मनुस्मृति को भस्म कर लिखा गया है आजाद भारत का संविधान

मनुस्मृती को भस्म कर लिखा गया है अजाद भारत का संविधान
फिर भी 21वीं सदी का आधुनिक मानव बतलाकर आज भी मनुस्मृती का ऐसे फोलोवर बहुत मिल जाते हैं, जो कि बड़ी बड़ी विद्वान डिग्री लेकर भी छुवा छुत करना आजतक भी नही छोड़े हैं|क्योंकि उनके लिये विद्वान का कागजी डिग्री होना ही काफी है किसी उच्च पदो में बैठने के लिए,जिसके चलते आरक्षण विरोध के समय भी ये तर्क दी जाती है कि बड़े बड़े नंबरो से डिग्री लेने वाले संवर्णो को काम या एडमिशन नही मिलता है,जबकि कम नंबर और कम डिग्री आरक्षित वालो को आसानी से मिल जाता है|जो बात यदि सत्य होती तो लोकतंत्र के चारो स्तंभो में संवर्णो की दबदबा वर्तमान में नही रहती|जिनसे भी पेट नही भर रहा है संवर्णो कि|जिनका वश चले तो जिस प्रकार छुवा छुत का मनुस्मृती उच्च डिग्री हासिल करके आज भी बहुत से मंदिरो में प्रवेश नही करने देते हैं,उसी प्रकार जन्म से ही उच्च जाती डिग्री को सबसे बड़ी काबलियत मान्यता देकर आरक्षण खत्म करके किसी भी सरकारी पदो में प्रवेश करने नही दे|ये तर्क देकर कि चयन प्रक्रिया में सिर्फ उच्च जाती की डिग्री और मनुस्मृती द्वारा मान्यता प्राप्त नंबर ही असली मापदंड होनी चाहिए|क्योंकि एक तो वैशे भी जिस डिग्री को सबसे बड़ी काबलियत बतलाकर जो सेखी मारी जा रही है कि संवर्ण सबसे काबिल हैं,उस काबलियत को मान्यता देनेवाली विश्वविद्यालयो में एक का भी नाम विश्व के दो सौ श्रेष्ट विश्वविद्यालयो की लिस्ट में मौजुद नही है|क्योंकि विश्वविद्यालयो की डिग्री देनेवाली उच्च पदो में भी भारी भेदभाव कायम करके श्रेष्ट संवर्णो का उच्च दबदबा है|लेकिन भी यदि कठिन संघर्ष करके विश्व स्तरीय उच्च डिग्री और देश में भी अच्छे से अच्छे नंबर लाओ तो भी यदि शुद्र जाती के कहलाते हो तो चाहे जितनी उच्च पदो में बैठो छुवा छुत की जायेगी जैसे कि बाबा अंबेडकर के साथ कि गई थी विश्व स्तरीय बड़ी बड़ी डिग्री हासिल करने के बाद उच्च पद हासिल करके भी,जिसके चलते बाबा अंबेडकर को बाद में पद से इस्तीफा देना पड़ा था|बल्कि उन्हे तो हिन्दु धर्म को भी छोड़ना पड़ा,जिसका मुख्य कारन संवर्णो द्वारा भारी भेदभाव करना ही है|हलांकि बाबा अंबेडकर जन्म से लेकर अजाद भारत की संविधान रचना करने तक भी हिन्दु धर्म में ही रहकर भारी भेदभाव के खिलाफ कठिन संघर्ष किये और हिंदु धर्म में ही रहकर  बड़े बड़े डिग्री हासिल करके विश्व स्तरीय संविधान की रचना भी किए|पर कभी नही ये स्वीकारे कि हिन्दु धर्म संवर्णो के द्वारा बनाया गया धर्म है|इसलिये उसे छोड़कर दुसरे धर्म को अपना लेना चाहिए|पर संवर्णो के भेदभाव के चलते हिंदु धर्म में ही रहकर सारी बड़ी बड़ी उपलब्धि और कामयाबी हासिल करने के बाद भी जिवन के अंतिम सफर में अचानक से मानो हिन्दु धर्म को संवर्णो की रचना बतलाकर धर्म परिवर्तन कर लिए|हलांकि देश गुलाम के समय अथवा गोरो के शासन समय ही छुवा छुत करने वाले संवर्णो द्वारा भारी भेदभाव का सामना करने वाले शोषित पिड़ितो के बिच ही जन्मे बाबा अंबेडकर जो कि जन्म से ही भारी भेदभाव का सामना हिंदु धर्म में ही रहकर किये थे,उन्होने मात्र मनुस्मृती को भष्म किये हैं|जिसे भष्म करने के बाद अजाद भारत की रचना करके कबका बतला दिये हैं कि संवर्ण कोई जन्म से विद्वान पंडित नही हैं|और न ही कोई मनुस्मृती रचने वालो की बुद्धी से शोषित पिड़ित कम बुद्धी वाले इंसान हैं|जिन्होने संवर्णो से कहीं अधिक ज्ञान रचना कई वेद पुराणो की रचना हिंदु धर्म में किये हैं|जिन सभी को बाबा अंबेडकर ने नही जलाये हैं,सिर्फ मनुस्मृती को जलाये हैं|और बाबा अंबेडकर ने भी तो हिंदु धर्म में ही रहकर अजाद भारत की रचना किये हैं|इसका मतलब साफ है कि सारे हिंदुओ की रचना उनके नजर में भी मनुस्मृती जैसी रचना नही है,बल्कि संवर्णो द्वारा रची गई या फिर मिलावट व संक्रमित की गई भारी भेदभाव और डोंग पाखंड  की रचना भारी घुटन और गुलामी का यहसास कराती है|जिसकी वजह से ही उन्होने हिंदु धर्म परिवर्तन किये होंगे|न कि हिंदु मुल विचार और मुल वेद पुराणो की वजह से मुल रुप से अपना धर्म परिवर्तन किये होंगे|जैसे कि आज भी संवर्णो कि छुवा छुत और ढोंग पाखंड कि वजह से हि कई हिंदु अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं|कोई वेद पुरान और हिंदु पर्व त्योहारो की वजह से अपना धर्म परिवर्तन नही कर रहे हैं|जिनको हिंदु धर्म परिवर्तन न करने के लिए यही कहुँगा कि हिंदु धर्म संवर्णो की रचना और खानदानी जागिर नही कि हिन्दु धर्म को संवर्णो का धर्म रचना मानकर अपना धर्म परिवर्तन  कर लिया जाय|क्योंकि हिंदु धर्म की रचना यदि संवर्ण करते तो ये देश विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ कभी नही कहलाता|और न ही यहाँ पर हिंदु बौद्ध जैन धर्म का उदय होता|जो सारे धर्म के लोगो को ही धर्म परिवर्तन कराया जा सकता है,बाकि और बचा ही कौन धर्म है इस देश में जिनका धर्म परिवर्तन कराई जानी है|क्योंकि बाकि सभी धर्म तो इस देश से बाहर एक ही जगह में उदय होकर अलग अलग तीन धर्म के रुप में विश्व में चारो ओर बंटे हैं|जैसे कि एक अखंड हिन्दुस्तान भुमि में हिंदु बौद्ध और जैन अलग अलग धर्म के रुप में उदय होकर बंटे हुए हैं|जिस अखंड हिन्दुस्तान विश्वगुरु और सोने कि चिड़ियाँ को अपडेट करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन नही बल्कि हिंदु धर्म और हिन्दुस्तान में भारी भेदभाव और छुवा छुत संक्रमण देनेवाले लोगो की सोच में परिवर्तन लानी चाहिए|जिस परिवर्तन को लाने के लिए ही तो छुवा छुत करने वाले यहाँ पर छुवा छुत मन में परिवर्तन लाने के लिए मौजुद हैं|क्योंकि मेरा मानना है कि जो कार्य कोई गुरु नही कर सकता वह चमत्कारी कार्य ये विश्वगुरु कहलाने वाला देश जरुर कर सकता है|जिस कार्य को करने के लिए ही तो इस कृषी प्रधान देश में हजारो सालो से छुवा छुत की मैला ढोकर भी चमत्कारी परिवर्तन लाने की प्रक्रिया जारी है|जिस प्रक्रिया को करते करते छुवा छुत से पुरी अजादी कोई धर्म परिवर्तन करने से नही मिलेगा|क्योंकि छुवा छुत करने वाले जबतक मनुस्मृती सोच से मुक्त नही होंगे तबतक अजाद देश में भी छुवा छुत संक्रमण देते रहेंगे|जैसे की अंग्रेज जाने के बाद भी अंग्रेजी का संक्रमण कभी नही जानेवाली है|भले उसकी दबदबा एकदिन पुरी तरह से समाप्त हो जायेगी|जैसे की रुस चीन जापान जर्मनी वगैरा कई देशो में अंग्रेजी की दबदबा मौजुद नही है|इसका मतलब ये नही कि वहाँ पर अँग्रेजी भाषा अब मौजुद नही है|मेरा कहने का मतलब साफ है कि जिस तरह पुरी दुनियाँ में चोरी लुट हत्या और बलात्कार जैसे अपराध कभी नही जड़ से खत्म होनेवाली है उसी तरह भेदभाव भी खत्म होनेवाली नही है|पर उसकी प्रभाव को खत्म जरुर किया जा सकता है|जैसे की छुवा छुत की प्रभाव को खत्म किया जा सकता है|भले क्यों न भष्म मनुस्मृती का भुत मंडराना अब भी जारी है|वह तो शैतान सिकंदर का भुत भी महान सिकंदर बतलाकर अब भी मंडराना जारी है|जिन दोनो को ही सायद मोक्ष नही मिला है,इसलिए आजतक भी इस देश में मंडरा रहे हैं|जिसके खिलाफ संघर्ष आज भी विभिन्न स्तर पर जारी है|

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही?

गर्मी के मौसम में उगने वाले ये केंद फल जीवन अमृत है और उसी फल का केंदू पत्ता का इस्तेमाल करके हर साल मौत का बरसात लाई जा रही है

angad kee maan taara kisakee patnee thee