह  इस कृषी सभ्यता संस्कृती परिवार समाज को जकड़कर छुवा छुत शोषन अत्याचार करता रहेगा|जिसे मोक्ष जबतक नही मिलेगा,तबतक मनुस्मृती की आत्मा इस कृषी प्रधान देश में छुवा छुत के रुप में भटकती रहेगी|जिसे मोक्ष तभी मिलेगी जब वह अपना गुनाह को पुरी तरह से स्वीकार कर लेगा कि उससे कौन कौन से बड़े पाप हुए हैं?जिसे जबतक छिपाने की प्रक्रिया चलती रहेगी तबतक ऐसी मोक्ष यात्रा चलती रहेगी जिसका कोई मंजिल ही नही है!जैसे कि शिकार पर निकले किसी शिकारी या फिर लुटपाट करने निकले कबिलई लुटेरो की कोई ऐसी स्थिर मंजिल नही होती है,जहाँ रुककर वे अपनी बुद्धी को स्थिर करके स्थिर सागर की तरह कृषी तप करके हजारो कृषी हुनर को प्रयोगिक रुप से सिखकर अपना परजिवी जिवन जिना छोड़ सके|जैसे कि हिन्दुस्तान में हजारो साल पहले ही स्थिर कृषी तप करके हजारो हुनर वरदान की खोज करके उसके जरिये विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती और मजबुत गणतंत्र की नीव डाली जा चुकी है|जिन हजारो विकसित हुनर को हजारो निच जाती बनाकर हजारो सालो से छुवा छुत शोषन अत्याचार करना जारी है|जैसे की आज स्थिर सागर में न जाने कितने ही अनगिनत प्रदुषन अंबार द्वारा सागर और सागर में रहने वाले जिव जंतुओ बल्कि चूँकि सागर से पुरे पृथ्वी का पर्यावरण निर्भर है,इसलिए पुरे पृथ्वी को ही नुकसान पहुँचाना जारी है|जैसे की हजारो सालो से इस विश्वगुरु कहलाने वाला कृषी प्रधान देश को भारी भेदभाव करने वाली कबिलई अँधेरा से नुकसान पहुँचाना जारी है|जिसके बारे में जाननी है तो जिन्हे हजारो निच जाती के रुप में बांटा गया है,उनमे से किसी एक जाती कि हुनर पुछकर पता किया जा सकता है कि वह जाती किसी खास हुनर के कार्यो में लगकर मजबुत गणतंत्र को विकसित करने में लगा हुआ था उसी समय जब इस देश में छुवा छुत और उच्च निच का भुत तो दुर मनुस्मृती की रचना करने वाले भी मौजुद नही होंगे!जो बाद में प्रवेश करके इस कृषी प्रधान देश के हजारो विकसित हुनर को हजारो शुद्र जाती बनाकर खुदको जन्म से ही विद्वान पंडित,वीर क्षत्रीय और धन्ना वैश्य जाती घोषित करने का नियम कानून मनुस्मृती रचना करके उसे प्रयोगिक रुप से लागू करके शोषन अत्याचार सुरु हो गया होगा,जैसे कि खुदको सबसे विकसित बतलाकर गोरो द्वारा अंदर इंडियन और कुत्ता का प्रवेश करना मना है बोर्ड लगाकर देश गुलाम करके लुटपाट अन्याय अत्याचार सुरु हुआ था|जिससे तो अजादी मिल गई है पर छुवा छुत से पुर्ण अजादी इस देश को नही मिली है|जाहिर है हिन्दुस्तान में छुवा छुत जबतक समाप्त नही होगी तबतक निश्चित रुप से भष्म मनुस्मृती की आत्मा इस देश में छुवा छुत के रुप में भटकती रहेगी|इसलिए सायद इस कृषी प्रधान देश में आजतक भी छुवा छुत समाप्त नही हो पा रही है|जिसके चलते हिन्दुस्तान में आजतक भी गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में भारी भेदभाव करना जारी है|बल्की अजाद हिन्दुस्तान का संविधान लागू होकर भी शासन व्यवस्था में भी छुवा छुत ने अपना जकड़न बनाये रखकर इस देश के शोषित पिड़ितो को भारी भेदभाव से जकड़कर रखा गया है|जिससे अजादी मिलना अभी बाकी है|जिसके लिये कड़ी संघर्ष करना आजतक भी जारी है|क्योंकि हक अधिकारो की छिना झपटी हर रोज ही जारी है!गोरो से तो अधुरी अजादी झांकी भर मिल गई पर छुवा छुत जैसे भारी  भेदभाव से पुरी अजादी मिलना बाकी है|जिस गुलामी के बारे में किसी छुवा छुत करने वालो को यदि ठीक से खुद ही समझनी हो तो जिन मंदिरो में शुद्र का मंदिरो में प्रवेश करना मना है लिखा हुआ बोर्ड रहता है,वहाँ पर प्रवेश करके उसका सचमुच में भितर से विरोध करके अपने ही डीएनए के लोगो के खिलाफ कभी अवाज उठाकर देखो पता चल जायेगा पुरी अजादी संघर्ष क्या होती है|जिस तरह का विरोध अब छुवा छुत करने वालो के घरो से भी अपने ही डीएनए के बहुत से नई पिड़ी द्वारा किसी शोषित पिड़ित को अपने से निचे दबाकर रखने और अपनी उच्च दबदबा बनाये रखने में जो लंबे समय से भारी भेदभाव होती रही है,उसके खिलाफ पहले से और ज्यादे सोर गुल होने लगी है|जिस आवाज को दबाने के लिए किसी दलित पिछड़ी और आदिवासी की आड़ लेकर छुवा छुत इतिहास को छिपाने की कोशिषे भी यदि संभवता हो रही है,ताकि बिना कोई शक के भितर भितर फिर से मनुस्मृती को अपडेट की जा सके|जिसके बावजुद भी मेरे ख्याल से ऐसी मनुस्मृती मांसिकता अपडेट मानो भष्म मनुस्मृती को अजाद भारत का संविधान से बेहत्तर बतलाने की मात्र कोशिष है| क्योंकि अब इतिहास में दुबारा से ऐसा कोई भी मौका न तो विश्व समाज ही देगी और न ही इस देश के शोषित समाज ही कोई ऐसा मौका अपने सर में छुवा छुत का मैला ढोकर देना चाहेगी जिससे की भविष्य में फिर से भष्म मनुस्मृती जैसी रचना अपडेट करके उसे इस कृषी प्रधान देश में लागू किया जा सके|जिसके जरिये ऐसी बड़ी दाग लग सके जिसे आनेवाली नई पिड़ी भी झेले अपने सर में छुवा छुत का मैला ढोकर खुदको उच्च जाती का सेवक मानकर|लेकिन भी चूँकि झुठी कोशिषे जारी है,जैसे की लोकतंत्र की हत्या करने की कोशिषे हो रही है ये बात यू ही नही कही जा रही है!जो बात यदि बाद में सत्य भी साबित हुई की लोकतंत्र की हत्या करने की सुपारी बार बार दी जा रही है,तो निश्चित तौर पर मेरे ख्याल से कोई नया बहुत बड़ा बलि का बकरा तलाशकर मनुस्मृती को जिन्दा करने के लिये चड़ाया जा रहा है|

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